जन्म लेकर आए हैं जि़न्दगी में कुछ दिनों के लिए ,
दिल खोलकर मोहब्बत कर लें कुछ दिनों के लिए ,
प्यासे मन की भूख कभी मिटती नहीं जि़न्दगी में ,
मिटा लें भूख अपनी चाहतों की कुछ दिनों के लिए।
खूबकिस्मत हैं हम जो इतने खूबसूरत रूप पाए हैं ,
सँवारें हर पल अपने रूप हम कुछ दिनों के लिए ,
दमन के ख्याल से निकलके दामन थामें प्यार का ,
प्यार से जी लें जि़न्दगी हम कुछ दिनों के लिए ।
बदन से निकलेगी जब रूह अधूरे रह जाएँगे सपने ,
थोड़ा हँसके सँजोएँ सपने हम कुछ दिनों के लिए,
मजहबी अरमानों के साथ इंसानियत हैसियत होती है,
जीत हासिल कर लें हर जगह कुछ दिनों के लिए ।
चिन्ता हर वक्त कतरनी की तरह कतरती है जि़न्दगी ,
दूर से ही करें हम उसे सलाम, कुछ दिनों के लिए ,
खुदा की खिदमत से खुद को कभी अलग न करें ,
उसने दी है 'आनन्दसे मोहल्लत कुछ दिनों के लिए।
दिनांक 28.03.2013 ग़ज़लकार -
आ. पी. आनन्द (एम. जे.)
टीजीटी. हिन्दी
जनवि. पचपहाड़, राजस्थान ।
दिल खोलकर मोहब्बत कर लें कुछ दिनों के लिए ,
प्यासे मन की भूख कभी मिटती नहीं जि़न्दगी में ,
मिटा लें भूख अपनी चाहतों की कुछ दिनों के लिए।
खूबकिस्मत हैं हम जो इतने खूबसूरत रूप पाए हैं ,
सँवारें हर पल अपने रूप हम कुछ दिनों के लिए ,
दमन के ख्याल से निकलके दामन थामें प्यार का ,
प्यार से जी लें जि़न्दगी हम कुछ दिनों के लिए ।
बदन से निकलेगी जब रूह अधूरे रह जाएँगे सपने ,
थोड़ा हँसके सँजोएँ सपने हम कुछ दिनों के लिए,
मजहबी अरमानों के साथ इंसानियत हैसियत होती है,
जीत हासिल कर लें हर जगह कुछ दिनों के लिए ।
चिन्ता हर वक्त कतरनी की तरह कतरती है जि़न्दगी ,
दूर से ही करें हम उसे सलाम, कुछ दिनों के लिए ,
खुदा की खिदमत से खुद को कभी अलग न करें ,
उसने दी है 'आनन्दसे मोहल्लत कुछ दिनों के लिए।
दिनांक 28.03.2013 ग़ज़लकार -
आ. पी. आनन्द (एम. जे.)
टीजीटी. हिन्दी
जनवि. पचपहाड़, राजस्थान ।