Saturday, September 30, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२६"

अफजल दोहरा गेम खेल रहा था। एक तरफ तो वह माया से दिन भर बात करता था, नहीं, माया अफजल से बात करती थी । अफजल ने स्पष्ट रूप से मनोज को बताया था कि माया ही उसे फोन मिलाती है, उसने मनोज को यह भी बताया कि माया ने मनोज से जो 1000 रूपये का मोबाइल रिचार्ज कराया है। उससे पूरी बात लगभग अफजल से ही हुई हैं। माया अफजल को प्रत्येक बात बताती थी। ऐसी बातें भी जो नितांत वैयक्तिक थीं और जिन्हें केवल पति-पत्नी को ही जानना चाहिए। इससे स्पष्ट हो जाता था कि अफजल और माया की कितनी घनिष्ठता है। मनोज को अफजल से ही पता चला कि माया माँ नहीं बन सकती क्योंकि उसे एम.सी. नहीं होती। अफजल ने ही यह भी बताया कि माया ने आपको बेवकूफ बनाने के लिए आपसे पैड मगाये थे। इस तरह की नितांत वैयक्तिक जानकारियाँ मनोज को दूसरे व्यक्ति से पता चल रहीं थीं, जो मनोज को स्वयं पता होनी चाहिए थीं। जो जानकारी मनोज को शादी से पूर्व ही बता दी जानी चाहिए। मनोज की माया से इस प्रकार की घनिष्ठता थी। अप्रत्यक्ष रूप से इन बातों की पुष्टि माया की बातों से भी होती थी। माया का कहना था कि वह अपनी संतान को जन्म नहीें देगी। प्रभात अकेला ही उनका बेटा होगा। यह बात कई बार शादी से पूर्व ही माया मनोज से कह चुकी थी। दूसरा प्रकरण यह भी था कि जब माया और मनोज दोनों बिस्तर पर थे, मनोज ने माया को परिवार नियोजन के साधन अपनाने की बात की तो माया ने साफ इंकार कर दिया। मनोज के यह तर्क देने पर कि माया ने ही कहा था कि प्रभात अकेला बेटा रहेगा; माया दूसरी संतान को जन्म नहीं देगी। माया का कहना था कि मनोज बाद में भले ही गर्भपात करवा दे किंतु वह परिवार नियोजन का कोई साधन नहीं अपनायेगी और न ही मनोज को ऐसा करने देगी। परिवार नियोजन को कोई साधन न अपनाना और किसी संतान को जन्म न देना, माया के यह कथन अफजल की बात की ही पुष्टि करते थे कि माया माँ नहीं बन सकती। सारा खेल मनोज को षड्यन्त्रपूर्वक फँसाने के लिए रचा गया था। अफजल ने माया को इतना विश्वास में ले रखा था कि वह अपने भाई से भी अधिक अफजल पर ही विश्वास करती थी। वह अपने भाई को फोन करे या न करे; अपनी माँ को फोन करे न करे, अफजल को फोन अवश्य करती थी और अपने अन्तर्मन की प्रत्येक बात उसको बताती थी। मनोज ने न केवल इस बात की अनुभूति की थी, वरन् अफजल ने भी ईमेल में स्वीकार किया था कि माया जितना मनोज और मनोज के परिवार के बारे में जानती है; वह सब कुछ अफजल भी जानता है।

