Wednesday, April 13, 2011

फूल उठे फिर से फुलवारी

फूल उठे फिर से फुलवारी
                
बीत गई यह वर्ष हमारी,
नये संवत की करें तैयारी।
फूल उठे फिर से फुलवारी,
भरीं हों जिसमे खुशियां सारी।

नया संवत जब भी है आता,
खुशियां यह घर-घर में लाता।
सबके ही मन को यह भाता,
विक्रमादित्य की याद दिलाता।

गये वर्ष को देके विदाई,
गत संवत से होती जुदाई।
नव संवत पर बनें मिठाई,
हर बच्चे-बच्चे ने खाई।

नव-संवत है नया प्रभात,
फूल रहे सबके हैं गात।
नये संवत के नये उत्पात,
कौन किसे दे देगा मात।

शुभ हो सबको ही यह वर्ष,
चंहु ओर छाया है हर्ष।
बच्चों के मन में उत्कर्ष,
शुभ हो भारत को नव-वर्ष।

नव-संवत पर नयी उमंग,
छायी हैं सबके ही अंग।
सबके मन में उठी तंरग,
नव-संवत लाता है रंग।

नव संवत क्या नहीं है लाता,
कैसा है यह सबको भाता।
पिन्टू है कैसा इठलाता,
नये वर्ष  के गीत है गाता।

नया संवत है कैसा आया,
राष्ट्र हमारा है मुस्काया।
ऐसा है विश्वास दिलाया,
राष्ट्रप्रेमी मन में हर्षाया।