Thursday, April 30, 2020

प्रकृति का कण-कण है नारी


                       
प्रकृति का कण-कण है नारी।
सरस, सलिल, सरिता है नारी।
गगन में काली छायी घटायें,
मानो केश सुखाती नारी।

चहचहाहट, संगीत है नारी।
चिड़ियों के ये गीत है नारी।
पर्वतों पर छायी हरियाली,
वक्षस्थल पर केश ज्यों नारी।

प्राची लाल, शर्माती नारी।
खिलती कली, मुस्काती नारी।
सुन्दर नहीं, दाड़िम की लाली,
अधर हैं, ज्यों हँसती है नारी।

मंद सुगंधित, पवन है नारी।
ठण्ड में गरम, छुवन है नारी।
प्रेम राग में, झूम रही जो,
नर्तन कला, नर्तकी नारी।

क्रोध में काली, बनती नारी।
प्रेम में खुद को, लुटाती नारी।
जग की सारी पीड़ा सहती,
माता जब बनती है नारी।

खुद से खुद को छुपाती नारी।
मन्द-मन्द, मुस्काती नारी।
लोक लाज से डरती इतनी,
जीवन जेल बनाती नारी।

बेटी के रूप में, प्यारी नारी।
बहिन का प्यार है, राखी नारी।
माँ बन, जब वात्सल्य लुटाये,
खुद को भुलाती, रमणी नारी।

पल-पल समर्पित, तुझको नारी।
तुझे समर्पित जग ये नारी।
तुझ बिन कोई अस्तित्व न नर का,
सब कुछ सौंपा तुझको नारी।

Wednesday, April 29, 2020

धोखे की ठोकर, घायल आत्मा

नारी बिन नर!

                    डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



नींद ही जाकर, कहीं सो गई है।
चिंता, दुख से,  बड़ी हो गई है।
तूने,  जब से,  दिया है धोखा,
कोमलता भी, कड़ी,  हो गई है।

नारी बिन, नर! जी नहीं सकता।
स्वयं, जहर, कभी, पी नहीं सकता।
छल, छद्म, षड्यन्त्र, मुकदमें,
अवसाद अमर, कभी मर नहीं सकता।

प्रेम की मूरत, अब कहाँ खो गई है?
मातृत्व की गरिमा, कहाँ सो गई है?
प्रेम, समर्पण, और सृजन की देवी,
नारी! ठगिनी, कैसे  हो गई है?

ठोकर की, अब, चिंता न मुझको।
मैंने, सब कुछ, सौंपा था तुझको।
लोभ-लालच की करके सवारी,
कमाया है जो, देगी वो किसको?

अपने पर,  विश्वास,  बड़ा था।
नारी हित, हो कर्म, अड़ा  था।
धोखे की ठोकर, घायल आत्मा,
अडिग हूँ, पथ पर, जहाँ खड़ा था।

नारी! ठगिनी, कह नहीं, सकता।
ठगा गया हूँ, ठग  नहीं सकता।
सुता, बहिन, माता भी नारी,
नारी बिन, नर रह नहीं सकता।




Thursday, April 23, 2020

झूठा सच!

जो धोखा दे, पत्नी कहते हैं


               

                                                    डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



झूठा सच! हम बोल रहे हैं।
बिना तराजू तोल रहे हैं।
नर-नारी के रिश्ते में अब,
कानून ही विष घोल रहे हैं।

गृह लक्ष्मी अब मेम हो गईं।
चलता फिरता जेम हो गई।
कैसा पति और कैसे बच्चे?
सोशल मीडिया, फेम हो गई।

घर अब आफिस जैसा चलता।
बच्चा भी अब क्रैच में पलता।
पति-पत्नी पद, हुए कानूनी,
विश्वास सूर्य, कपट से ढलता।

पति-पत्नी अब, चलते चालें।
एक-दूजे को, बनें न ढालें।
पति का बीमा, है करोड़ का,
पत्नी सोचे, राम उठा ले।

सुविधाओं को सुख कहते हैं।
रोते-हँसते, सुख सहते हैं।
शादी भी व्यवसाय बन गई,
जो धोखा दे, पत्नी कहते हैं।

प्रेम नाम, हैं  धंधे  होते।
शर्म, हया, अब रिश्ते खोते।
मिलने से, हो जाय, कोरोना,
मिलेगा वही, जो हम हैं बोते।

