Friday, January 31, 2014

शिकागो में जा शंख था फूँका

उनके पथ चलकर दिखलाओ


विवेकानन्द के गीत न गाओ।
उनके पथ चलकर दिखलाओ।।
कर्मठ बन, शक्ति की पूजा
दरिद्र मान नारायण पूजा।
अनूठे धर्म की राह दिखाई,
विवेकानन्द सम नहीं है दूजा।
नर-नारी संग बढ़ते जाओ।
उनके पथ चलकर दिखलाओ।।


युवा शक्ति को पथ दिखलाया,
समन्वय का था पाठ पढ़ाया।
राष्ट्रप्रेमी कर शक्ति साधना,
बीजमंत्र था यह सिखलाया।
शिक्षित बन, शिक्षा फैलाओ।
उनके पथ चलकर दिखलाओ।।


शिकागो में जा शंख था फूँका,
अध्यात्म बिना, मन रहेगा भूखा।
चरित्र-गठन की सीख दी हमको,
विज्ञान का भी ना पड़ जाय सूखा।
प्रगति पथ पर बढ़ते जाओ।
उनके पथ चलकर दिखलाओ।।


वेद मार्ग के पथिक थे स्वामी,
रामकृष्ण के थे अनुगामी।
संन्यासी बन गए भले ही,
राष्ट्र सेवा की भरी थी हामी।
कर्म से पूजा करते जाओ।
उनके पथ चलकर दिखलाओ।।


Sunday, January 26, 2014

90वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी ने 30 साल छोटी महिला से रचाई दूसरी शादी

दैनिक जागरण, पानीपत, 25 जनवरी 2014   से साभार
पृष्ठ संख्या 6,एक नजर

90वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी ने 30 साल छोटी महिला से रचाई दूसरी शादी


‘‘कोझिकोडः वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी और खतरनाक कीटनाशक इंडोसल्फान के खिलाफ मुहिम चलाने वाले एएस नारायण पिल्लई (90) ने अपने से 30 साल छोटी महिला से दूसरी शादी रचाई है। उनकी पहली पत्नी की वर्ष 1986 में मौत हो गई थी। अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संगठन की केरल इकाई के उपाध्यक्ष पिल्लई ने गुरुवार को कोझिकोड निवासी आंगनवाड़ी कर्मचारी राधा (60) से यहाँ सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में शादी की। इस दौरान उनके कुछ करीबी लोग उपस्थित थे। पिल्लई के मुताबिक उन्होंने यह शादी वैवाहिक सुख के लिए नहीं बल्कि एक गरीब महिला को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिए की है। पिल्लई करीब चार दशक पहले वायनाड में बस गए थे।’’
उपरोक्त समाचार छोटा होते हुए भी ध्यान खींचता है, जिसमें असामान्य उम्र पर शादी, दोनों की उम्र में असामान्य अन्तर व शादी का असामान्य उद्देश्य महत्वपूर्ण पहलू हैं। मै पिल्लई दंपत्ति को बधाई और सफल वैवाहिक जीवन के लिए शुभकामनाएँ अर्पित करता हूँ।
इस समाचार ने मुझे 14 वर्ष पीछे पहुँचा दिया, जब मैंने इसी उद्देश्य को लेकर एक आश्रमवासिनी विधवा महिला से पारिवारिक असहमति को नजरअन्दाज करते हुए अन्तर्जातीय विवाह किया था। यह अलग बात है मैं उस समय 30 वर्षीय अविवाहित युवक था। किन्तु मेरी शादी असफल हुई और प्राप्त अनुभव से महसूस हुआ कि शादी और सहायता दोनों अलग-अलग बिन्दु हैं। शादी सहायता का माध्यम नहीं हो सकती। शादी की अपनी आवश्यकताएँ, अपेक्षाएँ व अनिवार्यताएँ होतीं हैं। दोनों एक-दूसरे की शक्ति होते हैं। शादी में दोनों का समानता के स्तर पर एक-दूसरे के लिए समर्पण होता है। किसी भी प्रकार की दया शादी का आधार नहीं हो सकती। 

Saturday, January 25, 2014

-ः गणतंत्र को शुभकामनाएँ:-

-ः गणतंत्र को शुभकामनाएँ:- 

भारतीय गणतंत्र को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उसे कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार व सेवाभावी नेता, लोकसेवक( जिनके हाथों फहराये जाने पर तिरंगे को गौरवानुभूति हो सके); नागरिकों के चरित्रनिर्माण में संलग्न सदाचारी, कर्तव्यनिष्ठ व आत्मसम्मानित शिक्षक; कर्तव्यनिष्ठ, राष्ट्र-भक्त व राष्ट्र के गौरव के लिए कर्मरत नागरिक मिलने की शुभकामनाएँ! 


