Wednesday, October 31, 2018

दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-३५

संसार में शायद ही कोई स्वीकार करे कि मनोज ने केवल अपने बेटे और अपने माता-पिता को सुरक्षित देखभाल उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से ही शादी की असफल कोशिश की थी। उसकी इस बात को केवल उसका बेटा प्रभात ही जानता था। मनोज कई वर्षो से अपने बेटे से वायदा करता आ रहा था, ‘शायद अगले वर्ष से तुझे घर के काम-काज अपने आप न करने पड़े।’ मनोज लगातार वैवाहिक वेबसाइटों के माध्यम से जीवन साथी की तलाश कर रहा था। मनोज जानता था कि उसके जैसे विशिष्ट जीवन शैली वाले व्यक्ति के लिए जीवन साथी मिलना मुश्किल है, किन्तु असंभव है यह मानने को उसका मन तैयार न था। इतनी स्पष्टता व सच्चाई से अपनी बात रखने वाला मनोज यह कल्पना नहीं कर सका कि शादी के नाम पर उसके साथ धोखा भी हो सकता है। स्वयं धोखा खाने के बाद भी उसे विश्वास करना मुश्किल ही रहा कि ऐसा भी हो सकता है बल्कि उसके साथ ऐसा हो चुका है। अब भी वह विचार करता है तो यह समझ ही नहीं पाता कि उसके साथ उन लोगों ने इस प्रकार धोखा क्यों किया होगा? कोई झूठ बोलकर कपटपूर्वक किसी से शादी कैसे कर सकता है? कैसे कोई किसी को शिकार बनाने के लिए शादी जैसे पवित्र रिश्ते का प्रयोग कर सकती है? मजेदार बात यह कि वह इस सबके बावजूद प्रेम होने का दावा अभी भी करती है। आई लव यू तो जैसे उसका तकिया कलाम है। शायद! सभी को वह ऐसे ही बोलती होगी। 

ऐसी औरतों के लिए प्रेम केवल मनोरंजन की एक चाल मात्र होता है। ऐसी चालबाज औरतों की संख्या समय के साथ-साथ बढ़ती ही जा रही है। पहले कभी दहेज के आधार पर महिलाओं का उत्पीड़न होता रहा होगा किन्तु अब समय बदल चुका है और चालू औरतें दहेज विरोधी कानूनों का दुरूपयोग करके केवल  तथाकथित पति का ही नहीं तथाकथित ससुराल के प्रत्येक सदस्य का उत्पीड़न करती हैं और स्वयं अपने यारों के साथ गुलछर्रे उड़ाती हैं। अब तो घर-घर से ऐसी समस्याएँ सुनने को मिलती हैं। अपनी काली करतूतों को छिपाने के लिए आधुनिक तथाकथित दुल्हनें ससुराल में आते ही अपनी मनमर्जी चलाने लगती हैं। उनकी मनमर्जी में किसी प्रकार की बाधा आने पर दहेज का केस लगाने की धमकी देती हैं। केस, कचहरी और बदनामी के डर से सामान्यतः लोग ऐसी औरतों की ब्लेकमेलिंग में फंसकर नारकीय जीवन को स्वीकार कर लेते हैं। मनोज को इस प्रकार का नारकीय जीवन स्वीकार नहीं था। उसका मानना था कि प्रति दिन मृतवत जीवन जीने से अच्छा है कि अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार की कुर्बानी दी जाय। घुट-घुट कर जीवन जीने से तो अच्छा है कि एक बार में ही मृत्यु को गले लगा लिया जाय। मनोज के मन में माया के षडयंत्र में फंसने के बाद कई बार आत्महत्या करने का भी विचार आया किन्तु उसके लिए ऐसा करना संभव ही न था। आत्महत्या को वह सबसे निकृष्ट कृत्य समझता था।

