Saturday, July 9, 2022

मानव बनाना है

 

               

मेरे भारत को क्या हो रहा है ?       

एक अपनी जिन्दगी के लिए,           

कईयों की जिन्दगी ले रहा है.          

मानव ही मानव को

                          अपने अत्याचारों से किए है पीड़ित,

गान्धी आजाद विवेकानन्द के, 

विश्वास भंग किए जा रहे हैं

मेरा ही मन, 

धिक्कार रहा है मुझे,

                          मेरे ही भारत को कोई उजाड़ रहा है.

अगर बचाना है मुझे,

अपना राष्ट्र, स्वाभिमान और अस्तित्व,

तो अपने स्वार्थो को भुलाना है,

विश्वास बदल न जाए अविश्वास में,

इसे ध्यान में रख,

                             अपने को रक्तरंजित नदी में डुबाना है, 

भारत को बचाना है,

मगर तेरे इस बलिदान से क्या होगा ?

दूसरों को भी इसी मोड़ पर लाना है,

जो खून बह रहा पानी की तरह,

                              उसका तुझे मानव बनाना है.

इस तरह भारत को करना,

अपने विचारों को झंकृत,

राष्ट्रप्रेमी यदि कवि है तू सच्चा,

जान जायगा देश का बच्चा-बच्चा

और तुझे भरने भारत में शुद्ध भाव.


Thursday, May 19, 2022

लेन-देन तो होता सौदा

 हम तो केवल प्रेम हैं करते, बदले में कोई चाह नहीं है।

लेन-देन तो होता सौदा, जिसकी हमको थाह नहीं है।।

कितने भी हो प्रेमी तुम्हारे।

हक मिल जाएं, तुम्हें तुम्हारे।

पाने की कोई चाह न हमको,

प्राण बख्स दो सिर्फ हमारे।

माँगे तुम्हारी पूरी करेंगे, मिलने की कोई राह नहीं है।

लेन-देन तो होता सौदा, जिसकी हमको थाह नहीं है।।

प्रेम, समपर्ण निष्ठा माँगे।

प्रेमी, प्रेम की भिक्षा माँगे।

तुम्हें मुबारक प्रेमी तुम्हारा,

हम घटनाओं से शिक्षा माँगे।

धन, पद, यश, संबन्ध मिटे सब, भरते कोई आह नहीं है।

लेन-देन तो होता सौदा, जिसकी हमको थाह नहीं है।।

लुट जाएंगे, मिट जाएंगे।

तुम चाहो तो मर जाएंगे।

जब तक जीवन, निर्भय विचरें,

समझो मत हम डर जाएंगे।

विश्वास घात की चोट जो मारी, उसकी भी परवाह नहीं है।

लेन-देन तो होता सौदा, जिसकी हमको थाह नहीं है।।


तुम तो प्यारी अंदर हो

 नहीं कोई रिश्ता है तुमसे, तुम तो दिल की मंदर हो।

हम प्यार करते हैं खुद से, तुम तो प्यारी अंदर हो।।

तुमसे है अस्तित्व हमारा।

तुमही हो बस मात्र सहारा।

तुमने ही जीना सिखलाया,

तुम ही नदी, तुम ही किनारा।

प्रेम की डोर बधें हम पुतले, तुम ही हमारी कलंदर हो।

हम प्यार करते हैं खुद से, तुम तो प्यारी अंदर हो।।

तुमसे नफरत नहीं कर सकते।

खुद ही खुद को नहीं छल सकते।

प्रारंभ और अंत भी तुम हो,

नारी बिन नर, जी नहीं सकते।

नहीं हो केवल प्रेम सरोवर, तुम तो पूरी समंदर हो।

हम प्यार करते हैं खुद से, तुम तो प्यारी अंदर हो।।

तुम हमसे कभी विलग नहीं हो।

चिंगारी बन सुलग रही हो।

शीतल अग्नि प्रेम की मधुरा,

अंर्धाग हो मेरी, अलग नहीं हो।

तूफानी खतरों में हम फँसते, तुम ही हमारी लंगर हो।

हम प्यार करते हैं खुद से, तुम तो प्यारी अंदर हो।।


Monday, May 16, 2022

मिटने की परवाह नहीं हैं

 नहीं चाह बाकी अब कोई।

बेशर्मी की ओढ़ी लोई।

पति पत्नी की भेंट चढ़ गया,

पत्नी जा यारों संग सोई।


जीने की अब चाह है खोई।

फसल काटते, जो थी बोई।

आँख बंद विश्वास किया था,

घात है गहरा, आश न कोई।


मिलने की कोई चाह नहीं है।

वियोग की भी आह नहीं है।

भंवरों को सौंपा है खुद को,

खोजते कोई राह नहीं हैं।


विश्वासघात की चोट है गहरी।

हम गंवार हैं, तुम हो शहरी।

कपट से कंचन महल बनाओ,

लूटेंगे तुम्हें, तुम्हारे प्रहरी।


जिसकी कोई चाह नहीं है।

बाकी कोई राह नहीं है।

सब कुछ मिटा दिया है तुमने,

मिटने की परवाह नहीं हैं।


Saturday, May 14, 2022

जीवन की कीमत पर देखो

धन और पद ये जुटाते हैं 


सभी प्रेम के गाने गाकर, नफरत चहुँ ओर लुटाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

संबन्धों के, भ्रम में, हम जीते।

सुधा के भ्रम, गरल हैं पीते।

कपट करें कंचन की खातिर,

खुद ही खुद को, लगाएं पलीते।

कंचन काया नष्ट करें नित, फिर कुछ कंचन पाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

प्रेम नहीं कहीं हैं मिलता।

फटे हुए को है जग सिलता।

नवीनता का ढोंग कर रहे,

जमा रक्त है, नहीं पिघलता।

अपनत्व ही जाल बना अब, अपना कहकर खाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

अपनों का हक मार रहे हैं।

संबन्ध इनकी ढाल रहे हैं।

स्वारथ पूरा करने को ही,

संबन्धों को साध रहे हैं।

अपना कह कर लूट रहे नित, अपना कह भरमाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।


Monday, May 9, 2022

बताओ प्यारी, क्या पाया तुमने?