Monday, September 11, 2017

विवादास्पद वैवाहिक रिश्तों के कारण होतीं हत्याएं/आत्म्हत्याएं

दुःखद स्थिति

कल प्राप्त एक समाचार के अनुसार मेरे एक साथी अध्यापक मिश्राजी की भांजी की वैवाहिक विवादों के कारण हत्या कर दी गयी। उसकी शादी दो वर्ष पूर्व ही हुई थी। उसके एक वर्ष का एक बेटा है, जो शायद यह भी नहीं जानता होगा कि माँ क्या होती है? और उससे माँ का आँचल क्यों उठ गया। घटना के बाद स्वाभाविक रूप से उसकी ससुराल वालों की गिरफ्दारी हो गयी है। निसंदेह मुकदमा चलेगा और अदालती कार्यवाही के पश्चात् उचित सजा भी दोषी लोगों को मिलेगी। जो भी हो उस युवती के प्राण वापस नहीं आ सकते। उसके मासूम बेटे के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इसका आकलन अभी करना संभव नहीं है। न केवल उसकी माँ की हत्या हुई है, वरन उसका पिता व पूरा परिवार कारागार में बंद है। उसकी देखभाल कौन करेगा? भविष्य में वह बच्चा जब समझदार होगा तो उसके मस्तिष्क पर इसका क्या प्रभाव होगा? यह गंभीर समालोचना का विषय है। एक प्रकार से दोनों परिवार बर्बाद हो गये। 
मैं यहाँ इस घटना की सजा के पहलू पर या निर्मम हत्यारों की आलोचना के पहलू पर चर्चा नहीं करूँगा। उनके पास भी अपने तर्क हो सकते हैं। इस प्रकार की सैकड़ों हत्याएँ या आत्महत्याएँ वैवाहिक विवादों व मतभेदों की स्थिति में होती हैं। एक दिन मेरे सामने भी वैवाहिक विवाद के कारण ऐसी स्थिति आ गयी थी कि मुझे प्रतीत होता था कि ऐसे जीवन का कोई अर्थ नहीं है। मैं कुछ गलत न कर बैठूँ, इस सोच के साथ मेरे माताजी, पिताजी और बहिन ने मुझे सभाल लिया था। वे एक मिनट के लिए मुझे अकेले नहीं छोड़ते थे। एक पड़ोसी साथी ने भी मानसिक संबल दिया था। वस्तुतः ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है। हजारों हत्याओं या आत्महत्याओं को रोका जा सकता है। मासूमों के जीवन को संवारा जा सकता है। हजारों परिवारों को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। बशर्ते ये तथाकथित पति या पत्नी सीधे रास्ते को अपनाकर दूसरे को बर्बाद करने के इरादे छोड़कर प्यार से अलग हो जायं!