अब आॅनलाइन शादी के षड्यंत्र में फसने के बाद मनोज के सामने प्रश्न यह था कि इस कपटजाल से अपने बेटे को किस प्रकार से बचाये। मनोज को केवल अपने बेटे के प्राणों की रक्षा ही नहीं करनी थी वरन उसको विकास के अवसर भी उपलब्ध करवाने थे। मनोज को वर्तमान वातावरण में अपने बेटे को पढ़ाई लिखाई का वातावरण उपलब्ध करवाना असंभव जैसा लग रहा था। जो औरत कपटपूर्वक उसकी तथाकथित पत्नी का दर्जा पा गई थी। वह वास्तव में एक ठग थी जिसने योजनापूर्वक मनोज को फसाया था। इस काम में उसके भाई ने भी उसी का साथ दिया था। मनोज तो नितान्त अकेला था। शादी के नाटक के समय भी मनोज के पास तो अपने गवाह भी न थे। मनोज की तरफ से भी माया के भाई बन्दों ने ही गवाह के रूप में हस्ताक्षर किए थे।

Friday, October 19, 2018

दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-३४

मनोज के सामने जिम्मेदारी फिक्स करने का मसला नहीं था। काम न करने के बहाने खोजने वालों में मनोज न था। किस काम के लिए कौन जिम्मेवार है? इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि काम श्रेष्ठतम गुणवत्ता के साथ पूरा हो। मनोज अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने से भागने वाला इंसान भी नहीं था। निसन्देह! अपने बेटे की सुरक्षा व संरक्षा व विकास के अवसर उपलब्ध करवाने के लिए वह ही जिम्मेदार था। तलाक के बाद माता और पिता दोनों की जिम्मेदारी उसकी ही थी। अपनी इसी जिम्मेदारी में सहयोग प्राप्त करने के लिए ही उसने शादी की थी किन्तु वह शादी नहीं, वह तो उसके जीवन को बर्बाद करने का आधार तैयार हो गया था। अब उसके पारिवारिक जीवन का कोई मतलब नहीं रह गया था। परिवार का तो कहना ही क्या? उसके माता-पिता और बेटे का मनोज के साथ रहना लगभग असंभव हो गया था। जिस औरत ने रूपये के लिए शादी की थी, उसके लिए सम्बन्धों का क्या मतलब था? वह औरत कलह प्रिय और अच्छी होने का नाटक करने को तत्पर रहती थी। मनोज के स्थान पर और कोई रहा होता तो शायद आत्महत्या भी कर चुका होता। उस कठिन दौर में यदि मनोज को भी अपने माता-पिता और बहन का साथ न मिला होता तो शायद मनोज परिस्थितियों से पलायन कर चुका होता। माया का वहाँ होना ही मनोज के लिए असह्य और तनाव पैदा करने वाला था। मनोज को नहीं मालुम था कि माया कब क्या कर बैठ? जो स्त्री अपने तथाकथित पति की उपस्थिति में अपने प्रेमी से बात करती हो। उसके बारे में क्या कल्पना की जा सकती है। दूसरी ओर उसका प्रेमी बार-बार वहाँ आकर मनोज से मिलने का आग्रह कर रहा था। 

मनोज का बेटा प्रभात उसके सामने भूखा घूमता रहता था किंतु मनोज कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था। इससे ज्यादा वेदना किसी संवेदनशील पिता के लिए क्या हो सकती थी। हाँ! मनोज को उन दिनों को याद करके अभी भी आश्चर्य होता है कि उसके बेटे ने कितनी समझदारी दिखाई और मनोज से कभी किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं की। यहाँ तक कि वह मनोज के तनाव को कम करने का ही प्रयास करता। प्रभात समझता था कि उसका पिता स्वयं कितने तनाव में है। वह यह भी जानता था कि उसका पिता स्वयं भूखा रहकर पूरे दिन काम करता रहता है। ऐसी स्थिति में प्रभात का भी दुःखी होना लाजिमी था। दोनों बाप-बेटे एक-दूसरे से कुछ न कहते थे किन्तु एक-दूसरे की आन्तरिक वेदना को अच्छी तरह से समझते थे। विद्यालय जाने से पूर्व ड्रेस पहने हुए उसका चावल बीनना अभी भी याद आता है। यदि प्रभात चावल बीनकर रखकर नहीं जाता तो माया कीड़ों व पत्थर सहित ही चावल उबालकर रख देती। दिन रात आराम फरमाना, अपने प्रेमी से बातों में मशगूल रहना और मनोज पर व्यंग्य करना माया के प्रतिदिन के कार्य थे। यहाँ तक कि रात को सोने से पहले रसोई में झूठे बर्तनों को साफ करके सोना मनोज की मजबूरी थी। ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण मनोज के पारिवारिक जीवन मूल्य आदर्शवाद से प्रेरित थे। पत्नी का गृहणी के रूप में एक देवीय रूप की कल्पना मनोज के मस्तिष्क में थी किंतु यहाँ तो एक राक्षसी आ गयी थी। जो प्रत्यक्ष रूप से खून भले ही न पीती हो किन्तु हर क्षण खून जलाती अवश्य थी। इसके बावजूद दिखावा एक समर्पित पत्नी का करती थी। किसी ने सच ही कहा है बुरा व्यक्ति जब अच्छा होने का दिखावा करता है, तब वह और भी बुरा हो जाता है।

