Tuesday, October 28, 2008

छोटा सा एक, दीप जलायें।

सभी मित्रों को परिवार व समाज सहित दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं
अपक्षा है, हम लोग दीपावली को सादगीपूर्वक मनायें तथा अपने आप को समाज के प्रति समर्पित करने के लिये तैयार करें, अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर अधिक ध्यान दें और सभी के दिलों में प्रेम का एक दीपक जलाने में सफ़ल हों

छोटा सा एक, दीप जलायें।




छोटा सा एक, दीप जलायें।
मानव-मन को पुन: मिलायें।।
अंधकार से ढका विश्व है,
दीप से दीप जलाते जायें।

चौराहे पर रक्त बह रहा,
नारी नर को कोस रही है,
नर नारी का खून पी रहा,
लक्ष्मीजी चीत्कार रही हैं।

राम का हम हैं, स्वागत करते
रावण मन के अन्दर बस रहा।
लक्ष्मी को है मारा कोख में
अन्दर लक्ष्मी पूजन हो रहा।

आओ शान्ति सन्देश जगायें
हर दिल प्रेम का दीप जलायें।
बाहर दीप जले न जले,
सबके अन्दर दीप जलायें।

विद्वता बहुत हाकी है अब तक,
पौथी बहुत बांची हैं अब तक,
हर दिल से आतंक मिटायें,
छोटा सा एक, दीप जलायें।

Monday, October 27, 2008

घर-घर दमकें मानिक मोती

दीपोत्सव

घर-घर दमकें मानिक मोती,
घर-घर ईश वन्दना होती।
घर-घर जगमगाय रही जोती,
हर घर लक्ष्मी पूजा होती।

लक्ष्मी और गोवर्धन पूजा,
भाई बहिन सा नाता न दूजा।
सबसे मोहक जैसे चूजा,
हर्ष से सारा घर है गूंजा।

बच्चे चलाते चकरी पटाके,
धायं-धायं और धायं धमाके।
स्वयं हंसे औरों को हंसा के,
बच्चे करते बहुत तमाशे।

अंधियारी हो भले ही रात ,
दीप ज्योति से लगे प्रभात।
दीपावली सिखाती बात,
उन्नति सब मिल करें हठात।

सत्य असत्य पर विजय है पाता,
धर्म अधर्म से आगे आता।
अनाचार का नाश हो जाता,
दीपावली का पर्व बताता।

बच्चे सबके मन को भाते,
मनोबल सबका बहुत बढ़ाते।
पत्थर दिल को भी पिघलाते,
दीपोत्सव का पर्व मनाते।

Saturday, October 18, 2008

सच्ची देवी कौन ?

दीपावली का शुभ अवसर है, इस पर्व की भिन्न-भिन्न मान्यताएं व् परम्पराए है, इस अवसर पर धन की देवी लक्ष्मी के पूजन का विधान है। घर-घर में लक्ष्मी का पूजन होता है किंतु वास्तविक देवी की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है , या साकार सशरीर देवियों की उपेक्षा की जाती है फ़िर हमको शान्ति व सुख समृद्धि कैसे मिल सकती है?


आओ दीपावली के इस अवसर पर हम समझे कि प्रतिमा की अपेक्षा वास्तविक देवी की पूजा न सही उसकी, घर की देवी आवाज को सुने और उसके साथ चलाकर उसका सहयोग प्राप्त कर सुख व शान्ति देकर सुख व शान्ति प्राप्त करें और वास्तविक रूप में एक दूसरे के पूरक की भूमिका पूर्ण कर पूर्णता को प्राप्त करे ।



सच्ची देवी ?