 नहीं, प्रेम की, कोई सीमा, प्रेम, नहीं कोई बंधन है।

संबन्धों का मधु प्रेम है, संबन्धों को प्रबंधन है।।

प्रेम हमें हैं शेष जगत से।

केवल नहीं, किसी भगत से।

खुद ही खुद से प्रेम करें हम,

प्रेम नहीं है, किसी तखत से।

प्रेम सरोवर, वास हमारा, नहीं कोई यहाँ क्रंदन है।

संबन्धों का मधु प्रेम है, संबन्धों को प्रबंधन है।।

कपट झूठ का लेश नहीं है।

असंतोष यहाँ शेष नहीं है।

प्रेम नशीली वस्तु नहीं है,

प्रेमी कोई मदहोश नहीं है।

प्रेम में क्रोध नहीं होता है, प्रेम तो शीतल चंदन है।

संबन्धों का मधु प्रेम है, संबन्धों को प्रबंधन है।।

कपट जाल बिछाया तुमने।

कानूनों में, उलझाया तुमने।

प्रेम शब्द को, कलंकित करके,

बताओ प्यारी, क्या पाया तुमने?

प्रेम नहीं, हथियार लूट का, प्रेम, प्रेम का वंदन है।

संबन्धों का मधु प्रेम है, संबन्धों को प्रबंधन है।।


Thursday, May 5, 2022

मिलें प्रेम की ढेरों खुशियाँ,

ऐश्वर्य तुम्हारा बना रहे


 चेहरे पर मुस्कान रहे नित, प्रेम तुम्हारा बना रहे।

मिलें प्रेम की ढेरों खुशियाँ, ऐश्वर्य तुम्हारा बना रहे।।

कभी याद ना हमको करना।

कभी किसी से ना तुम डरना।

सह लेंगे हम घात तुम्हारे,

तुमको मिले खुशियों का झरना।

हम लुटने को राजी नित, कोष तुम्हारा बना रहे।

मिलें प्रेम की ढेरों खुशियाँ, ऐश्वर्य तुम्हारा बना रहे।।

नहीं कोई है चाह हमारी।

तुम्हें मिले, प्रेमी की क्यारी।

तुमसे मुक्ति मिल जाए हमको,

एक यही है आह हमारी।

कोई सजा न हमको भारी, इकबाल तुम्हारा बना रहे।

मिलें प्रेम की ढेरों खुशियाँ, ऐश्वर्य तुम्हारा बना रहे।।

धन की चाहत, तुम्हारी पूरी।

प्रेमी बिन, ना, रहो अधूरी।

विश्वासघात हम झेल चुके हैं,

आरिफ की चाह, करो तुम पूरी।

हम तो एकल ही जी लेंगे, साथ तुम्हारा बना रहे।

मिलें प्रेम की ढेरों खुशियाँ, ऐश्वर्य तुम्हारा बना रहे।।


Monday, May 2, 2022

प्रेम सुधा को तुम अब पी लो

                            मानव हो मानव बन जी लो


प्रेम सुधा को तुम अब पी लो।

मानव हो मानव बन जी लो।।


सबसे मिलकर रहना सीखो।

दुःख में भी खुश रहना सीखो।

सब ही मित्र नहीं कोई दुश्मन,

माँगों नहीं, लुटाना सीखो।

कपट गरल तुम हँस पी लो।

मानव हो मानव बन जी लो।।


नहीं किसी से लेना बदला।

खुद को ही हमने है बदला।

आहत हुए कदम-कदम पर,

प्रेम से ही है चुकाया बदला।

सच बोलो, झूठ को पी लो।

मानव हो मानव बन जी लो।।


किसी से कोई आश नहीं है।

साथी  कोई साथ नहीं है।

अकेले ही हम खुश रह लेते,

साथ के लिए मजबूर नहीं हैं।

अकेलेपन का रस भी पी लो।

मानव हो मानव बन जी लो।।


खुद ही खुद के साथी है हम।

सृजन के, संगी साथी है हम।

विश्वासघात से आहत होकर,

विश्वास के सदैव, साथी है हम।

जीओ और जीवन रस पी लो।

मानव हो मानव बन जी लो।।


Friday, April 29, 2022

जीवन तो है खेल जगत का

 प्राणी एक खिलोना है


नहीं किसी से नफरत हमको, नहीं किसी को रोना है।

जीवन तो है खेल जगत का, प्राणी एक खिलोना है।।

प्रेम मुहब्बत की, बातें हैं।

चन्द दिनों की, मुलाकातें हैं।

स्वारथ पूरा करने को फिर,

चलतीं कानूनी लातें हैं।

नहीं कोई है मित्र यहाँ पर, सबको एक दिन खोना है।

जीवन तो है खेल जगत का, प्राणी एक खिलोना है।।

नहीं है कोई अपना पराया।

स्वारथ हित ही ब्याह रचाया।

कपट के यहाँ पर जाल बिछे हैं,

झूठ का, सुंदर अंग सजाया।

धन की खातिर रिश्ते नाते, ईमान की कीमत सोना है।

जीवन तो है खेल जगत का, प्राणी एक खिलोना है।।

नहीं प्रेम की बातें करनी।

नहीं किसी की जान हड़पनी।

तुम अपने पथ जाओ प्यारी,

आजादी बस चाह है अपनी।

नहीं चाहिए हमको कुछ भी, खुद ही खुद को धोना है।

जीवन तो है खेल जगत का, प्राणी एक खिलोना है।।


Thursday, April 28, 2022

प्रेम को नहीं, चाह प्रेम की

प्रेम ही है मंतव्य हमारा



 प्रेम पथिक हूँ, प्रेम ही पथ है, प्रेम ही है गंतव्य हमारा।

प्रेम को नहीं,  चाह प्रेम की, प्रेम ही है मंतव्य हमारा।।

प्रेम ही जीवन सार प्रेम का।

प्रेम न करता, वार प्रेम का।

देने की वश,  चाह प्रेम में,

प्रेम न करे, इंतजार प्रेम का।

प्रेम तो केवल प्रेम ही करता, धोखे का यहाँ नहीं दुधारा।

प्रेम को नहीं,  चाह प्रेम की, प्रेम ही है मंतव्य हमारा।।

प्रेम नहीं, परिधि में सीमित।

प्रेम नहीं करता है बीमित।

प्रेम प्रेम का गुलाम नहीं है,

प्रेम की सीमा, सदैव असीमित।

प्रेम तो केवल, प्रेम लुटाता, प्रेम न चाहे कोई सहारा।

प्रेम को नहीं,  चाह प्रेम की, प्रेम ही है मंतव्य हमारा।।

प्रेम नहीं प्रेम को लूटे।

प्रेमी नहीं होते हैं झूठे।

प्रेम तो करता सहज समर्पण,

प्रेमी किसी को नहीं खसूटे।

प्रेम में, कानून न चलता, प्रेम नहीं है, गणित पहारा।

प्रेम को नहीं,  चाह प्रेम की, प्रेम ही है मंतव्य हमारा।।


भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे

तुम उनसे भी सुंदर हो


 गोल गोल गोलाइयाँ सुंदर, गहराइयों में समंदर हो।

भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे, तुम उनसे भी सुंदर हो।।

फोटा बहुत देखे हैं हमने।

वार तुम्हारे सहे हैं हमने।

चाह कर भी चाह न सकते,

विश्वासघात देखें हैं हमने।

बाहर से ना दिखलाओ केवल, दिखलाओ कैसी अंदर हो?

भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे, तुम उनसे भी सुंदर हो।

जहरीली सोने की गागर।

बन ना सकी प्यार का सागर।

अपराधी को छोड़ के जाओ,

बन नहीं सकते, अब कभी नागर।

सुंदरता बाहर की केवल, अंदर से चंचल बंदर हो।

भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे, तुम उनसे भी सुंदर हो।।

हमने तो था सब कुछ सौंपा।

तुमने दिल में छुरा ही भौंका।

नहीं अभी भी नफरत हमको,

किंतु बन नहीं सकतीं लोपा।

होटल की हो तुम आकर्षण, ना गुरूद्वारे की लंगर हो।

भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे, तुम उनसे भी सुंदर हो।।


Sunday, April 24, 2022

नहीं किसी की चाह रही अब

नहीं किसी से द्वेष रहा है 


सहते सहते, सहनशील सह, आक्रोश नहीं अवशेष रहा है।

नहीं किसी की चाह रही अब, नहीं किसी से द्वेष रहा है।।

नहीं क्रोध है तुम पर कोई।

काटोगी तुम, जो हो बोई।

अकेले पन का तोहफा हमें दे,

तुम प्रेमी संग जाकर सोईं।

हम खुद ही, खुद के साथी, साथ का नहीं कोई लोभ रहा है।

नहीं किसी की चाह रही अब, नहीं किसी से द्वेष रहा है।।

नहीं द्वेष है, नहीं है नफरत।

नहीं रही अब कोई हसरत।

लुटकर भी खामोश रहें हम,

देख रहे कुदरत की कसरत।

नहीं दोष है तुम्हारा कोई, नहीं हमें अब मोह रहा है।

नहीं किसी की चाह रही अब, नहीं किसी से द्वेष रहा।।

तुमने की थी अपने मन की।

हमको पालना, करनी पन की।

छलना ही है, कर्म तुम्हारा,

नहीं चाह, हमको, पद धन की।

नहीं है तुमसे, कोई शिकायत, अपना ही बस दोष रहा है।

नहीं किसी की चाह रही अब, नहीं किसी से द्वेष रहा है।।

संबन्धों का नहीं है बंधन।

भूल गए हैं आज प्रबंधन।

तुम अपनी खुशियों को खोजो,

हम व्यर्थ का करते क्रंदन।

नहीं रहा कोई मीत हमारा, शेष न मन का कोश रहा है।

नहीं किसी की चाह रही अब, नहीं किसी से द्वेष रहा है।।


Saturday, April 23, 2022

छल, छद्म की छवि सुंदर

षड्यंत्र लालिमा सजती हो


 छल, कपट, धोखे की पुतली, कमाल कालिमा लगती हो।

छल, छद्म की छवि सुंदर, षड्यंत्र लालिमा सजती हो।।

काजल कीचड़ सी हो शोभित।

भूखी सदैव, पैसे की लोभित।

झूठ से चलती सांस तुम्हारी,

सच से सदैव हो जाती क्रोधित।

लगड़ाती सी, चालें चलकर, गोलाइयों से ठगती हो।

छल, छद्म की छवि सुंदर, षड्यंत्र लालिमा सजती हो।।

पैसा ही है लक्ष्य तुम्हारा।

पैसा ही है भक्ष्य तुम्हारा।

पैसे के लिए हद ना कोई,

पैसा ही, प्रेमी, पति, तुम्हारा।

फटी आवाज है, फटे गले की, फनकार सी फबती हो।

 छल, छद्म की छवि सुंदर, षड्यंत्र लालिमा सजती हो।।

अंधेरे में खो जाती हो।

सोने के साथ सो जाती हो।

रिश्तों से तुम खेल हो करतीं,

मालामाल तुम हो जाती हो।

कानूनों को करो कलंकित, कुल की कालिमा लगती हो।

छल, छद्म की छवि सुंदर, षड्यंत्र लालिमा सजती हो।।


Thursday, April 21, 2022

रिश्ते की जड़ों में मट्ठा डालना

तुम्ही को फबता है 


रिश्ते बनाकर, धन यूँ कमाना,  तुम्हीं को जँचता है।

रिश्ते की जड़ों में मट्ठा डालना, तुम्ही को फबता है।।


प्रेम नाम पर, चोट जो मारी, हर चोट पे हँसता है।

कीकर को कह आम, बेचना, तुम्हारी सफलता है।।


काली लुगाई की, काली कमाई, लोहा चमकता है।

पुरखों की यूँ जात बदलना, जग भी हँसता है।।


धन की खातिर, धोखे के रिश्ते, बाजार भी बचता है।

दिल की कालिमा, भतीजा लालिमा, धन यूँ कमता है।।


ऊसर को कह बाग, बेचना, तुम्हीं को सजता है।

किन्नर को यूँ रति समझकर, दिल यूँ मचलता है।।


तुम्हें याद कर, अब हर छलिया, छोटा लगता है।

तलवारों से हमको, अब कोई, घाव न लगता है।।


चोर, उचक्का, झूठा, छलिया, बुरा न लगता है।

तुम्हें याद कर, गिरगिट भी, हमें अच्छा लगता है।।


नफरत की यूँ रेखा खीचना, तुम्हीं को जँचता है।

दिल का इतना सस्ता बिकना, बुरा तो लगता है।। 


कानूनों का घात, प्रेम पर, छल भी हँसता है।

रिश्ते की जड़ों में मट्ठा डालना, तुम्ही को फबता है।।


Wednesday, April 20, 2022

कुशल शिकारी हो तुम प्यारी!


 शिकार बने हम, याद रहेगा


धोखे की हो,  पुतली सुंदर,   प्रेम कपट,  ये याद रहेगा।

कुशल शिकारी हो तुम प्यारी! शिकार बने हम, याद रहेगा।।

कपट का प्रेम, गजब का नाटक।

तोड़ दिया है, दिल का फाटक।

रिश्तों को भी, व्यापार बनाकर,

कानूनी जाल बुन, वसूला हाटक।

लुटने का कोई दुःख नहीं हमको, वार! तुम्हारा याद रहेगा।

कुशल शिकारी हो तुम प्यारी! शिकार बने हम, याद रहेगा।।

नहीं चाहिए, कुछ भी हमको।

धन-दौलत मिल जाए तुमको।

मौत को हँसकर गले लगाए,

प्रेमी तुम्हारा मिल जाए तुमको।

मुफ्त का धन,  हो तुम्हें मुबारक!  यार! तुम्हारा याद रहेगा।

कुशल शिकारी हो तुम प्यारी! शिकार बने हम, याद रहेगा।।

कदम परे ना कभी हटाना।

बिना किए, सारे सुख पाना।

रिश्तों की लाशों पर हँसकर,

प्रेम गान, प्रिये तुम गाना।

झूठ को सच, हो कैसे बनातीं? हार! तुम्हारा याद रहेगा।

कुशल शिकारी हो तुम प्यारी! शिकार बने हम, याद रहेगा।।

जाति बदल, हैसियत बदली।

धोखे से है, कैफियत बदली।

विश्वास का खून यूँ करके,

निशाप्रिये! खैरियत बदली।

नहीं हो केवल, रंग की काली, सार! तुम्हारा याद रहेगा।

कुशल शिकारी हो तुम प्यारी! शिकार बने हम, याद रहेगा।।

 

Tuesday, April 19, 2022

जहाँ प्रेम का मरहम लगता

चोट सभी भर जाती हैं


 

