Monday, November 30, 2015

सिर के बल हम दौड़ सकते

नहीं मालुम क्या लिखें, मस्तिश्क अब खाली हुआ।

आपके बिन सूना है यह घर, उर भी वीराना हुआ।

आपने ही था जिलाया, यह नाचीज परवाना हुआ।

अपने को तो हो दूर करतीं, क्यों जीने की देतीं दुआ?


संसार के बंधन में फंसकर, आपको ना छोड़ सकते।

रिश्ता कोई ना भले हो, प्रेम से मुँह ना मोड़ सकते।

आप हमारी संघटक हो, आप बिन हम हैं अधूरे।

आप जहाँ भी हो खड़ी, सिर के बल हम दौड़ सकते।

Sunday, November 29, 2015

http://www.shtyle.fm/writing.do?id=163775 से साभार ली गयी कविता

तथाकथित "असहिष्णुता" पर एक देशभक्त की रचना

by: Suman K (on: Nov 27, 2015)
Category: Poem   Language: Hindi 
tags: ***

अभिनेता आमीर खान के बढ़ती 'असहिष्णुता' के बयान पर जयपुर 
के कवि अब्दुल गफ्फार की ताजा रचना 
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"तूने कहा,सुना हमने अब मन टटोलकर सुन ले तू, 
सुन ओ आमीर खान,अब कान खोलकर सुन ले तू," 

तुमको शायद इस हरकत पे शरम नहीं आने की, 
तुमने हिम्मत कैसे की जोखिम में हमें बताने की 

शस्य श्यामला इस धरती के जैसा जग में और नहीं, 
भारत माता की गोदी से प्यारा कोई ठौर नहीं 

घर से बाहर जरा निकल के अकल खुजाकर पूछो, 
हम कितने हैं यहां सुरक्षित, हम से आकर पूछो 

पूछो हमसे गैर मुल्क में मुस्लिम कैसे जीते हैं, 
पाक, सीरिया, फिलस्तीन में खूं के आंसू पीते हैं 

लेबनान, टर्की,इराक में भीषण हाहाकार हुए, 
अल बगदादी के हाथों मस्जिद में नर संहार हुए 

इजरायल की गली गली में मुस्लिम मारा जाता है, 
अफगानी सडकों पर जिंदा शीश उतारा जाता है 

यही सिर्फ वह देश जहां सिर गौरव से तन जाता है, 
यही मुल्क है जहां मुसलमान राष्ट्रपति बन जाता है 

इसकी आजादी की खातिर हम भी सबकुछ भूले थे, 
हम ही अशफाकुल्ला बन फांसी के फंदे झूले थे 

हमने ही अंग्रेजों की लाशों से धरा पटा दी थी, 
खान अजीमुल्ला बन लंदन को धूल चटा दी थी 

ब्रिगेडियर उस्मान अली इक शोला थे,अंगारे थे, 
उस सिर्फ अकेले ने सौ पाकिस्तानी मारे थे 

हवलदार अब्दुल हमीद बेखौफ रहे आघातों से, 
जान गई पर नहीं छूटने दिया तिरंगा हाथों से 

करगिल में भी हमने बनकर हनीफ हुंकारा था, 
वहाँ मुसर्रफ के चूहों को खेंच खेंच के मारा था 

मिटे मगर मरते दम तक हम में जिंदा ईमान रहा, 
होठों पे कलमा रसूल का दिल में हिंदुस्तान रहा 

इसीलिए कहता हूँ तुझसे,यूँ भड़काना बंद करो, 
जाकर अपनी फिल्में कर लो हमें लडाना बंद करो 

बंद करो नफरत की स्याही से लिक्खी 
पर्चेबाजी, 
बंद करो इस हंगामें को, बंद करो ये लफ्फाजी 

यहां सभी को राष्ट्र वाद के धारे में बहना होगा, 
भारत में भारत माता का बनकर ही रहना होगा 

भारत माता की बोली भाषा से जिनको प्यार नहीं, 
उनको भारत में रहने का कोई भी अधिकार नहीं" 

आप वार करके जा चुके हैं

आपको बस चाहते हैं, हम तो सब को बतला चुके है।

आप ने छिपकर था,  चाहा, प्रेम को झुठला चुके हैं।

प्रेम है बकवास केवल, आपने जब हमसे कहा था,

घायल है दिल आज भी, आप वार करके जा चुके हैं।


आप पहुँची दूर इतनी, मरहम भी क्या लगा सकोगी?