इस प्रकार की घटनाओं के लिए केवल हत्या या आत्महत्या करने वाला ही दोषी नहीं है। पति-पत्नी के रिश्ते को जबरन सामाजिक या कानूनी आधार पर चलाये रखने वाली संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था ही दोषी है। पति-पत्नी के रिश्ते में गहरा विश्वास आवश्यक है। विश्वास किसी कानून या सामाजिक दबाब से पैदा नहीं हो सकता। यह दोनों के मध्य ईमानदारी, सच्चाई व समर्पण से पैदा होता है। यदि दोनों के रिश्तों में यह विश्वास न हो, दोनों में से कोई भी एक धोखेबाज, षड्यंत्रकर्ता व छलकपट से परिपूर्ण हो तो वैवाहिक रिश्ते का चलना असंभव हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों को पारिवारिक, सामाजिक या कानूनी दबाब से साथ-साथ रहने को मजबूर करना न केवल उन दोनों के लिए घातक है, वरन उन दोनों परिवारों व संपूर्ण समाज के लिए भी दुष्प्रभाव छोड़ने वाला है। अतः वैवाहिक रिश्तों से जुड़े सभी पक्षों को यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि गंभीर मतभेदों व मनभेदों वाले पति-पत्नी या धोखे से झूठ बोलकर शादी के जाल में फँसाने वाले पति-पत्नी को सरलता से अलग होने की छूट दी जाय।
इस प्रकार के तथाकथित पति-पत्नी को भी समझदारी का परिचय देना चाहिए। मैंने तथाकथित शब्द का प्रयोग जानबूझकर किया है क्योंकि जिस रिश्ते में विश्वास और समर्पण ही नहीं है। वास्तव में वहाँ कोई रिश्ता ही नहीं होता। वे केवल झूठा दिखावा कर रहे होते हैं। अतः उन दोनों को सोचना चाहिए कि वे प्रेम पूर्वक रिश्ते को निभा नहीं सकते तो प्रेमपूर्वक आपसी बातचीत के आधार पर अलग हो जायँ। यदि वे मित्र नहीं बन सकते तो कम से कम शत्रु भी न बनें। दोनों परिवारों के लोगों, उनके मित्रों व समाज के अन्य समझदार नागरिकों को भी इसी प्रकार की समझाइश करके उन लोगों में इस प्रकार की समझदारी विकसित करने के प्रयास करने चाहिए। ताकि इस प्रकार की घटनाओं को कम करके लाखों प्राणों को वैवाहिक वैदी में होम होने से बचाया जा सके। मासूमों के भविष्य को संवारा जा सके। परिवारों को बर्बाद होने से बचाया जा सके। समाज को इस प्रकार के वैवाहिक विवादों के दुष्प्रभावों से बचाया जा सके। यही नहीं अपने देश की न्यायप्रणाली को अनावश्यक मुकदमों के दबाब से बचाया जा सके। दुःखद यह है कि इस प्रकार के प्रयास हो नहीं रहे हैं। इसके विपरीत जानबूझकर झूठी मुकदमेंबाजी को बढ़ावा दिया जाता है। दोनों पक्षों को भड़काया जाता है। दूसरे पक्ष को झुकाने की झूठे आत्मसम्मान की आग को भड़काया जाता है। परिणामस्वरूप न केवल उन तथाकथित पति-पत्नी का जीवन बर्बाद होता है, वरन दोनों परिवार बर्बाद हो जाते हैं और समाज पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ते हैं।

