Thursday, May 23, 2024

लिखना-पढ़ना ही आता था

 तुमने जीवन गान सिखाए

23.05.2024


तुमसे जीना सीखा हमने, तुम बिन जीवन मान न पाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।

तुम बिन जीवन पीछे छूटा।

परिस्थितियों ने जमकर कूटा।

हिसाब-किताब सब भूल गए हैं,

जमाने ने है, सब कुछ लूटा।

भटक रहे जंगल में फिर से, तुम बिन कौन जो राह दिखाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।

राह भटक कर, तुमसे बिछड़े।

जीवन की राहों में पिछड़े।

तुमको मित्र मिले बहुतेरे,

हमको मिले लुटेरे हिजड़े।

नहीं रही इच्छा जीने की, तुम बिन कौन जो चाह जगाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।

तुमको अपने मित्र मिल गए।

जीवन के सब रंग खिल गए।

नृत्य करो, खुशियों में झूमो,

देखो न हमें, घाव सिल गए।

तुम्हारे सुख से सुखी रहें हम, तुम्हारी आश ही आश जगाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।


Tuesday, May 21, 2024

जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत

जाने की तैयारी है

19-5-2024


नहीं कोई है, संगी-साथी, नहीं किसी से यारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।
जहाँ भेज दें, वहीं जाएँगे।
सेवा से संतुष्टि पाएँगे।
नहीं कोई इच्छा है अपनी,
शिक्षा प्रसार के, गीत गाएँगे।
समावेशी शिक्षा मिले सबको, लगाएँ ऊर्जा सारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।
भाषा की बाधा न रहेगी।
मात्र-भाषा में शिक्षा मिलेगी।
कक्षा कक्ष से बाहर जाकर,
अनुभव से भी सीख फलेगी।
बहुविधि आकलन करने हेतु अब, आई परख की बारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।
जन-सेवक हम सारे शिक्षक।
शिक्षार्थी भी, साथ परीक्षक।
नवाचार कक्षा में कर अब,
निपुण बनें, छात्र और शिक्षक।
सब-शिक्षित और कुशल बनेंगे, नर हों या फिर नारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।

Monday, May 20, 2024

योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन,

असमय ही मर जाते हैं

20/05/2024
टारगेट, जब तनाव देत हैं, कर्म न हम कर पाते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।
जीवन का है अर्थ समझना।
नहीं किसी को व्यर्थ समझना।
संदर्भ और प्रयोग समझकर,
जिज्ञासु! वाक्य का अर्थ समझना।
जीवन का ही, लक्ष्य न समझे, लक्ष्य गान, हम गाते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।
कर्म तुम्हारे हाथ, सही है।
यही सीख, गीता ने कही है।
यात्रा का, आनंद उठाओ,
आगे भी तो, वही मही है।
कर्म बीज है, धैर्य सिंचाई, समय पर ही, फल आते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।
राष्ट्रप्रेमी की, नहीं, कुछ इच्छा।
कदम-कदम है, मौज परीक्षा।
कर्म की खातिर, कर्म करो बस,
अनुभव देता, सच्ची दीक्षा।
फल नहीं, बस कर्म लक्ष्य हैं, हम सबको समझाते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।

Sunday, May 19, 2024

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका,

 हर रूप में सदैव अनूठी हो

13.02.2024


ब्रह्माणी सृजन करती हो, जीवन की तुम ही बूटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

सरस प्रेम की मूरत हो।

सदगुण निधि खुबसूरत हो।

ज्ञान की देवी, हो सरस्वती,

क्रोध में काली, भय पूरत हो।

आकषर्ण में सबको बाँधा, गृहस्थ धर्म की खूँटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

प्रथम षिक्षिका तुम मानव की।

विध्वंसक हो तुम दानव की।

कभी मृत्यु की देवी हो तुम,

प्रेम भरी फुहार सावन की।

रहस्य नीति से छलती जग को, प्रेम से जग को लूटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

काम की देवी रति तुम्ही हो।

वेदों की भी ऋचा तुम्हीं हो।

लक्ष्मण की तुम रेख न लांघो,

रामायण की सीता तुम्हीं हो।

वैभव की देवी लक्ष्मी हो, शक्ति स्रोत, ना चूँटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

गंभीरता की खान तुम्हीं हो।

हल्की होकर पान तुम्हीं हो।

सहनषीलता की देवी तुम,

षिक्षा की तो शान तुम्हीं हो।

पुरुषार्थ असफल हो जाता, किस्मत संगिनी रूठी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।


Sunday, May 12, 2024

एकादश दोहे-मां


१. पत्नी जब माता बने, मां का देते मान।   

पत्नी की ही शान है, मातृ दिवस बस गान।।

2. फोटो ही हैं खिंच रहे, छपते हैं संदेश। 

 मिलने को मां तरसती, कब आएगा देश।।

3. बाहर मां का दिवस है, घर में है अंजान।  

खाने को है तरसती, कैसा मिलता मान।।

4. घड़ी घड़ी हमने पिया,  मां का पावन दूध। 

खाना हम ना दे सके, वाह वाह हो खूब।।

5. ना कोई मुझको कमी, सच ना मां के बोल।

 भूखी रह कर जी रही, पीकर विष के घोल।।

6. मां तो मां है आज भी,  सब कुछ देती वार। 

भूखी भी आशीष दे, सहे भूख की मार।।

7. सब कुछ उसको मिल रहा, झूठे बोले बोल। 

सच हमसे ना कह सके, यही हमारी पोल।।

8. रोटी सुत ना दे सके, जीवन को धिक्कार। 

व्यर्थ मान सम्मान है, हम हैं बस मक्कार।।

9. कितना अक्षम आज में, कितना हूं लाचार। 

मां को साथ न मिल सका, नीच हुआ आचार।।

10. कदम-कदम पर अब तलक, होता आया फेल।                  

जीने में जीवन नहीं, जीवन जलती जेल।।

11. जननी को ही मान ना, रोटी को है रार।  

जीवन का कुछ मोल ना, जीवन है बस खार।।