Wednesday, April 30, 2008

यहाँ वही है हंसता दिखता

स्वार्थ ही हमको नित्य रुलाता, स्वार्थ ही नित तड़फाता है।

यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।

तू काँटों को फूल समझ ले,

आग को ही तू कूल समझ ले

भूल हुई जो सुधर न सकती,

खुशियाँ अपनी धूल समझ ले।

जो भी बनता साथी यहाँ पर, रस लेकर उड़ जाता है।

यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।

हँसने वाले मिलेंगें बहुत

चंद क्षणो को साथ चलेंगे।

सुविधा जब तक दे पाए

साथ में तेरे चलते रहेगें।

जिसको तेरी चाहत होती, उसको नहीं तू भाता है।

यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।

मृत्यु मित्र है, आनी ही है,

प्रेम से गले लगानी ही है

स्वार्थ-दहेज की आकांक्षा क्यों?

मृत्यु-प्रेयसी पानी ही है।

दुनिया में जो प्रेम ढूढ़ता, अश्रु वही छलकाता है।

यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।

Thursday, April 24, 2008

रोता नभ ?

रोता नभ ?

रोता नभ है, पृथ्वी रोती, सागर भी व्याकुल रोता है।

प्रकृति का कण-कण, रोकर भी आशा का अंकुर बोता है।।

मुस्कान सभी को नहीं मिल पाती,

खुशियाँ नहीं किसी की थाती।

व्याकुलता हर उर में बसती,

नहीं मिले चाहत मदमाती।

कोयल अपना रोना गाती, मयूर नृत्य कर रोता है।

प्रकृति का कण-कण, रोकर भी आशा का अंकुर बोता है।।

जिन्दा जब , तक जीना होगा

अमी नहीं, विष पीना होगा।

जहाँ -जहाँ, रोतीं मुस्कानें,

रोकर भी मुस्काना होगा।

भव-सागर में प्रेम ही मोती, चुगने को लगा ले, गोता है।

प्रकृति का कण-कण, रोकर भी आशा का अंकुर बोता है।।

Tuesday, April 22, 2008

संतोषी सदा सुखी

एक मुकुन्दपुर नाम का एक गॉव था। गॉव के पास ही एक कच्ची सड़क थी वह सड़क ही मुख्यत: वहा¡ से आने जाने का एक साधन थी। उसी गॉव में राधा नाम की एक औरत रहती थी, बेचारी के एक बेटा था। वह दिन भर कड़ा परिश्रम करती तब जाकर खाने पीने की व्यवस्था कर पाती। खाने-पीने के बाद धन बचाकर बच्चे की पढ़ाई में लगा देती। इसी प्रकार मेहनत करके उसने अपने बेटे को हाईस्कूल करा दिया था। उसके बेटे का नाम था रमेश। रमेश भी पढ़ने में मेहनती था अत: वह चाहती थी कि उसका बेटा खूब पढ़े और एक बड़ा आदमी बने।रमेश को पढ़ाने के लिये राधा ने और अधिक काम करना प्रारम्भ किया और जैसे तैसे रमेश को पढ़ने के लिये शहर भेज दिया। रमेश शहर में जाकर कालेज में पढ़ने लगा। उसकी मा¡ महीने के महीने पैसे भेज देती। इसी प्रकार रमेश ने बीण्एण् किया और एक दिन उसकी नौकरी भी लग गयी।राधा को जब यह पता लगा रमेश की नौकरी लग गयी है उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। अब उसके सपने पूरे होने का समय जो आया था।

वह सोच रही थी कि अपने बेटे की धूमधाम से शादी करेगी। घर में एक बहू आयेगी तो उसे भी कुछ आराम मिलेगा। राधा एक दिन बैठी पड़ोसिन से बातें कर रही थी कि उसका बेटा कितना अच्छा है? नौकरी लग गयी है---------आदि। उसी समय डाकिया ने उसको एक पत्र दिया जो रमेश का ही था उसमें लिखा था, ``मा¡ मैनें अपने साथ की एक खूबसूरत लड़की से शादी कर ली है।´´ तुम इस बारे में न सोचना। पत्र पढ़ते-2 बेचारी राधा का तो दिल ही टूट गया। बुढ्डी हो गयी जिसकी आशा में उसके भी यही हाल। अब तो बेचारी राधा काम करने लायक भी नहीं रही। क्या करेगी वह। वह कई दिन तक अपने घर में बैठी-2 रोती रहती कई दिन तो घर से बाहर भी न निकली। उसके चार-पा¡च दिन तो बीत गये बिना कुछ खाये पीये।