Friday, September 8, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२५"

मनोज ने  इण्टरनेट पर अफजल की खोज प्रारंभ की। फेसबुक पर अफजल का खाता भी मिल गया। उसे मित्रता का निवेदन भेजा जिसे अफजल ने अगले ही दिन स्वीकार कर लिया। उसके बाद मनोज ने सर्वप्रथम अफजल को अपना वास्तविक परिचय देकर उससे माया की जाति के बारे में पूछा। वस्तुतः माया व उसके भाई ने शादी के प्रोफाइल में अपने आप को ब्राह्मण बताया था किंतु मनोज को विश्वास हो गया था कि वे ब्राह्मण नहीं है। उसने माया के एक आवेदन में अनुसूचित जाति लिखी देख ली थी। अफजल ने एक-दो दिन बाद ही उत्तर दे दिया कि माया हरिजन है। मनोज आश्चर्यचकित रह गया। व्यक्ति शादी विवाह के मामले में भी झूठ का सहारा क्यों लेते हैं? झूठ पर आधारित शादी में विश्वास कैसे पैदा होगा? विश्वास रहित शादी कैसी शादी? जब षड्यन्त्र रच कर झूठ के आधार पर शादी के लिए किसी फँसाया जायेगा, तब उनमें पति-पत्नी के रिश्ते का जन्म ही कहाँ हुआ? वह तो रिश्ते का अपहरण है। वहाँ तो अपहरणकर्ता और अपहर्ता का संबन्ध बनता है। धोखा खाने वाला और धोखेबाज का संबन्ध बनता है। शिकार और शिकारी का संबन्ध बनता है। पीड़ित और पीड़ादाता का संबन्ध बनता है। और ऐसे सम्बन्धों में जीवनभर साथ रहना जीवन को नर्क बनाने के सिवाय और क्या हो सकता है? माया ने ऐसा ही किया था किंतु मनोज को लगता था कि माया इतनी मूर्ख तो नहीं थी कि वह पत्नी बनकर रहने के लिहाज से आयी थी। मनोज ने अपने प्रोफाइल पर पहले ही लिख दिया था कि किसी भी प्रकार का झूठ वह बर्दाश्त नहीं कर सकता। यदि शादी के बाद किसी भी प्रकार का झूठ पकड़ा गया तो शादी नहीं चलेगी। इससे स्पष्ट था कि माया जानबूझकर षडय्ंत्रपूर्वक ठगने के लिए आयी थी।
इधर मनोज ने अफजल से जानकारी जुटाने के लिए प्रयास किए, उधर अफजल व माया को बातचीत करने की खुली छूट दे दी। मनोज नहीं चाहता था कि दो प्रेमियों को बातचीत करने से रोका जाय। वह तो चाहता था कि वे दोनों अब भी आपस में शादी कर लें। मनोज ने अफजल को विश्वास में लेकर जानकारी लेने के प्रयास में सर्वप्रथम अफजल से उसका ई-मेल पता हासिल किया। माया ने अफजल से छिपकर शादी की थी। माया ने अपनी शादी के बारे में अपने प्रेमी को बताया भी नहीं जिसके साथ पिछले दस वर्षो से उसके मानसिक, भावनात्मक व शारीरिक संबन्ध थे। यह बात अफजल को नागवार गुजरी और वह माया के धोखे के बारे में सब कुछ बताने के लिए राजी हो गया। अफजल उन प्रेमियों में से न था, जो प्रत्येक स्थिति में अपनी महबूबा की खुशी व कल्याण चाहते हैं। अफजल तो उन प्रेमियों में से था, जो सोचते हैं कि मेरी नहीं हुई तो किसी की भी नहीं होने दूँगा। इसी उद्देश्य को लेकर अफजल ने इण्टरनेट से ही मनोज का मोबाइल नम्बर हासिल करके मनोज को फोन करके माया से बात करना प्रारंभ किया। मनोज को माया का चरित्र पहले ही संदिग्ध लग रहा था। माया प्रत्येक काम में झूठ ही बोलती थी। अतः यह तय था कि माया मनोज की पत्नी नहीं धोखेबाज ठगिनी है। मनोज को अनेक कहानियाँ स्मरण हो आयीं जिनमें पत्नियों ने अपने प्रेमियों के साथ मिलकर न केवल पति वरन अपने सगे बच्चों की भी हत्याएं की थी। मनोज के मन में स्पष्ट हो चुका था कि माया धन के लिए कुछ भी कर सकती है। वह धन ही था, जिसकी खातिर माया ने शादी से पूर्व ही धोखा दिया था। माया ने अपना बैंक खाता बंद करके धनराशि अपनी माताजी के खाते में जमा कराने की सूचना दी थी, जिसके आधार पर मनोज विवाह हेतु आर्यसमाज मंदिर में पहुँचा था। वह सूचना भी झूठी थी, माया ने खाता बन्द कराया ही न था। इससे स्पष्ट है कि माया को संबन्ध से ज्यादा पैसा प्यारा था, जिसे वह अपनी माँ या भाई को भी न दे सकी। मनोज के दृष्टिकोण से झूठ पर आधारित शादी के सभी संस्कार व्यर्थ हो गये।

Tuesday, September 5, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२४"