Thursday, October 18, 2018

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-३३"

जब से माया मनोज के पास शादी का ड्रामा रचाकर आई थी, तभी से वह स्वयं, उसका बेटा प्रभात और मनोज की माँ सभी परेशान थे। घर घर न रहा था। वह तनाव का अड्डा बन चुका था। माया को कोई काम-धाम तो करना नहीं था। उसका काम तो एक मात्र सभी को परेशान करना ही था। बेटा प्रभात और मनोज की माँ! मनोज की मजबूरी और पीड़ा को समझ रहे थे। अतः उन्होंने किसी भी प्रकार की कोई शिकायत कभी भी मनोज से नहीं की किंतु मनोज सब कुछ समझ रहा था। वह जब भी घर के काम-धाम और अपनी माँ या अपने बेटे की देखभाल के बारे में माया से बात करने की कोशिश करता। माया स्पष्ट रूप से धमकाने के अन्दाज में कहती किसी ने कोई शिकायत की क्या? अब ऐसी खतरनाक औरत की कोई शिकायत कैसे कर सकता था? मनोज का बेटा प्रभात और मनोज की माँ दोनों बड़ी ही सहनशीलता और धैर्य से काम ले रहे थे। वे दोनों ही मनोज को और दुखी नहीं करना चाहते थे। वे समझ रहे थे कि मनोज अपनी शादी के गलत निर्णय के कारण पहले से ही दुःखी है और अपने कष्टों के बारे में बताकर और दुःखी क्यों करें? जबकि वे दोनों भली प्रकार समझ रहे थे कि माया जैसी दुष्ट, बदमिजाज, शातिर, कपटी और बेशर्म औरत के लिए पारिवारिक मूल्यों का कोई मतलब नहीं था।

               मनोज ने सबसे पहले अपनी माँ को अपने गाँव में भेजने की व्यवस्था की, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसकी माँ के लिए कोई खतरा पैदा हो। माया के चाल-चलन और उसके व्यवहार से स्पष्ट था कि वह अपने किसी विशिष्ट मकसद और खतरनाक इरादों से कपटपूर्वक शादी रचाकर मनोज के पास आई है। मनोज का यह विचार तब और पक्का हो गया, जब माया अपने प्रेमी अफजल से खुलेआम बातें करने लगी। वह बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए रात के दो-दो बजे तक अपने प्रेमी से बातें करने में मशगूल रहती। इस प्रकार के तनाव भरे माहोल में मनोज के लिए अपने बेटे को पढ़ाई का माहोल देने में समस्या हो रही थी। उसने माया से बात की कि प्रभात का बोर्ड का एग्जाम है, इस प्रकार से उसकी पढ़ाई का नुकसान होगा। माया ने धमकाने के अंदाज में स्पष्ट रूप से कहा कि इसके लिए तुम और केवल तुम जिम्मेदार होगे। मनोज क्या करता? उसके लिए जिम्मेदारी फिक्स करना महत्वपूर्ण नहीं था। उसके लिए महत्वपूर्ण था अपने बेटे के लिए अध्ययन का वातावरण उपलब्ध करवाना और वह वैसा कर नहीं पा रहा था। अतः वह स्वयं ही तनाव में रहने लगा था। अपने बेटे की समस्याओं का समाधान करने का कोई रास्ता उसकी समझ नहीं आ रहा था।

