मौत भी हमको नहीं डराती
शिकवा शिकायत का पल बीता।
जीवन रह गया रीता-रीता।
विश्वास घात ने विश्वास डिगाया,
मिलतीं नहीं अब सीता गीता।
किसी को कितना भी तुम चाहो!
प्रेम से कितना भी अवगाहो!
दिल हैं देखो! मशीन बन गए,
जीते रहो या तुम मर जाओ।
प्रेम नहीं अब पवित्र रह गया।
ऑनलाइन वह आज बिक गया।
लालच, लिप्सा और वासना,
धोखे का पर्याय रह गया।
तुमने भी तो वही किया है।
संबन्धों को नहीं जिया है।
प्रेम और विश्वास की खातिर,
हमने तो बस जहर पिया है।
धोखा खाकर शिकार बन गए।
शिकारी तुम, हम शिकार बन गए।
विश्वासघात की चोट तुम्हारी,
प्रेम और विश्वास मिट गए।
जीवन में अब आश नहीं है।
कोई अपना खास नहीं है।
जीवन पथ पर निपट अकेले,
कोई अपने पास नही है।
कर्म पथ हम आज भी चलते।
सपने नहीं अब सुनहरे पलते।
नहीं चाहिए साथ किसी का,
खुद से खुद को धोखे मिलते।
प्रेम का गान तुम अब भी गातीं।
प्रेम की हत्या कर, भरमातीं।
क्रूरता की हद पार कर गईं,
मौत भी हमको नहीं डराती।
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