एक गाँव में एक गरीब परिवार रहता था। दो भाई थे, दोनों की शादी हो चुकी थी। गरीबी उन्हें दो क्षण भी सुख के नसीब नहीं होने देती थी। दोनों ही एक-दूसरे के विरोधी थे। दोनों के विचारों में जमीन-आसमान का अन्तर था। दोनों में खटपट ही रहती थीं। दोनों में एक ही समानता थी कि दोनों गरीबी के कारण दुखी रहते थे। छोटा भाई अन्धविश्वासी था, वह देवी-देवताओं को ही सब-कुछ मानता था। वह अपना अधिकाँश समय देवी की पूजा में लगाया करता था। उसका कहना था,`यदि देवी प्रसन्न हो जाय तो छप्पर फाड़कर देगी।´


जबकि बड़े भाई का कहना था कि परिश्रम से ही सब-कुछ प्राप्त किया जा सकता है। हमें देवी-देवताओं से अपेक्षा न करके ईमानदारी पूर्वक परिश्रम करना चाहिए। प्रत्येक स्त्री के लिए उसका पति ही देवता है तो प्रत्येक पति के लिए उसकी पत्नी ही सच्ची देवी है। दोनों का सामंजस्य ही परिवार की उन्नति कर सकता है।


दोनों भाइयों में सदैव खटपट रहती। वे दोनों कभी भी एक साथ बैठकर बात नहीं कर सकते थे। छोटा भाई सदैव देवी को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार की पूजा करता रहता। भजन व पूजा-पाठ में ही मस्त रहता। वह सदैव दैवी के मन्दिर में पड़ा रहता, जो कुछ भी होता, देवी के पूजा-पाठ में बरबाद कर देता। काम करने के लिए उसके पास समय ही कहाँ था?


उसका बड़ा भाई दिनभर कठिन परिश्रम करता, उसकी पत्नी गृहस्थी को व्यवस्थित ढंग से चलाती। वह सदैव पति की आज्ञा का पालन करती और पति सदैव पत्नी की सलाह से ही महत्वपूर्ण निर्णय लेता। दोनों में बड़ा स्नेह था। अत: गरीबी मैं भी उनकी गाड़ी पटरी पर चल रही थी। उनकी स्थिति सुधरती जा रही थी।


छोटा भाई सदैव लक्ष्मी देवी की तस्वीर के सामने उनके प्रसन्न होने की राह देखा करता। उसकी पत्नी उसे उस स्थिति में देखकर ही जल-भुन जाती। उसे कोसती रहती। सारी घर-गृहस्थी ही अव्यवस्थित रहती। आखिर घर के खर्चे के लिए कोई आमदनी का साधन नहीं था। वह क्या कर सकती थी? वह पति को देखकर कुढ़ती रहती। उसके पति को यह समझ तो थी ही नहीं कि सच्ची देवी घर में परेशान हो तो लक्ष्मी देवी प्रसन्न कैसे हो सकती हैं? यदि घर की मालकिन ही प्रसन्न नहीं होगी तो कोई देवी कुछ नहीं कर सकती।


परिश्रम के बिना किसी को कुछ नहीं मिलता। कर्म करना जीवन के लिए आवश्यक है, इस बात को उसे कौन समझाता वह किसी की बात सुनने को तैयार ही न था। पत्नी के द्वारा कुछ भी कहे जाने पर उसे पीटने लगता। वह देवी के नशे में चूर था, कैसे समझता कि सभी स्त्री-पुरुष देवी-देवताओं का रूप हैं, बशर्ते वे अपने कर्तव्य का पालन करें। बड़े भाई ने भी छोटे भाई को समझाने का काफी प्रयास किया था। उसने उसकी एक न सुनी तो परेशान होकर उसने अपना रहन-सहन अलग कर लिया। संपत्ति के नाम पर उनके पास जो भी था, सब कुछ बाँट दिया गया। उसकी पत्नी परेशान थी, सोचा शायद अब कुछ काम-धाम करने लगें। घर-गृहस्थी का ध्यान रखने लगें, उसने भी उसे काफी समझाया किन्तु वह मानने वाला कहाँ था? उसके सिर पर तो देवी का भूत सवार था।

