Friday, January 5, 2018

कृत्रिम प्रेम के गाने हैं

कदम-कदम पर जाल


                    डाॅ संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



धोखा देकर रिश्ते बनाकर, कृत्रिम प्रेम के गाने हैं।
कदम-कदम पर जाल बिछे हैं, आकर्षक बिछे दाने हैं।।
रिश्तों को व्यापार बनाया,
प्रेम नाम ले लूट मचाया;
कानून को हथियार बनाकर,
कपट जाल को कैसा छुपाया?
रिश्तों को ब्राह्मण बन जाते, आरक्षण को, वर्ग पुराने हैं।
कदम-कदम पर जाल बिछे हैं, आकर्षक बिछे दाने हैं।।
घट-घट का पानी पीकर भी,
रानी अनेकों की बनकर भी;
कुआंरी बनकर शादी रचायें,
पत्नी का ढोंग, करें ठगकर भी।
नारी पुरानी, नवेली ठगिनी, देखो नए जमाने हैं।
कदम-कदम पर जाल बिछे हैं, आकर्षक बिछे दाने हैं।।
मर्यादा की, तज दी रेखा,
फंस गये हम, नहीं था देखा;
षड्यंत्र का जाल बिछाकर,
दहेज का केस, कोर्ट में लेखा।
झूठे यहाँ, सच्चे बनते हैं, सच को मिलते ताने हैं।
कदम-कदम पर जाल बिछे हैं, आकर्षक बिछे दाने हैं।।

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