एक दिन शायं के समय मनोज के मोबाइल पर रिंग हुई। मनोज के फोन अटेण्ड करने पर आवाज आई, ‘मैं अफजल बोल रहा हूँ। माया से बात कराओ।’ मनोज ने तुरंत मोबाइल माया को दे दिया। माया के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। वह मोबाइल लेकर दूसरे कमरे में चली गयी। माया के मोबाइल लेकर न आने का कारण भी मनोज को स्पष्ट हो गया। मनोज ने इस सम्बंध में माया से कुछ नहीं पूछा। उसके बाबजूद माया ने सफाई देने की कोशिश की कि इसकी दो बेटियाँ उसके विद्यालय में पढ़ती हैं। उन्हीं के सन्दर्भ में कुछ समस्या थी इस कारण फोन किया था। माया की सफाई मनोज के लिए बहानेबाजी के सिवाय कुछ भी न थी। मनोज ने इस सन्दर्भ में माया से कोई बात भी नहीं की। जो महिला झूठ और धोखेबाजी को ही अपने जीवन का आधार मान चुकी हो। उससे बहस करने का कोई मतलब ही न था। मनोज बुरी तरह फँस चुका था। एक ऐसी औरत पत्नी के नाम पर उसके साथ रह रही थी, जो कौन थी? कहाँ की थी? किस उद्देश्य से मनोज को अपने षड्यन्त्र में फसाया था? मनोज को कुछ मालुम न था। मनोज के साथ धोखा करके उसने पत्नी के सम्बन्ध का अपहरण किया था। उसके साथ बिताया गया एक-एक क्षण मनोज को खतरे का आभास कराता था। यह तो स्पष्ट था कि वह केवल पैसे का देखकर मनोज के साथ धोखा करके आयी थी। किंतु वह कहाँ और किस प्रकार हमला करेगी? यह अनुमान लगाना ही मुश्किल था।
             मनोज ने माया के भाई को ईमेल किया कि यह अफजल कौन है? माया के भाई को भी अपेक्षा न होगी कि इतनी जल्दी उनके द्वारा रचे गये झूठ की पोल खुल जायेगी। वह लगभग एक सप्ताह तक कोई जबाब दे ही नहीं सका। उसके बाद उसने बहाना बनाया कि वह उसका पारिवारिक मित्र है। उसके घर पूरे परिवार का आना जाना है। उसने यहाँ तक सफाई दी कि वे सर्वधर्म समभाव को मानते हैं। इस कारण एक मुसलमान का पारिवारिक मित्र होना उनके यहाँ संभव है। मनोज को उस तनाव के क्षण में भी हँसी आ गयी। व्यक्ति कितना मूर्ख होता है। झूठ की पोल खुल जाने के बाबजूद स्वीकार नहीं करता और अपने पापों को छिपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलता जाता है। वही कार्य माया और उसका भाई कर रहे थे। कहावत है झूठ के पाँव नहीं होते। मनोज ने शादी से पूर्व किसी भी प्रकार की जाँच नहीं की थी। उसका मानना था कि जिस महिला को उसकी जीवनसंगिनी बनना है। उसे सबसे अधिक विश्वसनीय होना चाहिए। अतः उसने सबसे अधिक विश्वास उस महिला पर किया जिसे वह जीवनसंगिनी बनाना चाहता था। मनोज को क्या पता था कि वह महिला जीवनसंगिनी तो क्या किसी भी प्रकार से विश्वसनीय ही नहीं है। झूठ की जब पोल खुलने लगती है, तब एक के बाद एक परत उतरती चली जाती है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति कितना भी चालाक क्यों न हो, वह कमजोर ही होता है। वह कमजोर नहीं होता तो झूठ क्यों बोलता। झूठ बोलकर व्यक्ति किसी को कितना भी धोखा दे दे किसी को कितना भी ठग ले किंतु वह कभी भी आत्मसम्मान प्राप्त नहीं कर सकता। माया के द्वारा मोबाइल न लाने का आधार मनोज को पता चल चुका था।

Monday, September 4, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२३"