Wednesday, April 22, 2020

नारी ही, जननी है, नर की

नारी प्राणाधार है



नारी शक्ति, नारी भक्ति, नारी पालनहार है।
नारी ही, जननी है, नर की, नारी प्राणाधार है।।
जन्मदात्री है, नर की, नारी।
प्राकृतिक सखी, सहचरी, नारी।
नारी बिन, नर, नहीं चल सकता,
उँगली पकड़, चलाती नारी।
नारी ही, सृष्टि का मूल है, नारी ही, से घर-द्वार है।
नारी ही, जननी है, नर की, नारी प्राणाधार है।।
नारी ही है, घर को बनाती।
नारी ही है, घर की बाती।
नारी दुर्गा, नारी काली,
प्रेम से, नर को, है नहलाती।
नारी ही की, प्रेरणा पर नर, मर-मिटने को तैयार है।
नारी ही, जननी है, नर की, नारी प्राणाधार है।।
नारी ही सृजन है करती।
प्रेमी के लिए, रति ये बनती।
ज्ञान की देवी, नारी सरस्वती,
गृहलक्ष्मी भी, नारी बनती।
नर को, प्राणों से सहलाकर, नर को देती धार है।
नारी ही, जननी है, नर की, नारी प्राणाधार है।।

Monday, April 20, 2020

हम तुम्हें प्यार करते हैं, इतना

तुम्हें छोड़ नहीं पायेंगे

                   

हम तुम्हें प्यार करते हैं, इतना, तुम्हें छोड़ नहीं पायेंगे।
जब तक, तुम नहीं चाहोगी, हम राहों में नहीं आयेंगे।।
नयनों में ही, नहीं बसी हो।
दिल के अंदर, तुम्ही सजी हो।
तुम्हारे बिना, ये जीवन कैसा?
प्रेम से प्यारी, मेरी सखी हो।
तुम्हारे सपनों की खातिर, हम, जीवन भर सो जायेंगे।
हम तुम्हें प्यार करते हैं, इतना, तुम्हें छोड़ नहीं पायेंगे।।
पीछा तुम्हारा, कभी न करेंगे।
तुम्हें देखकर, नहीं, आह भरेंगे।
तुमको खुशियाँ, मिलती रहें बस,
जीवन पथ पर, अकेले चलेंगे।
तुम्हारे पथ पर, पुष्प सजायें, प्रेमी को, गले लगायेंगे।
हम तुम्हें प्यार करते हैं, इतना, तुम्हें छोड़ नहीं पायेंगे।।
तुम्हें न कभी, मजबूरी हो।
सुविधा मिलें, जो, जरूरी हो।
पथ में, न आये, कोई बाधा,
इच्छा हमारी, यह, पूरी हो।
रहो कहीं भी, आनंद से चहको, हम तुम्हें देख मुस्कायेंगे।
हम तुम्हें, प्यार करते हैं, इतना, तुम्हें छोड़ नहीं पायेंगे।।

Sunday, April 19, 2020

हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना?

ये अहसास दिला न सके


                                                     डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना? ये अहसास दिला न सके।
साथ तुम्हारा, पल पल चाहा, हम, तड़पे कितना? बता न सके।
समय न माँ का, मिला बचपन में।
किताबों में खोये, थे जिदपन में।
युवावस्था, सारी, संघर्ष में बीती,
आज भी, अकेले, हम पचपन में।
नारी हित में, जीये थे पल-पल, साथ कभी भी पा न सके।
हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना? ये अहसास दिला न सके।।
प्रेम छिपा, हम रहे घूमते।
साहस नहीं था, तुम्हें चूमते।
हम तो, दिल की, नहीं कह पाये,
मिली न कोई, जो दिल की पूछते।
कदम-कदम पर, मिलीं कई थीं, दिल की बात, बता न सके।
हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना? ये अहसास, दिला न सके।।
सच्चाई की, चाह थी हमको।
छिपाव कपट बर्दाश्त न हमको।
सब कुछ कह ले, सब कुछ सुन ले,
साथी कोई भी, मिली न हमको।
कदम-कदम पर प्यार लुटाया, विश्वास किसी का पा न सके।
हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना? ये अहसास दिला न सके।।
कभी किसी से, कुछ नहीं चाहा।
सच बोले बस, वह भी न पाया।
मैंने सब कुछ, सौंप दिया था,
सब कुछ छिपाकर, क्यों भरमाया?
प्यार के नाम क्यों, मिलते धोखे? हम, अपने को समझा न सके।
हम करते थे, प्यार तुम्हें कितना? ये अहसास दिला न सके।।

Thursday, April 16, 2020

नारी नहीं है नर पर भारी

ईश्वर की वह रचना प्यारी



                                        डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



नारी नहीं है नर पर भारी।
ईश्वर की वह रचना प्यारी।
कुछ इच्छाएँ, उसकी भी हैं,
सजाती हमारी जीवन क्यारी।

पूजा नहीं बस प्रेम चाहिए।
थोड़ा सा सम्मान चाहिए।
जन्म लेने दो, जीने दो,
उड़ने को आसमान चाहिए।

संपत्ति की, नहीं है इच्छा।
दे लेंगी हम, कठिन परीक्षा।
सोना चाँदी, नहीं चाहिए,
स्कूल भेजो, दे दो शिक्षा।

शिक्षा अनुरूप, काम चाहिए।
खुली हवा में श्वांस चाहिए।
सुरक्षित बाहर घूम सकें हम,
सुरक्षित  वातावरण  चाहिए।

पराये घर की कहा न जाए।
अधिकारों को लड़ा न जाए।
मायके की ना भेंट चाहिए, 
दान करो हमें, सहा न जाए।

आँसू अब तक बहुत बहाये।
महिला हैं, अबला कहलाये।
अपना भाग्य, खुद ही लिखेंगी,
देवी कह, अब तक,  बहलाये।

घृणा नहीं, हम, प्रेम हैं करतीं।
मुस्कानों  से  पीड़ा  हरतीं।
कदम-कदम  बाधाएँ  आएँ,
मौत से भी हम नहीं हैं डरतीं।

आरक्षण,  हमें  नहीं चाहिए।
दहेज नहीं, अधिकार चाहिए।
यह घर भी अपना कहलाए,
उस घर का भी प्यार चाहिए।

राष्ट्रप्रेमी बस मान चाहिए।
जीने के अरमान चाहिए।
सब कुछ अर्पण कर दूँगी मैं,
दया नहीं, स्वाभिमान चाहिए।

पिता से थोड़ा दुलार चाहिए।
भाई से, बहन का, प्यार चाहिए।
सब कुछ देकर, थोड़ी आशा,
सखा! सदैव, बस साथ चाहिए।

तन मन धन सब अर्पण है।
मेरा  उर, तेरा  दर्पण है।
नर-नारी हम पूरक दोनों,
कर दूं, सब तुझको अर्पण है।

साथ में मिलकर, हम होते पूरे।
अलग-अलग, दोनों ही अधूरे।
अपना अपना, आपा मिटा कर,
जग के सपने, हम कर दें पूरे।

Tuesday, April 14, 2020

प्रेम की देवी, ममता की मूरत, करुणा की तू खान है

प्रेम की देवी

                                    

प्रेम की देवी, ममता की मूरत, करूणा की तू खान है।
बेटी, बहिन, पत्नी, माता बन, जग का रखती ध्यान है।।
कार्य क्षेत्र की, नहीं कोई सीमा।
आश्वासन  ही, है  बस  बीमा।
अंदर बाहर, काम ये करतीं,
कल्पना, करीना या हो हसीना।
अदम्य जिजीविषा है अन्तर में, मानिनी मन की मान है।
प्रेम की देवी, ममता की मूरत, करुणा की तू खान है।।
बचपन  से है,  मुझे दुलारा।
गुस्से में भी,  दिया  सहारा।
दौड़ी-दौड़ी,  आई  माता,
पीड़ा में, जब भी मैंने पुकारा।
पति, पुत्र, पिता, भाई हित, खुद को करे कुर्बान है।
प्रेम की देवी, ममता की मूरत, करुणा की तू खान है।।
समान नहीं, तू अति विशिष्ट है।
सब कुछ तुझमें, अन्तर्विष्ट है।
सीमाएं जब, नर है लांघता,
काली बनकर, करे शिष्ट है।
तन-मन-धन सब करूँ समर्पित, करूँ समर्पित ज्ञान है।
प्रेम की देवी, ममता की मूरत, करुणा की तू खान है।।

Monday, April 13, 2020

प्रेममयी सौन्दर्यमयी तू

तू ही रस की खान है


                                     


प्रेममयी सौन्दर्यमयी तू, तू ही रस की खान है।
तू ही प्रेम की सीमा मेरी, मेरे उर की जान है।।
केशोें की ये, काली घटायें।
नयन कालिमा, कुटिल फिजायें।
कपोल लालिमा, सौन्दर्य बिखेरे,
उर पर ताले, मदमस्त कुचायें।
सरस रसीली, चितवन, चित को, चित्रित करती मान है।
प्रेममयी सौन्दर्यमयी तू, तू ही रस की खान है।।
नासिका मानो, शुक है विराजा।
अधरों की सुरखी, उसका खाजा।
चाल अदा, आमंत्रित करती,
इंतजार है, पिया  आजा।
नयन नजर है, मिलन प्रतीक्षा, कपोल लालिमा आन है।
प्रेममयी सौन्दर्यमयी तू, तू ही रस की खान है।
बलखाती कटि, चलती है जब।
सभाल ले आंचल, कलि बिखरे कब?
चाहत चाहूँ, रहे चहकती,
तू ही प्यार है, तू ही है रब।
जीवन का आधार प्रेम है, मैं गाऊँ प्रेम के गान हैं।
प्रेममयी सौन्दर्यमयी तू, तू ही रस की खान है।

