Thursday, April 24, 2008

रोता नभ ?

रोता नभ ?

रोता नभ है, पृथ्वी रोती, सागर भी व्याकुल रोता है।

प्रकृति का कण-कण, रोकर भी आशा का अंकुर बोता है।।

मुस्कान सभी को नहीं मिल पाती,

खुशियाँ नहीं किसी की थाती।

व्याकुलता हर उर में बसती,

नहीं मिले चाहत मदमाती।

कोयल अपना रोना गाती, मयूर नृत्य कर रोता है।

प्रकृति का कण-कण, रोकर भी आशा का अंकुर बोता है।।

जिन्दा जब , तक जीना होगा

अमी नहीं, विष पीना होगा।

जहाँ -जहाँ, रोतीं मुस्कानें,

रोकर भी मुस्काना होगा।

भव-सागर में प्रेम ही मोती, चुगने को लगा ले, गोता है।

प्रकृति का कण-कण, रोकर भी आशा का अंकुर बोता है।।

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