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।

अंधकार की रात बीतती, चिढ़ियाँ फिर से गाती हैं।

इक दूजे का हित चिंतन।

नहीं रहा है कोई अकिंचन।

समर्पण, त्याग और प्रेम ही,

करता संबन्धों का मंचन।

विश्वास घात की चोट एक, सब मटियामेट कर जाती है।

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।

लोग प्रेम का गाना गाते।

खुद को ही हैं वे भरमाते।

अधिकारों के संघर्ष में ही,

टूट रहे सब रिश्ते नाते।

नर नारी को कोस रहा है, नारी खून कर जाती है।

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।

प्रेम नाम पर लूट रहे हैं।

लालच में बोल झूठ रहे हैं।

प्रेम जाल से शिकार कर रहे,

अपना कहकर कूट रहे हैं।

शिक्षित शातिर बनीं शिकारी, खुद ही खुद को भरमाती हैं।

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।

धन हित रिश्ता खोज रही हैं।

नित, संबन्धों को तोड़ रही हैं।

कानूनों के जाल में फंसकर,

नारी नर को छोड़ रही है।

प्रेम का मर्म नहीं तू जाने, बाजार में खुद को सजाती है।

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।


Sunday, April 17, 2022

सच और विश्वास जहाँ हो

वह ही रिश्ता चल पाता है


गलती को स्वीकार, सुधारे, आगे वह ही बढ़ पाता है।

सच और विश्वास जहाँ हो, वह ही रिश्ता चल पाता है।।

कर्तव्य पथ पर जो चलता है।

आकर्षण से वह बचता है।

फूलों से कोई पथ नहीं बनता,

पथिकों से ही पथ सजता है।

झूठ और कपट के बल पर, रचा भेद जो, खुल जाता है।

सच और विश्वास जहाँ हो, वह ही रिश्ता चल पाता है।।

 षडयंत्रों से परिवार न चलते।

विष से तो विषधर ही पलते।

कानूनों से नहीं, रिश्ते तो,

प्रेम और विश्वास से खिलते।

सच में से विश्वास निकलता, विश्वास से रिश्ता बन जाता है।

सच और विश्वास जहाँ हो, वह ही रिश्ता चल पाता है।।

प्रेम में कोई माँग न होती।

देने की बस चाह है होती।

स्वार्थ, लालच, लिप्सा की छाव में,

कभी न जलती प्रेम की जोती।

धन, पद, यश, संबन्ध की चाह से, प्रेम का नहीं कोई नाता है।

सच और विश्वास जहाँ हो, वह ही रिश्ता चल पाता है।।

जिसकी कोई चाह नहीं है।

अपनी कोई परवाह नहीं है।

बचकर चलना फिर भी उनसे,

जिनकी कोई थाह नहीं है।

ईर्ष्या, द्वेष, स्वारथ पूरित, प्रेम गान फिर भी गाता है।

सच और विश्वास जहाँ हो, वह ही रिश्ता चल पाता है।।



Saturday, April 16, 2022

दोषारोपण कर ओरों पर,

 हम पाक साफ बन कर सोते हैं


व्यक्ति कभी भी गलत न होता, गलत सदैव कारण होते हैं।

दोषारोपण कर ओरों पर, हम पाक साफ बन कर सोते हैं।।

छल, कपट, षडयंत्र करें नित।

संबन्धों के नाम पर, साधें हित।

स्वारथ की खातिर विश्वासघात कर,

अपने कह कर, करते हम चित।

गला काट कर लूट रहे हैं, फिर भी हम प्रेमी होते हैं।

दोषारोपण कर ओरों पर, हम पाक साफ बन कर सोते हैं।।

मर्यादा रिश्तों की टूटी।

पत्नी बनती हैं अब झूठी।

झूठे केस दहेज के करके,

जाने कितनों को हैं लूटी।

कानूनों से ठगी हैं करती, प्रेमी से संबन्ध होते हैं।

दोषारोपण कर ओरों पर, हम पाक साफ बन कर सोते हैं।।

नर नारी की अस्मत लूटे।

नारी केस करे अब झूठे।

रिश्ते हैं बाजार में बिकते,

दोनों के विश्वास हैं टूटे।

इक दूजे की हत्या करते, प्रेम के नाम खून होते हैं।

दोषारोपण कर ओरों पर, हम पाक साफ बन कर सोते हैं।।


Friday, April 15, 2022

धोखेबाज, झूठ की हांड़ी,

 चढ़ती बारंबार नहीं


प्रेम बिना कोई राष्ट्र नहीं है, प्रेम बिना परिवार नहीं।

जिसको किसी से प्रेम न होता, उसका कोई घरबार नहीं।।

प्रकृति के घटक सभी हैं यहाँ पर।

नर-नारी बिन सृजन कहाँ पर?