एक दिन एक साधू भिक्षा मा¡गते-2 आया तो उसने बुढ्ढी को रोते हुये देखा। साधू ने राधा से पूछा कि वह क्यों रो रही है तो उसने उसे सारा दुख कह सुनाया। साधू ने कहा, ``धीरज रखो रोने से क्या होगा,´´ सन्तोष रखो सन्तोषी सदैव सुखी रहता है। यह कहकर वह चला गया। साधू के चले जाने पर वह गा¡व से बाहर सड़क के किनारे झोंपड़ी में रहने लगी। वह वहा¡ से गुजरने वालों को पानी पिलाती। कुछ समय बाद वह स्थान ही प्याऊ के नाम से मशहूर हो गयी। उसे सभी प्याऊ वाली अम्मा कहकर पुकारते वह उसे वहीं खाना दे जाते। वह अब सुखी थी चिन्ता मुक्त थी। वह सभी से कहती बेटा ``सन्तोषी सदा सुखी´´

Tuesday, April 15, 2008

का वर्षा जब कृषि सुखाने?

का वर्षा जब कृषि सुखाने

आशा का पांच वर्ष का साथ था उसके साथ, वह उसे बहुत प्यार करती थी। कितना चाहती थी वह गोविन्द को। गोविन्द ही तो उसका सब कुछ था मित्र, साथी, प्रेमी कौन था गोविन्द के सिवा जिसको आशा अपना समझती। जिस समय कॉलेज में प्रवेश लिया था तो गोविन्द से ही उसे सहारा मिला था कॉलेज में पढ़़ने का। वह ऊबने लगी थी कॉलेज की जिन्दगी से, अगर गोविन्द सही समय पर उसे न मिला होता तो वह कॉलेज छोड़कर चली गयी होती घर वापस । वही गोविन्द, जिसने उसे सबसे अधिक चाहा था, वही गोविन्द जो उसकी आ¡खों का तारा था, आज उसे अच्छा नहीं लग रहा था किन्तु फिर भी वह उसे नहीं भुला पा रही थी। वह सोच रही थी क्या यही वह गोविन्द है जिसने उससे वायदा किया जीवन भर साथ देने का। आज उसने ही कह दिया था कि तुम्हारी हैसियत मेरे लायक नहीं है। क्यों नहीं हू¡ मैं गोविन्द के लायक, क्या कमी है मुझमें? रूप-----रंग--शिक्षा सभी कुछ तो है मेरे पास ! क्या पैसा ही सब कुछ होता है? वह पूरी रात रोती विलखती रही थी कि क्यों नहीं हो सकती मैं गोविन्द के लायक? और उसने निश्चय किया था कि वह गोविन्द की हैसियत के लायक बनेगी। खूब मेहनत करेगी। खूब कमायेगी पैसा और क्या चाहिये उसे? कहा¡-कहा¡ नहीं भटकी वह नौकरी की तलाश में, कितनी कम्पनियों, फैिक्ट्रयों में दिये थे इन्टरव्यू आशा ने। किन्तु आशा को कहीं से भी आशा नहीं मिली, केवल निराशा ही हाथ लगती उसको किन्तु आशा हार मानने वाली नहीं थी। वह ढं़ूढ़ती रही नौकरी और उसे आखिर मिल गयीण् एक स्कूल में मास्टरी की नौकरी। वह परिश्रम पूर्वक स्कूल में पढ़ाती बच्चों को। केवल नौकरी से ही सन्तोष नहीं हुआ आशा को। स्कूल समय के बाद और पहले वह अपने कमरे पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। बड़ी ही व्यस्त थी आशा। सुबह चार बजे उठना, चाय पीकर पा¡च बजे से पढ़ाना शुरू कर देती बच्चों को। पा¡च बजे से 9 बजे तक लगातार पढ़ाती रहती थी। और दस बजे से पा¡च बजे तक का स्कूल, फिर रात के दस बजे तक ट्यूशन। आशा जैसे पागल हो गयी थी। पैसा केवल पैसा ही से प्यार था आशा को। अब उसने अपना एक लैट खरीद लिया था, जिसमें वह उसके माता-पिता तीनों रहते थे किन्तु आशा की व्यस्तता में कोई कमी न थी। आशा के माता-पिता बड़ी चिन्ता करते थे उसकी शादी के बारे में, किन्तु वह तो कुछ सुनती ही न थी। उसे कार जो खरीदनी थी गोविन्द की हैसियत की बराबरी करने को। आज आशा बहुत प्रसन्न थी। आज वह नयी कार खरीदकर लायी थी। आज वह अपने को गोविन्द की हैसियत का पाकर बड़ी प्रसन्न थी। वह कार लेकर सीधे लैट पर गयी, माताजी ने भोजन करने के लिये कहा तो इन्कार कर दिया क्योंकि आज तो उसे भूख ही न थी। वह तैयार होकर सीधी गोविन्द के लैट पर पहु¡ची तो सन्न रह गयी जब उसने यह सुना कि गोविन्द यह लैट बेचकर पीछे गली में एक छोटे से मकान में पहु¡च गया है। वह पता लेकर वहा¡ गयी तो दरवाजा गोविन्द ने ही खोला। वह आशा को देखकर चौंक पड़ा। गोविन्द की शादी हो चुकने के तीन वषZ बाद उसकी पत्नी ने उसकी उदासीनता के कारण तलाक ले लिया। माता पिता का देहान्त हो गया था। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण लैट बेचना पड़ा। वह इस दुविधा में अकेला रह गया था। पछता रहा था अपने बीते हुये कल पर। वह आशा की याद में घुट रहा था। आज आशा को देखकर चौंक पड़ा किन्तु आज आशा को पहली बार आभास हुआ था कि वह शादी की अवस्था पार कर चुकी है। जिसके लिये वह इतनी मेहनत कर रही थी उसको पाया किन्तु ``का वषाZ जब कृषि सुखाने।´´

