Wednesday, April 30, 2008

यहाँ वही है हंसता दिखता

स्वार्थ ही हमको नित्य रुलाता, स्वार्थ ही नित तड़फाता है।

यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।

तू काँटों को फूल समझ ले,

आग को ही तू कूल समझ ले

भूल हुई जो सुधर न सकती,

खुशियाँ अपनी धूल समझ ले।

जो भी बनता साथी यहाँ पर, रस लेकर उड़ जाता है।

यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।

हँसने वाले मिलेंगें बहुत

चंद क्षणो को साथ चलेंगे।

सुविधा जब तक दे पाए

साथ में तेरे चलते रहेगें।

जिसको तेरी चाहत होती, उसको नहीं तू भाता है।

यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।

मृत्यु मित्र है, आनी ही है,

प्रेम से गले लगानी ही है

स्वार्थ-दहेज की आकांक्षा क्यों?

मृत्यु-प्रेयसी पानी ही है।

दुनिया में जो प्रेम ढूढ़ता, अश्रु वही छलकाता है।

यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।

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