नव सृजन नव सृष्टि होती,

प्रकृति पुरूष का साथ जहाँ पर।

जब भी मिलो, प्रेम से जिओ, मिलना होता हरबार नहीं।

जिसको किसी से प्रेम न होता, उसका कोई घरबार नहीं।।

मिलने से ही संस्था बनतीं।

मिलने से ही कली विहँसतीं।

मिलने ही की खातिर सृष्टि,

नर-नारी का रूप विरचती।

प्रेम बिना कोई युद्ध न होता, प्रेम बिना दरबार नहीं।

जिसको किसी से प्रेम न होता, उसका कोई घरबार नहीं।।

प्रेम को कपट नहीं सुहाता।

धोखे का यह नहीं अहाता।

छल, कपट कर जीतना चाहे,

बचा न सकता, प्रेम विधाता।

धोखेबाज, झूठ की हांड़ी, चढ़ती बारंबार नहीं।

जिसको किसी से प्रेम न होता, उसका कोई घरबार नहीं।।



एक-दूजे की परवाह करें जो

गर्व से कहते प्यार है 


सच से है विश्वास विकसता, विश्वास संबन्ध आधार है।

एक-दूजे की परवाह करें जो,  गर्व से कहते प्यार है।।

परिचय प्रथम कदम प्रेम का।

आकर्षण भी स्वरूप नेह का।

समय बिताना साथ जब चाहें,

अंकुरण देखो हुआ प्रेम का।

लेन-देन तो प्यार नहीं  है, यह तो बस व्यापार है।

एक-दूजे की परवाह करें जो,  गर्व से कहते प्यार है।।

आँखों-आँखों होतीं बातें।

सपनों में भी हों मुलाकातें।

कितनी भी हो टोका-टाकी,

यादों में ही बीतें रातें।

अधिकार की बात नहीं कोई, कर्तव्य प्रेम का सार है।

एक-दूजे की परवाह करें जो,  गर्व से कहते प्यार है।।

साथ की ही बस चाह न होती।

वियोग भी होता जीवन मोती।

प्रेमी को खुशियों की खातिर,

समर्पित कर दें जीवन जोती।

कुछ न छुपाते इक-दूजे से, उनको कहते यार हैं।

एक-दूजे की परवाह करें जो,  गर्व से कहते प्यार है।।


Thursday, April 14, 2022

आघात कितना भी गहरा हो

हम रिश्तों में बदी न करते 


तुमने भले ही ठगा हो हमको, हम बदले में ठगी न करते।

आघात कितना भी गहरा हो, हम रिश्तों में बदी न करते।।

तुमने भले ही हमें फसाया।

हमने तुम पर प्यार लुटाया।

नहीं उजाड़ा कभी किसी को,

प्रेमी संग है तुम्हें बसाया।

अपने बंधन काट रहे हम, तुमसे कोई हँसी न करते।

आघात कितना भी गहरा हो, हम रिश्तों में बदी न करते।।

धोखे से नहीं रिश्ते बनते।

कानूनों से विश्वास न पलते।

विश्वासघात कर प्रेम चाहतीं,

तलवारों से पुष्प न खिलते।

जिसकी थीं, उसको ही सौंपी, किसी की चीज कभी न हरते।

आघात कितना भी गहरा हो, हम रिश्तों में बदी न करते।।

समय बहुत अब बीत गया है।

हमारा नहीं कोई मीत भया है।

तुम्हारी चोट थी इतनी गहरी,

धोखा तुम्हारा जीत गया है।

कपट कपट का मित्र न होता, कपटी से भी कपट न करते।

आघात कितना भी गहरा हो, हम रिश्तों में बदी न करते।।

 