Thursday, January 23, 2014

मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।

        मैं तुम्हें फिर मिलूँगा

               

मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
कब?
कहाँ?
कैसे?
न मुझे मालुम
न तुमको।


मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
साल?
दो साल?
या युगों के बाद?
न मुझे मालुम
न तुमको।


मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
जवानी?
प्रोढ़ावस्था
या वृद्धावस्था में?
न मुझे मालुम
न तुमको।


मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
शारीरिक?
मानसिक?
या आत्मिक रूप से?
न मुझे मालुम
न तुमको।


मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
चेतन?
अवचेतन?
या अचेतन?
न मुझे मालुम
न तुमको।

मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
नियोजित?
अनियोजित?
या अचानक?
न मुझे मालुम
न तुमको।


मुझे मालुम है
वश इतना
एक ना एक दिन
एक ना एक पल
मैं तुम्हें फिर मिलूँगा।
तुम भले ही
पहचानने से इन्कार कर देना
कुशल व्यापारी की तरह।


Monday, January 20, 2014

कहो, कोयल कैसे फिर गाए?

बसन्त यहाँ कैसे फिर आए??


बैठने को जब डाल नहीं है, कहो, कोयल कैसे फिर गाए?
निरापद जब कोई राह नहीं है, बसन्त यहाँ कैसे फिर आए??
शिक्षालयों में डिग्री बिकतीं,
आश्रमों में हैं नारी लुटतीं।
गुरू जी ही हैं नकल कराते,
फर्जी उनकी उपस्थिति लगती।
समलैंगिकता अधिकार बने तो, प्रकृति कैसे फिर बच पाए?
निरापद जब कोई राह नहीं है, बसन्त यहाँ कैसे फिर आए??
न्यायाधीश ही इज्जत लूटें
नायक ही हैं देखो झूठे।
शिक्षा ही जब मूल्यहीन हो,
आशा किरण कहाँ से फूटे?
नर-नारी संघर्ष रहें करते, परिवार कहो कैसे बच पाए?
निरापद जब कोई राह नहीं है, बसन्त यहाँ कैसे फिर आए??
काँटों का संरक्षण करते,
गलत काम से नहीं हैं डरते।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे,
आस्था का आडम्बर करते।
कर्तव्य नहीं, अधिकार चाहिए; राष्ट्रप्रेमी कैसे बच पाए?
निरापद जब कोई राह नहीं है, बसन्त यहाँ कैसे फिर आए??

Sunday, January 12, 2014

स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस- युवा दिवस पर विशेष

शिकागो में जा शंख था फूँका



विवेकानन्द के गीत न गाओ।
उनके पथ चलकर दिखलाओ।।
कर्मठ बन, शक्ति की पूजा
दरिद्र मान नारायण पूजा।
अनूठे धर्म की राह दिखाई,
विवेकानन्द सम नहीं है दूजा।
नर-नारी संग बढ़ते जाओ।
उनके पथ चलकर दिखलाओ।।
युवा शक्ति को पथ दिखलाया,
समन्वय का था पाठ पढ़ाया।
राष्ट्रप्रेमी कर शक्ति साधना,
बीजमंत्र था यह सिखलाया।
शिक्षित बन, शिक्षा फैलाओ।
उनके पथ चलकर दिखलाओ।।
शिकागो में जा शंख था फूँका,
अध्यात्म बिना, मन रहेगा भूखा।
चरित्र-गठन की सीख दी हमको,
विज्ञान का भी ना पड़ जाय सूखा।
प्रगति पथ पर बढ़ते जाओ।
उनके पथ चलकर दिखलाओ।।
वेद मार्ग के पथिक थे स्वामी,
रामकृष्ण के थे अनुगामी।
संन्यासी बन गए भले ही,
राष्ट्र सेवा की भरी थी हामी।
कर्म से पूजा करते जाओ।
उनके पथ चलकर दिखलाओ।।


