Saturday, August 24, 2024

दीपों से अंधकार न मिटता

अन्तर्मन का दीप जलायें




दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का, दीप जलायें।

प्रतीकों को छोड़ बर्ढ़े अब, स्वच्छता का, अलख जगायें।

अविद्या का अंधकार छोड़कर।

कुप्रथाओं का जाल तोड़कर।

आगे बढ़ो, विकास के पथ पर,

निराशाओं से मुँह मोड़कर।

उर घावों से भले ही पीड़ित, प्रेम से घावों को सहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।

सूचना को, शिक्षा ना समझो।

जीना ही, वश लक्ष्य न समझो।

शिक्षा तो आचरण सुधारे,

मानवता की परीक्षा समझो।

पशुओं से भी निकृष्ट आचरण, शिक्षित वह कैसे कहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।

पढ़ते कुछ, करते कुछ और हैं।

कर्तव्य नहीं, करते कुछ और हैं।

कथनी कुछ, करनी कुछ और ही,

दिखते कुछ, अन्दर कुछ और हैं।

पत्नी बनकर, ठगी कर रहीं, शिकार को प्रेम से, ये सहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।


Sunday, August 18, 2024

एक सिक्के के दो हैं पहलू

एक नर और एक नारी है।


नारी को नर प्राण से प्यारा, नर को भी, नारी प्यारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।

बहन भाई का अटूट है बंधन।

पवित्र कितना? रिश्तों का चंदन।

शंकर, शक्ति के हैं सेवक,

शक्ति करे, शिवजी का वंदन।

नर-नारी ने मिलकर ही तो, रच दी दुनिया सारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।

मात-पिता का जोड़ा होता।

जल ही जल में लगाता गोता।

कृषक फसल बाद में पाता,

पहले धरा में बीज है बोता।

जड़-चेतन के मिलने से ही, सृष्टि की रचना प्यारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।

नर नारी का प्रेम का बंधन।

प्रकृति ने किया है संबन्धन।

मिलकर दोनों पूर्णकाय हैं,

नारी नर का करे प्रबंधन।

राष्ट्रप्रेमी को नहीं मुक्ति कामना, स्वर्ग में भी मारा-मारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।


Sunday, August 4, 2024

लक्ष्य नहीं, गन्तव्य नहीं कोई

अविरल चलते रहना है


लक्ष्य नहीं, गन्तव्य नहीं कोई, अविरल चलते रहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

चलती का नाम है गाड़ी मानो।

घर में है जो, घरवाली मानो।

अहम् त्याग है, नदी उतरती,

स्वत्व मिटा सागर में मानो।

अहम् से ही टकराव हैं होते, साथ-साथ हमें रहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

सुख और दुख हैं आते-जाते।

दुख में रोते, सुख में गाते।

समय-समय के दोस्त हों दुश्मन,

समय-समय के रिश्ते-नाते।

प्रेम और सम्मान मिलाकर, साथ-साथ हमें बहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

नर-नारी मिल, परिवार बनाते।

परिवार मिल, हैं समाज सजाते।

समष्टि में है, व्यष्टि सुरक्षित,

व्यक्ति प्रेम के रंग रचाते।

प्रेम है जीवन, गन्तव्य नहीं कोई, प्रेम, प्रेम में रहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

 

Thursday, August 1, 2024

स्वार्थ है जग को घायल करता

 प्रेम घाव सहलाता है


अधिकारों से संघर्ष उपजता, कर्म जीना सिखलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

पाना तो लालच होता है।

देना प्रेम का  सोता है।

चाहत बाकी रहे न उसकी,

कर्म की खातिर खुद खोता है।

सब कुछ देकर, सब कुछ सहकर, व्यक्ति सन्त कहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

सभी प्रेम के याचक जग में।

सभी प्रेम के वाचक जग में

प्रेम को वो जन क्या समझेंगे,

बन्धन पड़े हैं, जिनके पग में।

प्रेम किसी को कष्ट न देता, प्रेम नहीं बहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

प्रेम कोई अधिकार न माँगे।

प्रेम कभी भी प्यार न माँगे।

प्रेम नहीं कोई सौदा करता,

प्रेम कभी प्रतिकार न माँगे।

प्रेम में नहीं कोई सीमा होती, प्रेम नहीं टहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।