तुम्ही को फबता है
रिश्ते बनाकर, धन यूँ कमाना, तुम्हीं को जँचता है।
रिश्ते की जड़ों में मट्ठा डालना, तुम्ही को फबता है।।
प्रेम नाम पर, चोट जो मारी, हर चोट पे हँसता है।
कीकर को कह आम, बेचना, तुम्हारी सफलता है।।
काली लुगाई की, काली कमाई, लोहा चमकता है।
पुरखों की यूँ जात बदलना, जग भी हँसता है।।
धन की खातिर, धोखे के रिश्ते, बाजार भी बचता है।
दिल की कालिमा, भतीजा लालिमा, धन यूँ कमता है।।
ऊसर को कह बाग, बेचना, तुम्हीं को सजता है।
किन्नर को यूँ रति समझकर, दिल यूँ मचलता है।।
तुम्हें याद कर, अब हर छलिया, छोटा लगता है।
तलवारों से हमको, अब कोई, घाव न लगता है।।
चोर, उचक्का, झूठा, छलिया, बुरा न लगता है।
तुम्हें याद कर, गिरगिट भी, हमें अच्छा लगता है।।
नफरत की यूँ रेखा खीचना, तुम्हीं को जँचता है।
दिल का इतना सस्ता बिकना, बुरा तो लगता है।।
कानूनों का घात, प्रेम पर, छल भी हँसता है।
रिश्ते की जड़ों में मट्ठा डालना, तुम्ही को फबता है।।
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