मनोज को इण्टरनेट पर वायरल हुआ वीडियो अपने घर में बनता हुआ दिखने लगा। इण्टरनेट पर वायरल हुए वीडियो में एक महिला अक्सर अपनी सास को प्रताड़ित करती थी। यही नहीं वह उसे खाना भी नहीं देती थी और बात-बात पर उसकी पिटाई करती थी। वह उसे इतना धमकाकर व डराकर रखती थी कि वह बेचारी अपने बेटे से उस बारे में कुछ कहने की हिम्मत भी नहीं कर पाती थी। किंतु उस महिला के पति को कुछ शक हो गया। अतः उसने अपनी पत्नी को बिना बताये। घर के अन्दर छिपा हुआ कैमरा फिट कर दिया। पति जैसे ही घर से बाहर निकलकर गया। उसकी पत्नी सीधे अपनी सास की चारपाई के पास आकर उसकी बुरी तरह पिटाई करने लगी। मनोज उस वीडियो को देखकर घबड़ा गया था कि ऐसी भी औरतें हो सकती हैं। वीडियो में रिकाॅर्ड होने के बाद महिला के पति को अपनी पत्नी की करतूतों का पता चला और उसने पुलिस को सूचित कर उस निर्दयी राक्षसी महिला को पुलिस को सौंप दिया। माया के व्यवहार से मनोज को वही वीडियो याद आता और वह अन्दर ही अन्दर काँप उठता। उसे लग रहा था कि माया भी ऐसा कर सकती है। वह औरत तो अपनी सास के साथ ऐसा करती थी। यहाँ तो स्पष्ट हो चुका था कि माया ने रूपयों की खातिर षड्यन्त्रपूर्वक मनोज को फँसाया था। प्रभात मनोज का बेटा मनोज का वारिस था। वह मनोज व प्रभात की जान भी ले सकती थी। ऐसी स्थिति में वह क्या कर सकेगा। मनोज कुछ भी बर्दाश्त कर सकता था किंतु विश्वासाश्रित संबन्धों में झूठ नहीं बर्दाश्त कर सकता था। माताजी-पिताजी की सेवा करना उसकी प्राथमिकता में शीर्ष पर था। जो औरत उसे धोखा दे ऐसी औरत के ऊपर अपने बेटे व माताजी-पिताजी की देखभाल का दायित्व कैसे डाल सकता था। 
माया को आये अभी अधिक समय नहीं हुआ था। घर का काम काज उसे आता नहीं, केवल यही बात नहीं थी। माया के व्यवहार से ही लगता था कि वह करना ही नहीं चाहती थी। वह काम को ऐसे ही पड़ा रहने देती मजबूरी में मनोज को ही करना पड़ता। दाल, चावल को बिना साफ किए ही कुकर में डाल देती। ऐसी स्थिति में उस खाने को कैसे खाया जाय? इससे परेशान होकर मनोज का बेटा प्रभात स्कूल जाने से पूर्व दाल-चावल साफ करके जाने लगा। मनोज को लगता इससे तो शादी से पूर्व की ही स्थिति ठीक थी। बर्तन पड़े रहते तो अधिकतर मनोज को ही साफ करने पड़ते। क्योंकि मनोज नहीं चाहता था कि उसका बेटा अपनी पढ़ाई को प्रभावित करके यह कार्य करे या उसकी बुजुर्ग माताजी, जिनका हाथ टूटा हुआ था इस कार्य को करें। ऐसी स्थिति में माया के साथ पति-पत्नी के सामान्य संबन्ध संभव ही न थे। माया वास्तव में पत्नी थी ही नहीं, उसने पत्नी के पद का अपहरण किया था।

Saturday, September 2, 2017

"दहेज के बिना शादी के संकल्प का परिणाम-२२"



