Saturday, December 27, 2014

जख्मी दिल दिखाने का, एक मौका देना

5.08.2007

कभी तेरे शहर में आऊँगा मुसाफिर की तरह
बस, एक बार, मुलाकात का, एक मौका देना।
जुदा हो के तुझसे भटका हूँ किस तरह,
जख्मी दिल दिखाने का, एक मौका देना।
तन्हाइयों में सांसे, लेता था किस तरह,
एक बार तुम्हें बताने का,एक मौका देना।
तेरी गलियों में गाऊँगा, शायर की तरह,
एक बार घर में आने का, एक मौका देना।
खुशियों में जानेमन, ना काँटा बनूँ, इस तरह,
मुझे भी मुस्कराने का, एक मौका देना।

Friday, December 26, 2014

उम्मीद है खुश् होंगी आप

5.06.2007

क्षणभर को लहर ने भिगोया
था रावी का किनारा
वर्षो की प्रतीक्षा
डुबकी लगाने को
गहराई में उतरा
तुम्हारा हाथ पकड़ा
न तुम डूबी, न मुझे डूबने दिया
स्नेह नीर को
गन्दा करार देकर
न केवल मुझको
कीचड़ में ढकेल दिया
वरन् स्वयं भी
जहाजों के आकर्षण में
भंवरों में फंस गईं
काश! तुम्हें भंवरों से मुक्त कर पाता।

5.07.2007

दुनियाँ में नहीं बुझती
नेह की प्यास
यहाँ दिखता 
हर चेहरा उदास
हम तो जी रहे हैं
सिर्फ आपकी यादों को ले
उम्मीद है
खुश् होंगी आप
प्रेम की सुगंध से सुगंधित
चहुँ ओर बिखेरती होंगी हास।

Friday, December 19, 2014

बजी अन्तर की शहनाई आस भरी

5.05.2007

गहराई असीमित अंधकार भरी
हाहाकार हरक्षण चीत्कार भरी
खतरों से हताश था चला जाता
आई थी फुहार एक आश भरी

मरूस्थल की रेत मरूमरीचिका भरी
कीचड़ के दल-दल में नहीं गागर भरी
जैसे सागर का रमा ने छुआ गात
बजी अन्तर की शहनाई आस भरी

Thursday, December 18, 2014

मैं तुम्हें फिर मिलूँगा

5.04.2007

मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
कब?
कहाँ?
कैसे?
न मुझे मालुम
न तुमको।

मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
साल?
दो साल?
या युगों के बाद?
न मुझे मालुम
न तुमको।

मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
जवानी?
प्रोढ़ावस्था
या वृद्धावस्था में?
न मुझे मालुम
न तुमको।

मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
शारीरिक?
मानसिक?
या आत्मिक रूप से?
न मुझे मालुम
न तुमको।

मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
चेतन?
अवचेतन?
या अचेतन?
न मुझे मालुम
न तुमको।

मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
नियोजित?
अनियोजित?
या अचानक?
न मुझे मालुम
न तुमको।

मुझे मालुम है
वश इतना
एक ना एक दिन
एक ना एक पल
मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
तुम भले ही
पहचानने से इन्कार कर देना
कुशल व्यापारी की तरह।

Monday, December 15, 2014

शीतल आग में जलते नित हम, आप अंगारों को भोग रहे हैं

5.02.2007
हर खत पर खामोश चाहत को दबा रही हो।
हर मुस्कराहट में आप आँसू छिपा रही हो।
ना पा सके आपको, कोई गिला नहीं हमको,
दोस्त बनकर क्यूँ? मौत की दवा पिला रही हो।

तुम अपना परिवार संभालो, हम भी तो उसमें ही आते।
मजबूरी में हुईं बेवफा, हम अब भी तुमरे गाने गाते।
तुम हर पल हो साथ हमारे, भले शरीर से पास नहीं हो,
आओ बंधकर आलिंगन में, चुंबन दे दो, दो मदमाते।

5.03.2007
एक बार प्रिय एक बार बस, अपने आलिंगन में बांधो।
गले लगा लो एक बार वश, एक बार बांहों में बांधो।
दिल है तुम्हारा जान भी ले लो, अधरामृत वश हमें पिला दो,
जो तुम चाहो वही करेंगे, एक बार नजरों में बाँधों।

हमें नहीं है अपनी चिन्ता आपकी तड़पन भोग रहे हैं।
संयोग में वियोग आपको शोभित, हम वियोग ही भोग रहे हैं।
नहीं बना सके आपको अपना, हममें ही कुछ कमी रही है।
शीतल आग में जलते नित हम, आप अंगारों को भोग रहे हैं।

दिल में तो बसी हुई हो, आप से, होगी कब मुलाकात हो

5.01.2007

आपने हमको जिलाया, आप ही अब मौत भी दे दो।
साथ नहीं दे सकतीं तो बस अपने हाथों विष ही दे दो।
आप रहो खुश, मिली है मंजिल, पीओ जी भर रस का प्याला,
इस दुनियाँ से हमें विदा कर, तन्हाई से मुक्ति दे दो।

शरीर से ही दूर हो केवल, दिल से हर पल साथ हो।
क्षण भर भी ना भूलें हम, दिन हो या फिर रात हो।
आप ही प्रेरणा प्रेरित करतीं, आगे तब ही हम बढ़ पाते,
दिल में तो बसी हुई हो, आप से, होगी कब मुलाकात हो।

