प्रेम की खोज में दुनिया भटके, किन्तु प्रेम विरलों को मिलता।
बुद्धि स्वार्थ में ले जा पटके, प्रेम का फूल हृदय महिं खिलता।।
प्रेम नहीं भौतिक वस्तु है,
प्रेम नहीं बाजार में मिलता।
प्रेम लुटाने का अमृत है,
प्रेम नहीं सौदे में फलता।
प्रेम नहीं रिश्तों तक सीमित, प्रेम नहीं वासना में फलता।
बुद्धि स्वार्थ में ले जा पटके, प्रेम का फूल हृदय महिं खिलता।।
कैसा प्रेम हम नहीं समझे?
तेजाब डाल जलाया चेहरा।
पति-गृह दुल्हन जल जाती,
जिसके लिए बाँधा था सेहरा।
प्रेम के गीत सभी हैं गाते, किन्तु, प्रेम नहीं शब्दों में मिलता।
बुद्धि स्वार्थ में ले जा पटके, प्रेम का फूल हृदय महिं खिलता।।
कर्तव्यों की डोर अलग है,
किन्तु प्रेम उससे है आगे।
प्रेम से पत्थर उर भी पिघले,
प्रेम पुकार प्रभू भी जागे।
प्रेम नहीं अधिकार किसी का, प्रेम नहीं विरासत में मिलता।
बुद्धि स्वार्थ में ले जा पटके, प्रेम का फूल हृदय महिं खिलता।।