Tuesday, October 16, 2018

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-३२"‍


मनोज आज जब अपने गुजरे हुए जीवन पर नजर डालता है तो उसे अपने पहले प्रयोग में कोई बुराई नजर नहीं आती। वही परिस्थितियाँ दुबारा उसके जीवन में हों तो शायद सहायता करने से अब भी पीछे नहीं हटेगा। शादी का उसका पहला प्रयोग असफल भले ही रहा हो किंतु उसमें धोखा न था, लालच न था। परिस्थितियों की मजबूरी भले ही रही हो किंतु किसी भी पक्ष की ओर से कोई कपट न था। हाँ! दूसरी बार वह जब वास्तव में शादी करके जीवन संगिनी चाहता था। वह पारिवारिक जीवन जीना चाहता था। वह चाहता था कि उसके बेटे व माँ-बाप की देखभाल में उसकी जीवनसंगिनी सहयोग करे। वह व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में अपने साथ चल सकने वाली जीवनसंगिनी चाहता था। वह चाहता था कि मन, विचार व आचार एक करके वह अपने सभी कर्तव्यों का निर्वहन कर सके। किंतु व्यक्ति जो सोचता है वही तो नहीं होता। मनोज के साथ भी नहीं हुआ और वह आॅनलाइन मैरिज के ऐसे धंधेबाजों के चंगुल में फंस गया कि उस चक्रव्यूह से निकलने का कोई रास्ता ही नहीं दिखाई देता।


धोखा देकर कपट पूर्वक शादी करके कोई खुश रहने की कल्पना कैसे कर सकता है? मनोज के लिए यह घोर आश्चर्य की बात थी। जब से माया मनोज के पास शादी का नाटक करके आई थी, पहले दिन से ही मनोज के लिए तनाव का वातावरण बन गया था। मनोज को जब मालुम हुआ कि माया अपना मोबाइल लेकर नहीं आई है। उसी से स्पष्ट हो गया था कि दाल में कुछ काला अवश्य है अन्यथा मोबाइल नितान्त व्यक्तिगत उपकरण है और उसे कोई छोड़कर नहीं आता/जाता। ऐसा भी नहीं था कि माया उसे गलती से भूल आई हो। यदि हम मोबाइल गलती से भूल जाते हैं तो वह हमारे परिवार वालों के पास होता है। उसे बन्द नहीं किया जाता। माया तो जानबूझकर अपने मोबाइल को बन्द करके आई थी। शायद नष्ट करके आई थी, क्योंकि बार-बार जोर देने पर उसकी ओर से और उसके भाई की ओर से यही कहा गया कि मोबाइल खराब हो गया है। कोई महिला शादी के बाद अपने मोबाइल को अपने माइके में तभी नष्ट करके आयेगी, जब वह कोई ऐसा धन्धा करती होगी कि ससुराल में मालुम पड़ने के बाद भूचाल आ जाने की संभावना हो या उसके इस प्रकार के फोन काॅल आते हों, जिनको कोई भी सामान्य व्यक्ति स्वीकार नहीं करेगा। इस प्रकार माया के द्वारा अपने मायके में मोबाइल नष्ट करके आना, मनोज के लिए प्रथम साक्ष्य था कि अवश्य ही माया शादी से पूर्व गलत गतिविधियों में लिप्त थी।

मनोज के पास आते ही माया के द्वारा मनोज के मोबाइल से एक-एक करके अपने द्वारा भेजे गये सभी सन्देशों को मिटा देना जिनसे माया की वचनबद्धता प्रकट होती थी। मनोज के लिए तनाव का दूसरा कारण था। माया स्पष्ट रूप से शादी से पूर्व किये गये वायदों से हट गयी थी। वह परिवार के प्रति किसी भी जिम्मेवारी को निभाना तो क्या? उसने मनोज के द्वारा कोई भी सामान न लाने के निर्देश का भी पालन नहीं किया था। मनुष्य की भी क्या विडम्बना है? वह जिसको गलत कहता है, उसी को करने की कोशिश करता है। मनोज ने शादी से पूर्व ही स्पष्ट कर दिया था कि वह माया से या माया के घर वालों से किसी भी प्रकार की कोई वस्तु या धन स्वीकार नहीं करेगा। यहाँ तक कि शकुन के रूप में किसी प्रकार के वस्त्र भी उसे स्वीकार नहीं थे। किन्तु माया और उसके धोखेबाज भाई को तो झूठा नाम भी दिखाना था कि उसने दहेज में बहुत कुछ दिया है। वे कुछ देना भी नहीं चाहते थे और देने का दिखावा भी करना चाहते थे। यदि उन्हें वास्तव में कुछ देना होता तो 40 की उम्र तक माया शादी के बिना नहीं भटक रही होती। बार-बार मना करने के बाबजूद माया न जाने क्या अपने बैगों और कुछ डिब्बों में कुछ न कुछ लेकर आयी। यह मनोज के लिए तनाव का एक और कारण था। जब शादी के पूर्व ही स्पष्ट कर दिया गया था कि कुछ नहीं का मतलब कुछ नहीं, तो माया उसकी आत्मा को घायल करने पर क्यों उतारू थी? और जो स्त्री अपने तथाकथित पति की आत्मा पर ही वार करे वह किसी की पत्नी कैसे हो सकती है?