Sunday, December 14, 2014

पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी

बात बड़ी ही अजीब है,
                      रोशनी विश्वकर्मा

बात बड़ी ही अजीब है,  दोस्त 
मैं तुम्हारी बात बनाने का इरादा करती हूँ,
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी 
मुझे दो कदम पीछे धकेल देती है I 
मेरी चाहत मुझे ये कहती है ,
तुम्हे चाहने की एक कोशिश करूँ ,
मन में उठती तो है , 
तुम्हारी चाहत की तरंगे ,
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी ,
पल भर में शांत कर देती है, 
मेरे  मन की उठती उमंगें I 
करना चाहती हूँ तुमसे प्यार, 
पाना चाहती हूँ तुमसे दुलार ,
चाहती हूँ मना लो मुझे ,
जब भी हो जाऊँ मैं नाराज़ ,
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी 
धकेल देती है मुझे दो कदम पीछे.
थाम कर हाथ तुम्हारे  ,
चाहती हूँ पार करना ,
जिंदगी के उबड़ खाबड़ रास्ते I 
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी 
ले जाती है मुझे तुमसे दूर I 
मन के किसी कोने में ,
जा कर  छिप जाती है,
बचपन सी एक इच्छा ,
लग कर तुम्हरे सीने से ,
बांध लूँ तुम्हारे  सांसों की 
डोरी से अपनी सांसे ,
सुन लूँ तुम्हारे धडकनों की संगीत I 
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी 
 मुझे तुमसे दूर जाने को कह देती है,
पर, क्या करूँ अपने दिल का ,
तुम्हरी बाँहों में आने को ,
मचल उठता है I 
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी,
झटक देती है मुझे दूर से ही  I 
काश मना पाती मैं तुम्हारे दिल को .
खोल दो गिरह अपने मन का 
अंदर आने का बता दो रास्ता ,
समा जाने दो मुझे अपने अंदर इस तरह ,
फूल और सुगंध हो जिस तरह I 
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी,
दूर न कर दे मुझे तुमसे 
कही ऐसा न हो ,
ढूढ़ते रह जाएँ तुम और मैं 
एक दूजे की परछाई भी न मिले ,
पर तुम और तुम्हारी नाराज़गी। 
 

जिस राह पर आप चलेंगे, खुद को वहीं विछायेंगे

4.29.2007

गर्मी के अवकाशों का प्रिय आनन्द आप लेते होंगे।
आनन्द और शान्ति के साथ, परिवार में आप रहते होंगे।
सोच-सोच हम खुश होते हैं, आप तो खुश होंगे हर पल,
तन्हाई में हम हर क्षण हैं, कभी तो याद करते होंगे।

समाचार भी यदि पा जाते, हम अपने को क्यूँ तड़फाते।
आपकी खुशियों से ही कुछ पल, अपने आपको हम बहलाते।
पुष्पित होंगी, फल भी लगेगा, शायद हमें भी दिखलाओगी,
तमन्ना यही बस देख सकें हम, गोद आपकी दुलराते।

4.30.2007
भूल से भी यदि हम, यादों में आपकी आयेंगे।
ध्यान से यदि देखोगे तो, हमें अपने पास ही पायेंगे।
सितम आपने किया ही क्या है? कितना भी ठुकरायेंगे।
जिस राह पर आप चलेंगे, खुद को वहीं विछायेंगे।

संग-साथ को पाप कहा, हमें धोखेबाज कह सकती हो।
हमने तो बस ताप सहा है, जितना चाहो दे सकती हो।
आगे कुआ, पीछे खाई, आपने हमको जहाँ है छोड़ा,
पथ तो सारे बन्द हमारे, मुस्कराहट तो दे सकती हो।

Tuesday, December 9, 2014

आप कहेंगे हम जी लेंगे, आपकी खातिर मर जायेंगे

4.28.2007

क्या सचमुच जान आपके दरश नहीं कर पायेंगे।
अपने ही उस गात का कभी, परस नहीं कर पायेंगे।
बस एक बार है दिल की रानी अपना चेहरा हमें दिखा दो,
आप कहेंगे हम जी लेंगे, आपकी खातिर मर जायेंगे।

एक बार आ अंक में बैठो रूप आपका पी जायेंगे।
अधरों का बस जाम पिला दो, मरते हुए भी जी जायेंगे।
गोल उभारों की धड़कन से, जब आप हमें धड़कायेंगे।
हम तो आपके हो ही चुके हैं, आप हमारे हो जायेंगे।

Sunday, December 7, 2014

आपके अधरों के सिवा कोई जाम ना भाए हमें

4.27.2007
प्यार किया है, सौदा नहीं किया, जिसको बदला जा सकता हो।
दिल दिया है, कोई वस्तु नहीं दी, जिसको खरीदा जा सकता हो।
आप तो दिल के ही सौदागर, सस्ता खरीदा, लाभ ले बेचा,
प्रेम किया था, चाहा न कुछ भी, जिसको सहेजा जा सकता हो।

यादें हैं आपकी बस नींद कहाँ आए हमें।
आपके अधरों के सिवा कोई जाम ना भाए हमें।
भूख और प्यास हमारी, आप ले गईं चलते-चलते,
आपके कर कमलों के बिना, खाना कहाँ भाए हमें।

Saturday, December 6, 2014

आशिक हैं आपके जानेमन, कोई शैतान तो नहीं

4.26.2007
आप हमारी रहीं प्रेरणा, अब भी प्रेरित करती हो।
शिक्षार्थी हैं आपके हम तो, अब भी शिक्षित करती हो।
भटक रहे हम, ले नाम लवों पर, पल-पल जीवित करती हो।
आप नहीं, है प्यार आपका, सपनों में, हर रात उतरती हो।

