निन्यानवे के फ़ेर में भूल गए सब शौक।
पैसा हावी हो गया, नौकरी को बस धौक।
सम्बन्धों के जाल में, मरने लगा विश्वास,
रेखा धन की खिच गई, मिट गए सारे शौक॥
"मुझे संसार से मधुर व्यवहार करने का समय नहीं है, मधुर बनने का प्रत्येक प्रयत्न मुझे कपटी बनाता है." -विवेकानन्द
निन्यानवे के फ़ेर में भूल गए सब शौक।
पैसा हावी हो गया, नौकरी को बस धौक।
सम्बन्धों के जाल में, मरने लगा विश्वास,
रेखा धन की खिच गई, मिट गए सारे शौक॥
लुब्धानां याचकः शत्रुमूर्खाणां बोधकः रिपुः। जारस्त्रीणां पतिः शत्रुश्चोराणां चन्द्रमा रिपुः॥६॥ मनुस्मृति दशवा अध्याय अर्थात- लोभी व्...
"स्वतन्त्र भारत में नारी को मिले वैधानिक अधिकारों की कमी नहीं- अधिकार ही अधिकार मिले हैं, परन्तु कितनी नारियां हैं जो अपने अधिकारों का सुख भोग पाती हैं? आप अपने कर्तव्यों के बल पर अधिकार अर्जित कीजिए। कर्तव्य और अधिकार दोनों का सदुपयोग कर आप व्यक्ति बन सकती हैं। आपको अपने कर्तव्यों का भान है तो कोई पुरुष आपको भोग्या नहीं बना सकता-व्यक्ति मानकर सम्मान ही करेगा। इसी तरह आने वाली पीढ़ी आपकी ऋणी रहेगी।"