देवी जो एक तस्वीर मात्र थी के सामने बैठा पूजा करता रहता, सच्ची देवी जो उसके सामने रोती-गिड़गिड़ाती रहती, उसका कोई प्रभाव उस पर नहीं पड़ता। दीपावली का दिन था। सभी प्रसन्नता के साथ दीपावली मना रहे थे। सभी के घरों से मिठाइयों और पकवानों की सुगन्ध आ रही थी। बच्चे पटाखों से आकाश को गुंजायमान कर रहे थे, वह आज भी देवी की तस्वीर के सामने बैठा सोच रहा था कि आज तो लक्ष्मी देवी जरूर प्रसन्न हो जायेंगी और उसकी गरीबी दूर हो जायेगी। करता भी क्या? घर में कुछ भी न था। दीवाली पर उसे बच्चे रोटी के लिए तरस रहे थे।

अचानक उसे ध्यान आया। आज दीपावली है और आज के दिन जुआ खेला जाता है। जुआ खेलना भी लक्ष्मीजी की एक प्रकार से आराधना ही है। बिना जुआ खेले तो लक्ष्मी प्रसन्न हो ही नहीं सकतीं। जुआ खेलने के लिए रूपयों की आवश्यकता थी जो उसके पास नहीं थे। अन्तत: उसने अपनी जमीन को ही दाव पर लगा दिया और जब हार गया तो फूट-फूट कर रोने लगा। आज उसे बड़े भाई का कथन याद आ रहा था, `सच्ची देवी तो पत्नी ही होती है। उसी के सहयोग, समन्वय व सामंजस्य से प्रसन्नता मिल सकती है।´ आज उसे भाई का कथन बार-बार कचोट रहा था। उसकी आँखों से पश्चाताप के आंसू बह रहे थे।

Monday, October 13, 2008

अंगरेजी का रोजगार समाचार पढ़ा कीजिये मास्टर जी

बेचारी हिन्दी

सितम्बर के अन्तिम सप्ताह की बात है। मुझे उत्तर प्रदेश माध्यमिक सेवा चयन बोर्ड द्वारा विज्ञापित प्रधानाचार्य के पद हेतु आवेदन करना था। अतः ड्राफ्ट बनबाने के उद्देश्य से सेण्ट्रल बैंक आफ इण्डिया की स्थानीय शाखा में ड्राफ्ट का फार्म भरकर दिया। बैंक कर्मचारी ने फार्म यह कहकर वापस कर दिया कि इसे अंग्रेजी में भरकर लाओ। मैंने दलील दी कि महोदय हम लोग हिन्दी पखवाड़ा मना रहे हैं और आप है कि हिन्दी में भरे फार्म को भी अस्वीकार कर रहे हैं। उसने मुझे हिकारत से देखते हुए कहा, कम्प्यूटर अंग्रेजी नहीं जानता। मुझे मजबूरी में ड्राफ्ट फार्म पर चयन बोर्ड का नाम अंग्रेजी में लिखना पड़ा। जब अंग्रेजी में नाम लिखने के लिए, पूरा नाम मोबाइल पर अपने मित्र को पूछ रहा था तो बैंक के अधिकारी महोदय ने सुझाव दिया । रोजगार समाचार अंग्रेजी में भी आता है। उसे पढ़ा कीजिए मास्टर जी।

प्रश्न यह है की जो व्यक्ति अंगरेजी नहीं जानता वह ड्राफ्ट नही बनवा सकता ?

Sunday, October 12, 2008

दूरियां

दूरियां


वैश्वीकरण ने आज मिटा दी, भौगोलिक दूरियां ।

परिवहन और संचार से, मिट गईं सब दूरियां ।

भौतिक विकास कब मिटा सका, दो दिलों की दूरियां ।

जाति, धर्म विचार की भी, बढ़ रहीं नित दूरियां ।

शिक्षित इंसान की, इंसान से, बढ़ रहीं क्यों दूरियां ?