बता देना, हमारे जमीं पै होने से आप परेशान तो नहीं।
बता देना, आपके शुकून के लिए हम हैवान तो नहीं।
यदि अन्त चाहो हमारा, मुस्करा के जहर पिला दो।
आशिक हैं आपके जानेमन, कोई शैतान तो नहीं।

Friday, December 5, 2014

आँखों से हमारी नींद तो, आप चुरा ले गईं

4.25.2007

आँखों से हमारी नींद तो, आप चुरा ले गईं।

आपकी यादों में तड़पें, आप सजा दे गईं।

सोती रहो आप अपने प्रियतम् की बाँहों में,

अकेली जिन्दगानी का, हमें मजा दे गईं।

जिन्दा रहें या मुर्दा, हम आपकी अमानत हैं।

आपकी यादों के घेरे में, हम सही सलामत हैं।

सिर्फ आपके लिए, अपने आप को रख्खे हुए,

कहें नहीं आप कर दी, अमानत में खयानत है।

Wednesday, December 3, 2014

दुनियाँ में मेरे हमदम, कुछ ऐसे भी फूल खिले

4.24.2007
बस मुश्किल यही केवल, आपसे मुलाकात नहीं।

आपकी यादों से मरहूम, हमारी कोई रात नहीं।

हमारे जीने के लिए तो, आपकी यादें ही हैं काफी,

आपकी खुशबू तो है, बस आपका हाथ नहीं।।

राह आपकी चलते हैं हम, आपका केवल साथ नहीं।

कटींली, तीखी धूप में, कुम्लाये, आपका गात नहीं।

दुनियाँ में मेरे हमदम, कुछ ऐसे भी फूल खिले,

जीवन बख्शा खुदा ने उनको, लेकिन खुशबू का साथ नहीं।।


Sunday, November 30, 2014

आपने जो श्राप दिये, पी रहे हम निश-दिन्

4-23-2007
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सच मानो उफ़ न करूंगी

ढल जाउंगी हर ढांचे में

                                           रोशनी विश्वकर्मा


समझते समझते समझ रही हूँ I 
मैं क्या तड़पाऊँगी तुमको, 
अंतर्मन मन से खुद तड़प रही हूँ I 
गिरा के दो चार आँशु ,
समझा लिया अपने मन को ,
नहीं है प्यार मेरे  आँचल में I 
क्या समझाऊँ मैं ज़माने को ,
नहीं समझ पाया कोई मुझको I 
आज भी मैं गीली मिट्टी हूँ ,
चाहत की चाक से , 
प्यार भरे हाथों से अपने ,
ढाल लो चाहे जिस साँचे  में I 
सच मानो उफ़ न करूंगी ,
ढल जाउंगी हर ढांचे में I

Saturday, November 29, 2014

चुंबक का गुण कहां से पाया

4-22-2007
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साबित क्या करते हो ?

आखिर पुरुष मानव मन हो क्यूँकर मानोगे तुम 
                                           रोशनी विश्वकर्मा

दिल जला कर , इलज़ाम लगा कर ,
साबित क्या करते हो ? 
अच्छे बस तुम इक  दुनिया में ,
बाकी सब कच्चे है ,
दिल भी है प्यार भी है , नहीं है इज़हारे तरीका 
आखिर पुरुष मानव मन हो क्यूँकर मानोगे तुम  
करती हूँ इरादे , नहीं करती वादे I
समझने वाले जो समझे , नहीं बस में मेरे कुछ अपने .

Friday, November 28, 2014

तड़पेंगे हर-पल खुशी से, जल-जल रोशन करें पथ,

4.21.2007

हमारी तड़पने ही आपको यदि मुस्कराहट देती हों।
हमरा दिल जला के , आपको रोशनाई मिलती हो।
तड़पेंगे हर-पल खुशी से, जल-जल रोशन करें पथ,
जिन्दा यूँ मर जायेंगे, यदि आपको खुशियाँ मिलती हों।।
जो भरा नहीं है भावों से, बहती प्रेम की धार नहीं।
दिल आपका है केवल, पनपा जिसमें बस प्यार नहीं।
साथ में  चलने  के इरादे, सच्ची दोस्ती के वो वादे,
तोड़े आपने हैं केवल, मुलाकात् को भी तैयार नहीं।।

Thursday, November 27, 2014

आपकी वो घातें, साथ-साथ रातें, पल-पल याद आती हैं

4.20.2007
आपकी वो बातें, चन्द मुलाकातें, आज याद आती हैं।
चलने की अदायें, मुस्कराने की कलायें, बहुत याद आती हैं।
नित-नई केश्-सज्जा, आँखों की लज्जा, प्रिये याद आती है।
आपकी वो घातें, साथ-साथ रातें, पल-पल याद आती हैं।

जब छोड़ना ही था हाथ फिर पकड़ा क्यों था?
जब रूलाना ही था हमें, फिर हँसाया क्यों था?
जाना ही था बेवफा, हमारी जान ले के जातीं,
तड़पाने को पल-पल हमें जिलाया क्यों था?