स्पर्श ना करो, ना सही, निज भावों से सहला सकोगी?

पुष्पों का मकरन्द पीकर, एक नजर ही देख लो बस,

काँटों में भी जीते हैं हम, एक झलक दिखला सकोगी?

Saturday, November 28, 2015

फ़ेसबुक पर भारती भारत की पोस्ट


आपके बिन मोह किससे? ना प्रेम ही अब शेष है

प्रेम ना कर सकीं, ईर्ष्या भी हमें मंजूर है।

ना हुआ राग आपको, विराग भी मंजूर है।

संयोग ना हो सका, वियोग भी है कब तलक,

अवधि बता दो, आपके साथ जहन्नुम भी मंजूर है।



आपके बिन नहीं जग में, रस कोई अब शेष है।

आपके बिन नहीं जग में, हमारा कोई अब वेश है।

आपको खोकर के जीते किस तरह यह देख लो बस,

हृदय नहीं, न है आत्मा, काया तुम्हारी, अब शेष है।


नहीं रहा कोई मित्र जग में, जीवन का ना लेश है।

आपके बिन मोह किससे? ना प्रेम ही अब शेष है।

प्रेम के बिन समझोगी नहीं तुम, मानव यंत्र विशेष है,

हमको नहीं सुख-दुख कोई अब, ना अपेक्षा, ना द्वेष है।



आपकी ही राह तकते, जीवन जीते जा रहे हैं।

आँसुओं को तो प्रिये हम, अन्दर पीते जा रहे हैं।

आप ना मिलो, हम मान जायें, हाल आपके जान जायें,

यही रहा यदि हाल हमदम, आपके पास ही आ रहे हैं।


हमने आपको सौंप दिया, अब किसके भरोसे रहे यहाँ पर।

नहीं है हमारी यहाँ जरूरत, हम भार बन रह गये जहाँ पर।

अपना समझते थे,  हमें जो, आज वह भी जान गये हैं,

हम तो केवल आपके हैं, आप कहें, हम जायें कहाँ पर?

