जीवन एक खेल है , इसे किसी को सुधारने या समाज में परिवर्तन करने के अहम में कष्टकर न बनायें। सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय,पाप और पुण्य दोनो रहे हैं और दोनो रहेंगे। यह दुनिया विविधता पूर्ण है, और रहेगी। ईश्वर या प्रकृति या अन्य कोई शक्ति जिसे भी आप स्रजनाहर मानते हैं द्वारा रचित दुनिया को बदलने की अपेक्षा हम स्वयम अपना पाला निर्धारित कर लें की हम न्याय या अन्याय , सत्य या असत्य , धर्म या अधर्म,पाप या पुण्य किसके साथ जीवन रूपी खेल को खेलने के इच्छुक है। हमें किसी से भी अपेक्षाएं नहीं करनी हैं। अपने कर्तव्यों को पुरा करना है। फिर देखो जीवन रूपी खेल कितना आनंददायक हो जाएगा।