Wednesday, November 26, 2014

कण्ठ लगाना कहाँ भाग्य में हम तड़प रहे हैं बातों को

4.19.2007
दिन तो  काम में कट जाता प्रिय, नींद न आए  रातों को।
कण्ठ लगाना  कहाँ भाग्य में  हम तड़प रहे हैं  बातों को।
किंकर्तव्यविमुढ़  हुए  हम, जब  पास हमारे आईं थीं।
चखकर  तुमने  फेंक दिया, हम तड़प रहे उन हाथों को।

झलक दिखाकर चलीं गईं प्रिय, हम मलते अपने हाथ रह गए।
हमें  अकेला छोड़ गई हो, आपके, आपके साथ रह  गए।
फुटबाल बने  हम, ठोकर किस्मत, आपका कोई दोष नहीं।
आप तो हैं महलों की रानी, हम कीचड़ में  पड़े रह गए।

Monday, November 24, 2014

उत्तराखण्ड सरकार की नजर में- क्रान्तिकारी अभी भी आतंकवादी

उत्तराखण्ड सरकार की नजर में- क्रान्तिकारी अभी भी आतंकवादी


स्वतंत्रता प्राप्ति के 67 वर्ष बाद भी स्वतंत्र भारत में आज भी उत्तराखण्ड सरकार क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहकर संबोधित करती है। उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी, उत्तराखण्ड-263139 द्वारा बी.ए. द्वितीय वर्ष के लिए प्रकाशित इतिहास की पाठयपुस्तक BAHI202 भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, जो मई 2013 में प्रकाशित की गई है; में पृष्ठ संख्या 71 से 73 में बंगाल विभाजन के खिलाफ संघर्ष करने वाले क्रान्तिकारियों को आतंकवादी लिखा गया है। अनुच्छेद 4.5.3 क्रान्तिकारी आतंकवाद के अन्तर्गत स्पष्ट रूप से लिखा गया है- ‘‘क्रान्तिकारी आतंकवादियों का मानना था...........................।’’
     अगले अनुच्छेदों में प्रमोथ मित्तर, जतीन्द्रनाथ बनर्जी, बारीन्द्रकुमार घोष,ज्ञानेन्द्रनाथ बसु, सरला घोषाल, अरबिन्दो, भूपेन्द्रनाथ दत्त, हेमचन्द्र कानूनगो, खुदीराम बोस तथा प्रफुल्ल चाकी जैसे क्रान्तिकारियों के नामों का उल्लेख भी किया गया है।
    केन्द्रीय विद्यालयों में भाषा को मुद्दा बनाने से हटकर  क्या हम क्रांतिकारियोँ को न्याय दिलाने की ओर ध्यान देकर अभियान चलाकर क्रान्तिकारियों को आतंकवादी लिखने से बचा सकते हैं?

Sunday, November 23, 2014

प्रिये आपसे पुनः निवेदन

4.18.2007

प्रिये आपसे पुनः निवेदन, ख्याल हमारा मत करना।
तन को, मन को और बुद्धि को स्वस्थ बनाये रखना।
आहार-विहार रहे सन्तुलन, पौष्टिक भोजन नित करना।
परिवार पर देना ध्यान और सबके कष्टों को  हरना।
सुबह शाम तुम करना योग, ऊर्जा बनाए रखना।
तन्दुरूस्ती हजार नियामत है, बात याद ये रखना।
स्वस्थ शरीर की खातिर हर-दिन पौष्टिक भोजन लेना।
मन को स्वस्थ बना रखने को प्रिय सत्य संभाषण करना।
प्रतिदिन हो स्वाध्याय आपका, बुद्धि निमज्जित करना।
प्रेम, स्नेह  और दयालुता, उर  में  सदैव ही भरना।
समय  नियोजन  करके  प्यारी  हर पल खुश  है रहना।
अन्याय किसी पर  नहीं है  करना नहीं हमें है सहना।
कर्म  करो, कर्तव्य निभाओ, अपने उत्तरदायित्व निभाना।
यदि अपना कोई  रूठे कभी, करके मनुहार  मनाना।
जीवन  खेल है  चन्द  समय का, स्वस्थ  भाव अपनाना।
जीत-हार   का नहीं  है मतलब, सबको गले  लगाना।

Saturday, November 22, 2014

जिन्दा मौत ही दी है आपने, मुर्दा पल-पल काट रहे हैं

4-17-2007
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Thursday, November 20, 2014

आपके बिना नीरस जिन्दगानी, गाते हैं हम वियोग के गाने।

4.16.2007
पागल कहो या कहो दीवाने, आप कहो  वह सब-कुछ मानें।
भूल गए हम  सब  अफसाने,  घायल की गति घायल जाने।
खेल-खेल में    पाला  बदला, आपने  किए  हम  बेगाने।
आपके  बिना नीरस जिन्दगानी, गाते हैं हम वियोग के गाने।


खत हम  हर पल  लिखते हैं,  भेज न सकते मजबूरी  है।
न लिखने  का  संकल्प  आपका, हमारी भी  तो मंजूरी है।
तन से स्वस्थ रहो, मन से पूरी, खिलखिलाहट ना रहे अधूरी,
जोड़ी  आपकी  बनी  रहे बस, यही  हमारी   मजदूरी  है।

Wednesday, November 19, 2014

नयनों से खुद घायल करके, हमको पागल बतलाती हो।

4.15.2007
सुबह  सबेरे योगा करते, ध्यान में नाम आपका जपते।
स्नानागार  में है फिर जाते, हम आपको ही नहलाते।
काम करें या खाना खाते, गीत आपके हर पल गाते।
सपने हमको  जब-जब आते, साथ में अपने आपको पाते।


नयनों से खुद घायल करके, हमको पागल बतलाती हो।
पागल करके राह में छोड़ा, प्रेम ये कैसा जतलाती हो।
पागल हैं  हम मारो पत्थर, जी अपना क्यों बहलाती हो।
पत्थर भी स्वीकार हमें हैं, क्यों पागलखाने  पहुँचाती हो।

