Tuesday, March 7, 2023

तुमको भी शुभ कामना

 नया मिले फिर यार


होली की शुभकामना, सब ही सबको देत।

खा पीकर हुल्लड़ करें, नहीं किसी का फेथ।।1।।

रंगों की बारिस करें, प्रेमी सब हर लेत।

संस्कृति के नाम पर, संस्कारों की भेंट।।2।।

पवित्र यह त्यौहार है, सबको माने यार।

इक दूजे को छल रहे, नर हो या फिर नार।।3।।

प्राकृतिक अब हैं नहीं, रंग हुए बे मेल।

खुशियों की होली जली, दिल होते हैं फेल।।4।।

नहीं राग रस रंग है, नहीं प्रेम की डोर।

मिलने के अब रंग ना, सबके अपने छोर।।5।।

नायक धन से तुल रहा, ठगिनी दिल की चोर।

होली अब होली नहीं, केवल होता शोर।।6।।

केवल बाकी चाहतें, आहत हैं नर-नार।

केमीकल के रंग हैं, नहीं प्रेम की धार।।7।।

जीवन है नीरस हुआ, अंकों का है खेल।

धन से दिल हैं बिक रहे, प्रेम हुआ है फेल।।8।।

ना शुभ है, ना कामना, प्रेम हुआ है फेक।

कॉपी, कट ओ पेस्ट है, होली की नव टेक।।9।।

हुल्लड़ से बचने चले, बचा न कोई यार।

शादी का सौदा हुआ, प्रेमी एसिड वार।।10।।

हुरियारे हैं खेलते, छल के कैसे खेल?

धन की खातिर होत हैं, नर नारी के मेल।।11।।

तुमको भी शुभ कामना, नया मिले फिर यार।

जीवन जीना प्रेम से, करना ना फिर वार।।12।।


Saturday, March 4, 2023

जीवन की कीमत पर देखो

 धन और पद ये जुटाते हैं

                                           

सभी प्रेम के गाने गाकर, नफरत चहुँ ओर लुटाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

संबन्धों के, भ्रम में, हम जीते।

सुधा के भ्रम, गरल हैं पीते।

कपट करें कंचन की खातिर,

खुद ही खुद को, लगाएं पलीते।

कंचन काया नष्ट करें नित, फिर कुछ कंचन पाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

प्रेम नहीं कहीं हैं मिलता।

फटे हुए को है जग सिलता।

नवीनता का ढोंग कर रहे,

जमा रक्त है, नहीं पिघलता।

अपनत्व ही जाल बना अब, अपना कहकर खाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

अपनों का हक मार रहे हैं।

संबन्ध इनकी ढाल रहे हैं।

स्वारथ पूरा करने को ही,

संबन्धों को साध रहे हैं।

अपना कह कर लूट रहे नित, अपना कह भरमाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।


Friday, March 3, 2023

क्या चरित्र की परिभाषा है?

समझ नहीं कुछ भी आता है


 क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है।

कागज के टुकड़े से व्यक्ति, चरित्रवान बन जाता है।।

कदम-कदम पर झूठ बोलता।

रिश्वत लेकर पेज खोलता।

चरित्र प्रमाण वह बांट रहा है,

जिसको देखे, खून खोलता।

देश को पल पल लूट रहा जो, जन सेवक कहलाता है।

क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है।।

चरित्र की परिभाषा कैसी?

छल-कपट की ऐसी-तैसी।

राष्ट्र की जड़ को खोद रहे जो,

तिलक लगाते ऋषियों जैसी।

संन्यासी खुद को बतलाकर, मठाधीश बन इठलाता है।

क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है।।

नर-नारी संबन्ध निराले।

प्रेम से बने, प्रेम के प्याले।

प्रेम में सारे बंधन तोड़ें,

प्रेम लुटाते हैं मतवाले।

निजी प्रेम संबन्धों से कोई, क्यों चरित्रहीन बन जाता है।

क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है।।

बेईमान चरित्रवान क्यों?

चरित्र प्रमाण बांट रहा क्यों?

