Tuesday, April 19, 2022

जहाँ प्रेम का मरहम लगता

चोट सभी भर जाती हैं


 

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।

अंधकार की रात बीतती, चिढ़ियाँ फिर से गाती हैं।

इक दूजे का हित चिंतन।

नहीं रहा है कोई अकिंचन।

समर्पण, त्याग और प्रेम ही,

करता संबन्धों का मंचन।

विश्वास घात की चोट एक, सब मटियामेट कर जाती है।

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।

लोग प्रेम का गाना गाते।

खुद को ही हैं वे भरमाते।

अधिकारों के संघर्ष में ही,

टूट रहे सब रिश्ते नाते।

नर नारी को कोस रहा है, नारी खून कर जाती है।

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।

प्रेम नाम पर लूट रहे हैं।

लालच में बोल झूठ रहे हैं।

प्रेम जाल से शिकार कर रहे,

अपना कहकर कूट रहे हैं।

शिक्षित शातिर बनीं शिकारी, खुद ही खुद को भरमाती हैं।

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।

धन हित रिश्ता खोज रही हैं।

नित, संबन्धों को तोड़ रही हैं।

कानूनों के जाल में फंसकर,

नारी नर को छोड़ रही है।

प्रेम का मर्म नहीं तू जाने, बाजार में खुद को सजाती है।

जहाँ प्रेम का मरहम लगता, चोट सभी भर जाती हैं।।


No comments:

Post a Comment

आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.