प्रेमी तो बस प्रेम बाँटता

प्रेम ही उसकी जान है


 प्रेम नाम होते हैं सौदे, प्रेम नहीं वहाँ बान है।

प्रेमी तो बस प्रेम बाँटता, प्रेम ही उसकी जान है।।

प्रेम समर्पण, प्रेम है पूजा।

प्रेम में नहीं कोई होता दूजा।

मान मनोवल तो चलता है,

आपा होम कर होती पूजा।

प्रेम में कोई माँग न होती, ना होता अभिमान है।

प्रेमी तो बस प्रेम बाँटता, प्रेम ही उसकी जान है।।

प्रेम नहीं है कभी बाँधता।

प्रेम नहीं धन है जाँचता।

प्रेम कभी प्रतिशोध न लेता,

प्रेम देकर है प्रेम बाँचता।

प्रेम में कभी नफरत ना होती, प्रेम के ही बस गान हैैं।

प्रेमी तो बस प्रेम बाँटता, प्रेम ही उसकी जान है।।

अधिकारों की जंग नहीं है।

कानूनों का भंग नहीं है।

अधिकारों का संघर्ष जहाँ है,

कुछ भी हो पर प्रेम नहीं है।

प्रेम नाम है कपट जहाँ, प्रेम का नहीं वहाँ मान है।

प्रेमी तो बस प्रेम बाँटता, प्रेम ही उसकी जान है।।


Wednesday, April 13, 2022

प्रेम ही है जीवन की सरगम

प्रेम, प्रेमी की आन है 


प्रेम ही है जीने का मकसद, प्रेम, हृदय का गान है।

प्रेम ही है जीवन की सरगम, प्रेम, प्रेमी की आन है।।

हर प्राणी की चाह प्रेम है।

हर प्राणी की आह प्रेम है।

हर प्राणी है प्रेम का भूखा,

हर प्राणी की राह प्रेम है।

प्रेम नहीं है, कानूनी बंधन, प्रेम, प्रेमी की जान है।

प्रेम ही है जीवन की सरगम, प्रेम, प्रेमी की आन है।।

प्रेम नहीं किसी को बाँधें।

प्रेम नहीं कोई स्वारथ साधे।

प्रेमी कभी कोई माँग न करता,

प्रेमी, प्रेम को बस आराधे।

प्रेम नाम पर स्वारथ साधें, वे, नहीं, प्रेम के मान हैं।

प्रेम ही है जीवन की सरगम, प्रेम, प्रेमी की आन है।।

प्रेम नाम पर जो हैं फँसाते।

खुद को ही हैं वे भरमाते।

बिना शर्त जो करें समपर्ण,

प्रेम पुजारी, प्रेमी, कहलाते।

प्रेम नाम, अधिकार माँगते, वे, नहीं प्रेम की शान हैं।

प्रेम ही है जीवन की सरगम, प्रेम, प्रेमी की आन है।।


Tuesday, April 12, 2022

तुमने हमको गले लगाकर

प्रेम का पहला पाठ पढ़ाया 


आभार तुम्हारा करते पल-पल, जीवन जीना हमें सिखाया।

तुमने हमको गले लगाकर, प्रेम का पहला पाठ पढ़ाया।।

जीवन में हम भटक रहे थे।

बिना लक्ष्य के लटक रहे थे।

तुमने तब था थामा हमको,

जब सबको हम खटक रहे थे।

जब-जब हम गिरकर टूटे, तुमने अपना हाथ बढ़ाया।

तुमने हमको गले लगाकर, प्रेम का पहला पाठ पढ़ाया।।

नहीं कभी भी हमको बांधा।

जब भी टूटे तुमने साधा।

तुमसे ही था जीना सीखा,

तुम्हारे बिना अब भी हूँ आधा। 

हमने थी बस दया दिखाई, तुमने सब कुछ हमें थमाया।

तुमने हमको गले लगाकर, प्रेम का पहला पाठ पढ़ाया।।

प्रेम की नहीं कोई है सीमा।

ना कोई बंधन, ना कोई बीमा।

अपने अंदर हमें समाकर,

आनन्द की तोड़ी सारी सीमा

जीवन अमृत हमें पिलाकर, युग शिखरों पर हमें चढ़ाया।

तुमने हमको गले लगाकर, प्रेम का पहला पाठ पढ़ाया।।


Monday, April 11, 2022

प्रेम में नाप-तौल ना होती

कानूनों का जाल नहीं है


 प्रेमी प्रेम लुटाता पल पल, पाना उसको  माल नहीं है।

