भावनाओं में जीते हैं जो, आप तो उनको मूरख कहतीं।
हानि-लाभ व्यापार आपका, बता दो जान, खुश हो रहतीं।
हमने जीवन, बस यूँ ही छोड़ा, गंगा जल बहता सीधा है।
काश! कभी हो इच्छा आपकी, करो स्नान देख इसे बहती।
डरकर जीवन जीना जानम, हमने नहीं अब तक सीखा है।
अन्दर बाहर एक रहो बस, कृत्रिम, आदर्शों का विष तीखा है।
क्या छुपायें? क्यों छुपाये? जो भी किया वह, पाहन रेखा है।
पारदर्शिता सुख की जननी, निष्कपटता जीवन-गीता है।
हानि-लाभ व्यापार आपका, बता दो जान, खुश हो रहतीं।
हमने जीवन, बस यूँ ही छोड़ा, गंगा जल बहता सीधा है।
काश! कभी हो इच्छा आपकी, करो स्नान देख इसे बहती।
डरकर जीवन जीना जानम, हमने नहीं अब तक सीखा है।
अन्दर बाहर एक रहो बस, कृत्रिम, आदर्शों का विष तीखा है।
क्या छुपायें? क्यों छुपाये? जो भी किया वह, पाहन रेखा है।
पारदर्शिता सुख की जननी, निष्कपटता जीवन-गीता है।
No comments:
Post a Comment
आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.