खैर! जब आफत गले पड़ जाय तो उसे भुगतना ही पड़ता है। मनोज ने शादी तो अपने बेटे की देखभाल और अपने माता-पिता की सेवा में सहयोग के लिए की थी। किंतु किसी धोखेबाज औरत से कुछ भी अपेक्षा करना ही बेकार की बात थी। शादी के नाटक के समय मनोज का बेटा अपने पैतृक गाँव दादा-दादी के यहाँ गया हुआ था। मनोज ने जब उसे अपने पास बुलाया तो मनोज की माँ भी मनोज के बेटे प्रभात के साथ आयीं। दादी प्रारंभ से ही मनोज के बेटे प्रभात को सौतेली माँ के पास छोड़ने की इच्छुक न थीं। मनोज की माताजी को भय था कि सौतेली माँ प्रभात के साथ कैसे पेश आयेगी। अतः मनोज के प्रस्ताव रखते ही। वे तुरंत प्रभात के साथ मनोज के पास आ गयीं। वास्तव में वे तो मनोज की शादी के समर्थन में भी नहीं थीं। मनोज ने उनकी सहमति के बिना शादी कर ली और फँस गया। मनोज को स्पष्ट हो गया था कि अपने से बड़ों की सलाह सदैव उपयोगी होती है। जब मनोज का बेटा प्रभात मनोज के पास आने वाला था, तभी से माया ने क्वाटर के अंदर रखे कूड़ेदान को बाहर ले जाकर खाली करना बंद कर दिया। मनोज के एक-दो बार पूछने पर उसने टाल दिया। मनोज समझ गया कि यह उसके बेटे से कूड़ा फिकवाने के लिए तैयारी कर रही है। अतः मनोज को स्पष्ट कहना पड़ा कि प्रभात यह काम नहीं करेगा। माया को मनोज का यह निर्देश तानाशाही फरमान लगा। किंतु माया ने कूड़ेदान को बाहर जाकर खाली करना प्रारंभ कर दिया। मनोज के लिए यह एक संकेत था। मनोज को लग रहा था कि माया उसके बेटे को नौकर की तरह प्रयोग करना चाहती है। अतः मनोज अपने बेटे को लेकर अति संवेदनशील हो गया।
मनोज का बेटा प्रभात व मनोज की माताजी मनोज के पास आ गयीं। मनोज का बेटा बहुत ही समझदार व समायोजन करने वाला बालक था। वह मनोज के संकेतों से ही बात को समझ लेता था। मनोज का बेटा अपनी सौतेली माँ के साथ समायोजन करने का प्रयास भी कर रहा था। मनोज की माँ के हाथ में फ्रेक्चर था। अतः वह अपने व्यक्तिगत काम अपने आप करने में असहज महसूस करती थीं। यही नहीं उनके हाथ की मोम से सिकाई भी करनी होती थी। मनोज की अपेक्षा थी कि माया मनोज की माँ को स्नान करने में सहायता करे। मनोज ने कई बार माया से स्पष्ट रूप कहा भी किंतु माया ने उसकी बात नहीं सुनी। मनोज अपनी माँ के हाथ की मोम से सिकाई करने के काम को स्वयं ही करता तो माया पास में आकर बैठ जाती और सिकाई करने का नाटक करती। मनोज की माँ प्रातःकालीन सैर पर जाया करती थीं। बुजुर्ग थीं, हाथ पहले से ही टूटा हुआ था; कहीं रास्ते में गिर नहीं जायँ? इस डर से मनोज चाहता था कि माया उनके साथ घूमने जाय किंतु माया को यह बात भी स्वीकार नहीं हुई। इस बात को लेकर मनोज का तनाव बढ़ता गया। मनोज ने तो शादी ही इस उद्देश्य को लेकर की थी कि वह अपने माता-पिता की सेवा कर सके। माया के व्यवहार से मनोज के सारे सपने टूटने के कगार पर थे। मनोज को लगने लगा कि उसकी अनुपस्थिति में माया उसकी माँ को प्रताड़ित कर सकती है। सेवा करने की बात सोचना तो दूर की बात है। मनोज माया से जब भी माताजी का ध्यान रखने के लिए कहता, माया धमकाने वाले अन्दाज में कहती, ‘उन्होंने कुछ कहा क्या?’ मनोज को पता था कि वे बेचारी क्या हेंगी। वे किसी भी प्रकार की शिकायत मनोज से करेंगी ही नहीं। वे नहीं चाहती थीं कि मनोज के लिए किसी भी प्रकार का तनाव बढ़े।
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