प्रेम में नाप-तौल ना होती, कानूनों का जाल नहीं है।।

चाह नहीं, चाहत नहीं।

राह नहीं, राहत नहीं।

समर्पण है, माँग नहीं,

आह नहीं, आहत नहीं।

प्रेम है जीवन, प्रेम संजीवन, शिकारी का कोई जाल नहीं है।

प्रेम में नाप-तौल ना होती, कानूनों का जाल नहीं है।।

समर्पण में संघर्ष न होता।

सुख बाँट कर दुखी न होता।

कर्तव्य केवल याद हैं रहते,

अधिकारों का हर्ष न होता।

प्रेम में तो बस सृजन है होता, प्रेम किसी का काल नहीं है।

प्रेम में नाप-तौल ना होती, कानूनों का जाल नहीं है।।

प्रेम को कोई लूट न सकता।

प्रेमी कभी भी झूठ न बकता।

नहीं करे कभी कोई दावा,

आपा मिटाकर, प्रेम हो सकता।

प्रेम तो खुशियों का है सर्जक, बजाता केवल गाल नहीं है।

प्रेम में नाप-तौल ना होती, कानूनों का जाल नहीं है।।


Sunday, April 10, 2022

विश्वास नहीं अब, खुद पर हमको

गुस्सा करना भूल गए


 तुमने प्रिये! आघात किया जो, हँसना-हँसाना भूल गए।

विश्वास नहीं अब, खुद पर हमको, गुस्सा करना भूल गए।।

हमने सब कुछ सौंप दिया था।

बिना जाँच विश्वास किया था।

तुमरे जाल में फंसा था ऐसा,

धोखे को सच मान जिया था।

प्रेम वचन जो मधुर थे उस पल, आज वही हैं शूल भए।

विश्वास नहीं अब, खुद पर हमको, गुस्सा करना भूल गए।।

चोट भले ही कितनी गहरी।

जिंदगी नहीं है, फिर भी ठहरी।

जिजीविषा अब भी जीवित है,

सच है हमारा आज भी प्रहरी।

उत्साह, आक्रोश, क्रोध था पल पल, निराश आज हम कूल भए।

विश्वास नहीं अब, खुद पर हमको, गुस्सा करना भूल गए।।

केवल खुद को मुक्त चाहते।

तुमको भी नहीं रिक्त चाहते।

निज प्रेमी संग, खुशी रहो तुम,

हम तो बस एकांत चाहते।

पुष्प भी काँटे बन जाते हैं, काँटें भी हमको कूल भए।

विश्वास नहीं अब, खुद पर हमको, गुस्सा करना भूल गए।।


Saturday, April 9, 2022

प्रेम व्याप्त जग के कण कण में,

प्रेम जगत का सार है


 प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।

जीवन वही सफल कहलाता, जो बिखराता प्यार है।।

प्रेम से जीवन विकसित होता।

प्रेम बिना, भंवरों में गोता।

आनंद शिखर चढ़ पाता है नर,

प्रेम, प्रेम संग, प्रेम से सोता।

प्रेम हेतु संघर्ष जगत में, प्रेम सृजन आधार है।

प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।।

जिसको नहीं प्रेम मिल पाता।

निरर्थक सब हो रिश्ता-नाता।

जीवन नहीं वह जी पाता है,

मन का मीत नहीं जो पाता।

हर बाधा को पार वो करता, जिसको मिलता यार है।

प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।।

प्रेम ही देव, प्रेम ही गीता।

प्रेम ही राधा, प्रेम ही सीता।

विकार मुक्त नर हो जाता है,

प्रेम का सर्जक, प्रेम जो पीता।

प्रेम का अभाव नहीं जब होता, प्रेम से  बेड़ा पार है।

प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।।


Friday, April 8, 2022

क्रूरता की हद पार कर गईं,

मौत भी हमको नहीं डराती


 शिकवा शिकायत का पल बीता।

जीवन रह गया रीता-रीता।

विश्वास घात ने विश्वास डिगाया,

मिलतीं नहीं अब सीता गीता।


किसी को कितना भी तुम चाहो!

प्रेम से कितना भी अवगाहो!

