ढल जाउंगी हर ढांचे में
रोशनी विश्वकर्मा
समझते समझते समझ रही हूँ I
मैं क्या तड़पाऊँगी तुमको,
अंतर्मन मन से खुद तड़प रही हूँ I
गिरा के दो चार आँशु ,
समझा लिया अपने मन को ,
नहीं है प्यार मेरे आँचल में I
क्या समझाऊँ मैं ज़माने को ,
नहीं समझ पाया कोई मुझको I
आज भी मैं गीली मिट्टी हूँ ,
चाहत की चाक से ,
प्यार भरे हाथों से अपने ,
ढाल लो चाहे जिस साँचे में I
सच मानो उफ़ न करूंगी ,
ढल जाउंगी हर ढांचे में I
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