Thursday, July 9, 2009

देश उठाना है ऊँचा तो नैतिकता को दूर भगाओ

झाँकी

आओ भाई झाँकी कर लें , पावन हिन्दुस्तान की।
पावन हिन्दुस्तान की , अपने देश महान की।।
इधर हिमालय की सोभा है, सागर उधर है जलराशि।
चन्दन की सुगन्ध आती है ,देखो रजपूतानी मॉटी।
जो स्वर्ग से नीचे उतर रही , पाप काट दे गंगा जी।
इसीलिए तो डरते नहीं है , पाप करने में भारतवासी।
भ्रष्टाचार , रिश्वत लेने में , नहीं हिचकता नेता।
ईश्वर भी भार उतारन को , अवतार यहीं पर लेता।
सन्त मारकर, शान्तिकामना करते आज जहाँन की।
रिश्वत ही पहचान बन गयी ,अपने देश महान की।
आओ भाई झाँकी कर लें , पावन हिन्दुस्तान की।
पावन हिन्दुस्तान की , अपने देश महान की ।।
तीन लोक से मथुरा न्यारी , ऐसा हमने सुन पाया है।
ऐसा ही कई एक नमूना , यहाँ दिखन में आया है।
भाई बहन भी करते मिलते, चर्चा प्रेमालाप की।
सब देशों से महिमा कम क्या? ऊपर लिखे आलाप की।
संस्कार संस्कृति सर्वोच्च है, वेद हमें बतलाते हैं।
बेटे को कर एक किनारे , शान्तनु वधू ले आते हैं।
मन से मन क्या मिलें? उर में क्षुधा है काम पिपासा की।
इतिहास चरित्रवानों का, फिर क्यूँ चिन्ता चरित्र महान की।
आओ भाई झाँकी कर लें , पावन हिन्दुस्तान की।
पावन हिन्दुस्तान की , अपने देश महान की।।
गुणवान, विद्यावानों से श्रेष्ठ, सभी बतलाते हैं।
शान्ति और दयालुता की ओर हमें पहुँचाते हैं।
काम करना हराम है नेता जी से शिक्षा पाओ।
देश उठाना है ऊँचा तो नैतिकता को दूर भगाओ।
निज स्वार्थो को पूरा करके ,भले ही जेल में जाओ।
थोड़े दिन की पिकनिक समझो,साफ बरी हो जाओ।
पाक से आओ दोस्ती करलें, शान्ति हमारे काम की।
आतंकवादियों को भेंट चढ़ाते, सेना और अवाम की।
आओ भाई झाँकी कर लें , पावन हिन्दुस्तान की।
पावन हिन्दुस्तान की , अपने देश महान की।।

Wednesday, July 8, 2009

सिसकत छोड़ी मीत गये

कली

कभी कली थी अल्हड़पन में,

बढ़ी जवानी के मधुवन में।

चार चाँद थे लग रहे तन में,

निकल जिधर जाये मधुवन में।

भ्रमरों से घिर जायें छन में,

मादकता छाये हर मन में।

अलि वे दिन तो बीत गये,

भ्रमर रसिक कब मीत भये।

अंग -अंग अब पीत भये,

प्रेम भरे नहीं गीत रहे।

सिसकत छोड़ी मीत गये,

रिश्ते नहीं पुनीत रहे।

अलि! वे अलि अब गये कहाँ ?

नव कली जहाँ वो होंग वहाँ।

यही रीति पालता जहाँ,

पूर्णेच्छा कर टालता जहाँ।

अलि आएं वो सुगन्ध कहाँ ?

पीने को मकरन्द कहाँ ?

