अफजल दोहरा गेम खेल रहा था। एक तरफ तो वह माया से दिन भर बात करता था, नहीं, माया अफजल से बात करती थी । अफजल ने स्पष्ट रूप से मनोज को बताया था कि माया ही उसे फोन मिलाती है, उसने मनोज को यह भी बताया कि माया ने मनोज से जो 1000 रूपये का मोबाइल रिचार्ज कराया है। उससे पूरी बात लगभग अफजल से ही हुई हैं। माया अफजल को प्रत्येक बात बताती थी। ऐसी बातें भी जो नितांत वैयक्तिक थीं और जिन्हें केवल पति-पत्नी को ही जानना चाहिए। इससे स्पष्ट हो जाता था कि अफजल और माया की कितनी घनिष्ठता है। मनोज को अफजल से ही पता चला कि माया माँ नहीं बन सकती क्योंकि उसे एम.सी. नहीं होती। अफजल ने ही यह भी बताया कि माया ने आपको बेवकूफ बनाने के लिए आपसे पैड मगाये थे। इस तरह की नितांत वैयक्तिक जानकारियाँ मनोज को दूसरे व्यक्ति से पता चल रहीं थीं, जो मनोज को स्वयं पता होनी चाहिए थीं। जो जानकारी मनोज को शादी से पूर्व ही बता दी जानी चाहिए। मनोज की माया से इस प्रकार की घनिष्ठता थी। अप्रत्यक्ष रूप से इन बातों की पुष्टि माया की बातों से भी होती थी। माया का कहना था कि वह अपनी संतान को जन्म नहीें देगी। प्रभात अकेला ही उनका बेटा होगा। यह बात कई बार शादी से पूर्व ही माया मनोज से कह चुकी थी। दूसरा प्रकरण यह भी था कि जब माया और मनोज दोनों बिस्तर पर थे, मनोज ने माया को परिवार नियोजन के साधन अपनाने की बात की तो माया ने साफ इंकार कर दिया। मनोज के यह तर्क देने पर कि माया ने ही कहा था कि प्रभात अकेला बेटा रहेगा; माया दूसरी संतान को जन्म नहीं देगी। माया का कहना था कि मनोज बाद में भले ही गर्भपात करवा दे किंतु वह परिवार नियोजन का कोई साधन नहीं अपनायेगी और न ही मनोज को ऐसा करने देगी। परिवार नियोजन को कोई साधन न अपनाना और किसी संतान को जन्म न देना, माया के यह कथन अफजल की बात की ही पुष्टि करते थे कि माया माँ नहीं बन सकती। सारा खेल मनोज को षड्यन्त्रपूर्वक फँसाने के लिए रचा गया था। अफजल ने माया को इतना विश्वास में ले रखा था कि वह अपने भाई से भी अधिक अफजल पर ही विश्वास करती थी। वह अपने भाई को फोन करे या न करे; अपनी माँ को फोन करे न करे, अफजल को फोन अवश्य करती थी और अपने अन्तर्मन की प्रत्येक बात उसको बताती थी। मनोज ने न केवल इस बात की अनुभूति की थी, वरन् अफजल ने भी ईमेल में स्वीकार किया था कि माया जितना मनोज और मनोज के परिवार के बारे में जानती है; वह सब कुछ अफजल भी जानता है।
आओ कुछ पग साथ चलें
-
* जीवन का कोई नहीं ठिकाना, कैसे जीवन साथ चले?*
*जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥*
*चन्द पलों को मिलते जग में, फ़िर आगे बढ़ जाते है।*
*स्वार्थ स...
3 weeks ago