Wednesday, April 29, 2015

कुछ तुम करके दिखलाओ

भाषण से ना काम चलेगा, कुछ तुम करके दिखलाओ।

जग को तो बदलोगे कैसे? खुद को बदल के दिखलाओ।

पाप-पुण्य का फेर छोड़ दो।

धर्म-अधर्म की बेड़ी तोड़ दो।

यश की इच्छा छोड़ के प्यारे,

जीवन की ही दिशा मोड़़ दो।

देवताओं को करो किनारे, मानव बनकर तुम दिखलाओ।

भाषण से ना काम चलेगा, कुछ तुम करके दिखलाओ।

कर्म हेतु ही कर्म करो तुम,

फल को छोड़ों स्वयं फलो तुम

द्रष्टा बनकर खुद को देखो,

ईश्वर की ना चाह करो तुम।

पद और पदक न बने सहारे, सहारा बनकर दिखलाओ।

भाषण से ना काम चलेगा, कुछ तुम करके दिखलाओ।

क्या है मेरा? क्या है तेरा?

कब तक अपना रहेगा डेरा?

वही मुक्त जो तथ्य को समझे,

बनाया खुद ही तुमने घेरा।

एक नहीं सब ही हैं अपने, सबका बनकर दिखलाओ।

भाषण से ना काम चलेगा, कुछ तुम करके दिखलाओ।

त्याग का केवल ढोंग रचाते

बदले में तुम महानता पाते।

अपेक्षा सबसे कितनी पालीं,

उपेक्षा को ना क्यूँ गले लगाते।

राष्ट्रप्रेमी हर राष्ट्र तुम्हारा, घट-घट बस कर दिखलाओ।

भाषण से ना काम चलेगा, कुछ तुम करके दिखलाओ।

अकड़ तो मुर्दे में भी होती है

                                            रोशनी विश्वकर्मा


हे मानव मन .

ना इतरा इतना की,

जिंदगी बहुत छोटी है .

पर अभी चलना भी  तो  है ,

बहुत दूर हमें चले जाना है ,

इसलिए जिंदगी से ना तो गिला है 

ना है कोई शिकवा .

पर थोड़ी सी ,

हैरान परेशान हूँ कुछ  इस तरह 

भूल जातें है लोग कोई ,

जिस दर्द से वो गुजर आतें है.

जाने क्यों ?

वही दर्द दूसरों को दे जातें है .

किसी की तमन्नाओं  की लाश पर , 

अपनी खुशियों की सेज़ बिछाते  है .

जाने क्यों अकड़ते है इतनी ,

की भूल ही जातें है ,

अकड़ तो मुर्दे में भी होती है,

मगर वो बेजान होते है 

Tuesday, April 28, 2015

दिल की रीत

उस और जाना क्यों ?

                          रौशनी विश्वकर्मा 


दिल की रीत 

कैसी है ये दिल की रीत ,

 ना समझे है कोई बात .

धड़के है उसके लिए , 

जिसके हिया में बसे है कोई और,

समझाने से न समझे है ,

 रे पागल मनवा .

अनजाने में छोड़ चुके जिस गली को ,

उस और जाना क्यों ?

कहता है दिल उस और छूट गया है,

मेरा कोई कीमती सामान ,

मेरा कोई अपना .

