Sunday, March 29, 2020

दिल से दिल जब मिले हुए हैं, गले मिलाकर क्या करना?

कोरोना से क्या डरना?

                                        डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी


दिल से दिल जब मिले हुए हैं, गले मिलाकर क्या करना?
सामाजिक दूरी पर रहते हम, फिर कोरोना से क्या डरना?
हाथ जोड़कर नमस्ते करना।
स्वच्छता संग, योग है करना।
हम घर के अंदर रहें सुरक्षित,
जीतेंगे हम, नहीं है डरना।
घर बैठे हम कार कर रहे, कार्यालय जाकर क्या करना?
सामाजिक दूरी पर रहते हम, फिर कोरोना से क्या डरना?
हाथ मिलाना छोड़ो भाई।
दिल से दिल को जोड़ो भाई।
परिवार के साथ में वक्त बिता,
सुखी रहो सब लोग-लुगाई।
परिवार जनों को समय आज दो, बाहर जाकर क्या करना?
सामाजिक दूरी पर रहते हम, फिर कोरोना से क्या डरना?
कोरोना ने कहर है ढाया।
इटली और ईरान हिलाया।
धैर्य और संयम आज फिर,
मोदी जी ने याद दिलाया।
भारत भू है तपोभूमि, फिर एकान्तवास से क्या डरना?
सामाजिक दूरी पर रहते हम, फिर कोरोना से क्या डरना?

Saturday, March 28, 2020

होठों पर मुस्कान मधुमई

प्रेम लुटाता हूँ

                                   
नहीं कामना, कामिनी कोई, मैं तो प्रेम लुटाता हूँ।
होठों पर मुस्कान मधुमई, जिसे देख मुस्काता हूँ।
सुंदरता की मूरत हो तुम।
भोलेपन की सूरत हो तुम।
वाकपटु, व्यवहार कुशल हो,
सादगी भरी, खुबसूरत हो तुम।
तुमसे सीखा प्रेम समपर्ण, मैं गीत तुम्हारे गाता हूँ।
नहीं कामना, कामिनी कोई, मैं तो प्रेम लुटाता हूँ।।
जहाँ रहो, स्वतंत्र रहो तुम।
स्वस्थ रहो,  प्रसन्न रहो तुम।
खुशियाँ तुम्हें मिलें जीवन में,
हमें कभी ना याद करो तुम।
प्रकृति के कण-कण में पल पल, देख तुम्हें मैं पाता हूँ।
नहीं कामना, कामिनी कोई, मैं तो प्रेम लुटाता हूँ।।
तुम्हारे पथ का पथिक नहीं हूँ।
रमणी, साथी  सही नहीं हूँ।
भटकन ही अपना पथ प्यारी,
बसने में, मैं कहीं नहीं हूँ।
तुम अपनी चाहत को पाओ, दुआ यही, मैं दे जाता हूँ।
नहीं कामना, कामिनी कोई, मैं तो प्रेम लुटाता हूँ।।

Friday, March 27, 2020

सुता, भगिनि, पत्नी माता बन, नर की प्राणाधार हो

                               


सुता, भगिनि, पत्नी माता बन, नर की प्राणाधार हो।
नारी बिन अस्तित्व न नर का, तुम ही जग की सार हो।
विद्या की देवी हो तुम ही।
शिव की शक्ति भी हो तुम ही।
जिसके पीछे जग बौराया,
धन की लक्ष्मी भी हो तुम ही।
मुस्कान पर नर मिट जाता तुम से कारोबार हो।
सुता, भगिनि, पत्नी माता बन, नर की प्राणाधार हो।।
तुम से नर संपूरण होता।
तुम बिन खाये भंवरों में गोता।
तुम जब नर से मिल जाती हो,
तभी पुष्प सृष्टि का खिलता।
तुम हो कामना, तुम हो भावना, भक्ति तारणहार हो।
सुता, भगिनि, पत्नी, माता बन, नर की प्राणाधार हो।।
तुमरे बिन जग धर्म न होता।
तुम ही जग में, अर्थ की स्रोता।
तुम ही कामना, काम की हो रति,
तुम से ही नर मोक्ष है पाता।
राष्ट्रप्रेमी कृतज्ञ तुम्हारा, माँ! तुम ही पालनहार हो।
सुता, भगिनि, पत्नी, माता बन, नर की प्राणाधार हो।।

Thursday, March 26, 2020

अभूतपूर्व परिस्थिति भाई, हम सरकार के साथ हैं

कोरोना से मत  घबड़ाओ।

                 
अभूतपूर्व परिस्थिति भाई, हम सरकार के साथ हैं।
नहीं थामने हाथ किसी के, नहीं मिलाने गात हैं।।
मानव जाति की शामत आई।
कोरोना  ने  जगह   बनाई।
मरना नहीं है, मिटना नहीं है,
अलग-अलग रह  जीना भाई।
घर से बाहर नहीं निकलना, मोदी जी की बात हैं।
नहीं थामने हाथ किसी के, नहीं मिलाने गात हैं।।
रखो सफाई, दूरी बनाओ।
बातें करो, पर पास न आओ।
जिजीविषा जिंदा है जब तक,
कोरोना से मत  घबड़ाओ।
घर में रह लो घर वाली संग, बच्चों संग सौगात है।
नहीं थामने हाथ किसी के, नहीं मिलाने गात हैं।।
दिल से दिल की बातें कर लें।
समय मिला परिवार की सुन लें।
अपने हाथ से खाना खिलाकर,
पत्नी के दिल की, धुन कुछ सुन लें।
कोरोना ने दिया है अवसर, खुद ही खुद के साथ हैं।
नहीं थामने हाथ किसी के, नहीं मिलाने गात हैं।।

Thursday, March 19, 2020

नारी है जग जननी जग में

यदि अंतर में प्रेम बसा हो।


नारी है जग जननी जग में, यदि अंतर में प्रेम बसा हो।
मन-मंदिर में मोह की मूरत, मानिनी में अरमान सजा हो।।
प्रेम में वह बहती नदियाँ हैं।
इंतजार में, बहती सदियाँ हैं।
लक्ष्य हेतु कुछ भी कर जाती,
कामना की खिलतीं कलियाँ हैं।
मुस्कान पर जग दीवाना, क्रोध में काल का वाद्य बजा हो।
नारी है जग जननी जग में, यदि अंतर में प्रेम बसा हो।।
पल पल करतीं, सब कुछ अर्पण।
स्पष्टवादिनी,   बनती   दर्पण।
प्रेम में हैं, सर्वस्व  लुटातीं,
असंतुष्ट हो,  करती  तर्पण।
शक्ति पुंज, सृजन की देवी, सब कुछ देती यदि रजा हो।
नारी है जग जननी जग में, यदि अंतर में प्रेम बसा हो।।
अज्ञानी, जो पिछड़ी  कहते।
गृहिणी के बिन, घर ना रहते।
सुता, बहिन, पत्नी माता बिन,
उच्च भवन को घर ना कहते।
नर-नारी मिल साथ चलें जब, पथ, पाथेय गंतव्य सजा हो।
नारी है जग जननी जग में, यदि अंतर में प्रेम बसा हो।।

Sunday, March 15, 2020

प्रेम लुटाने की फितरत है, लेने का कोई ख्वाब नहीं है

प्रेम कोई व्यापार नहीं है


प्रेम पुजारी हूँ, मैं केवल, और कोई भी भाव नहीं है।
प्रेम के बदले, प्रेम मैं माँगू, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।।
प्रेम नहीं है गुलाम किसी का।
समर्पण करे, है प्रेम उसी का।
प्रेम नाम षड्यंत्र ये कैसे?
प्रेम पवित्र है, भाव सभी का।
प्रेम लुटाने की फितरत है, लेने का कोई ख्वाब नहीं है।
प्रेम के बदले, प्रेम मैं माँगू, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।।
प्रेम मधुरता समस्त सृष्टि  की।
प्रेम अश्रु है, प्रयल वृष्टि की।
जड़-चेतन सब, प्रेम तत्व हैं,
प्रेम तरणि हैं, भाव समष्टि की।
प्रेम में नहीं आकलन होता, गणित का कोई हिसाब नहीं है।
प्रेम के बदले, प्रेम मैं माँगू, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।।
प्रेम में तुम खुबसूरत  होतीं।
तुमसे ही है, प्रेम की ज्योति।
झूठ प्रेम की कैंची जब में,
प्रेम बिना सब कुछ हो खोती।
प्रेम बिना, इस जग में मुझको, जीने का कोई चाब नहीं है।
प्रेम के बदले, प्रेम मैं माँगू, प्रेम कोई व्यापार नहीं है।।

