Monday, May 17, 2010

आंखों में लिये कुटिल मुस्कराहट

मेरे एक भूत-पूर्व छात्र अमित चोधरी ने ऑरकुट प्रोफाइल पर मेरे लिए एक कविता लिखी है . अमित को धन्यवाद व शुभकामनाओं के साथ इसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.
प्रस्तुत है अमित चोधरी की कविता



सफेदपोश शैतान


शरीर से रक्त

 
बहता है पसीना बनकर

 
कांटों को बुनती हुई

 
हथेलियां लहुलहान हो गयीं


अपनी मेहनत से पेट भरने वाले ही


रोटी खाते बाद में

 
पहले खजाना भर जाते हैं।

सीना तानकर चलते



आंखों में लिये कुटिल मुस्कराहट लेकर


लिया है जिम्मा जमाने का भला करने का


वही सफेदपोश शैतान उसे लूट जाते हैं।


4u sir

Tuesday, May 11, 2010

मेरे साथ हैं, मेरी मां सा

मेरे साथ हैं, मेरी मां सा




अज्ञान के क्षण

असहायता के पल

अज्ञात पथ

लड़खड़ाते पद

लांघी फिर भी हद

बढ़ता रहा कद

चूमा था माथ

मां थी मेरे साथ।



अंजाना शहर

तपती दोपहर

तन्हाई का कहर

बीते वो पहर

मां की थी महर।



पल-पल शिक्षा

कदम-कदम परीक्षा

उड़ने की इच्छा

लेनी नहीं भिक्षा

मां ने दी दीक्षा।



मर गईं सारी इच्छा

देनी नहीं परीक्षा

नहीं रही चाह

निकलती न आह

नहीं किसी की परवाह

नहीं किसी से आशा

कहां मिलेगी निराशा



आयेगी नहीं हताशा

मेरे साथ हैं, मेरी मां सा।





मौत से भी टकराऊं

कर्तव्य पथ पर मारा जाऊं

अपनी मेहनत का ही खाऊं

सच के गीत गाऊं

नहीं कभी ललचाऊं

न मोह में बांधा जाऊं

दु:ख में भी हरषाऊं

मां का आशीष पाऊं।

Tuesday, May 4, 2010

सरकारी सज्जनता?

                                    सरकारी सज्जनता?

उसने  अपने मित्र को अपने एक अधिकारी की सज्जनता का बखान करते हुए कहा, "बड़े ही सज्जन पुरुष हैं."   मैंने अपने जीवनमें इतने सज्जन अधिकारी दूसरे नहीं देखे.

मित्र ने उत्सुकता से उनकी ओर देखा तो उन्होंने बात आगे बढ़ाई. उनके समय में हम अपनी इच्छानुसार काम करते थे. जब काम में मन न लगता बाहर निकल जाते. याद नहीं आता कभी सुबह कार्यालय के लिए देर से आने पर भी उन्होंने कभी डांट लगाई हो.
एक बार मोहन के पिताजी बीमार पढ़ गए और मोहन १८ दिन घर रहा, वापस आने पर उससे हस्ताक्षर करवा लिए, बेचारे की १८ दिन की छुट्टी बच गईं.
एक बार सद्यः ब्याहता महिला कर्मचारी के पति पहली बार उससे मिलने आये तो न केवल उस महिला को अपने पति के साथ दो दिन घूमने के लिए भेज दिया, वरन सरकारी गाड़ी भी उनके साथ भेज दी ताकि वे एन्जॉय कर सकें. 
उनका मित्र सरकारी सज्जन की सरकारी सज्जनता की कहानी सुनकर गदगद हो गया और उसके मुह से निकला काश! ऐसे सज्जन अधिकारी के अधीन कार्य करने का मौक़ा मिलता.