Tuesday, November 18, 2014

हमने ही था सपना देखा, प्रेम आपका है ही नहीं

4.14.2007

साथ आपका मिलता कैसे? रिश्ता आपसे है ही नहीं।
जो भोगा है, कर्म  हमारे, दोष  आपका है ही नहीं।।
भावनाओं में हम बहते रहते।
दण्ड  निरन्तर सहते  रहते।
जाने कब  था  सपना देखा,
आपको अपनी कहते  रहते।
हमने ही था  सपना  देखा, प्रेम आपका है  ही नहीं।
जो भोगा है, कर्म  हमारे, दोष  आपका है ही नहीं।।
हमने प्रेम को जैसा  समझा।
अर्थ आज फिर उसका उलझा।
प्रेम प्रदर्शन  नाटक जैसा, 
आधुनिक अर्थ  यही है सुलझा।
पागल थे हम समझ न पाए, अपना जहाँ में है ही नहीं।
जो भोगा है, कर्म  हमारे, दोष  आपका है ही नहीं।।
भावों  से  ही  रिश्ता  बनता
जोड़ घटा का गणित न चलता।
मैं और तू का  भाव मिटे जब,
समर्पण होता, प्रेम है फलता।
बुद्धिमानी ने तुम्हें रूलाया, दिल तो आपके है ही नहीं।
जो भोगा है, कर्म  हमारे, दोष आपका है ही नहीं।।
आपकी  नजरों में  हम पागल।
आपकी  ही नजरों से  घायल।
प्रेम  में  हमको मौत मिले बस,
बजती  रहें आपकी   पायल।
खुशियों से तुम नाँचों-गाओ, ख्याल हमारा है ही नहीं।
जो भोगा है, कर्म  हमारे,दोष आपका है ही नहीं।।

Sunday, November 16, 2014

कैसे कटें ये है तन्हाई?

4.13.2007

कैसे कटें ये है तन्हाई?
हर क्षण याद आपकी आई।
तड़प रहे हम मतलब इसका,
आप भी हमको भुला न पाईं।
ब्लैंक कॉल जब-जब है आती,
खुशी से चौड़ी होती छाती।
गलतफहमी भी कितनी प्यारी,
आप भी हमको याद फरमातीं।

Saturday, November 15, 2014

लिखते रहें हम खत आजीवन

4.11.2007
आपके बिन हम जीते कैसे? जान आपको क्या करना है?
आप रहें खुश, हम तो सोचें, खुशियों का हमें क्या करना है?
जान आपके जाने से हम जान गए है मरना क्या है?
रमाविहीन हम हुए अकिंचन, अब मौत से क्या डरना है?

4.12.2007
आपने हमको क्या था समझा, अपने को आभास नहीं है।
निर्मुक्त हुए हम देखो जग में, ऊपर भी आकाश नहीं है।।
राह में चलते, ना हमराही,
घुल गई है जीवन में स्याही।
राह आपकी स्वच्छ रहे बस,
काँटें मिले न, मिले ना खाई।
दिल में आपका बास सदा ही, तन्हाई अहसास नहीं है।
निर्मुक्त हुए हम देखो जग में, ऊपर भी आकाश नहीं है।।
आपकी महफिल सजी सजाई,
देखी कुछ पल सजा है पाई।
हमने आपको अपना समझा,
अमानत निकलीं आप पराई।
दिग्भ्रमित हम पथिक हैं कैसे? गन्तव्य का आभास नहीं है।
निर्मुक्त हुए हम देखो जग में, ऊपर भी आकाश नहीं है।।
तन आपका सुगन्ध से महके,
मन बालम के प्यार से चहके।
ससुराल सार सुख बने तुम्हारी,
मेरी जान अब कभी न बहके।
तजकर हमको आप हैं कैसी? बिल्कुल भी आभास नहीं है।
निर्मुक्त हुए हम देखो जग में, ऊपर भी आकाश नहीं है।।
हाल आपके जान न पाये,
दिल अपना हरदम घबड़ाये।
आप भले ही पास न आयें,
होने का अहसास तो आये।
लिखते रहें हम खत आजीवन, आपको ये आभास नहीं हैं।
निर्मुक्त हुए हम देखो जग में, ऊपर भी आकाश नहीं है।।

Friday, November 14, 2014

शिक्षा ही शक्ति है अपनी,

4.10.2007

विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएँगे।
कोई साथ चले न चले, हम आगे बढ़ते जाएँगे।।
स्वार्थ को लेकर नहीं चलेंगे,
ईर्ष्या, द्वेष भी नहीं फलेंगे।
सुविधाओं की चाह न हमको,
हम सबसे मिलाते हाथ चलेंगे।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे, हम चलकर दिखलायेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएँगे।।
कौन है अपना? कौन पराया?
हमने सबको गले लगाया।
हमको तो बस, आस जगानी,
जो भी चेहरा है मुरझाया।
हम नगण्य हैं, क्या कर सकते? हँसेगें और हसाँयेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएँगे।।
शिक्षा ही शक्ति है अपनी, 
हमें न धर्म की माला जपनी।
पद, धन, यश्, संबन्धों में फँस,
हमें न किसी की खुशी हड़पनी।
संघर्ष् ही है जीवन अपना, कर्म करें, मर जायेंगे।
विपुल कोष है, दिव्य प्रेम का, पल-पल इसे लुटाएँगे।।

Tuesday, November 11, 2014

महफिल में तन्हाई जीते, हमको हमारा दोस्त न मिलता।

4.7.2007
जीवन है भावनाओं का पथ, भाव तुम्हारे पास नहीं।
बुद्धि तुम्हारी तुम्हें सताये, दिल पर तुम्हें विश्वास नहीं।
इस दिल में यदि झांक के देखो, छबि तुम्हारी बसी हुई,
हम तो तुम्हारे पास ही रहते, तुम्हीं हमारे पास नहीं।