प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा है, और नर-नारी में दूरियां ।

पास-पास रहकर भी देखो, पसरी हुई क्यों दूरियां ?

दूरियां ही दूरियां हैं, इंसान की मजबूरियां ।


हर दिल में खिलें पुष्प, लता फैलें चहुं ओर,

सुगंध व्यापे कण-कण , मिट जायें सब दूरियां ।

Thursday, October 9, 2008

विजयादशमी की शुभकामनाये

समस्त मित्रो को विजयादशमी की शुभ कामनाये इस आशा के साथ कि हम अपने दुर्गुणों को दूर करते हुए अपने आप को पूर्णता की और ले जाने के प्रयत्न करेगे । अपने परिवार,समाज,देश व् विश्व के लिए हर त्याग करने की सामर्थ्य जुटाने की कोशिश करेगे.

Wednesday, October 8, 2008

नन से बलात्कार करने वाले हिन्दू नहीं, दुराचारी व जघन्य अपराधी हैं

नन से बलात्कार करने वाले हिन्दू नहीं, दुराचारी व जघन्य अपराधी हैं।


उड़ीसा की घटनाओं ने पूरे देश को विश्व के सामने शर्मिन्दा किया है। स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती के हत्यारों को बचाया है। जो शक्ति स्वामी जी के हत्यारों के विरूद्ध लगनी चाहिए थी, वह इन अपराधियों की ओर लगानी पड़ रही है। निर्दोषों को प्रताडित करने वाले अपराधी ही होते हैं, वे अपराधियों की सहायता ही करते हैं, वही वर्तमान समय में उड़ीसा में तथाकथित धर्म का झण्डा उठाने वाले अधर्मी कर रहे हैं। अपने कृत्यों से हिन्दू धर्म को हानि पहुंचा रहे हैं। उन्हें धर्मांतरण की इतनी ही चिन्ता थी तो स्वामी जी के स्थान को भरते। आगे बढ़कर जो व्यक्ति मजबूरी में ईसाई बन रहे हैं। उन्हें गले लगाते। स्वामी जी के काम को आगे बढ़ाते। स्वामीजी के नाम पर पैशाचिक कृत्य करके ये लोग स्वामी जी की आत्मा को कष्ट पहु¡चा रहे हैं। ऐसे कृत्यों का कोई भी संगठन समर्थन नहीं कर सकता और प्रत्येक सरकार को वोटों की चिन्ता किए बिना इनके खिलाफ कानून के अनुसार कड़ी से कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए यही नहीं जिस संगठनों के साथ इनका नाम जुड़ रहा है, उन संगठनों को ऐसे अपराधियों को पकड़ने में सरकार की सहायता व ऐसे कृत्यों की तीव्र भर्त्सना करनी चाहिए। परिवार व समाज में ऐसे लोगों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

Sunday, October 5, 2008

रत्नो को पहचान न पाते, मेरे जैसे अन्धे होते

रचना

हमें रोशनी दे पायें जो, ऐसे कुछ ही चन्दे होते।
पथिकों पर विश्वास करें जो, ऐसे कुछ ही बन्दे होते।।
यात्रा से हम थके हुए थे,
निराशाओं से घिरे हुए थे।
तुमने है विश्वास दिलाया,
सच है ये पथ, चुने हुए थे।
हमें सहारा दे पायें जो, ऐसे कुछ ही कन्धे होते।
पथिकों पर विश्वास करें जो, ऐसे कुछ ही बन्दे होते।।
रचना ही सृष्टि करती है,
विध्वंशो को गले लगाती।
स्नेह-नीर से सींच-सींच कर,
गंगा आगे बढ़ती जाती।
शान्ति और सुख देने वाले, जग में कुछ ही धन्धे होते।
पथिकों पर विश्वास करें जो, ऐसे कुछ ही बन्दे होते।।
स्नेह और विश्वास मिले बस,
और न कोई करूं कामना।
तुमरे जैसे छात्र मिलें तो,
और किसी की मुझे चाह ना।
रत्नो को पहचान न पाते, मेरे जैसे अन्धे होते।
पथिकों पर विश्वास करें जो, ऐसे कुछ ही बन्दे होते।।