तुम्हें प्रेम हम करते कितना

कण-कण में बस तुम दिखती हो

तुम्हें प्रेम हम करते कितना? इसका कोई माप नहीं है।
कण-कण में बस तुम दिखती हो, नाम का केवल जाप नहीं है।।
चाह नहीं है, हम तुम्हें पाएं।
हम तो गीत तुम्हारे गाएं।
हम तो तुम्हारे हर प्रेमी को,
अपना समझें गले लगाएं।
प्रेम वियोग है, जीवन पीड़ा, तुम हो पश्चाताप नहीं है।
कण-कण में बस तुम दिखती हो, नाम का केवल जाप नहीं है।।
नयन भले ही देख न पाएं।
अनुभूति से हम हरषाएं।
बाग-बाग हम हो जाते हैं,
समाचार तुम्हारे, हम सुन पाएं।
पीड़ा कितनी भी मिल जाए, हमको कोई ताप नहीं है।
कण-कण में बस तुम दिखती हो, नाम का केवल जाप नहीं है।।
स्वर सुनने को कान ये तरसे।
नयनों से भी अश्रु  बरसे।
जहाँ हो तुम, आनंदित हो बस,
यही जानकर हियरा  हरषे।
यादों के सहारे हम जी लेंगे, भले ही तुम्हारा साथ नहीं है।
कण-कण में बस तुम दिखती हो, नाम का केवल जाप नहीं है।।

Tuesday, March 10, 2020

हमने तुमरे हर प्रेमी को, अपना समझा गले लगाया।

जीते जी

                        संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी


गुस्सा करते हो क्यों हम पर हम इसे झेल नहीं पायेंगे।
पल भर को तुम दूर हुए, हम जीते जी मर जायेंगे।।
            तुमने ही जीना सिखलाया,
            तुमने हमको पथ दिखलाया।
            निराशाओं में भटक रहे थे,
            तुमने आकर धैर्य बँधाया ।
दुनियां से हम अलग रहे पर तुम्हें छोड़ नहीं पायेंगे।
पल भर को तुम दूर हुए, हम जीते जी मर जायेंगे।।
            तुम ही केवल आश हमारी,
            तुम ही हो अरदास हमारी।
            तुम्हारी खातिर ही ता हम,
            दर-दर के हैं बने भिखारी।
साथ तुम्हारा यदि मिल जाये,हम भूखे सो जायेंगे।
पल भर को तुम दूर हुए, हम जीते जी मर जायेंगे।।
             तुमने जितना हमें भुलाया,
             उतना ही हमने अपनाया।
             हमने तुमरे हर प्रेमी को,
             अपना समझा गले लगाया।
तुमने हमको ना अपनाया, यादों में खो जायेंगे।
पल भर को तुम दूर हुए, हम जीते जी मर जायेंगे।। 

                     फिर भी आई, देखो, होली!

                                                     डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

वासंती के बजे तराने।
बातेें करते, सभी सुहाने।
प्रदूषण चहुँ ओर बढ़ रहा,
कैमीकल रंगते  मनमाने।
हिंसा की चलती है गोली।
फिर भी आई, देखो, होली!

चहुँ ओर है, भागम-भाग।
गोली चलतीं, लगती आग।
ऐसिड फेंके, पत्थर मारे,
पुलिस के साथ भी ऐसा फाग।
सीएए पर इनकी, कड़वी होती बोली।
फिर भी आई, देखो, होली!

होली रख कर, आग लगाते।
मन का मैल मिटा ना पाते।
काम न कर, व्यर्थ आलोचन,
स्वार्थ की खातिर हैं भरमाते।
फैशन नाम, केवल है चोली।
फिर भी आई, देखो, होली!

प्रदूषण तुम नहीं बढ़ाओ।
मन का सारा मैल मिटाओ।
परंपराओं में सुधार करो अब,
जीवन पर्यावरण  बचाओ।
आज की राधा, नहीं है भोली।
फिर भी आई, देखो, होली!