4.8.2007
जीवन जीना एक कला है कोरे ज्ञान से काम न चलता।
भावों से हों एक-दूजे के संबन्ध तर्क से कोई न फलता।
बुद्धि प्रेम की चिर दुश्मन, इससे कभी ना प्यार निकलता।
महफिल में तन्हाई जीते, हमको हमारा दोस्त न मिलता।


4.9.2007
भावों को ही हम लिखते हैं, जबाब आपके पास नहीं।
आप करें अपनी जिद पूरी, टूटे हमारी आस नहीं।
जीवन है तो लिखेंगे खत भी, चाहे डालो घास नहीं।
खत में है सन्देश् हमारा, तन में आप बिन सांस नहीं।

Sunday, November 9, 2014

छिपाए हुए हो सुगन्ध हिये में

4.5.2007
प्रेम हैं बहती नदी, जागीर नहीं है आपकी।
प्रेम शीतल चाँदनी, न आग पश्चाताप की।
प्रेम प्रकृति प्रदत्त है, ना उपज है विज्ञान की।
प्रेम की पवित्रता को, दुनियाँ न समझे स्वार्थ की।

4.6.2007

क्या भूलूँ? क्या याद करूँ?
सोच न पाता आज प्रिये मैं!
प्रेम भरे वो खत सच थे या,
दर्द आज जो दिया हिये में।

बोली मधुर मुस्कान मधुर थी।
चलने की वो अदा मधुर थी।
ठोकर से ही तोड़ दी डोरी,
ठोकर की है,  छाप हिये में।

बात किए बिन, चैन न मिलता।
जानूँ नहीं, कब  हुई गहनता।
जाओ कहीं पर भूल न पाऊँ,
छोड़ गईं वो प्यार हिये में!

प्रेम नहीं तो मुँह क्यों मोड़ा?
आँसू छिपा के दिल क्यों तोड़ा?
कमजोर हुईं क्यों समझ न पाया,
हँसतीं ऊपर आँसू हिये में!

प्यार की दुश्मन दुनियाँदारी।
खुद्दारी  से अपनी  यारी।
जली-कटी तुम खूब सुनातीं, 
करती हो बरसात हिये में।

दुःख तुम्हारा समझ न पाया।
हाले जिगर को जान न पाया।
बाहर से बस काँटे दिखते,
छिपाए हुए हो सुगन्ध हिये में।

हमने अपने गाने गाए, आपने अपने ढोल बजाए

4.4.2007

प्रेम की राह कँटीली होती, शायद आप समझ अब पाए।
प्रेम समर्पण ना कर पाए, ना प्रेम की कद्र आप कर पाए।
आपने भले ही झूँठ कहा था, हम तो उसको समझ न पाए।
मित्र कहा तो छोड़े नहीं हम, भले ही मित्र,पल-पल ठुकराए।

हमने अपने गाने गाए, आपने अपने ढोल बजाए।
केरल में क्या-क्या होता है? आपने हमको पाठ पढ़ाए।
सत्य और हितकर पर देखो, विचार नहीं बिल्कुल कर पाए।
तुमने हमको समझा नहीं था, हम भी तुमको समझ न पाए।

प्रेम के पथिक नहीं थे सच्चे, अहम् तभी तो आड़े आया।
मिलने को थी बहानों की तलाश्, भय ने पीछे तुम्हें हटाया।
सुविधाओं की अभ्यस्त आप, प्रेम का जोखिम नहीं उठाया।
प्रेम-मार्ग के काँटे तजकर, समझौते को गले लगाया।

Thursday, November 6, 2014

जानते थे प्यार किसी और से करती रही हो, करती रहोगी,

3.29.07

हमको मंजिल पता नहीं है, आपकी कोई खता नहीं है।
मार्ग कौन सा हम क्या जानें? वृक्ष है केवल लता नहीं है।
आपको खुशियाँ मिल जाएं, मिट जायें हम, अदा नहीं है।
तड़प रहे हैं जाने कब से? लिख दे खत, अब सता नहीं है।

3.30.07

तुम चली गई हो,
बहुत दूर,
बहुत-बहुत दूर
मुझसे,
वस्तुतः
तुम पास थी हीं नहीं कभी,
झूँठा सपना था,
वह, लेकिन मीठा था ख्वाब,
जो तुम्हारे लिए,
केवल था एक खेल,
दिलों को तोड़ने का।

3.31.07

हरी-हरी हरियालियाँ, अब भी याद आती हैं।
कण्ठ की शहनाईयाँ, अब भी याद आती हैं।
आपकी वो जुल्फें, सूरज से मुँह छिपाना,
खिलखिलाहट, मुस्कानें, अब भी याद आती हैं।

आपकी वो चाहतें, अब भी याद आती हैं।
अली जी की आहटें, अब भी याद आती हैं।
हमारे दिल में बसना, स्वागत इस तरह करना,
चिकनी-चिकनी घाटियाँ अब भी याद आती हैं।

4.1.2007

आज है अप्रैल पहली, हर रोज ही मूरख बनाया आपने।
दिखाया प्यार का झाँसा, दोस्ती का तमगा भी पहनाया आपने।
जानते थे प्यार किसी और से करती रही हो, करती रहोगी,
दोस्ती के नाम को भी इस तरह, पलीता लगाया आपने।
बता सकोगी आज क्या? दोस्ती किसको हैं कहते?
दोस्त को यूँ ठुकरा के, खुद भी तन्हाई को सहते।
वह दोस्त कैसा? हाल भी जो दोस्त का ना जान पावे,
आप ही बतला दो कब तक रहेंगे यादों को कहते।