Tuesday, January 7, 2014

बातों के ही शेर

बातों के ही शेर हैं क्या हम? बातों से आग लगायें।
अकर्मण्यता, लापरवाही, पड़ोसियों को बस धमकायें।।
अपनी दीवार टूटी-फूटी,
कथनी-करनी हमसे रूठी।
आतंकियों का बचाव करें,
वोट की खातिर, नीति झूँठी।
आग में हम घी डालते, पड़ोसी क्यों ना उसे बढ़ायें?
बातों के ही शेर हैं क्या हम? बातों से आग लगायें।
माना पड़ोसी उच्श्रृंखल बच्चा,    
हम नहीं कर सकते, अपनी रक्षा?
खुद ही आग में वह जल रहा,
खिलाड़ी वह है भाई कच्चा!
बचाने की हम गुहार लगाते, रक्षा अपनी नहीं कर पायें।
बातों के ही शेर हैं क्या हम? बातों से ही आग लगायें।
राश्ट्र संघ हो या अमरीका,
सबकी अपनी-अपनी टीका।
स्वयं मरे बिन स्वर्ग न मिलता,
खींच दो बढ़कर, लक्ष्मण लीका।
`
वीर भोग्या वसुन्धरा´, शान्ति गीत कायर बन गायें?
बातों के ही शेर हैं क्या हम? बातों से ही आग लगायें।

प्रेम की खोज में दुनिया भटके, किन्तु प्रेम विरलों को मिलता

प्रेम की खोज में दुनिया भटके, किन्तु प्रेम विरलों को मिलता।
बुद्धि स्वार्थ में ले जा पटके, प्रेम का फूल हृदय महिं खिलता।।
प्रेम नहीं भौतिक वस्तु है,
प्रेम नहीं बाजार में मिलता।
प्रेम लुटाने का अमृत है,
प्रेम नहीं सौदे में फलता।
प्रेम नहीं रिश्तों तक सीमित, प्रेम नहीं वासना में फलता।
बुद्धि स्वार्थ में ले जा पटके, प्रेम का फूल हृदय महिं खिलता।।
कैसा प्रेम हम नहीं समझे?
तेजाब डाल जलाया चेहरा।
पति-गृह दुल्हन जल जाती,
जिसके लिए बाँधा था सेहरा।
प्रेम के गीत सभी हैं गाते, किन्तु, प्रेम नहीं शब्दों में मिलता।
बुद्धि स्वार्थ में ले जा पटके, प्रेम का फूल हृदय महिं खिलता।।
कर्तव्यों की डोर अलग है,
किन्तु प्रेम उससे है आगे।
प्रेम से पत्थर उर भी पिघले,
प्रेम पुकार प्रभू भी जागे।
प्रेम नहीं अधिकार किसी का, प्रेम नहीं विरासत में मिलता।
बुद्धि स्वार्थ में ले जा पटके, प्रेम का फूल हृदय महिं खिलता।।

Sunday, January 5, 2014

२०० वां शतक

मित्रो, अक्टूबर २००७ से इस ब्लोग पर कार्यरत हूं. आज २००वां 

शतक अर्थात २००वीं पोस्ट प्रस्तुत है-


जीवन-पथ काव्य संग्रह से साभार


कवि- एक परिभाषा


कहो न कविवर मानव हृदय कैसे कवि बन जाता है।
एक लड़ी में पिरों भावों को जन-जन को हर्षाता है।।
भले शब्द न मिलें कवि को बस अन्तर्मन की पीर मिले।
मननशील और व्यथित हृदय सदा संवेदनशील  मिले।
जड़ जगत के कण-कण में भी प्राणों का आभास मिले।
मरुस्थल के तपते आँचल में सदा साँस की आस मिले।
तिरस्कार को समझ स्वागत मानव जब अपनाता है।
तभी से समझो प्रिय बन्धु! मानव कवि बन जाता है।।

मुक्तक

हैं भावना के थाल में जब चेतना के दीप जलते।
संवेदना की गोद में अनुभूतियों के राग पलते।
दर्द दुनिया का सहलाने की कला जब सीख लेते-
तब ही जन्म लेती कविता और मधुरतम गीत बनते।।
               कवि - श्री रामफल सिंह खटकड़
                     हिन्दी प्राध्यापक
                     गाँव व डाकघर- खटकड़, जीन्द-126115

Thursday, January 2, 2014

रामप्रीत जी की अदा