नारी नर को लूट रही है,

बन जाता नर ही दोषी क्यों?

राष्ट्रप्रेमी प्रेम ये कैसा? प्रेमी प्रेम को मरवाता है।

क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है।

Tuesday, February 7, 2023

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल

पल पल सबको प्रेम लुटाते


सबके हित में कर्म करें, बस नहीं प्रेम के गाने गाते। 

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल, पल पल सबको प्रेम लुटाते।।

कर्तव्य पथ पर अविचल चलते।

बाधाओं से कभी न डरते।

प्रेम नाम धोखे खाकर भी,

नहीं प्रेम के पथ से हटते।

प्रेम नहीं अधिकार जताता, समर्पण से दिल जीते जाते।

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल, पल पल सबको प्रेम लुटाते।।

प्रेमी न करते कोई दावा।

नहीं पूजते काशी-काबा।

चाहत तो वासना होती है,

प्रेम नहीं है, कोई ढाबा।

प्रेम नाम षड्यंत्र जो रचते, नफरत और घृणा ही पाते।

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल, पल पल सबको प्रेम लुटाते।।

प्रेम की नहीं कोई है सीमा।

प्रेम नहीं, शादी का बीमा।

बदले में जो प्रेम माँगता,

वासना वह, जहर है धीमा।

प्रेमी प्रेम को सजा न चाहे, प्रेमी प्रेम को नहीं मरवाते।

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल, पल पल सबको प्रेम लुटाते।।

प्रेम को कोई समझ न पाया।

सिर्फ प्रेम का गाना गाया।

प्रेम पात्र पर ऐसिड फेंका,

ऐसे प्रेम से, प्रेम लजाया।

पिशाच प्रेम का स्वांग रचाते, प्रेमिका के टुकड़े हो जाते।

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल, पल पल सबको प्रेम लुटाते।।

 

Monday, February 6, 2023

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की,

  नहीं जेल, अब जेल है

                                     

चाह नहीं अब रही किसी की, सबने खेला खेल है।

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल, अब जेल है।।

कर्म कर्म के लिए करें हम।

कदम कदम हैं छले, जले हम।

नहीं किसी से कोई शिकायत,

खुद ही खुद के साथ चलें हम।

पथिकों का है आना-जाना, जीवन चलती रेल है।

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल अब जेल है।।

छिनने का कोई भय नहीं हमको।

लूट का माल, मुबारक तुमको।

षड्यंत्रों से मुक्ति मिले बस,

पी जाएंगे सारे गम को।

स्वार्थ-वासना की आँधी में, संघर्ष की रेलम पेल है।

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल अब जेल है।।

विश्वास करे, विश्वास घात है।

कर्म हैं काले, काली रात है।

तुम से, प्यारी सीख मिली है,

नीच कर्म ही नीच जात है।

राष्ट्रप्रेमी को, प्रेम,  प्रेम से, स्वारथ से ना मेल है।

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल अब जेल है।।

नहीं प्रेम की बातें करते।

नहीं किसी का सोना हरते।

जितना चाहो उतना लूटो,

लुटने से हम नहीं हैं डरते।

झूठ का इत्र मुबारक तुमको, हमको सच का तेल है।

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल अब जेल है।।


Sunday, February 5, 2023

पैसा ही है, सार जगत का

                        पैसे से सब खेल है

                                     


पैसा ही है, सार जगत का, पैसे से सब खेल है।

पैसे खातिर हत्या होतीं, पैसे हित ही मेल है।।

पैसे से हैं रिश्ते-नाते।

प्रेम गीत पैसे हित गाते।

पैसे के सब संगी साथी,

पैसे से बच्चे बिक जाते।

पैसा देख शादी होती हैं, षड्यंत्रों की रेल है।

पैसा ही है, सार जगत का, पैसे से सब खेल है।।

पैसे से सुविधा मिलती हैं।

पैसे से झांकी सजती हैं।

पैसे से सब स्वारथ पूरे,

पैसे से रमणी रमती है।

पैसे की ही माया देखो, होटल बनती जेल है।

पैसा ही है, सार जगत का, पैसे से सब खेल है।।

पैसा ही है, पति, पत्नी का।

पैसा ही नायक रमणी का।

राष्ट्रप्रेमी है दास प्रेम का,

मोल नहीं कोई दमड़ी का।

पैसा, प्रेमी, तुम्हें मुबारक, निकला हमारा तेल है।

पैसा ही है, सार जगत का, पैसे से सब खेल है।।


Thursday, January 26, 2023

शोभा है गणतंत्र की

 