ज्योतिबा फुले के सपनों का आदर्श परिवार- हरियाणा के रेबाड़ी में

तोड़ डाली जाति और धर्म की जंजीर 


दैनिक जागरण 2 नवंबर 2014 के प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित व्यक्तित्व आधारित फीचर में ज्योतिबा फुले के सपनों को साकार होता देखा जा सकता है। दैनिक जागरण के अनुसार-

1. अनूठा, अद्वितीय और प्रेरक। कृष्णा नगर निवासी सरदार त्रिलोचन सिंह के परिवार के बारे में बस यही कहा जा सकता है। धर्म व जाति के नाम पर भले ही कहीं तलवारें खिचतीं होेंगी, लेकिन यहाँ तो प्रेम का दरिया बहता है। मानवता और प्रेम के लिए इस परिवार ने धर्म व जातिगत संकीर्णता की दीवर को तोड़ दिया।त्रिलोचन के चारों पुत्रों ने न केवल हिंदू, मुस्लिम, सिख व ईसाई धर्म से नाता रखने वाले परिवारों में शादियाँ की, बल्कि अपनी पत्नियों की आस्था के अनुसार उन्हें अपने घर में पूजा का भी अवसर दिया।
2. देश में जाति और धर्म के नाम पर आज खूब राजनीति हो रही है। धर्म के नाम पर समाज को अलग-अलग नजरिये से देखा जाता है, लेकिन त्रिलोचन सिंह का परिवार हर साल होली, दीपावली, गुरूपर्व, ईद व क्रिसमस का त्योहार धूमधाम और समान रूप से मनाता है। इस घर में चारों धर्मो के ग्रंथ और धार्मिक साहित्य पढ़े जाते हैं।
3. सरदार त्रिलोचन सिंह, जो कि स्वयं सिख परिवार से हैं के चार पुत्र हैं। इनकी शादियाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई परिवारों में हुई हैं। परिवार के सदस्य गुरुपर्व पर आयोजित होने वाले आयोजन में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
4. सरदार त्रिलोचन सिंह का बड़ा बेटा संतोख सिंह ‘लवली’ की वर्ष 2004 में रेवाड़ी के बंजारवाड़ा मोहल्ले की एकता के साथ शादी हुई। उनका पूरा परिवार हिंदू रीतिरिवाज से जुड़ा हुआ है। स्वयं संतोख सिंह का भी कहना है कि वह अब तक 16 बार हरिद्वार से कावड़ ला चुके हैं। मंदिरों में पत्नी के साथ पूजा अर्चना करने जाते हैं। पत्नी भी हिंदुओं की पूजा अर्चना के साथ सिख समुदाय की परंपराएं भी निभाती हैं।
5. दूसरे बेटे डा.कमल सिंह की पत्नी सरिता यादव की माँ मीना मुस्लिम समुदाय से संबधित हैं। सरिता यादव के पिता रामू यादव रेलवे से सेवानिवृत्त हैं। सरिता के अधिकांश रिश्तेदार मुस्लिम ही हैं। उनके नाना अब्दुल रशीद खान जहाँ मुस्लिम होने के बाबजूद उन्हें निरंकारी मिशन की ओर से पंडित की उपाधि दी गई है। इसके पीछे मुख्य कारण उनका सभी धर्मो के बारे में जानकारी होना है। ईद पर परिवार में सेवइयां बनने के साथ अल्लाह को याद किया जाता है।

Wednesday, November 5, 2014

साथ रहने का ख्वाब क्यूँ देखें?

3.23.07
साथ रहने का ख्वाब क्यूँ देखें? 
साथ हमारे आप खुष रह नहीं सकतीं।
साथ चलने का ख्वाब क्यूँ देखें?
साथ हमारे आप, पैदल चल नहीं सकतीं।
राजदार बनने का ख्वाब क्यूँ देखें?
आप अपने राज हमें कह नहीं सकतीं।
खत  पाने  का ख्वाब क्यूँ देखें?
मालुम है आप खत लिख नहीं सकतीं।

3.24.07

उलझा लेंगे अपने को, दुनियाँ भर के कामों में।
हम तो थे आपके लिए, जैसे गुठली होती आमों में।
गिरना, सड़ना और फिर उगना ही उसकी फितरत,
हम भी सहेंगे सब कुछ, आप खिलती रहें बहारों में।

3.25.07

आप बड़ी हैं हम जानते थे मगर,
इतनी न समझा हम छू न पायेंगे।
आप हसीं थीं, हम जानते थे मगर,
इतनी न समझा, आपके बिना जी न पायेंगे।

3.26.07
बचपन से लेकर अब तक भाये नहीं थे हमको गाने
उदासी, चिन्ता, गंभीरता ही समझे थे जीवन के माने
तन्हा जीवन, सुर संजीवन, याद आपके आते ताने
अन्दर रोना, बाहर हँसना सीखे जीवन के अफंसाने।

3.27.07
जाते-जाते आपने हमको, ऊपर से हँसना सिखा दिया
कभी न हम मजबुर हुए थे, मजबूरी से मिला दिया
चाहत आपकी बन न सके, वह भी नहीं जो मान रही हो,
हम तन्हा थे, हम तन्हा हैं, तुमको पिया से मिला दिया।

3.28.07
हमने आपको समझा नहीं था, आप भी हमको समझ न पाये
अविष्वास आपकी रग-रग में था,विष्वास आपको दिला न पाये
हमने तो सब कुछ कह डाला, राज आपके हम, जान न पाये
हुईं पराजित, घुटने टेके, समाज से आपको, हम बचा न पाये।

