दीपावली का शुभ अवसर है, इस पर्व की भिन्न-भिन्न मान्यताएं व् परम्पराए है, इस अवसर पर धन की देवी लक्ष्मी के पूजन का विधान है। घर-घर में लक्ष्मी का पूजन होता है किंतु वास्तविक देवी की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है , या साकार व सशरीर देवियों की उपेक्षा की जाती है फ़िर हमको शान्ति व सुख समृद्धि कैसे मिल सकती है?
आओ दीपावली के इस अवसर पर हम समझे कि प्रतिमा की अपेक्षा वास्तविक देवी की पूजा न सही उसकी, घर की देवी आवाज को सुने और उसके साथ चलाकर उसका सहयोग प्राप्त कर सुख व शान्ति देकर सुख व शान्ति प्राप्त करें और वास्तविक रूप में एक दूसरे के पूरक की भूमिका पूर्ण कर पूर्णता को प्राप्त करे ।
सच्ची देवी ?
एक गाँव में एक गरीब परिवार रहता था। दो भाई थे, दोनों की शादी हो चुकी थी। गरीबी उन्हें दो क्षण भी सुख के नसीब नहीं होने देती थी। दोनों ही एक-दूसरे के विरोधी थे। दोनों के विचारों में जमीन-आसमान का अन्तर था। दोनों में खटपट ही रहती थीं। दोनों में एक ही समानता थी कि दोनों गरीबी के कारण दुखी रहते थे। छोटा भाई अन्धविश्वासी था, वह देवी-देवताओं को ही सब-कुछ मानता था। वह अपना अधिकाँश समय देवी की पूजा में लगाया करता था। उसका कहना था,`यदि देवी प्रसन्न हो जाय तो छप्पर फाड़कर देगी।´
जबकि बड़े भाई का कहना था कि परिश्रम से ही सब-कुछ प्राप्त किया जा सकता है। हमें देवी-देवताओं से अपेक्षा न करके ईमानदारी पूर्वक परिश्रम करना चाहिए। प्रत्येक स्त्री के लिए उसका पति ही देवता है तो प्रत्येक पति के लिए उसकी पत्नी ही सच्ची देवी है। दोनों का सामंजस्य ही परिवार की उन्नति कर सकता है।
दोनों भाइयों में सदैव खटपट रहती। वे दोनों कभी भी एक साथ बैठकर बात नहीं कर सकते थे। छोटा भाई सदैव देवी को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार की पूजा करता रहता। भजन व पूजा-पाठ में ही मस्त रहता। वह सदैव दैवी के मन्दिर में पड़ा रहता, जो कुछ भी होता, देवी के पूजा-पाठ में बरबाद कर देता। काम करने के लिए उसके पास समय ही कहाँ था?
उसका बड़ा भाई दिनभर कठिन परिश्रम करता, उसकी पत्नी गृहस्थी को व्यवस्थित ढंग से चलाती। वह सदैव पति की आज्ञा का पालन करती और पति सदैव पत्नी की सलाह से ही महत्वपूर्ण निर्णय लेता। दोनों में बड़ा स्नेह था। अत: गरीबी मैं भी उनकी गाड़ी पटरी पर चल रही थी। उनकी स्थिति सुधरती जा रही थी।
छोटा भाई सदैव लक्ष्मी देवी की तस्वीर के सामने उनके प्रसन्न होने की राह देखा करता। उसकी पत्नी उसे उस स्थिति में देखकर ही जल-भुन जाती। उसे कोसती रहती। सारी घर-गृहस्थी ही अव्यवस्थित रहती। आखिर घर के खर्चे के लिए कोई आमदनी का साधन नहीं था। वह क्या कर सकती थी? वह पति को देखकर कुढ़ती रहती। उसके पति को यह समझ तो थी ही नहीं कि सच्ची देवी घर में परेशान हो तो लक्ष्मी देवी प्रसन्न कैसे हो सकती हैं? यदि घर की मालकिन ही प्रसन्न नहीं होगी तो कोई देवी कुछ नहीं कर सकती।
परिश्रम के बिना किसी को कुछ नहीं मिलता। कर्म करना जीवन के लिए आवश्यक है, इस बात को उसे कौन समझाता वह किसी की बात सुनने को तैयार ही न था। पत्नी के द्वारा कुछ भी कहे जाने पर उसे पीटने लगता। वह देवी के नशे में चूर था, कैसे समझता कि सभी स्त्री-पुरुष देवी-देवताओं का रूप हैं, बशर्ते वे अपने कर्तव्य का पालन करें। बड़े भाई ने भी छोटे भाई को समझाने का काफी प्रयास किया था। उसने उसकी एक न सुनी तो परेशान होकर उसने अपना रहन-सहन अलग कर लिया। संपत्ति के नाम पर उनके पास जो भी था, सब कुछ बाँट दिया गया। उसकी पत्नी परेशान थी, सोचा शायद अब कुछ काम-धाम करने लगें। घर-गृहस्थी का ध्यान रखने लगें, उसने भी उसे काफी समझाया किन्तु वह मानने वाला कहाँ था? उसके सिर पर तो देवी का भूत सवार था।
देवी जो एक तस्वीर मात्र थी के सामने बैठा पूजा करता रहता, सच्ची देवी जो उसके सामने रोती-गिड़गिड़ाती रहती, उसका कोई प्रभाव उस पर नहीं पड़ता। दीपावली का दिन था। सभी प्रसन्नता के साथ दीपावली मना रहे थे। सभी के घरों से मिठाइयों और पकवानों की सुगन्ध आ रही थी। बच्चे पटाखों से आकाश को गुंजायमान कर रहे थे, वह आज भी देवी की तस्वीर के सामने बैठा सोच रहा था कि आज तो लक्ष्मी देवी जरूर प्रसन्न हो जायेंगी और उसकी गरीबी दूर हो जायेगी। करता भी क्या? घर में कुछ भी न था। दीवाली पर उसे बच्चे रोटी के लिए तरस रहे थे।
अचानक उसे ध्यान आया। आज दीपावली है और आज के दिन जुआ खेला जाता है। जुआ खेलना भी लक्ष्मीजी की एक प्रकार से आराधना ही है। बिना जुआ खेले तो लक्ष्मी प्रसन्न हो ही नहीं सकतीं। जुआ खेलने के लिए रूपयों की आवश्यकता थी जो उसके पास नहीं थे। अन्तत: उसने अपनी जमीन को ही दाव पर लगा दिया और जब हार गया तो फूट-फूट कर रोने लगा। आज उसे बड़े भाई का कथन याद आ रहा था, `सच्ची देवी तो पत्नी ही होती है। उसी के सहयोग, समन्वय व सामंजस्य से प्रसन्नता मिल सकती है।´ आज उसे भाई का कथन बार-बार कचोट रहा था। उसकी आँखों से पश्चाताप के आंसू बह रहे थे।