Sunday, December 29, 2024

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है

या मैं उनको ठुकराता हूँ

 अकेलापन या एकान्त साधना, समझ नहीं में पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

अपनी शर्तो पर जीना है।

एकान्त का विष पीना है।

शांति में ही तो साधना होती,

अकेले में कैसा जीना है?

सबसे ही हूँ, प्यार चाहता, नहीं किसी को दे पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

सबको देना ही बस चाहा।

नहीं किसी से पाना चाहा।

जिसने चाहा लूटा मुझको,

सबका हित है उर ने चाहा।

जिसने भी है हाथ बढ़ाया, पकड़ नहीं में पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

समझ नहीं मैं पाया खुद को।

दूर किया है, खुद से खुद को।

जिसने सब कुछ सौंप दिया था,

सौंप न पाया, उसको खुद को।

नहीं जिसे स्वीकार किया था, गीत उसी के गाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।

तड़पन मिलने की अब उससे,

उसके बिन बिछड़ा हूँ खुद से।

खुद ही उससे दूर हुआ था,

मिलने की अब तड़पन उससे।

साधना नहीं अकेलापन है, नहीं मीत से मिल पाता हूँ।

लोगों ने मुझे छोड़ दिया है, या मैं उनको ठुकराता हूँ।।


Thursday, December 19, 2024

पल भर भी मैं अलग न रहता,


सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।



 साथ भले ही आज नहीं हो, साथ की यादों में जीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।
साथ भले ही तुम्हें न भाता।
साथ तुम्हारे मैं मदमाता।
प्रेम तुम्हारा भरा है उर में,
गीत तुम्हारे अब भी गाता।
नेह तुम्हारा भरा हुआ है, युग बीते पर, नहीं रीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।
जहाँ सुखी हो, रहो वहीं पर।
याद न करना, मुझे कहीं पर।
तड़पन का आनन्द मुझे है,
पर भर भूला नहीं कहीं पर।
साथ किसी के खुशियाँ पाओ, साथ तुम्हारे ही जीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।
ख्वाबों में तुम साथ हो हर पल।
कामों में तुम साथ हो हर पल।
तुम्हारे हाथ ही खाना-पीना,
तुम्हारे साथ ही सोता प्रति पल।
जीवन तो गया साथ तुम्हारे, ना मालूम मैं क्यों जीता हूँ।
पल भर भी मैं अलग न रहता, सुधा तुम्हारे कर, पीता हूँ।।

Tuesday, December 17, 2024

अपने आगे खड़ा हो गया

 बेटा! अब है बड़ा हो गया


मना करने पर पास था आता।

साथ में ही था वो सो पाता।

हाथ से मेरे, दूध था पीता,

वरना भूखा था सो जाता।

                अकेले का अभ्यास हो गया।

                बेटा! अब है बड़ा हो गया।

डाॅटा, डपटा, मारा-पीटा।

दूध पिलाया, खिलाया पपीता।

अपनी, उसकी, इच्छा मारी,

चाहा था, बने ज्ञान की गीता।

                 इंटरनेट से विद्वान हो गया।

                 बेटा! अब है बड़ा हो गया।

मोबाइल ही सार हो गया।

लेपटाॅप से प्यार हो गया।

साथ न उसको भाता है अब,

लगता वह वीतराग हो गया।

                 अपने पैरों खड़ा हो गया।

                 बेटा! अब है बड़ा हो गया।

संयम का अभ्यास कर रहा।

बचपन बीता, चाव मर रहा।

स्वस्थ रहे बस, यही चाह है,

जग को दे जो, अभी ले रहा।

                 अपने आगे खड़ा हो गया।

                 बेटा! अब है बड़ा हो गया।


Saturday, December 14, 2024

सत्य की डगर


पिस्ता चौधरी, अध्यापिका, 

मेड़ता सिटी, राजस्थान


सत्य की डगर
सरल होती तो
सीता की अग्नि परीक्षा ना होती।
सत्य की डगर
सरल होती तो
पांडवों का अज्ञाातवास ना होता।
सत्य की डगर
सरल होती तो
हरिश्चन्द्र यूँ बेघर ना होता।
सत्य की डगर
सरल होती तो
प्रह्लाद को पीड़ा ना होती।
सत्य की डगर
सरल होती तो
गीता का सार ना होता।