Saturday, March 28, 2015

प्रेम ही गुंजन

प्रेम है समर्पण 
            रोशनी विश्वकर्मा


प्रेम ही सृजन 
प्रेम ही गुंजन 
प्रेम ही प्रकृति 
प्रेम ही संस्कृति 
प्रेम की परिभाषा 
जाने ना रे कोई
अभागा है वो जो 
प्रेम पा कर भी खोय 
प्रेम है धड़कन 
प्रेम है समर्पण 
प्रेम ही ईस्वर 
प्रेम ही पूजा 
इसके बिना 
बेंरंग है दुनिया 
प्रेम के पास ने ही 
बाँधे रखा है 
इंसा को इंसा से 
काश की समझ पाते 
आप और हम 
तो होती ना यूँ दुरी 

आप हम से क्यों ऐठें हैं?

प्रेम
छोटा-साशब्द
कितना हमदर्द।

प्रेम में धोखा,
गवाँ दिया मौका,
लगाया था चौका।

प्रेम बकवास,
टूटी है आस,
बुझती नहीं प्यास।

प्रेम में धक्का,
लगा दिया छक्का,
जमता नहीं थक्का।

प्रेम का रुक्का,
फँसाने का चुग्गा,
रह गया हक्का-बक्का।

साथ पल दो-चार,
यादों का अचार
मिलते नहीं समाचार।

गुपचुप का विचार,
हमने किया प्रचार,
बेवफाई दो-चार।

जीवन की धार,
छलावा था प्यार,
कट गए यार।

लड़ाई-झगड़ा छूटा,
प्रेम का धागा टूटा,
गैर का गड़ गया खूँटा।

दिल को दबाये बैठे हैं,
आपको छुपाये बैठे हैं,
आप हम से क्यों ऐठें हैं?