लेकिन मैंने दिल से कहा ,

बंद कर अपना ये धड़कना ,

इसे सुननेवाला नहीं कोई 

वहां किसी और का है शोर I 

Thursday, April 23, 2015

बगियों में भी सुगन्ध तुम्हारी

दुनियाँ में बस तुम्हीं हसीं हो,

अन्तरतम् में तुम्हीं बसी हो।

बगियों में भी सुगन्ध तुम्हारी,

तुम ही देखो कली हसीं हो।

चमक रहे ये गगन में तारे,

मध्य चाँद के तुम्हीं बसी हो।

सागर में नदियाँ हैं मिलती,

लहरों में तो तुम्हीं बसी हो।

तुम्हें छोड़ हम कहाँ जायेंगे,

रक्त बूँद में तुम्हीं बसी हो।

उन्हे ना आना था ना आयेंगे

मुझसे दूर चले गये 


      रोशनी विश्वकर्मा




हमने भी ढूंढा था .
प्यारा प्यारा सा एक मन मीत.
मेरी आवाज़ सुनकर जागता था वो.
जो नाराज़ हो जाऊँ मैं मनाता था वो.
जो वो नाराज़ होता मना लेती मैं.
एक दूजे के गुण अवगुण जोड़ते घटाते, 
कब एक दूजे के दिल तक पहुँचे 
समझ ही ना पायें.
दोनो एक दूजे के धड़कन बनते 
बढाये थे क़दम एक दूजे की तरफ़,
दो कदम उसके थे दो कदम मेरे थे 
कब मेरे कदम मिले उनके कदमों से,
था इंतजार इसका
कब सुने मेरी चलती सांसों के सरसराहट, 
था इंतजार इसका 
अचानक कब मुड़े उनके कदम 
मै समझ ही नही पायी 
आवाज़ दी मगर सुनी नही 
सोचा एक बार तो मुड़ कर 
देखेंगे 
मगर ऐसा नही हुआ
बिना मेरी खता बताये 
मुझसे दूर चले गये 
आज भी खड़ी हूँ इंतजार में 
जानते हुये कि वे किसी और के हैं 
उन्हे ना आना था ना आयेंगे 

Wednesday, April 22, 2015

प्रेमी संग कविता सोती है

टूटे दिल से निकले कविता


टूटे दिल से निकले कविता, दिल की कसक कोमल होती है।
संयोग काल में समय न मिलता, प्रेमी संग कविता सोती है।
विश्वास खून जब यहाँ हुआ था,
महसूसा किया जब फटा हिया था
फोटो सेशन वहाँ था होता,
विश्वास कैसे? तब यहाँ जिया था।
हँसते होंगे आप तो तब भी, आत्मा हमारी आज भी रोती है।
टूटे दिल से निकले कविता, दिल की कसक कोमल होती है।।
आत्मा के जब फटे आवरण,
मुक्ति की चाहत जबती है।
आवरण रहित आत्मा ही तो,
सीप है, जो मोती सेती है।
इच्छाओं के आँगन में तो काँटों की महफिल सजती है।
टूटे दिल से निकले कविता, दिल की कसक कोमल होती है।
हमने सजायी प्यार की महफिल,
इच्छाओं के हाथी ने रौदा,
हमने प्यारा मित्र था खोजा,
उधर से बस हो रहा था सोदा।
कैसे सजाऊँँ? फिर से  महफिल! जगते हम दुनिया सोती है।
टूटे दिल से निकले कविता, दिल की कसक कोमल होती है।

Tuesday, April 21, 2015

ना जाने कब कोई आ कर

टूटे दिल से नही बनती कोई कविता


                  रोशनी विश्वकर्मा




टूटे दिल से नही बनती कोई कविता,

नही जमती रंगों छंदों अलंकारों की महफिल.


विश्वास के टूटे तारों से नही सीलती 


आत्मा के फटे आवरण,


पर कटे परिंदे की तरह


बैठी हूँ मरी इच्छाओं के आँगन में,


जुटा नही पाती हिम्मत 


फ़िर से उड़ने की खुले आसमान में,


डर बैठा है कुंडली मारे,


ना जाने कब कोई आ कर,


फ़िर से पर काट ले जाये 


कर दे लहू लूहान इस कदर,


जनाजे के लिये भी कुछ ना बचे.

नए दौर में बढ़कर लिख लें नई कहानी

छोड़े कल की बातें


छोड़े कल की बातें, कल की बात पुरानी।

नए दौर में बढ़कर  लिख लें नई कहानी।।


बीत गया,  जो बीत गया,  पछताने का ना कोई मतलब।

कहा-सुना बहुत आज तक, दुहराने का ना कोई मतलब।

भिन्न राह के राही हैं हम, वायदों का,  ना कोई मतलब।

समय मिला, अवसर चूके, पछताने का ना कोई मतलब।

राष्ट्रप्रेमी अब आगे बढ़ता, साथ  चले जो वही है रानी।

                     छोड़े कल की बातें, कल की बात पुरानी।


बातों के थे शेर हम केवल, अवसर था, नहीं मिल पाये।

काम-काज का अवसर था जो, हमने केवल गाल बजाये।

वादे मिलन के किए बहुत थे, अवसर पाया पीछे धाये।

पवित्र भाव को अपवित्र समझ, मित्र आपने हम ठुकराये।

काँटों को हम गले लगाते, आप हैं कुसुमों की महारानी।

                      छोड़े कल की बातें, कल की बात पुरानी।


विदा की बेला, विदा करो, शुभकामनाएँ  स्वीकार हमारी।

मन का मीत मिले आपको, जग में पाओ  शोभा न्यारी।

साहस, प्रेम, आत्मविश्वास से, महके तुम्हारी जीवन क्यारी।

पीड़ाएँ सब हमको दे दो, आपको मिले बस सुख की यारी।

राष्ट्रप्रेमी की कठिन डगर है, आप बनें बस सुखों की रानी।

                       छोड़े कल की बातें, कल की बात पुरानी।

Monday, April 20, 2015

आप गये हम अस्त हो गये

पथ के पथिक थे परिचित हो गये,

मन मिलने से हम हर्षित हो गये।

चन्द कदम था साथ हमारा,

चौराहे से ही जुदा हो गये।

राह में देखी थी एक बगिया,

सुगन्ध से उसकी मस्त हो गये।

सपने देखे साथ रहें मिल,

आप गये हम अस्त हो गये।

आप हमें कैसे भूल सकोगे?