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-३१"


मनोज को न धन चाहिए था, न यश की कामना थी। मनोज जाति व संप्रदाय में भी बिल्कुल विश्वास नहीं करता था। मनोज को धन, पद, संबन्ध या यश किसी की कामना नहीं थी। उसे तो केवल अपने कर्तव्यों के निर्वहन में रूचि थी। इसीलिए वह शादी करना ही नहीं चाहता था। अतः कुवारी लड़की से शादी करने का तो कोई सपना संभव ही न था। उसे परिवार की भी कोई कामना नहीं थी। मनोज को तो ऐसा साथ चाहिए था, जो उससे कभी कुछ न छिपाये। सदैव सच बोले और ईमानदारी के रास्ते का पथिक बनने के लिए तैयार हो। मनोज का यह सपना असंभव था। मनोज के साथ रहने का मतलब निस्वार्थ भाव से जीवनयापन करना। एक महिला ने तो मनोज से स्पष्ट रूप से कह ही दिया था कि जब संन्यासी की तरह जीवन जीना है तो शादी करने का क्या मतलब है? किसी का कुछ भी विचार हो। मनोज अपने रास्ते पर ‘अकेला चलो रे‘ की नीत पर चलने के लिए भी तैयार था। उसके बावजूद उसने इस आशा के साथ कि स्पष्ट बातचीत करने पर शायद कोई उसकी राह की पथिक मिल ही जाय। उसने बेवसाइट पर प्रोफाइल बनाया और वह माया के जाल में फँस गया। शिकारी के जाल में एक बार फँसने के बाद उसके जाल से निकलना मुश्किल ही नहीं होता, लगभग असंभव होता है। यही मनोज के साथ हुआ।

मनोज जब स्नातक का विद्यार्थी था। तभी उसकी कल्पना थी कि वह संप्रदाय, जाति व अन्य किसी वर्गभेद से अलग हटकर किसी ऐसी महिला को जीवनसंगिनी बनायेगा, जो किसी भी जाति की हो, भले ही समाज की परिभाषा में वह बांझ हो। भले ही उसने स्वार्थी बनाने वाली आधुनिक शिक्षा भी प्राप्त न की हो किंतु जिसमें कुछ करने की ललक हो। जो छल, कपट और झूठ से दूर रहती हो जिसमें प्रदशर्न की भावना न हो। जो सादा व साधारण जीवन जीते हुए न केवल उच्च विचार रखती हो वरन विचारों के अनुरूप उसके कर्म भी हों। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उसने मैरिज ब्यूरो का विज्ञापन देखकर विधवा/तलाकशुदा बांझ महिला से शादी के लिए पत्र भी लिखा था। किंतु उस समय अपरिपक्व विचार को क्रियान्वित करने का साहस मनोज में न था। वह पूरी तरह परिवार के उपर आश्रित था। अतः स्वतंत्र निर्णय नहीं कर सकता था और न ही उस समय शादी की उम्र थी और न ही आवश्यकता। किंतु मनोज के वे विचार समय के साथ धुधले नहीं हुए वरन् और भी प्रखर होते गये और एक दिन दया की भावना में बहकर उसने बिना किसी की स्वीकृति की अपेक्षा किए हुए। एक अनाथ, विजातीय, विधवा व निरक्षर महिला को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। यह अलग बात है कि उसका प्रयोग असफल रहा। असफल रहा यह कहना भी सत्य प्रतीत नहीं होता। उस महिला के साथ उसका तलाक भले ही हो गया हो, किंतु उस महिला का जीवन बदल गया। उस उम्र में जाकर एक निरक्षर महिला मनोज के प्रयासों से पढ़ाई शुरू करके स्नातक, स्नातकोत्तर के बाद शिक्षा स्नातक की पढ़ाई पूरी कर सकी।