Tuesday, June 11, 2024

पितृ गृह में अधिकार हो पूरा,

स्वागत में पति बैठे हैं। 


बेटी को हम बेटी समझें, भार मान क्यूँ बैठे हैं।

कोरे हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

जिस घर में है जन्म लिया।

जिस घर को है प्रेम दिया।

भूल से भी, ना कहना पराई,

बसता उसका वहाँ जिया।

बेटी है, पूरा हक उसका, सब उसके दिल में पैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

बचपन में है प्रेम लुटाया।

किशोर अवस्था पाठ पढ़ाया।

कण-कण में अधिकार है उसका,

प्रेम से सींचा, प्रेम बढ़ाया।

दहेज का तो विरोध हो करते, संपत्ति दबाए बैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ।

सम्मान, साथ, अधिकार दिलाओ।

वारिस बेटियों को स्वीकारो,

सहभाग करो, सहभागी पाओ।

पितृ गृह में अधिकार हो पूरा, स्वागत में पति बैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।


Monday, June 10, 2024

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो,

 कुछ मस्ती भी तो जरूरी है


जहाँ चाहो तुम, रहो वहाँ पर, साथ की, ना मजबूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

पढ़ी-लिखी अब समझदार हो।

खतरों से भी, खबरदार हो।

अपने पैरों खड़ी हुई हो,

समझती खुद को असरदार हो।

इच्छा अपनी, मर चुकी सारी, तुम्हारी, न रहें, अधूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

मजबूरी में साथ न आओ।

जो चाहो, वह गाना गाओ।

साथ हमारे रस न मिलेगा,

जाओ प्यारी, जीवन रस पाओ।

जीवन फसल, लुट गई सारी, बाकी अब, बस तूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

रूप, रस, गंध, स्पर्ष नहीं है।

पाने की भी, अब, चाह नही है।

चाहत तुम्हारी, रहीं अधूरी,

तुम्हारे दिल की थाह नहीं है।

नहीं जरूरत, तुम्हें हमारी, तुम्हारी दुनिया,  पूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।


Sunday, June 9, 2024

सुधा समझ पीने चले थे

 निकली विष की प्याली है

9.06.2024

सब कहते काली, काली है, वह, कानूनन घरवाली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।

झूठ और कपट की देवी।

शातिर वह पैसों की सेवी।

पैसा जाति, पैसा धर्म है,

बेईमान प्राणों की लेवी।

जाति झूठ और धर्म झूठ है, तन फर्जी, मन जाली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।

रूप  नहीं, कोई रंग नहीं है।

जीने का कोई ढंग नहीं है।

संबन्ध बनाकर वह है लूटे,

विषकन्या! कोई संग नहीं है।

काया की ही नहीं, कलुष, वह, अन्तर्तम से काली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।

केवल धन की लूट न करती।

रक्त पिपासू प्राण भी हरती।

शिकार फंसा जो, कभी न छोड़ा,

सब कुछ ले, सम्मान भी हरती।

पीड़ित कर ही, खुशी मिले उसे, रूदन पर, बजाती ताली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।


कविता अब लिखते हैं केवल

 तुम बिन हमने गान न गाए

23.05.2024

तुमने जीना सिखलाया था, तुम बिन जीना सीख न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

हमें नहीं तुमसे कुछ पाना।

हमको केवल साथ निभाना।

भले ही हमसे दूर रहो तुम,

गाते हैं हम तुम्हारा गाना।

तुम्हारे दर्द में डूबे थे हम, अपना दर्द कभी सुना न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

तुम्हारे बिना, जीवन में रस ना।

तुम्हें रोकना, हमारे बस ना।

तुम्हारी नहीं, कोई मजबूरी,

खुश रह सको, वहां ही बसना।

बिन बंधन भी बँधे हुए हम, साथ नहीं हो, मान न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

कदम-कदम यहाँ जाल बिछे हैं।

शातिराना षड्यंत्र, फंसे हैं।

लुटेरों ने निर्दय बन लूटा,

सिर्फ नेह, कुछ तार बचे हैं।

तुम नहीं, बस याद साथ हैं, यादों को हम, भुला न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

तुम्हें जरूरत नहीं हमारी।

हमें जरूरत सदा तुम्हारी।

तुम्हारे साथ तो है जग सारा,

आश बची ना, कोई हमारी।

षड्यंत्रों के वार हैं झेले, तुम्हारे सिवा कुछ सोच न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।


Thursday, June 6, 2024

जीवन सरिता बहती प्रतिपल

रूकने का कोई काम नहीं है

19-5-2024


कुछ पल का ठहराव ये पथ में, ठहरो, पर, ये, धाम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।

जन्म से लेकर मृत्यु तक।

शमशान से बस्ती तक।

अकिंचन से बड़ी हस्ती तक।

हवाई जहाज से कश्ती तक।

अविरल यात्रा है इस जग में, रुक जाए, वह नाम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।

शिक्षा ही प्रगति लाती है।

शिक्षा मानव को भाती है।

शिक्षा से पथ मिलता सबको,

शिक्षा विकास गान गाती है।

प्रकृति से शिक्षा मिलती है, शिक्षा बिन कोई राम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।

प्रेम नहीं, कभी ठहरा है।

उथला हो या फिर गहरा है।

परिवर्तन है प्रकृति प्रकृति की,

थमा नहीं कोई चेहरा है।

दिन भी चलता, रात भी चलती, गति की कोई शाम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।


Saturday, June 1, 2024

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा

और कोई अरदास नहीं है

                                              

प्रेम नहीं है कोई सौदा, बदले में कोई आश नहीं है।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।

पथ पर आगे बढ़ते जाओ।

प्रसन्न रहो, सदा मुस्काओ।

निराश कभी ना होना तुम प्रिय, 

जब तुम कभी, चाहत ना पाओ।

जरूरतें हीं, पूरी होतीं, आता सब कुछ पास नहीं है।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।

तुम्हारे लिए थे, कुछ पल ठहरे।

डूब रहे अब, जल में गहरे।

तुमको तुम्हारा मिले किनारा,

नहीं लगाएंगे हम पहरे।

जो चाहो, कर्म से पाओ, हमारे पास अब खास नहीं है।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।

तुमको मिल जाए, प्रेम तुम्हारा।

मजबूत बनो, चाहो न सहारा।

पथ में बाधक, नहीं बनेंगे,

तुम्हें मुबारक, पथ हो तुम्हारा।

भाव! अभी भी बाकी हैं कुछ, जीवित, अब भी लाश नहीं हैं।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।