Saturday, April 12, 2008

शिक्षक

शिक्षक
गुरू पद छोड़ा मास्टर बन गये, शिक्षा को कैसे पहचानें।
शिक्षक तो बन जाते हम सब, पर शिक्षा का मर्म न जानें।।
काम,क्रोध,पद,लिप्सा से घिर,अपने मन को कलुषित करते।
शिक्षा को व्यवसाय बनाकर,सरस्वती को नंगा करते।।
शिक्षा तो संस्कारित करती, संस्कारों को ये क्या जानें?
शिक्षक तो बन जाते हम सब, पर शिक्षा का मर्म न जानें।।
शिक्षक का पद पाकर के,वणिकों की बुद्धि अपनाते।
बच्चों के खाने को आता, कमीशन खाया,घर म¡गवाते।
असत्य भ्रष्टता स्वार्थों से घिर,व्यक्तित्व विकास,ये क्या जाने?
शिक्षक तो बन जाते हम सब, पर शिक्षा का मर्म न जानें।।
छात्रों को शिक्षा दे पाते,नव निर्माण कर वे दिखलाते।
त्याग बिना जो भोग करें नित,मानव वंश का दंश बढ़ाते।
पहले खुद को शिक्षित कर लें, शिक्षार्थी भी खुद को मानें।
शिक्षक तो बन जाते हम सब पर शिक्षा का मर्म न जानें।।

Tuesday, April 1, 2008

दहेज-पहला पति

दहेज-पहला पति

रमेश कार्यालय में काम करते-करते थक गया था। थकान भी स्वभाविक एवं नियमित होने वाली थी क्योंकि कार्यालय की आठ घन्टे की डयूटी थकान तो पैदा करेगी ही। रमेश ने अपने दरवाजे पर आते ही घन्टी बजायी। वह काफी समय प्रतीक्षा करता रहा किन्तु अन्दर से कोई हलचल नहीं हुई। पुन: घन्टी बजाने पर उमा ने कहा, `पिछला दरवाजा खुला है, पीछे होकर आ जाओ। रमेश पीछे के दरवाजे में से होकर अन्दर पहु¡चा तो उमा पलंग पर लेटी-2 पत्रिका पढ़ने में मशगूल थी मानो उसे रमेश के आने की जानकारी ही न हो। रमेश ने कपड़े उतारे, जूतों के तस्मे खोलकर जूते उतार दिये एवं कपड़े पहनने के लिये कपड़े खोजकर बाथरूम में घुस गया। कपड़े बदलने के बाद पानी पीकर उमा के पास पहु¡चा तो उसे देखकर उमा ने कहा, किचिन में खाना रखा है जाकर खालो। वह चुपचाप खाना खाने चला गया। रमेश व उमा की शादी लगभग दो वषZ पूर्व दिसम्बर में हुई थी। उमा के पिता ने रमेश के पिताजी को एक लाख रूपये नकद एवं अन्य भौतिक सुख-सुविधा का सामान दिया था। शादी के बाद से ही उमा ने कभी भी रमेश को महत्व नहीं दिया । प्रारम्भ में तो रमेश ने उमा की उदासीनता को उसका संकोच समझा था कि उसकी पत्नी का पहला पति होकर वह न होकर उसके पिता द्वारा दिया गया दहेज है।