खैर! जब आफत गले पड़ जाय तो उसे भुगतना ही पड़ता है। मनोज ने शादी तो अपने बेटे की देखभाल और अपने माता-पिता की सेवा में सहयोग के लिए की थी। किंतु किसी धोखेबाज औरत से कुछ भी अपेक्षा करना ही बेकार की बात थी। शादी के नाटक के समय मनोज का बेटा अपने पैतृक गाँव दादा-दादी के यहाँ गया हुआ था। मनोज ने जब उसे अपने पास बुलाया तो मनोज की माँ भी मनोज के बेटे प्रभात के साथ आयीं। दादी प्रारंभ से ही मनोज के बेटे प्रभात को सौतेली माँ के पास छोड़ने की इच्छुक न थीं। मनोज की माताजी को भय था कि सौतेली माँ प्रभात के साथ कैसे पेश आयेगी। अतः मनोज के प्रस्ताव रखते ही। वे तुरंत प्रभात के साथ मनोज के पास आ गयीं। वास्तव में वे तो मनोज की शादी के समर्थन में भी नहीं थीं। मनोज ने उनकी सहमति के बिना शादी कर ली और फँस गया। मनोज को स्पष्ट हो गया था कि अपने से बड़ों की सलाह सदैव उपयोगी होती है। जब मनोज का बेटा प्रभात मनोज के पास आने वाला था, तभी से माया ने क्वाटर के अंदर रखे कूड़ेदान को बाहर ले जाकर खाली करना बंद कर दिया। मनोज के एक-दो बार पूछने पर उसने टाल दिया। मनोज समझ गया कि यह उसके बेटे से कूड़ा फिकवाने के लिए तैयारी कर रही है। अतः मनोज को स्पष्ट कहना पड़ा कि प्रभात यह काम नहीं करेगा। माया को मनोज का यह निर्देश तानाशाही फरमान लगा। किंतु माया ने कूड़ेदान को बाहर जाकर खाली करना प्रारंभ कर दिया। मनोज के लिए यह एक संकेत था। मनोज को लग रहा था कि माया उसके बेटे को नौकर की तरह प्रयोग करना चाहती है। अतः मनोज अपने बेटे को लेकर अति संवेदनशील हो गया।


मनोज का बेटा प्रभात व मनोज की माताजी मनोज के पास आ गयीं। मनोज का बेटा बहुत ही समझदार व समायोजन करने वाला बालक था। वह मनोज के संकेतों से ही बात को समझ लेता था। मनोज का बेटा अपनी सौतेली माँ के साथ समायोजन करने का प्रयास भी कर रहा था। मनोज की माँ के हाथ में फ्रेक्चर था। अतः वह अपने व्यक्तिगत काम अपने आप करने में असहज महसूस करती थीं। यही नहीं उनके हाथ की मोम से सिकाई भी करनी होती थी। मनोज की अपेक्षा थी कि माया मनोज की माँ को स्नान करने में सहायता करे। मनोज ने कई बार माया से स्पष्ट रूप कहा भी किंतु माया ने उसकी बात नहीं सुनी। मनोज अपनी माँ के हाथ की मोम से सिकाई करने के काम को स्वयं ही करता तो माया पास में आकर बैठ जाती और सिकाई करने का नाटक करती। मनोज की माँ प्रातःकालीन सैर पर जाया करती थीं। बुजुर्ग थीं, हाथ पहले से ही टूटा हुआ था; कहीं रास्ते में गिर नहीं जायँ? इस डर से मनोज चाहता था कि माया उनके साथ घूमने जाय किंतु माया को यह बात भी स्वीकार नहीं हुई। इस बात को लेकर मनोज का तनाव बढ़ता गया। मनोज ने तो शादी ही इस उद्देश्य को लेकर की थी कि वह अपने माता-पिता की सेवा कर सके। माया के व्यवहार से मनोज के सारे सपने टूटने के कगार पर थे। मनोज को लगने लगा कि उसकी अनुपस्थिति में माया उसकी माँ को प्रताड़ित कर सकती है। सेवा करने की बात सोचना तो दूर की बात है। मनोज माया से जब भी माताजी का ध्यान रखने के लिए कहता, माया धमकाने वाले अन्दाज में कहती, ‘उन्होंने कुछ कहा क्या?’ मनोज को पता था कि वे बेचारी क्या हेंगी। वे किसी भी प्रकार की शिकायत मनोज से करेंगी ही नहीं। वे नहीं चाहती थीं कि मनोज के लिए किसी भी प्रकार का तनाव बढ़े।