Sunday, July 19, 2015

दुनियाँ के आगे क्यूं चेहरा छुपाती हो

आप हो हमारी हम आपके हैं हो चुके,
कहने में प्यारी आज क्यूँ शरमाती हो।
अपने को हमें आप पहले ही सौंप चुकी,
मिलने से आज फिर क्यूँ कतराती हो।
प्रेम की पथिक हो, निर्णय कर चुकीं,
दुनियाँ के आगे क्यूं चेहरा छुपाती हो।
छोड़ लोक-लाज, हमारे साथ आ ही चुकीं,
मिलन के पल नहीं, क्यूँ हरषाती हो।

Wednesday, July 15, 2015

जीवन की गति ने बतलाया

प्रेम का मतलब पाना नहीं है


जीवन की गति ने बतलाया, गीत का मतलब गाना नहीं है।

आपने ही हमको बतलाया, प्रेम का मतलब पाना नहीं है।

प्रेम नहीं है कठौती किसी की

प्रेम नहीं है कसौटी किसी की।

प्राणों की रसमय यह धारा,

प्रेम नहीं है बपौती किसी की।

प्रेम के अर्थ को सीमित ना करो, उपहारों का आना नहीं है।

आपने ही हमको बतलाया, प्रेम का मतलब पाना नहीं है।।

सृश्टि का कण-कण है प्यारा,

प्रकृति ने ही तो हमें दुलारा।

आप भी तो प्रकृति की कृति हो,

चेहरा आपका कितना प्यारा।

हमने हर पल ही समझाया, मन-मूरख है माना नहीं है।

आपने ही हमको बतलाया, प्रेम का मतलब पाना नहीं है।

चाँद में भी तो चेहरा आपका,

सूरज में भी लगे, तेज आपका।

प्रकृति के कण-कण में रमी हो,

सागर भी तो दिल है आपका।

हम तो इतना ही समझे हैं, दिल किसी का दुखाना नहीं है।

आपने ही हमको बतलाया, प्रेम का मतलब पाना नहीं है।