Tuesday, April 15, 2008

का वर्षा जब कृषि सुखाने?

का वर्षा जब कृषि सुखाने

आशा का पांच वर्ष का साथ था उसके साथ, वह उसे बहुत प्यार करती थी। कितना चाहती थी वह गोविन्द को। गोविन्द ही तो उसका सब कुछ था मित्र, साथी, प्रेमी कौन था गोविन्द के सिवा जिसको आशा अपना समझती। जिस समय कॉलेज में प्रवेश लिया था तो गोविन्द से ही उसे सहारा मिला था कॉलेज में पढ़़ने का। वह ऊबने लगी थी कॉलेज की जिन्दगी से, अगर गोविन्द सही समय पर उसे न मिला होता तो वह कॉलेज छोड़कर चली गयी होती घर वापस । वही गोविन्द, जिसने उसे सबसे अधिक चाहा था, वही गोविन्द जो उसकी आ¡खों का तारा था, आज उसे अच्छा नहीं लग रहा था किन्तु फिर भी वह उसे नहीं भुला पा रही थी। वह सोच रही थी क्या यही वह गोविन्द है जिसने उससे वायदा किया जीवन भर साथ देने का। आज उसने ही कह दिया था कि तुम्हारी हैसियत मेरे लायक नहीं है। क्यों नहीं हू¡ मैं गोविन्द के लायक, क्या कमी है मुझमें? रूप-----रंग--शिक्षा सभी कुछ तो है मेरे पास ! क्या पैसा ही सब कुछ होता है? वह पूरी रात रोती विलखती रही थी कि क्यों नहीं हो सकती मैं गोविन्द के लायक? और उसने निश्चय किया था कि वह गोविन्द की हैसियत के लायक बनेगी। खूब मेहनत करेगी। खूब कमायेगी पैसा और क्या चाहिये उसे? कहा¡-कहा¡ नहीं भटकी वह नौकरी की तलाश में, कितनी कम्पनियों, फैिक्ट्रयों में दिये थे इन्टरव्यू आशा ने। किन्तु आशा को कहीं से भी आशा नहीं मिली, केवल निराशा ही हाथ लगती उसको किन्तु आशा हार मानने वाली नहीं थी। वह ढं़ूढ़ती रही नौकरी और उसे आखिर मिल गयीण् एक स्कूल में मास्टरी की नौकरी। वह परिश्रम पूर्वक स्कूल में पढ़ाती बच्चों को। केवल नौकरी से ही सन्तोष नहीं हुआ आशा को। स्कूल समय के बाद और पहले वह अपने कमरे पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। बड़ी ही व्यस्त थी आशा। सुबह चार बजे उठना, चाय पीकर पा¡च बजे से पढ़ाना शुरू कर देती बच्चों को। पा¡च बजे से 9 बजे तक लगातार पढ़ाती रहती थी। और दस बजे से पा¡च बजे तक का स्कूल, फिर रात के दस बजे तक ट्यूशन। आशा जैसे पागल हो गयी थी। पैसा केवल पैसा ही से प्यार था आशा को। अब उसने अपना एक लैट खरीद लिया था, जिसमें वह उसके माता-पिता तीनों रहते थे किन्तु आशा की व्यस्तता में कोई कमी न थी। आशा के माता-पिता बड़ी चिन्ता करते थे उसकी शादी के बारे में, किन्तु वह तो कुछ सुनती ही न थी। उसे कार जो खरीदनी थी गोविन्द की हैसियत की बराबरी करने को। आज आशा बहुत प्रसन्न थी। आज वह नयी कार खरीदकर लायी थी। आज वह अपने को गोविन्द की हैसियत का पाकर बड़ी प्रसन्न थी। वह कार लेकर सीधे लैट पर गयी, माताजी ने भोजन करने के लिये कहा तो इन्कार कर दिया क्योंकि आज तो उसे भूख ही न थी। वह तैयार होकर सीधी गोविन्द के लैट पर पहु¡ची तो सन्न रह गयी जब उसने यह सुना कि गोविन्द यह लैट बेचकर पीछे गली में एक छोटे से मकान में पहु¡च गया है। वह पता लेकर वहा¡ गयी तो दरवाजा गोविन्द ने ही खोला। वह आशा को देखकर चौंक पड़ा। गोविन्द की शादी हो चुकने के तीन वषZ बाद उसकी पत्नी ने उसकी उदासीनता के कारण तलाक ले लिया। माता पिता का देहान्त हो गया था। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण लैट बेचना पड़ा। वह इस दुविधा में अकेला रह गया था। पछता रहा था अपने बीते हुये कल पर। वह आशा की याद में घुट रहा था। आज आशा को देखकर चौंक पड़ा किन्तु आज आशा को पहली बार आभास हुआ था कि वह शादी की अवस्था पार कर चुकी है। जिसके लिये वह इतनी मेहनत कर रही थी उसको पाया किन्तु ``का वषाZ जब कृषि सुखाने।´´

2 comments:

  1. par pyaar toh dil se hota hai paiso se nai . toh agar asha govind ko sacha pyaar karti thi toh paiso se nai.....agar vo garib ho toh asha ko usko apnana chahiye chahe vo garib ho ya amir ho...

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  2. सिद्धान्तः आपकी बात सही है, किन्तु सिद्धान्त और व्यवहार मैं जमीन-आसमान का अन्तर होता है. आज लड़कियों द्वारा प्यार भी स्तर देख कर क्या जाता है. पति की संपत्ति में बराबर का अधिकार का कानून बन जाने के बाद इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलने वाला है.
    यहां आने और टिप्पणी देने के लिये धन्यवाद!

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