Saturday, January 6, 2018

रुपया ही भगवान है


रुपये हित हैं रिश्ते नाते


                                 डाॅ संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



रुपये हित हैं रिश्ते नाते, रुपया ही भगवान है।
नर-नारी की साध एक है, रुपया ही अरमान है।।
बाजार बड़ा, सब कुछ मिल जाता,
बिकते रिश्ते, बिकता नाता।
रुपये की ताकत सब चाहें,
चिन्ता नहीं, कैसे वह आता।
नारी की इज्जत बिकती है, रुपया उसकी शान है।
नर-नारी की साध एक है, रुपया ही अरमान है।।
रुपये हेतु है हत्या होतीं,
रुपयों से मिले, छिनती रोटी।
रुपया देख होती हैं शादी,
पति को मार, गैरों संग सोती।
छल, कपट, धोखा सब जायज, रुपये का बस मान है।
नर-नारी की साध एक है, रुपया ही अरमान है।।
झूठे केस वकील हैं लड़ते,
रुपयों से गवाह हैं मिलते। 
खिलाड़ियों की बोली लगती,
आस्तीनों में सांप हैं पलते।
धन लूटकर पत्नी कहती, पति नहीं शैतान है।
नर-नारी की साध एक है, रुपया ही अरमान है।।

Friday, January 5, 2018

कृत्रिम प्रेम के गाने हैं

कदम-कदम पर जाल


                    डाॅ संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



धोखा देकर रिश्ते बनाकर, कृत्रिम प्रेम के गाने हैं।
कदम-कदम पर जाल बिछे हैं, आकर्षक बिछे दाने हैं।।
रिश्तों को व्यापार बनाया,
प्रेम नाम ले लूट मचाया;
कानून को हथियार बनाकर,
कपट जाल को कैसा छुपाया?
रिश्तों को ब्राह्मण बन जाते, आरक्षण को, वर्ग पुराने हैं।
कदम-कदम पर जाल बिछे हैं, आकर्षक बिछे दाने हैं।।
घट-घट का पानी पीकर भी,
रानी अनेकों की बनकर भी;
कुआंरी बनकर शादी रचायें,
पत्नी का ढोंग, करें ठगकर भी।
नारी पुरानी, नवेली ठगिनी, देखो नए जमाने हैं।
कदम-कदम पर जाल बिछे हैं, आकर्षक बिछे दाने हैं।।
मर्यादा की, तज दी रेखा,
फंस गये हम, नहीं था देखा;
षड्यंत्र का जाल बिछाकर,
दहेज का केस, कोर्ट में लेखा।
झूठे यहाँ, सच्चे बनते हैं, सच को मिलते ताने हैं।
कदम-कदम पर जाल बिछे हैं, आकर्षक बिछे दाने हैं।।

Thursday, January 4, 2018

उन सब मित्रों को धन्यवाद

मित्रों नव वर्ष पर शुभकामनाओं का दौर रहता है किन्तु मुझे इस प्रकार शुभकामनायें देने की आदत नहीं है। नव वर्ष में लिखी हुई प्रथम कविता आप सभी को समर्पित है-



उन सब मित्रों को धन्यवाद
                      डाॅ संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

घायल हैं हम, चोट सहीं, अनगिनत हम पर हुए वार;
ठोकर से है, गति बढी, साथी हमको, मिले चार;
काम है चलना, चलते हैं हम, दुनिया भले ही करे वार;
जिन-जिनने हैं वार किए, उन सब मित्रों को धन्यवाद।

बीता वर्ष, लघु जीवन बीता, साथ न कोई, मिले यार;
जिस पर, है विश्वास किया, विश्वासघात के सहे वार;
अपने अपने लक्ष्य सभी के, धन-दौलत से जिन्हें प्यार;
झूठे घृणित आरोप लगाये, उन सब मित्रों को धन्यवाद।

जिजीविषा है शेष अभी भी, बार बार हैं हुए प्रहार;
प्रेम कोष आपूरित अब भी, लुटायेंगे हम सबको यार;
देना ही है, कर्म हमारा, चाह नहीं है, मिले प्यार;
जिन-जिनने भी, ठगा है हमको, उन सब मित्रों को धन्यवाद।

धोखा देकर, बनाते रिश्ते, कानून की फिर देते मार;
अजीब प्यार है, देखो इनका, आत्मा पर, करते प्रहार;
नहीं किसी के, बंधन में हम, सबसे करते, बातें चार;
जिन-जिनसे भी मिला हूँ पथ में, उन सब मित्रों को धन्यवाद।