प्रेम के रंग में सबको रंग दें।
सद वृत्तियाँ, दिलों में भर दें।
लोक कल्याण का भाव जगाकर,
सबके दिल आनंदित कर दें।
सबके गालों पर हो, सच्चाई की रोली।
फिर भी आई, देखो, होली!
ई-मेलः santoshgaurrashtrapremi@gmail.com, चलवार्ता 09996388169/8787826168
                        visit us: rashtrapremi.com,www.rashtrapremi.in              
जवाहर नवोदय विद्यालय, महेंद्रगंज, दक्षिण पश्चिम गारो पहाड़ियाँ, मेघालय-794106 

Sunday, March 8, 2020

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष


सृष्टि का आधार हो

                                                   डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी


नारी! नहीं केवल श्रद्धा हो, सृष्टि का आधार हो।
शक्ति रूपिणी, माँ दुर्गा हो, प्रेम की पारावार हो।
शहनशक्ति की सीमा हो तुम।
परिवार  हित,  बीमा  हो तुम।
तुम ही प्रेयसी, भगिनी, माता,
सहधर्मिणी,  वामा हो तुम।।
गृहलक्ष्मी तुम, धन की देवी, ज्ञान को देती धार हो।
नारी! नहीं केवल श्रद्धा हो, सृष्टि का आधार हो।।
तुम हो अल्पना, तुम हो कल्पना।
तुम्हीं दिखातीं, नर  को सपना।
सर्वस्व ही, न्यौछावर करतीं,
जिसे मानती हो वश अपना।
शिव की शक्ति, भक्त की भक्ति, त्रिगुणों की तुम सार हो।
नारी! नहीं केवल श्रद्धा हो, सृष्टि का आधार हो।।
राष्ट्रप्रेमी  की  यही कामना।
सीमित रहे ना, कोई भावना।
उन्नति के नित शिखर चढ़ो तुम,
नहीं चाहता, तुम्हें  थामना।
जहाँ पर जातीं, स्वर्ग बनातीं, भले ही कारागार हो।
नारी! नहीं केवल श्रद्धा हो, सृष्टि का आधार हो।।