दिल हैं देखो! मशीन बन गए,

जीते रहो या तुम मर जाओ।


प्रेम नहीं अब पवित्र रह गया।

ऑनलाइन वह आज बिक गया।

लालच, लिप्सा और वासना,

धोखे का पर्याय रह गया।


तुमने भी तो वही किया है।

संबन्धों को नहीं जिया है।

प्रेम और विश्वास की खातिर,

हमने तो बस जहर पिया है।


धोखा खाकर शिकार बन गए।

शिकारी तुम, हम शिकार बन गए।

विश्वासघात की चोट तुम्हारी,

प्रेम और विश्वास मिट गए।


जीवन में अब आश नहीं है।

कोई अपना खास नहीं है।

जीवन पथ पर निपट अकेले,

कोई अपने पास नही है।


कर्म पथ हम आज भी चलते।

सपने नहीं अब सुनहरे पलते।

नहीं चाहिए साथ किसी का,

खुद से खुद को धोखे मिलते।


प्रेम का गान तुम अब भी गातीं।

प्रेम की हत्या कर,  भरमातीं।

क्रूरता की हद पार कर गईं,

मौत भी हमको नहीं डराती।


Thursday, April 7, 2022

धोखे की तेरी चोट थी गहरी

 पत्थर पिघला, तेल हो गया


अकेलेपन से मेल हो गया।

खुद से खुद को प्रेम हो गया।

विश्वास घात की चोट से तुमरी,

जीवन अपना खेल हो गया।


तेरे बिन निःसंग हो गया।

लक्ष्य हमारा भंग हो गया।

पढ़ना लिखना भी है छूटा,

बिन पटरी की रेल हो गया।


प्रेमी से, मैं कौन हो गया।

वाचाल से, अब मौन हो गया।

तेरे बिन सब कुछ अब सूना,

आवास ही अपना जेल हो गया।


राह की अब मैं धूल हो गया।

गर्मी निकली, कूल हो गया।

धोखे की तेरी चोट थी गहरी,

पत्थर पिघला, तेल हो गया।


Wednesday, April 6, 2022

नर-नारी के दिल जब मिलते

 उनसे बड़ा उत्कर्ष नहीं है



समानता का संघर्ष नहीं है।

मिलने से बड़ा हर्ष नहीं है।

नर-नारी के दिल जब मिलते,

उनसे बड़ा उत्कर्ष नहीं है।


प्रेम में मिले जो वही सही है।

रंग कोई हो, वही सही है।

प्रेम की कोई जात न होती,

हमने तुमरी बाँह गही है।


दिल से दिल में झूठ न होता।

प्रेम सरोवर लगता गोता।

स्वर्ग की कोई चाह न रहती,

प्रेम प्रेम संग जब है सोता।


अधिकारों का संघर्ष नहीं है।

चलता कोई कानून नहीं है।

विश्वास घात से सब कुछ मिटता,

सच के बिना, विश्वास नहीं है।


प्रेम में ना हो कोई सौदा।

प्रेम का नहीं होता हौदा।

प्रेम का सार है पूर्ण समर्पण,

खुशियाँ मिलतीं, खाकर कौंदा।


प्रेम में नहीं वासना होती।

लालच और आश ना होती।

सब कुछ समर्पित करके भी,

चाहत कोई खास ना होती।


प्रेम नहीं हम कभी कर पाए।

प्रेम के केवल गाने गाए।

तुमने सब कुछ सौंप दिया था,

प्रेम के हमने पाठ पढ़ाए।


Monday, April 4, 2022

ठोकर से भी हम हरषाए

 हम प्यार तुम्हें करते कितना?

समझा नहीं या समझ न पाए?

तुमने भले ही हो भरमाया?

हमने तुम्हारे गाने गाए।


प्यार तुम्हारा भले हो सौदा?

हमने समझा उसे घरौंदा।

तुम्हारी यादों में जीते हम,

तुमने भले ही प्यार को रौंदा।


तुम्हारी खुशियों से खुश होते।

मुस्काकर भी हम अब रोते।

आवाज तुम्हारी सुनने को हम,

पल पल तड़पें विचलित होते।


तुमसे वफा की चाह नहीं है।

ठुकराओ भले! आह नहीं है!

पल पल जीते यादों में हम,

तुमको कोई परवाह नहीं है।


हमने तुमसे कब कुछ चाहा?

केवल प्रेम से था अवगाहा।

तुम्हारी खुशियों की खातिर ही,

लुटकर भी करते हम आहा!


तुमने कहा, वही था माना।

तुमसे हटकर कुछ ना जाना।

विश्वास पर घात किया है,

अब भी बहाने करती नाना।


प्रेम तुम्हारी चाह  नहीं है।

धोखा हमरी आह नहीं है।

दिल तो सौंप दिया था तुमको,

तुम्हारी कोई थाह  नहीं है।


हमने तुमको प्यार किया था।

तुम्हारे प्रेमी को भी जिया था।

तुम थीं, खुद को धोखा देतीं,

हमने तुम्हारा क्रोध पिया था।


हम तो तुम्हें भुला नहीं पाए।

नित ही तुमरे गाने गाए।

तुमने ठोकर भले ही मारी,

ठोकर से भी हम हरषाए।


Sunday, April 3, 2022

सबको प्रेम करने की जिद में,

 किसी को गले लगा नहीं पाए



सबको पल पल सीख दे रहे, खुद को कभी सिखा नहीं पाए।

अपनी ढपली खुद ही बजाएं, ओरों को कभी सुन नहीं पाए।

प्यार की खोज करते हैं पल पल, पास नहीं है, नहीं दे पाए,

आदर्श के, दंभ में भरकर, किसी को गले लगा नहीं पाए।।


अलग राह चलने की जिद में, साथ किसी के चल नहीं पाए।

सच के साथ चलने की जिद में, छोड़ गए सब, नहीं चल पाए।

दुनियादारी नहीं कभी सीखी, ईमानदारी की टेक लगाए;

सबको प्रेम करने की जिद में, किसी को गले लगा नहीं पाए।।


सबके साथ, नहीं चल सकते, इस सच को, कभी समझ नहीं पाए।

सबके अपने अपने पथ हैं, पथ तज, साथ में, चल नहीं पाए।

आगे बढ़कर जो भी आया, लुटते रहे हम, लूट न पाए,

सबको मित्र, हम, समझ रहे थे, किसी को गले लगा नहीं पाए।।


कविता लिखी भले ही हमने, गीत कभी कोई गा नहीं पाए।

ओरों से तो मिलते क्या हम, खुद से खुद को मिला नहीं पाए।

घाव सहे नित, विश्वासघात के, खुद को, फिर भी सुधार न पाए,

सहयोग सभी का करते हैं हम, किसी को गले लगा नहीं पाए।।