मनोज ने आदर्शो पर आधारित जीवन जीने का अहम् पाला हुआ था। उसके लिए सच्चाई, ईमानदारी व समाज की सेवा जीवन के उद्देश्य थे। उसे बनावटीपन व प्रदर्शन स्वीकार नहीं था। उसका विचार केवल विचार के लिए नहीं था, उसे कार्यरूप में परिणत करने के लिए था। वह सोचता था कि यदि किसी विचार को कार्यरूप में परिणत नहीं किया जा सकता तो वह विचार नहीं प्रारंभ से ही एक झूठ है। ऐसे झूठे विचारों को तो प्रारंभ में ही त्याग देना चाहिए। लगभग तीन वर्ष तक तो उसने एक राष्ट्रªीय स्तर के सामाजिक संगठन में पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य भी किया था। बाद में उस संगठन की राजनीतिक गतिविधियों से असंतुष्ट होकर शिक्षा को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया। मनोज के लिए शिक्षा आजीविका का साधन मात्र नहीं थी। वरन् सामाजिक परिवर्तन का आधार थी। उसके विचार में स्वास्थ्य व शिक्षा ही मानव की सबसे बड़ी संपत्ति थी। अतः उसने अपने जीवन का आधार ही शिक्षा और स्वास्थ्य को बना लिया। वह कई सामाजिक संगठनों से जुड़ा रहा था। उसने अपने लिए अलग से सामजिक संगठन बनाने का भी प्रयास किया था। अपनी विशिष्ट सोच के कारण ही शादी करने में उसकी कोई रूचि नहीं थी। उसे लगता था कि कोई स्त्री उसके जीवनपथ की पथिक बनना पसंद नहीं करेगी। उसके घर वाले शादी के लिए जोर देते तो वह स्पष्ट रूप से इंकार कर देता। अपनी विशिष्ट सोच के कारण ही दया करके एक स्त्री को पत्नी के अधिकार दे दिये और यह विचार नहीं किया कि उसके क्या परिणाम हो सकते हैं? वास्तव में पति-पत्नी एक दूसरे की ताकत या कमजोरी होते हैं। अतः इनका चयन अत्यन्त सावधानी के साथ होना चाहिए। अपने समुदाय से अपनी परंपराओं के अनुसार की गयी शादी कम जोखिमपूर्ण हो सकती है किन्तु वह भी सफल होगी, इसकी कोई गारण्टी नहीं हो सकती। केवल भावनाओं में आकर शीध्रता में इस सन्दर्भ में लिए गये निर्णय आत्मघाती सिद्ध हो सकते हैं। मनोज के साथ भी ऐसा ही हुआ था। उसने शादी करके अपने लिए जीवनसंगिनी प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया था। वास्तव में उसने शादी के लिए कोई प्रयास किया ही नहीं था। उसने पत्नी के पद को उपहार में दे दिया था।
कुप्रथाओं व अनावश्यक परंपराओं का मनोज घोर विरोधी था। कुप्रथाओं का उसके जीवन में कोई स्थान नहीं था। अनावश्यक परंपराओं को तोड़ने में उसे विशेष आनन्द आता था। इस सन्दर्भ में उसने समाज के दबाब को कभी नहीं माना। यही कारण था कि मनोज ने शादी नहीं की थी किंतु जब उसकी मुलाकात ऐसी महिला से हुई जो जीवन से निराश हो चुकी थी। जिसका कोई ठिकाना नहीं था। जिसके घर वालों ने उसे एक आश्रम में जाने के लिए मुक्त कर दिया था। मनोज ने उस महिला से आत्मनिर्भर बनने व पढ़ाई करने का अनुरोध करते हुए उसे उसके इस कार्य में सहयोग करने का आश्वासन दिया। इस सहयोग के क्रम में महिला के प्रस्ताव पर मनोज ने उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था। लोग गलतफहमी में इस शादी को लवमैरिज की संज्ञा दे देते थे। लेकिन ऐसा बिल्कुल न था। इस प्रकार की शादी के लिए परंपरागत विवाह प्रणाली में कोई शब्द ही नहीं मिलता। वास्तव में दया करके पत्नी के अधिकारों को उपहार में दे दिया गया था। वर्तमान में लोग अधिकार ही प्राप्त करते हैं कर्तव्य तो स्वीकार ही नहीं करते। मनोज के साथ भी यही हुआ। उसकी वह पत्नी अधिकारों के प्रति जागरूक होती गयी किंतु अपने कर्तव्य कभी स्वीकार नहीं किये।
वास्तव में यह दया करके सहयोग के लिए की गई शादी थी। मनोज को उस महिला से कुछ भी प्राप्त करने की कामना नहीं थी। मनोज तो उसे केवल देना ही चाहता था। लेकिन क्या देना चाहता था? रूपये, वस्त्राभूषण या अन्य कोई धन संपत्ति नहीं। क्योंकि इन चीजों को मनोज ने कभी कोई महत्व ही नहीं दिया था। मनोज ने जीवन में शिक्षा और स्वास्थ्य को अपनी प्राथमिकताओं में रखा था। मनोज ने इन्हीं दोनों के प्रति जागरूक करके उसे समर्थ और सक्षम बनाने का प्रयास किया। किन्तु वह महिला शादी के बाद ही मनोज को उसके आदर्शो से हटाकर सामान्य व्यक्ति की तरह स्वार्थ पूर्ण गतिविधियों तक सीमित करने की कोशिश करने लगी। मनोज को जिस रास्ते पर चलते हुए वह मिली थी, उस रास्ते पर चलने से रोकने का प्रयास करने लगी। मनोज को अपने जीवन पथ से हटना कतई मंजूर न था। अतः उस महिला के साथ जीवनसाथी के रूप में चलते रहना संभव ही न था। 5 वर्ष के लम्बे विचार-विमर्श और लगभग 2 वर्ष की कानूनी प्रक्रिया के बाद मनोज का उस महिला से तलाक हो गया।