Thursday, January 26, 2023

शोभा है गणतंत्र की

 

                                     

कर्म, विज्ञान, विश्वास है, निराशाओं का अंत।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।

गणतंत्र नहीं सत्ता तक सीमित।

सामूहिक हित में, हैं सब बीमित।

गण के तंत्र को जीना सीखें,

क्षण-क्षण इसके लिए ही जीवित।

बासंती रंग में रंग कर के, वसुधा हित हम बने हैं संत।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।

विरोधों का सम्मान करें हम।

कर्म हेतु ही कर्म करें हम।

मृत्यु हमारी चिर प्रेयसी,

पल पल को उत्सर्ग करें हम।

राष्ट्रप्रेमी तो प्रेम पथिक है, सेवक है बस, नहीं महंत।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।

बलिदानों के हैं हम आदी।

देश की खातिर पहनी खादी।

कण-कण के हैं प्रेम पुजारी,

प्रकृति से कर ली हमने शादी।

बसंत से खिले, यौवन सबका, पतझड़ पर लग जाय हलंत्।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।


1 comment:

  1. अति सुन्दर प्रस्तुति।प्रणाम सर।

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