Tuesday, March 3, 2020

अध्यापन- समाज सेवा के रूप में

      नौकर नहीं, अध्यापक बनें

                            डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

                     
कैरियर(जीवन-वृत्ति विकास) किसी भी व्यक्ति के जीवन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। जीवन-वृत्ति का चयन उसकी जीवन यात्रा में महत्वपर्ण दिशादर्शन का कार्य करता है। युवाओं के चहेते संन्यासी स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस को कैरियर दिवस के रूप में मनाने की बात भी की जाती है, इससे यह ही स्पष्ट होता है कि युवाओं के लिए कैरियर का चयन व उसमें सफलता की बुलन्दियों को छूना, ना केवल वैयक्तिक विकास के लिए आवश्यक है वरन् पारिवारिक, राष्ट्रीय व सामाजिक सन्दर्भो में भी महत्वपूर्ण होता है।
कैरियर अंग्रेजी का शब्द है। इसके उच्चारण को लेकर भी मतभेद हैं। कुछ लोग इसका उच्चारण करियर करके करते हैं तो कुछ कैरियर; मुझे तो कैरियर कहना ही अच्छा लगता है। अतः मैं इसी शब्द का प्रयोग करता हूँ।
पारंपरिक समाज में कैरियर के सीमित विकल्प ही उपलब्ध होते थे। वर्तमान समय में औद्योगिक विकास के साथ सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के युग में नित नवीन क्षेत्रों का विकास हुआ है किंतु पारंपरिक जीवन-वृत्ति का महत्व किसी भी प्रकार से कम नहीं हुआ है।
पारंपरिक कैरियर के विभिन्न क्षेत्रों में सबसे महत्वपूर्ण व सम्मानजनक कार्य अध्यापन रहा है। अध्यापक को गुरू का सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। कबीर जी ने तो यहाँ तक कह दिया था-
गुरू-गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पायँ।
बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय।।
शिक्षण पेशे की आवश्यकता उस समय भी थी और आज भी है। ज्ञान के विकास के साथ-साथ इसकी आवश्यकता बढ़ी ही है। जनसंख्या वृद्धि व शिक्षा के सार्वभौमिक उद्देश्य के साथ-साथ शिक्षकों की आवश्यकता निःसन्देह बढ़ी है। हाँ! अध्यापन पेशे के नए-नए रूप भी सामने आये हैं। अध्यापन एक नौकरी मात्र नहीं है। यह समाज सेवा है। अध्यापक को युग-निर्माता कहा गया है। 
अध्यापक है, युग निर्माता।
छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता।।
जब व्यक्ति अध्यापन पेशे को मात्र नौकरी के रूप में लेता है, तब वह अध्यापक के सम्मान को ठेस पहुँचा रहा होता है। नौकर को अध्यापक के पद पर नियुक्ति पा लेने से अध्यापक का सम्मान नहीं मिल जायेगा। अध्यापक के नौकर बन जाने के कारण ही जीवन मूल्यों का क्षरण हो रहा है। जीवन मूल्यों के क्षरण के कारण अध्यापक के मान-सम्मान में कमी आई है या यूँ भी कहा जा सकता है कि अध्यापक के मान-सम्मान में कमी होने के कारण ही जीवन मूल्यों का क्षरण हो रहा है और समाज नैतिक मानदण्डों की पुनस्र्थापना के प्रयत्न कर रहा है।
संख्याबल के आधुनिक युग में कई बार गुणवत्ता पिछड़ती हुई दिखाई देती है। यही स्थिति अध्यापन पेशे के संदर्भ में भी कही जा सकती है। अच्छे, समर्पित व निष्ठावान अध्यापकों का अभाव ही दिखाई देता है। नौकरी के लिए बेरोजगारों की कितनी भी लंबी लाइनें हों किंतु अध्यापकों की कमी निरंतर बनी हुई है। 
अध्यापन पेशे के प्रति आकर्षण भले ही कम दिखाई देता हो, बहुत बड़ी संख्या में युवक-युवतियाँ अध्यापन पेशे को अपना रहे हैं। हाँ! दिल से अध्यापक बनने की इच्छा कम ही लोगों में दिखाई देती है। अधिकांश अध्यापक मजबूरी में कोई इच्छित नौकरी न मिलने के कारण अध्यापन का काम करने लगते हैं। वास्तव में वे टीचर नहीं, वाई-चांस टीचर होते हैं और वे न तो स्वयं अपने साथ न्याय कर पाते हैं और न ही अध्यापन पेशे के साथ। 
अच्छे अध्यापक के रूप में विकसित होने के लिए निष्ठा व समर्पण अनिवार्य तत्व हैं। ग्रेच्युटी के एक मुकदमे की सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने शिक्षकों की ग्रेच्युटी की माँग को ठुकराते हुए अपने निर्णय में स्पष्ट रूप  लिखा था कि अध्यापक नौकर नहीं समाज सेवक है। 
        वास्तविकता यही है कि अध्यापक समाज सेवक के रूप में ही सम्मान पाता रहा है। समाज सेवक के रूप में समर्पित होने के कारण ही अध्यापक को गुरू के रूप में सम्मान मिलता रहा है। इसी सेवा के कारण ही उसे ईश्वर से भी अधिक माना जाता रहा है। किन्तु यदि हम अध्यापन को एक नौकरी के रूप में लेते हैं तो उस सम्मान के हकदार नहीं रह जाते। नौकर कभी सम्मान का पात्र नहीं हो सकता। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने आप को अध्यापक से नौकर की श्रेणी में न जाने दें। इसके लिए आवश्यक है कि हम अध्यापक पेशे के महत्व और इससे जुड़े कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों को समझें। 
           हमें समझना होगा कि अध्यापक को युग-निर्माता क्यों कहा जाता है? हम अध्यापक की नौकरी मात्र करके युगनिर्माता नहीं हो सकते। युग के निर्माण के लिए अपने आप को दीपक की भाँति जलाकर विद्यार्थियों में ज्योति का संचार करना होगा। विद्यार्थियों को केवल नौकरी-पेशे के लिए तैयार करने से बाज आना होगा और उन्हें जिम्मेदार नागरिक के रूप में विकसित करने के प्रयास करने होंगे।