Tuesday, November 4, 2014

एक कविता रोज

3.18.07
तेरे नाम से जिन्दा हैं हम, तेरा नाम ले मर जायेंगे।
अपनी खुशियाँ जान न पाए, तेरी खुशियों में गायेंगे।
जिसको चाहे, उसको पाये, खुशियाँ तुझको गले लगायें,
फूले-फले परिवार तुम्हारा, तन्हाई को हम ही पायें।

 3.19.07
साथ भले ही ना मिल पाया, तुमको नहीं भुला पायेंगे।
जीना पड़े भले ही कितना? गीत तुम्हारे ही गायेंगे।
तुमने लिखा था एक बार, जनम-जनम का साथ हमारा।
संयम, धैर्य और साहस से पथ निष्कंटक बने तुम्हारा।
मस्त, व्यस्त और स्वस्थ रहो, स्मरण न करना कभी हमारा।
एकल पथ है, बढ़ना होगा, हम हिय में तुम्हें बसायेंगे ।

3.20.07
जगते, सोते और सपने में हम तुम्हारे ई-मेल पढ़ेगे।
महफिल में रहकर भी तुम बिन तन्हाई को हम झेलेंगे।
तुमको अमृत मिलता हो तो, पीना पड़े हम बिष पी लेंगे।
खिलखिलाहट बनी रहे तुम्हारी, मौन रहें हम मुँह सीं लेंगे।
चाहत ही जब धोखा दे तो, जीवन में क्या कुछ पायेंगे।
साथ भले ही ना मिल पाया, तुमको नहीं भुला पायेंगे।

3.21.07 
हर  चोट  सह  मुस्काएँ, मनमौजी  हम  हैं  मतवाले।
पारदर्शी तुम बन नहीं सकतीं, प्यार में चलते नहीं घोटाले।
खत जलाए, खता नहीं कुछ, जब दिल ही के टुकड़े कर डाले।
ठण्डी आग में जलते रहें, बस तुम्हें मिलें खुशियों के प्याले।
तुम बिन किसके सपने देखें, किसके साथ हम चल पायेंगे।
साथ भले ही ना मिल पाया, तुमको नहीं भुला पायेंगे।

3.22.07
न है चाहत, न है नफरत, न है अग्नि पश्चाताप की।
आपके  थे, आपके  हैं, हम  दौलत  रहेंगे  आपकी।
डाँटों, गालियाँ दो, दुत्कारो, चाहे जितने खत फाड़ो;
लिखा था, लिख रहे हैं, लिखते रहेंगे, हम तो यादें आपकी।

Thursday, October 30, 2014

बार-बार यही कामनाएँ, आपकी, पूरी हों इच्छा सभी।

४-३-२००७
छत्तीस के हम हो चुके, आप अड़तीस की हो जायेंगी।
बच्चों जैसी जिद से लेकिन, आप मुक्त कब हो पायेंगी।
प्यार का सागर दिखाया, आज गुस्सा किसलिए इतना लुटाया?
जबाब देने की आदत नहीं, रात देखो ख्वाब में आ जायेंगी।
हमारे जन्म दिन पर आपने, था कार्ड भेजा था कभी।
फोन पर घंटी बजाकर, आपने मुबारक दे दीं अभी। 
दूरियाँ तो तन की केवल, मन से मेरे पास हर पल,
बार-बार यही कामनाएँ, आपकी, पूरी हों इच्छा सभी।

Wednesday, October 29, 2014

एक कविता रोज ---------------------------

3.11.07
गुलाबी  हैं अधर, खिल रही  मुस्कान
हिय में तो प्रेम बसे, ऊपर से करे मान
रागिनी का अंग-अंग, नृत्य करे पल-क्षण,
दुर्भाग्य ही था जो, मिली न तुझे सुख खान।


3.12.07
प्यार के काबिल नहीं,हम, दीदार चाहिए।
इन्कार का इजहार भी, तरीके से चाहिए।
दुत्कार तुमने दीं, कोई गिला नहीं हमको,
बीच में ना हमारे कोई दीवार चाहिए।

3.13.07
हमको नहीं आपकी तदवीर चाहिए।
हमको नहीं आपकी तकदीर चाहिए।
आपको पाने की गफलत में नहीं, हम,
हमको बस आपकी तस्वीर चाहिए।

3.14.07
खत नहीं खत का मजमून चाहिए।
आन नहीं आपका सुकून चाहिए।
हाजिर कर देंगे, जरा मुस्काके कहो,
हमारे अरमानों का,यदि खून चाहिए।

3.15.07
केरल हो या कन्याकुमारी, याद हमेशा रहे तुम्हारी।
मधुर दर्द असह्य है हरदम, याद रहेंगी चोट तुम्हारी।
अब तड़पन ही जीवन-साथी, कभी रही थी तुमसे यारी,
नहीं रहा कुछ शेष जहां में, बाकी हैं बस याद तुम्हारी।

3.16.07
सागर जिसको समझा हमने, वह केवल दरिया निकली।
हमने जिसको कोयल समझा, तितली जैसी परिंदा निकली।
राह तकी है, राह तक रहे, जीवन भर ही राह तकेंगे,
जिसको दिल की बगिया सौंपी, बेबफा वही दरिन्दा निकली।

3.17.07
जिसको हमने अपना समझा, निकल पड़ा वह ही बेगाना।
हमराही था हमने समझा, झिड़का उसने पास न आना।
हमने सब कुछ सौंप दिया,पर तुमने कब था इसको माना,
जीवित हमको मार दिया, गाती रहो तुम खुशी से गाना।