Friday, November 27, 2015

पहले बुलाया, गले लगाया, दूर हटो, फिर कह गयीं

याद ही बस आपकी अब पास हमारे रह गयीं।

कल्पना थी साथ की, जल के बिना ही बह गयीं।

क्या खता थी? आप हम को वह बताती रह गयीं।

झेल लो अब वियोग अग्नि, नहीं यह भी कह गयीं।

नजरों में बसी थीं तब, दिल में समाकर बह गयीं।

पहले बुलाया, गले लगाया, दूर हटो, फिर कह गयीं।

ना दूर थे, ना दूर हैं अब, बैठे वहीं जहाँ कह गयीं।

आओगी कभी, अब भी आश, भले नहीं तुम कह गयीं।

Wednesday, November 25, 2015

इन नारियों से बचो


पारदर्शिता सुख की जननी

भावनाओं में जीते हैं जो, आप तो उनको मूरख कहतीं।

हानि-लाभ व्यापार आपका, बता दो जान, खुश हो रहतीं।

हमने जीवन, बस यूँ ही छोड़ा, गंगा जल बहता  सीधा है।

काश! कभी हो इच्छा आपकी, करो स्नान देख इसे बहती।

डरकर जीवन जीना जानम, हमने नहीं अब तक सीखा है।

अन्दर बाहर एक रहो बस, कृत्रिम, आदर्शों का विष तीखा है।

क्या छुपायें? क्यों छुपाये? जो भी किया वह, पाहन रेखा है।

पारदर्शिता सुख की जननी, निष्कपटता जीवन-गीता है।

Tuesday, November 24, 2015

सांझ-सकारे कोई निहारे

हमने प्रेम को सब कुछ समझा,

 सब कुछ है कुर्बान किया।

हमने समझा जीवन प्रेम है, 

प्रेम को पूरा मान दिया।

सभी प्रेम के भूखे धरा पर, 

आपको भी बेहाल किया।

भटक गये हो, खुद को भूले, 

प्रेम का ही अपमान किया।

कण-कण देखो यहाँ पुकारे

हमको प्रेम से कोई पुकारे

दिल में से आवाज एक ही,

सांझ-सकारे कोई निहारे ।

Monday, November 23, 2015

आपने होकर किनारे

आपने चाहा था कभी, हम आसमां के बनें सितारे।

जमीं भी तो जुदा है कर दी, आपने होकर किनारे।

हम जी रहे इस आश में हैं, आपके दर्शन तो होगें,

आप सामने जब भी होगीं, खोल देगें हिय पिटारे।

आपके तन की महक ही, आज भी तन में बसी है,

देखते हैं जिधर भी हम, उन्हीं अधरों की हँसी है।

आप तो रहीं जाँच करती, हमने दिल बैठा लिया था,

अन्तर झाँक कर देखो जरा, मूरत आपकी ही बसी है।

Sunday, November 22, 2015

कोई नहीं यहाँ साथ देता

काश! हम तुम्हें भूल पाते, जीवन जीना जान पाते।

कोई नहीं यहाँ साथ देता, तथ्य को हम मान जाते।

हम तो बस भावुक ही ठहरे, छोड़ना सीखा नहीं है,

स्वार्थ हित समझौते करना, काश! हम स्वीकार पाते।

जाओ आप, खुशियाँ ही ढूढ़ों, हम तो यूँ जीते रहेंगे,

आपकी खुशियों को लखकर, हम भी मुस्काते रहेंगे।

काँटों में खेले हैं हम तो, सुमन आपको हों मुबारक,

सुधा आपको मिलता रहे बस, हम तो विष पीते रहेंगे।

Saturday, November 21, 2015

आपही सरताज अपनी

जीते ही नहीं आनन्द से हैं, मेहरबानी आपकी है।

शहनाइयों की चाह नहीं, बस कद्रदानी आपकी है।

काम में डुबा लिया है अब,यह रोशनाई आपकी है।

प्रेम का क्या हस्र होता, यह सिखावट आपकी है।

आपको कैसे भूल सकते, आपही हमराज अपनी।

आप तो हिय में विराजीं, आपही सरताज अपनी।

आपने ही है सिखाया, चलते रहना ही जिन्दगी है,

आप अब भी अन्दर विराजीं, आपही हमराह अपनी।

Thursday, November 19, 2015

पथरीले रास्तों की थकान



जीवन यात्रा के 

पथरीले रास्तों की थकान

कुछ पल चाहा विश्राम,

लहर की मुस्कान

चाहत थी 

पीयेंगे नारियल का

 मृदु शीतल जल

एक हो जायेंगे 

सागर तट पर

 धरती और अम्बर

मालुम न था, 

सागर में आयेगा तूफान,

रोयेगा आसमान

हम होंगे हैरान

 बिखरेगी आपकी मुस्कान।



राधा और कृष्ण

उद्धृत किए थे

जब आपने

लगता था 

आपके हृदय में भी है

प्रेम बीज रूप में

सीचनें से बनेगा वृक्ष!

पल्लवित और पुष्पित होगा

फल भी लगेंगे 

जब हम मिलेंगे

शायद मैं सींच नहीं पाया

और आपके उर का अंकुर

झुलस गया समाज की

कड़ी धूप से।

Wednesday, November 18, 2015

काश! हम मिल पाते आपसे

दिल की धड़कन तेज जब चलतीं

रोते हुए भी ये आँख मचलतीं

चेहरे पर ये, मुस्कान है फीकी

अन्तर में नदियाँ नित, चलतीं।

काश! हम मिल पाते आपसे

दो पल को बतियाते आपसे

आप भले ही हमें भुलाओ,

हम तो हर पल हरषाते आपसे।

प्रसन्न रहो बस, जैसी भी हो

कहना चाहूं कहा नहीं जाये


अनुभूति आप समझ न पाये


दिल की भाषा जुबान न जाने


प्रेमी ही इस गीत को गायें।



आप कहाँ हो? कैसी हो?


चाहा था क्या वैसी ही हो?


हम तो केवल दुआ ही करते,


प्रसन्न रहो बस, जैसी भी हो।