Tuesday, February 24, 2009

निबंध संग्रह "चिंता छोडो सुख से नाता जोड़ों" प्रकाशित


निबंध-संग्रह "चिंता छोडो सुख से नाता जोड़ों" प्रकाशित

















`चिन्ता छोड़ो सुख से नाता जोड़ो´ निबंध संग्रह
प्रकाशन वर्ष : 2009 पृष्ठ : 144 मूल्य 150
प्रकाशक : उद्योग नगर प्रकाशन, 695, न्यूकोट गांव, जी।टी.रोड, गाजियाबाद-२०१००१











यह संग्रह प्रकाशन क्रम में चौथी पुस्तक है। इससे पूर्व तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इस संग्रह में कुल 22 निबंध संग्रहीत हैं। लेखन मेरा व्यवसाय नहीं है और न ही शौक है। जीवन में जो वास्तविकताएँ आती हैं, जो संघर्ष करने पड़ते हैं, जो करता हूँ उसी को लिखा है। कथनी-करनी में एकता व पारदर्शिता मैं जीवन व साहित्य के लिए अनिवार्य मानता हूँ। अत: जो भोगा है, वही लिखा है।

अपनी बात

`मौत से जिजीविषा तक´, `बता देंगे जमाने को´ व `समर्पण´ काव्य संग्रहों के बाद प्रस्तुत है आपके हाथों में मेरा प्रथम निबंध संग्रह `चिन्ता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो´। मैं साहित्य सेवा या देशसेवा का अहम् नहीं पालता। साहित्य-सेवा, देश-सेवा या समाज सुधार ऐसी निरर्थक अवधारणा हैं कि व्यक्ति झूँठे अहम् में जीता है। वास्तव में समाज में कोई सुधार नहीं हो सकता। समाज को सुधरने की आवश्यकता भी नहीं है, सुधरने की आवश्यकता है व्यक्ति को। हम अपने आप को सुधार लें यही बहुत बड़ी बात है। जब से मानव जीवन का इतिहास मिलता है, अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिन्हें हमनें अवतार, पैगम्बर, कामिल-पीर, ईश्वर-पुत्र या ईश्वर का नाम दिया है। उन्होंने समाज में अथक प्रयास किए किन्तु समस्याएँ कभी भी समाप्त नहीं हुईं और न ही समाप्त होंगी।
स्रष्टि विविधता पूर्ण है। इसमें न्याय-अन्याय, सत्य-असत्य, ईमानदारी-बेईमानी, सभी कुछ रहने वाला है। न तो अन्याय को मिटाया जा सकता और न ही न्याय को मिटाया जाना संभव है। सत्य भी रहेगा और असत्य भी, हाँ, हमारी जागरूकता के आधार पर देश व काल के क्रम में मात्रा भिन्न-भिन्न हो सकती है। हम समाज को नहीं बदल सकते, जीवन रूपी खेल में अपना पाला चुन सकते हैं। हमें स्वयं के लिए तय कर लेना चाहिए कि सत्य के साथ रहना है या असत्य के।
अपनी रचनाओं के माध्यम से मैं किसी भी प्रकार के परिवर्तन की अपेक्षा नहीं रखता। एक समय था कि मेरी धारणा बनी थी कि साहित्य से कोई परिवर्तन होता नहीं दिखता और मैंने रचना लिखना ही बन्द कर दिया था। अयोध्या संवाद के संपादक श्री शरद शर्मा द्वारा रचनाओं की माँग करने से यह कार्य पुन: प्रारंभ हो गया।
वास्तविकता यह है कि मैं सृजन कार्य धर्म, अर्थ, काम या मोक्ष के लिए नहीं करता। यश के लिए भी काम करना मैं उपयुक्त नहीं मानता। हाँ, अपनी निजी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करके आत्मिक शान्ति का अनुभव होता है। उसी क्रम में प्रस्तुत हैं मेरा प्रथम निबंध संग्रह - `चिन्ता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ों´।
इस पुस्तक को इस रूप में लाने में जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष योगदान दिया है उन सभी का आभारी हूँ। श्रीमती सरोज शर्मा (टी।जी.टी.हिन्दी, कुचामन) का वर्तनी सुधार के लिए तथा श्री सुरेश जागिड़ `उदय´ कैथल का मैं विशेष आभारी हूँ जिन्होंने अपने बहुमूल्य सुझावों द्वारा इसके कलेवर में सुधार सुझाये।

दिनांक 3।10।2008 संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी