खैर! जैसे तैसे मनोज को उस विवाह स्थल से निकलने का अवसर मिला। मनोज के बार-बार मना करने के बाबजूद माया ने व्यक्तिगत सामान के नाम पर भी कुछ वस्तुएँ गाड़ी में रखवा लीं। मनोज का विचार था कि कुछ नहीं का मतलब कुछ नहीं, माया जहाँ जा रही है; उसे वहीं के अनुसार वहाँ उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करते हुए ही रहना चाहिए। मनोज ने तय कर लिया था कि वह माया के द्वारा ले जायी जा रही किसी भी वस्तु को प्रयोग नहीं करेगा और न ही अपने बेटे या परिवार के किसी अन्य सदस्य को करने देगा। विदाई के समय भी शगुन के नाम पर कुछ महिलाओं ने मनोज के हाथ में भीख की तरह कुछ रूपये पकड़ा दिये मनोज वहाँ से बिना किसी विवाद के निकलना चाहता था। अतः विवाद से बचने के लिए वे रूपये हाथ में पकड़ तो लिए किंतु जेब में नहीं रखे और गाड़ी में बैठते ही गाड़ी के ड्राईवर के हाथ में पकड़ा दिए। वह तो माया के द्वारा पहनायी गयी अँगूठी को भी ड्राईवर को देने वाला था किंतु उसे माया ने मनोज के हाथ से छीनकर अपने पास रख लिया। माया के द्वारा इस प्रकार सामान का लाना मनोज को मानसिक रूप से माया से दूर कर चुका था।
मनोज जब अपने आवास पर पँहुचा, उसके पड़ोसा माया को आँख फाड़-फाड़कर देख रहे थे। वस्तुतः वहाँ किसी को यह जानकारी थी ही नहीं कि मनोज शादी करने गया है। जब मनोज की पड़ोसी महिला ने मनोज को पूछा कि यह औरत कौन है? मनोज के उत्तर कि वह उसकी पत्नी है। पर विश्वास करने को तैयार नहीं थी।
मनोज को अपने क्वाटर पर पहुँचने के बाद शायं को पता चला कि माया अपने मोबाइल को लेकर नहीं आयी है। जबकि मोबाइल वार्तालाप के दौरान मनोज ने माया को स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने मोबाइल को लायेगी और अपने पुराने नम्बर को प्रयोग करती रहेगी। मोबाइल को इस प्रकार छोड़कर आना, माया को संदेहास्पद बना रहा था। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह था कि माया के कुछ ऐसे व्यक्तियों के साथ संबन्ध हैं, जिन्हें माया छुपाना चाहती है। मनोज का सीधा-सादा जीवन था। वह न तो किसी से कुछ छुपाता था और न ही ऐसी पत्नी की कल्पना कर सकता था जो उससे कुछ छुपाये। मनोज के मन में पक्का बैठ गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है अन्यथा उसके कहने के बाबजूद माया अपना मोबाइल छोड़कर नहीं आती। ऐसा भी नहीं था कि गलती से अपना मोबाइल भूल आयी हो। वह अपने मोबाइल को योजना के अनुसार बन्द करके रखकर आयी थी। यही नहीं एक-दो दिन में ही माया ने मनोज के मोबाइल से भी अपने सारे सन्देश मिटा दिये, जिनसे माया की बचनबद्धता प्रकट होती थी। इससे मनोज को स्पष्ट हो गया कि वह बहुत बड़े संकट में फँस चुका है। उसे चिंता होने लगी कि यह औरत कहीं उसके बेटे के प्राणों के लिए संकट न बन जाय।
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