Sunday, February 27, 2011

बीजरूप में


बीजरूप में
     


आंखों में नहीं रहे,
आंसू।
संन्यासी के पास नहीं हैं 
वैराग्य। 


मां के पास नहीं है
वात्सल्य।
नारी के पास नहीं है,
नारीत्व।


मर्द की जुबान का नहीं है, 
कोई अर्थ।
राज्य के पास भी नहीं है, 
धर्म।


न्यायालयों में नहीं है,
न्याय।
शिक्षालयों में नहीं है,
शिक्षा ।


अधिकारी के नहीं हैं,
कर्तव्य।
किसी को पता नहीं है,
अपना गन्तव्य।


फिर भी तेरा मन्तव्य?
सत्य का प्रकाश
ज्ञान की ज्योति
भ्रातृत्व का भाव
ईमानदारी का गुण
जन-जन में फैलाने का?
फिलहाल बचाये रख,
अपने पास
बीजरूप में
यही बहुत बड़ी उपलब्धि होगी
झंझा के थमने पर 
तेरे द्वारा बचाये गये बीज से
तेरे द्वारा बचायी गई
 लघु ज्योति से ही
मानवता की बेल
फलेगी-फूलेगी,लहलहायेगी
लघु ज्योति से ज्यातिर्मय होकर
दुनिया  को प्रकाशित  कर देगी।

Monday, February 14, 2011

बसन्तोत्सव की शुभकामनायें

बसन्त पंचमी से मौसम परिवर्तन माना जाता है. शीत के साथ बसन्त का आगमन. चहुं और उल्लास का वातावरण, मनमोहक व प्रेरक मौसम में प्रत्येक कार्य के लिये उत्साह होता है. शिक्षा के क्षेत्र में इस दिन पट्टी पूजन के साथ शिक्षारंभ किया जाता रहा है तो इस दिन को विद्या की देवी सरस्वती के जन्म दिन के रूप में भी मनाया जाता रहा है.

दूसरी और युवक व युवतियां बसन्त को मदनोत्सव व कामोत्सव का मौसम मानते रहै है. होली तक का मौसम बड़ा ही सुहावना व युवा दिलों को ही नहीं अधेड़ो के दिलो को भी मिलन के लिये उत्तेजित कर देने वाला कहा जा सकता है.

पश्चिम में भी इसी समय वेलेन्टाइन डे अर्थात प्रेम दिवस मनाने की परंपरा रही है. १४ फ़रवरी प्रेम दिवस के रूप में मनाई जाती है. भारत में हम लोग नकल करने की प्रवृत्ति के कारण इस और आकर्षित हो रहै है, सवा महीने के बसन्तोत्सव को भूलकर एक दिन को प्रेम दिवस के रूप में मनाना निःसन्देह हमारी मूर्खता ही कही जा सकती है. प्रेम तो जीवन का आधार है, एक दिन नहीं हर क्षण प्रेम के लिये समर्पित होना चाहिये.
कुछ कथित रूप से समाज के स्वयं भू ठेकेदार इस दिन संस्कृति के रक्षक बनकर हिंसा पर उतारू हो जाते हैं, जिसे किसी भी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता. यह उनकी मानसिक विकृति ही कही जा सकती है. यदि वे संस्कृति व समाज की इतनी ही चिन्ता करते हैं तो उन्हें बसन्त के आयोजन करके सकारात्मक परिवर्तन करते हुए प्रेम दीवाने युवक-युवतियों को प्रेम से संयम व मर्यादा के साथ प्रेम प्रकट करने की राह दिखानी चाहिए.
इस के साथ ही
सभी मित्रों को बसन्तोत्सव, कामोत्सव व प्रेमोत्सव की शुभकामनायें

Wednesday, February 9, 2011

आओ दिल्ली चलें

आओ दिल्ली चलें
         देवेन्द्र कुमार मिश्रा, छिन्दवाड़ा (जन-प्रवाह से साभार)

आओ गीता और
कुरान पर हाथ
रखकर
झूठ को सच 
बनाकर
बोलें और कमायें
गवाह बनकर.


आओ धर्म के नाम पर
अधर्म करके
अपनी तन-मन की
जरूरतें पूरी करें
साधू बनकर.


आओ कि मर जायें
और मार डालें
मंदिर-मस्जिद
सत्य और अहिंसा
के नाम पर
अन्दर के राक्षस को 
शांत करें
राजनीतिक बनकर.


सत्ता बड़ी है
अहं और लोभ बड़ा है
क्रोध और काम 
जीवन में आवश्यक है
आओ कामी बनें,
पापी बनें,
कुत्ते बनें, कमीने बनें,
गिरवी रखें राष्ट्र
गरीब और पिछड़ा बनकर.


आओ कमायें
गरीबों का खून चूसकर
नगर सेठ बनें
अधमरी अशिक्षित जनता को
पीस-पीसकर
आओ दिल्ली चलें
जनता को मूर्ख बनायें
शरीफ़ बनकर.