Wednesday, October 24, 2007

केरल यात्रा

मैं केरल से प्रेम करता हूँ । मुझे केरल व यहाँ के लोग बहुत पसंद हैं। मैं अक्सर यहाँ आना पसंद करता हूँ । यह अलग बात है कि यहाँ मुझे भाषा सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ता है यहाँ के लोग हिन्दी कम समझते हैं और मुझे मलयालम नहीं आती । काश! मैं मलयालम सीख पाता । कोई है यहाँ पर जो मुझे मलयालम सिखा कर अपना दोस्त बनाए। केरल संपूर्ण भारत के लिए मार्गदर्शक है। यहाँ की महान संस्कृति , कार्य संस्कृति , महिलाओं का राष्ट्र निर्माण मैं किया जाने वाला योगदान निश्चय ही देश के लिए अनुकरणीय है। शिक्षा के प्रसार से समाज को किस तरह बदला जा सकता है यह केरल के उदाहरण से सिखा जा सकता है। महिलाओं पर प्रतिबंधो कि आवश्यकता नहीं उनको आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। इस का सुन्दर उदाहरण केरल है। केरल मैं हिन्दी भाषा के प्रसार की आवश्यकता है ताकि शेष देश के लोग केरल से जुड़ सकें। शाकाहारी भोजनालयों का अभाव शाकाहारी व्यक्तियों के केरल आने में रुकावट डालता है।
केरल है कैसा मनभावन चारों ओर हरियाली छाई
नर-नारी मिल साथ चलें सब नहीं किसी मैं छोट बड़ाई।

Friday, October 19, 2007

सच्चा प्रायश्चित

मानव की सामान्य प्रवृत्ति है कि वह अपने द्वारा किये प्रत्येक विशष्ट कृत्य के लिए प्रशंसा या पुरूस्कार प्राप्त करना चाहता है। पुरुस्कार या प्रशंसा उसके कृत्य की ही नहीं , कर्ता की भी स्वीकृति है। प्रत्येक व्यक्ति पुरुष हो या महिला सामाजिक स्वीकृति या सम्मान की आकांक्षा रखता है। वे व्यक्ति भी जो धन, पद और संबंधों से मोह तोड़कर संन्यास ग्रहण कर चुके हैं, सम्मान ही नहीं ईश्वर की तरह पुजना पसंद करते हैं। सम्मान, पुरुस्कार, यश से मोह तोड़ना स्त्री/पुरुष , धन, पद से संबंध तोड़ने से दुष्कर कार्य है। श्रेष्ठ कृत्य के लिए पुरस्कार व कुकृत्य के लिए दंड व्यक्ति के उन्नयन व समाज के विकास में योग देतें है।
हम अच्छे कृत्य के लिए पुरस्कार की आकांक्षा तो रखते हैं, किन्तु कुकृत्य के लिए उत्तरदायी ठहराना पसंद नहीं करते। कुतर्क का सहारा लेकर कुकृत्य के लिए दूसरे को दायीत्वधीन ठहराने की कोशिश करते हैं। यदि उत्तरदायित्व टालने के हमारे प्रयास असफल रहते हैं तो माफी मांग कर दंड से बचने के प्रयास करते हैं। जिस प्रसन्नता के साथ सम्मान या पुरस्कार ग्रहण करते हैं, उसी प्रसन्नता के साथ निंदा तथा दंड को भी ग्रहण करना चाहिऐ। हमको माफी न मांग कर आगे बढकर दंड की मांग व ग्रहण करना चाहिऐ। माफी हमारी कमजोरी का प्रतीक है और कमजोरी को पुष्ट करती है, दंड ही कुकृत्य का परिमार्जन कर हमारा उन्नयन करके, हमारी आतंरिक व बाह्य शक्ति को पुष्ट करके, समाज के विकास को सुनुश्चित करता है। हमने निर्णय किया, क्रियान्वयन किया फिर उसके अच्छे या बुरे परिणामों को भी प्रसन्नता व स्वाभिमान के साथ स्वीकारने में हिचकिचाना नहीं चाहिऐ। कुकृत्य के लिए दंड का भोग करना ही सच्चा प्रायश्चित है, माफी मांगना नहीं।

Tuesday, October 16, 2007

माफी नहीं, दण्ड मांगें

हम कोई विशिष्ट कम करते हैं तो पुरुस्कार कि चाह रखते हैं । सबको पुरुस्कार प्रिय है किन्तु गलती होने पर या अपराध करने पर दंड की मांग कोई नहीं करता। दण्ड से बचने के लिए माफी मांगना सभी को पसंद आता है । माफी माँगते समय हम बिल्कुल भी लज्जा का अनुभव क्यों नहीं करते कुछ लोग तो माफी माँगने में सिद्ध हस्त होते हैं। हम जिस प्रकार पुरुस्कार मंगाते हैं, उसी प्रकार सानंद दंड कि मांग करनी चाहिऐ । तभी हम अपने आपके प्रति ईमानदार हो सकेंगे।

Saturday, October 13, 2007

हम सब चोर हैं

हम सभी चोर हैं । जो जितना बड़ा चोर है वह उतना ही ईमानदार दिखने की कोशिश करता है । हम दूसरो से जो चाहते हैं वह देने को तैयार नहीं हैं । हम जो मार्ग दिखाते हैं उस पर खुद नहीं चलते । यदि हम जो कहते हैं वही करे जो करते हैं वही बोलें तो विश्व में समस्याएं नहीं रहेंगी न। कथनी करनी में एकता रखने वाले मित्रों की मुझे आवश्यकता है और किसी गुन की जरुरत नही है । धन, पद , यश व संबंधों से निर्लिप्त रहने वाले व्यक्ति को दुनियां की कोई शक्ति डरा या झुका नही सकती। चोर भी यदि इन से लगाव छोड़कर सत्य बोले वह एक महान व्यक्ति बन सकता है.

Thursday, October 11, 2007

फोटो


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संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
जन्म तिथि ०३.०४.१९७१
शिक्षा एम्.कॉम,बी.एड.,एम.ए.,एल.एल.बी।
प्रकाशित पुस्तकें
१-मौत से जिजीविषा तक
२-बता देंगें ज़माने को
३-समर्पण
प्रकाश्य अनुभूतियाँ (निबंध संग्रह )

मीत

आज आओ मिल गले लगाए
सबको अपना मीत बनाए
कोई भले ही मीत बने ना
खुद को सबका मीत बनायें
चित्र भले ही हम ना पूजें
कथनी - करनी भेद मिटायें
कृत्रिमता को दूर भगा कर
नर नारायण बन दिखलाये।

नमस्कार

प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार
आज पहला दिन है । आपसे कल विचार विमर्श करेंगे ।