नवीन परिस्थितियों में मनोज कोे अपने और अपने बेटे के प्राणों पर संकट दिखाई दे रहा था। यही नहीं वह किसी भी कीमत पर अपने बेटे की पढ़ाई को नुकसान होने देना नहीं चाहता था। उसका बेटा प्रभात बहुत समझदार था और अपने पिता की मजबूरी को समझ रहा था। अतः वह पढ़ने के लिए छुट्टी वाले दिन भी घर (वैसे उस स्थल को घर कहना ही गलत होगा, वह तो मनोज और उसके बेटे के लिए प्रताड़ना स्थल में परिवर्तित हो चुका था।) से निकलकर विद्यालय में जाकर पेड़ों के नीचे बैठकर पढ़ने लगा। जो मनोज अपने बेटे को एक पल के लिए अपनी नजरों से दूर नहीं होने देता था। उसका बेटा मजबूरी में पढ़ने के लिए पेड़ों के नीचे जा रहा है, यह देखकर वह कितनी पीड़ा का अनुभव करता होगा? इसे कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है। मनोज को फिलहाल कैसे भी अपने बेटे प्रभात की सुरक्षा व उसे पढ़ाई के लिए वातावरण उपलब्ध करवाने की चिंता थी। मनोज का क्वाटर तनाव का चैम्बर बन चुका था, जहाँ केवल और केवल माया की मनमर्जी चल रही थी। बेटे को बोर्ड की परीक्षायें देनी थीं। परीक्षायें इतनी निकट थीं कि चाहकर भी मनोज अपने बेटे को किसी अन्य स्कूल में नहीं भेज सकता था। परीक्षाओं तक अपने बेटे को पास रखना मनोज के लिए मजबूरी थी। अतः मनोज ने किसी प्रकार कुछ महीनों के लिए माया को उसके मायके भेजने का विचार बनाया। किंतु समस्या यह थी कि माया को इसके लिए तैयार कैसे किया जाय? माया का तो उद्देश्य ही मनोज और उसके बेटे को तनाव देकर परेशान करना था। अतः वह क्यों मानेंगी? इसी उहापेाह में दीपावली निकट आ गयी।
मनोज किसी भी प्रकार बेटे की परीक्षाओं को लेकर तात्कालिक रूप से माया को अपने व अपने बेटे से अलग करना चाहता था ताकि उसके बेटे के अध्ययन पर माया की वजह से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके। मनोज ने काफी-सोच विचार और विचार-विमर्श के बाद दीपावली पर माया को उसके मायके भेजने का रास्ता निकालने का मन बनाया। मनोज ने दीपावली का बहाना लेकर स्वयं और अपने बेटे के साथ अपने पैतृक गृह जाने का कार्यक्रम बनाया। माया और मनोज की शादी मनोज के घरवालों के विरोध के बावजूद हुई थी। अतः माया का वहाँ जाना संभव नहीं था। अतः वह अपने चचेरे भाई के पास गाजियाबाद जाने के लिए तैयार हो गयी।
दीपावली को सामान्यतः लक्ष्मी पूजन का पर्व माना जाता है। घर की लक्ष्मी गृहलक्ष्मी होती है। अतः दीपावली गृहलक्ष्मी के पूजन का दिन होता है, मनोज का ऐसा मानना था। किंतु यहाँ तो अजीब स्थिति थी, कपटपूर्वक षडयंत्र रचकर यहाँ तो गृहलक्ष्मी के पद को एक झूठी, बदमिजजाज राक्षसी ने कब्जा लिया था। जो हर क्षण मनोज व उसके बेटे का रक्त पी रही थी। वह तो आयी ही इस उद्देश्य से थी किसी प्रकार मनोज और उसके बेटे प्रभात को ठिकाने लगाकर उनके पास जो था, उस पर कब्जा कर सके। अतः जैसे-तैसे उस राक्षसी को जाने के लिए तैयार किया। यह मनोज और उसके बेटे की किस्मत ही थी कि वह अपने भाई के पास जाने के लिए तैयार हो गयी। माया के प्रेमी अफजल ने मनोज को आश्वासन दिया था कि कैसे भी एक बार उसे यहाँ भेजिए फिर वह वापस नहीं जायेगी। मनोज यही चाहता था। तात्कालिक रूप से उसे राहत भी मिली। अब उसके बेटे के लिए कम से कम कुछ दिनों के लिए सुरक्षित माहोल सुलभ हो सकेगा। यह सोचकर कुछ आश्वस्त हुआ। किंतु मामला इतना सरल नहीं था।
माया को बेटे की परीक्षाओं तक वापस न आने के लिए तैयार करना लगभग असंभव काम था। दीपावली के तुरंत बाद माया फोन करके वापस आने के लिए दबाब बनाने लगी। अतः मनोज ने माया और अफजल के संबन्धों को उसके भाइ्र्र और चचेरे भाई के सामने रखकर माया को वापस बुलाने से साफ इंकार कर दिया। माया बार-बार फोन करके उसे धमकाने लगी। यही नहीं, माया ने मनोज की माताजी को भी फोन करके धमकाया कि वह सीधी-सादी औरत नहीं है। वह मनोज को जेल की सलाखों के पीछे भेज देगी। मनोज ने माया से अपने बेटे की बोर्ड परीक्षाओं तक किसी भी प्रकार की कानूनी कार्यवाही न करने के लिए प्रार्थना भी की किंतु माया को मनोज, उसके परिवार और उसके बेटे से क्या लेना-देना था? उसे तो अपने स्वार्थ पूरे करने थे।