                                     

कर्म, विज्ञान, विश्वास है, निराशाओं का अंत।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।

गणतंत्र नहीं सत्ता तक सीमित।

सामूहिक हित में, हैं सब बीमित।

गण के तंत्र को जीना सीखें,

क्षण-क्षण इसके लिए ही जीवित।

बासंती रंग में रंग कर के, वसुधा हित हम बने हैं संत।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।

विरोधों का सम्मान करें हम।

कर्म हेतु ही कर्म करें हम।

मृत्यु हमारी चिर प्रेयसी,

पल पल को उत्सर्ग करें हम।

राष्ट्रप्रेमी तो प्रेम पथिक है, सेवक है बस, नहीं महंत।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।

बलिदानों के हैं हम आदी।

देश की खातिर पहनी खादी।

कण-कण के हैं प्रेम पुजारी,

प्रकृति से कर ली हमने शादी।

बसंत से खिले, यौवन सबका, पतझड़ पर लग जाय हलंत्।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।


Sunday, January 1, 2023

तेईस का स्वागत! बाईस को टाटा!

राष्ट्रप्रेमी है प्रेम लुटाता।


सर्दी से सब ठिठुर रहे हैं।
मौसम को हम झेल रहे हैं।
रूस यूक्रेन में युद्ध हो रहा,
जीवन से ही खेल रहे हैं।

कोरोना की आहट फिर से।
नहीं किसी की चाहत फिर से।
दो हजार बाईस बीत गया यूँ,
तेईस की गरमाहट फिर से।

आओ नई कुछ आस जगाएं।
संबन्धों में गरमाहट लाएं।
शांति और अहिंसा की खातिर,
नफरत तजकर गले लगाएं।

युद्ध का, ये,  समय नहीं है।
विकास हो सबका, यही सही है।
जो बीत गया, वह बीत गया है,
प्रकृति प्रेम की बांह गही है। 

मिलकर आगे बढ़ना होगा।
बाधाओं को तजना होगा।
दिखावा बहुत किया है अब तक,
यथार्थ के पथ पर चलना होगा।

युद्ध में, ये,  वर्ष न बीते।
हाथ नहीं, रह जाएं रीते।
बुद्धि से सब काम करें पर,
दिलों से, दिलों को आओ जीतें।

जबरन के संबन्ध न थोपें।
कोई किसी को छुरा न भोंके।
नर-नारी मिल बढ़ें प्रेम से,
तन से सिर, ना जुदा हो, रोकें।

लिव इन में, तुम रहो भले ही।
प्रेम से, प्रेम को, सहो भले ही।
साथी को, कोई घाव न देना,
प्रेम से हो अलगाव भले ही।

नव वर्ष का आनंद मनाओ।
ध्वनि प्रदूषण नहीं बढ़ाओ।
उत्सव में हो, जीवन प्यारा,
पर्यावरण को ना क्षति पहुँचाओ।

आओ! मिल, परिवार बचाएं।
समाज को ना क्षति पहुँचाएं।
वैयक्तिक स्वातंत्र भले लो,
वसुधा कुटुंब है, इसे सजाएं।

ईर्ष्या द्वेष नफरत को छोड़ें।
बम और पटाखे, न फोड़ें।
बाल, वृद्ध, महिलाओं की सुरक्षा,
आओ, दिलों को दिलों से जोड़ें।

राष्ट्रप्रेमी है प्रेम लुटाता।
नहीं किसी का शीश झुकाता।
सबका अपना-अपना पथ है,
तेईस का स्वागत! बाईस को टाटा!