महिलायें अपनी योग्यताओं का इस्तेमाल अपने पतियों के करियर के उन्नयन में करें - मेगन बाशम

राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट दिनांक ५अक्टूबर २००८ के पृष्ठ २ से साभार

किताबों की दुनिया कॉलम के अन्तर्गत डॉ.दुर्गाप्रसाद अग्रवाल द्वारा मेगन बाशम की हाल ही में प्रकाशित किताब `बिसाइड एवरी सक्सेसफुल मैन´ की समीक्षा की गई है जिसे मैं साभार हूबहू यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । निश्चित रूप से यह किताब हमारे यहाँ के महिला और पुरूषों के लिए मार्गदर्शक हो सकती है जो समानता के नशे में परिवार व समाज को ही नजरअन्दाज करते हैं, जो भारतीय संस्कृति व परंपराओं पर ही कुठाराघात करते हैं। आधुनिकता और समानता तथा वैयक्तिक स्वतंत्रता की मांग व संघर्ष के कारण परिवार जैसी महत्वपूर्ण संस्था कमजोर होती जा रही है और परिवार के बिना न नर सुखी रह सकता है और न नारी। ऐसे नर-नारी जो अपनी भ्रमित अवधारणाओं के कारण परिवार को ही नजरअन्दाज करने पर उतारू हैं, अपनी धारणाओं पर पुनर्विचार करें तो शायद नर, नारी, परिवार व समाज के लिए वे अधिक उपयोगी बन सकेंगे।