अरी! नव कलि को बतलाना होगा ,

नव गीत उसे ही गाना होगा।

भ्रमरों से घिर जाना होगा,

कैसे ? उनसे बच पाना होगा।

मन चंचल समझाना होगा,

फिर नहीं बसन्त का आना होगा।

अरी घबड़ा मत वो दिन नहीं रहे,

ये भी न रहें सब कोई कहे।

जीवन परिवर्तन कष्ट सहे ,

समर्पण कर कुछ भी न लहे।

तन- मन-धन सब वही महे,

आदर्शों का सार यहे।

Monday, July 6, 2009

यदि तुम हो तैयार, चलने को यार

यदि तुम

नहीं है
मुझे विश्वास
हो चुका
हताश
आश्वासन
वचन वायदों से।

नहीं है
लगाव
पंरपराओं
प्रथाओं
कायदों से।

नहीं है
मुझे डर
जीवन-मरण
यश-अपयश
नुकसान-फायदों से।

यदि
तुम हो तैयार
चलने को यार
सब कुछ त्यागकर
दुनियाँ से भागकर
महत्वाकांक्षाएं मारकर
धन,पद,प्रतिष्ठा के
बंधनो से मुक्त होकर
अपना पवित्र
निस्वार्थ
निश्चल प्रेम
समर्पित करने को।

Sunday, July 5, 2009

मैं फिर, मानवता का संदेश सुनाने आया हूँ.....

संदेश




मैं फिर, मानवता का संदेश सुनाने आया हूँ।
कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।

भारतीय हम संस्कृति अपनी, युगों-युगों तक अमर रहे।
दूधों की नदियां बहती थी,पानी को हम तरस रहे ।
घर-घर में तुलसी का पौधा बाग लगाना भूल गये।
पेड़ो को थे देव मानते उन्हें बचाना भूल गये।
विकास कर रहे किस कीमत पर यही बताने आया हूँ।
कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।

अतिथि सेवा करने वाले पड़ासियों को भूल गये।
भूखे मरते भाई हमारे,स्व-धर्म निभाना भूल गये।
गाँव छोड़कर शहर में आये,माँ-बापों को भूल गये।
अधिकारों को भोग रहे नित कर्तव्यों को भूल गये।
कर्म छोड़कर सुविधा भोगी यही बताने आया हूँ।
कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।

वसुधा थी परिवार हमारा,लगाते आज तुम प्रान्त का नारा!
देशभक्ति का खुला पिटारा, भाई-भाई का हत्यारा।
इन्तजार में जब थी कारा, जननायक का रूप है धारा।
समस्याओं से किया किनारा, बॉस से मिलकर हड़पा सारा।
नर-सेवा नारायण सेवा, याद दिलाने आया हूँ।
कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।

गैरों को था गले लगाया, अपनों को भी अब ठुकराया ?
जाति-पाँति में पड़कर हमने झगड़ो को ही नित्य बढ़ाया।
लम्बा किया संघर्ष जिन्होंने देश की खातिर शीश चढ़ाया।
क्षुद्र स्वार्थ की खातिर हमने, पूर्वजों को आज भुलाया।
हाथी के पाँव में, सबका पाँव, यही बताने आया हूँ।
कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।

Wednesday, July 1, 2009

सभी समस्याओं का समाधान

समाधान


सभी समस्याओं का समाधान,

आचरण में लायें, जो देते व्याख्यान,

नैतिकता, धर्म औरसदाचरण का,

एक है जन्तर,

हमारी कथनी और करनी में,

रहे न अन्तर।

जो करते औरों से अपेक्षा,

स्वयं न करें उसकी उपेक्षा,

निज आचरण में ढालें,

स्वयं सत्य के मार्ग पर चलें,

तब दूसरों को डालें।


जो जनता को सीख देत,

अपनी खाट भीतरी लेत,

ऐसे पाखण्डियों की करो उपेक्षा,

पहले दें वे स्वयं ही परीक्षा,

तत्पश्चात औरों को दीक्षा,

इसे बना लें आन,

सबका हो कल्यान,

यही है समाधान।

http://aaokhudkosamvare.blogspot.com