हम कविता में व्यस्त हो गये।

Saturday, April 18, 2015

वो लोग करें मुहब्बत की बातें

वो लोग करें मुहब्बत की बातें, जो नहीं अपना वायदा निभाते है।
बिजनिस के लिये घूमते अक्सर, पर नहीं प्रेम के पास जाते हैं।+
जो करते हैं बहुत बड़ी-बड़ी बातें, पर समय का नहीं ख्याल रख पाते हैं।
पुकारे थे आपको ही जानेमन, ठुकराया, इसलिये दूर जाते हैं।

Friday, April 17, 2015

हमारी सांसों से भी आपकी यदि, खुशियाँ कम होती हों।


रंगीनी नहीं जिन्दगी में दिखता नहीं सपना है।

संगिनी ने साथ छोड़ा, कोई दिखता नहीं अपना है।

जिन्दगी धूप मरुस्थल की, स्नेह नीर नहीं आसपास।

इस तपते पथ में पथिक तुझे, अब अकेले ही तपना है।

पल में भूल जायें आप हमें, होगा सरल आपके लिए।

हमें तो पल-क्षण-निमिश क्या? युगों आपका नाम जपना है।

हमारी सांसों से भी आपकी यदि, खुशियाँ कम होती हों।

सौंपतें हैं ये थाती आपकी, हमारे गमों का नहीं नपना है।

जब भी आवाज दोगी हमें, हम खड़ें मिलेंगे आपके दर पर।

गलती नहीं थी, न है, आपकी, ये तो हमारा ही बचपना है।

Tuesday, April 14, 2015

जीवन का उपवन

जीवन का उपवन

लगता है मधुवन

मिलता हो प्रेम

साथ में हो हमदम।


जीवन का उपवन

लगता है गुमशुम

मुष्किलों से डर के,

भागे आप दबा के दुम।

Sunday, April 5, 2015

हाल तुम्हारा पाऊँ किस ठोर

सपने में भी नहीं दिखती आप


सपने में भी नहीं दिखती आप

मुरझाया वो चाँद दिखा दो,

बादलों में छिप जाना आप।


टूटी नहीं हमारी आस

घोड़ी नहीं हमारे पास

फिर भी खोद रहे हम घास।


मरूस्थल में भी दादुर मोर

नीर नहीं हैं मचाये शोर

 हाल तुम्हारा पाऊँ किस ठोर।

Thursday, April 2, 2015

जीवन क्या है?

समझ न पाये



जीवन क्या है? समझ न पाये,

जो भी किया नहीं पछताये।

आपकी यादों में हम जीते,

करतीं क्या हो? जान न पाये।


अवकाशों में खेलो, खाओ,

पिय की बाँहों में सो जाओ।

हम तो केवल सपने देखें,

आज नहीं तो कल मिल जाओ।


आपने भी तो मित्र कहा था,

बड़े प्रेम से हस्त गहा था।

प्रेम नहीं अब क्यों कहती हो?

नयनों से क्यूँ अश्रु बहा था?


मजबूरी का जीवन कैसा?

पशु रस्सी से बँधा हो जैसा।

अपने मन को मुक्त करो,

बतलाना फिर लगता कैसा?

नहीं रह सकता जिन्दा

प्रेम वहाँ



ईर्ष्या,

छल, छद्म,

कपट, धोखा,

अहम्, जिद

स्वार्थ,

रहते जहाँ,

चलती 

घातें-प्रतिघातें

नहीं रह सकता जिन्दा

प्रेम वहाँ।

ये कैसी रीति चलाये बैठे हो

आप ही दूर हुये बैठे हैं 

                                                 

              रोशनी विश्वकर्मा, जमशेदपुर, झारखण्ड


हम तुमसे नही ऐंठें है 

आप ही दूर हुये बैठे हैं 


ये कैसी रीति बनाये हो 


मुझे मनाते मानते 


खुद ही रूठे बैठे हो 


खींच ले गये मुझे अपने 


गलियारे तक 


पर बन्द रखा दरवाजा 


बिना मुझे देखे 


बिना मुझसे मिले 


छोड बैठे गली के कोने में 

कम से कम इतना तो करते 


झरोखा ही खुला छोड़ देते 


झाँक लेती मैं भी अंदर


दे पाती आवाज़ , पर 


भला बताओ तो 


चीत भी आप पट भी आप 


ये कैसी रीति चलाये बैठे हो.