पत्रकार और प्रसारण माध्यमों की जानी-मानी टिप्पणीकार मेगन बाशम की हाल ही में प्रकाशित किताब `बिसाइड एवरी सक्सेसफुल मैन´ एक चौंकाने वाली स्थापना करती है और वह कि आज की औरत कामकाजी दुनिया से बाहर निकलने के लिये व्याकुल है, लेकिन दौहरी कमाई से घर चला पाने की विवशता के कारण काम करते रहने को मजबूर है। कहना अनावश्यक है, यह स्थापन प्रचलित नारीवादी सोच से हटकर है।
मेगन पश्चिम के एक लोकप्रिय मनोरंजन चैनल ई! से एक मार्मिक प्रसंग उठाती हैं। एक आकर्षक युवा शल्य चिकित्सक ने उतनी ही आकर्षक एक डॉक्टर से शादी की। कुछ समय बाद वे एक घर खरीदने की योजना बनाते हैं। एक एस्टेट एजेंट उन्हें एक बहुत उम्दा घर बताता है। घर दोनों को बहुत पसन्द आता है। पति पत्नी से कहता है, `यह घर हमारे लिये एकदम उपयुक्त है। लेकिन हम यदि इसे खरीदना चाहें तो तुम्हें अपनी नौकरी जारी रखनी पड़ेगी।´ पत्नी पूछती है, `कब तक?´ `यह तो मैं नहीं जानता। शायद काफी दिनों तक।´ पति का जबाब है। हताश-उदास पत्नी कहती है, `मगर हमने तो बच्चों के बारे में बात की थी, तुम भी तो तैयार थे।´
`अभी उसके लिए बहुत वक्त है।´ पति का यह भावहीन उत्तर सुनकर पत्नी अपनी कड़ुवाहट रोक नहीं पाती है, हाँ , काफी वक्त है, अगर तुम किसी और औरत के साथ बच्चे चाहो तो। वैसे भी मैं पैंतीस की तो हो चुकी हू¡।´
अब जरा इस यथार्थ की तुलना कुछ वर्ष पहले के उस यथार्थ से कीजिए जहाँ पति चाहता था कि पत्नी घर में ही रहे, बच्चे पैदा करे और पाले। मेगन बताती हैं कि जब भी वे और उनकी सहेलियां मिलती हैं (सभी 25 से 35 के बीच की उम्र की हैं) तो उनकी बातचीत इस मुद्दे पर सिमट आती है कि आखिर कब उनके पति उन्हें नौकरी से मुक्ति दिलायेंगे?
मेगन न्यूजर्सी की एक महिला वकील को यह कहते हुए उद्धृत करती हैं कि उनका सपना है कि वे अपने काम से मुक्त हो जायं और सप्ताह के किसी दिन दोपहर में ग्रॉसरी शापिंग करें। इसी तरह एक 29 वर्षीया डॉक्टर कहती हैं कि हालांकि उन्हें अपने काम में मजा आता है, फ़िर भी वे एक पत्नी और माँ बने रहना ज्यादा पसन्द करेंगी। `अच्छा होता, मैं डॉक्टर न होती।´ वे कहती हैं।
मेगन बताती हैं कि उनके देश में हुए अधिकांश जनमत सर्वेक्षण ही बताते हैं कि अब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं अपने जीवन के बेहतर वर्षों को घर और बच्चो के लिए प्रयुक्त करना चाहती हैं यहां तक कि वे युवा अविवाहित लड़कियां भी , जिन्होंने अब तक की जरूरतों का स्वयं अनुभव नहीं किया है, कहती हैं कि वे करियर की सीढ़ियां चढ़ने की बजाय परिवार की देखभाल में समय लगाना अधिक पसंद करेंगी।
लेकिन असल चुनौती यहीं उत्पन्न होती है। क्या स्त्री पढ़-लिख कर काम न करे? अपने ज्ञान, प्रतिभा, योग्यता सब को चूल्हे चौके में झोंक दे? और अगर वह ऐसा कर भी दे, तो उन आर्थिक जरूरतों की पूर्ति कैसे होगी, जो दिन व दिन बढ़ती जा रही हैं। और यहीं मेगन एक नई बात कहतीं हैं , सुझाती हैं कि शिक्षित, प्रतिभा संपन्न और दक्ष महिलाओं के लिए बेहतर विकल्प यह है कि वे अपनी योग्यताओं का इस्तेमाल अपने पतियों के करियर के उन्नयन में करें। ऐसा करने से न तो उनकी योग्यताओं का अपव्यय होगा, न उन्हें ठाले रहने का मलाल होगा और न बेहतर जिन्दगी जीने के अपने सपनों में कतर-ब्योंत करनी पड़ेगी। काम के मोर्चे पर पति की कामयाबी में पति की सहयोगी बनकर स्त्री कुछ भी खोये बगैर सब कुछ प्राप्त कर सकती है। आज की स्त्री को मेगन की सलाह है कि वह एकल स्टार बनने की बजाय मजबूत टीम की सदस्य बने। और यही वजह है कि उन्होंने इस किताब के शीर्षक में बिहाइंड की जगह बिसाइड शब्द का प्रयोग किया है।

राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट दिनांक ५अक्टूबर २००८ के पृष्ठ २ से साभार

Thursday, October 2, 2008

गांधी-शास्त्री को आचरण में उतारें

आज दो अक्टूम्बर है राष्ट्रपिता गांधी जी देश के हिरदय में विराजमान लाल बहादुर शास्त्री की जयन्ती। औपचारिकतावश स्थान-स्थान पर आयोजन होंगे भाषण होंगे और देश व देश के नागरिको को बेबकूफ बनाने के प्रयास होंगे। इतने आयोजनों के बाबजूद हिंसा भी बढेगी भ्रष्टाचार भी सत्य की तो परिभाषा ही बदल दी गयी है। आओ हम संकल्प करे हम ऐसे झूठे आयोजनों की अपेक्षा इन महापुरुषों के कार्य के प्रति अपने आप को समर्पित करेगे । इनके द्बारा किए गए काम को आगे आकर पूरा करेंगे। अपने आचरण के द्बारा इनके कामो को सम्मान देंगे।