Sunday, April 12, 2020

सृष्टि का आधार तुम्हीं हो

नर की संगिनी आली हो

                                     

नारी नहीं, नई नवेली, रचना अजब निराली हो।
सृष्टि का आधार तुम्हीं हो, नर की संगिनी आली हो।।
मधुर आवाज में, नर विंध जाता।
मुस्कान पर, मर मिट जाता।
अधरों के रसपान को ये नर,
ब्रह्माण्ड में, सबसे भिड़ जाता।
नर का आकर्षण, पाकर के, तुम होती मतवाली हो।
सृष्टि का आधार तुम्हीं हो, नर की संगिनी आली हो।।
अंग-अंग सौन्दर्य समाया।
कातिल कैसा? हुस्न ये पाया।
छाती की, गोलाइयों ने ही,
नर को तेरा गुलाम बनाया।
कैसे प्रेमी बच पायेगा? मारक गालों की लाली हो।
सृष्टि का आधार तुम्हीं हो, नर की संगिनी आली हो।।
कमर कटीली, चाल मदमाती।
नर हो जाता, मदमस्त हाथी।
मर्यादा कोई, ठहर न पाये,
जब तुम, उसको पास बुलातीं।
जान हथेली पर रखकर के, करता वह  रखवाली हो।
सृष्टि का आधार तुम्हीं हो, नर की संगिनी आली हो।।

Friday, April 10, 2020

भावों की सरिता है उर में,

भावों की सरिता है उर में

                                         डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



भावों की सरिता है उर में, किंतु प्रेम सबसे बढ़कर है।
आश्चर्य, घृणा, जुगुप्सा और भय, किंतु प्रेम सबसे हटकर है।
क्षणिक भाव हैं, आते-जाते।
हँसते हैं कभी, कभी रुलाते।
क्रोध में जाग्रत विवेक न रहता,
प्रेम गान जड़ चेतन गाते।
निर्वेद, हास और उत्साह से, प्रेम का मुकाबला डटकर है।
भावों की सरिता है उर में, किंतु प्रेम सबसे बढ़कर है।।
शोक, वात्सल्य और रति में।
जीवन की इस मंथर गति में।
प्रेम की माया, अजब निराली,
पत्नी अनुरक्त प्रेम से पति में।
प्रेम से सारे झगड़े मिटते, प्रेम से मिलते जब हँसकर हैं।
भावों की सरिता है उर में, किंतु प्रेम सबसे बढ़कर है।।
प्रेम समाया अंग-अंग में।
जरूरी नहीं, चले संग-संग में।
सबसे प्रेम, हम पथिक प्रेम के,
नहीं किसी के रंगे रंग में।
मानते है हम नियम कायदे, किंतु प्रेम सबसे चढ़कर है।
भावों की सरिता है उर में, किंतु प्रेम सबसे बढ़कर है।।


Thursday, April 9, 2020

रेगिस्तान में उड़ता रेत नर, नारी ज्यों फुलवारी है

नारी के बिन नर है अपूरण


                                       डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



नारी के बिन नर है अपूरण, पूरण करती नारी है।
उड़ता हुआ बीज ज्यौं है नर, पौषण देती क्यारी है।
सुंदर और सरस है रमणी।
गोरी हो या  काली चमड़ी।
कठिन समय की खातिर देखो,
संचित करती है वह दमड़ी।
कोमल है वह शक्ति पुंज है, विधि की रचना न्यारी है।
 नारी के बिन नर है अपूरण, पूरण करती नारी है।।
नारी बिन, नहीं है जीवन।
नर को देती नित संजीवन।
सरस स्पर्श और दिव्य दृष्टि से,
पोषण करती, देती जीवन।
माता, भगिनि, पत्नी प्रयसी, पुत्री भी जान से प्यारी है।
नारी के बिन नर है अपूरण, पूरण करती नारी है।।
नर नारी का विरोध नहीं है।
सरस प्रेम है, किरोध नहीं है।
तर्क-वितर्क और नोंकझोंक है,
आत्म मिलन में निरोध नहीं है।
रेगिस्तान में उड़ता रेत, नर, नारी ज्यों फुलवारी है।
नारी के बिन नर है अपूरण, पूरण करती नारी है।
राष्ट्रप्रेमी को प्रेम मिला है।
प्रणय काल में पुष्प खिला है।
झूठ कपट की मूरत बनकर,
नारी ने ही दिया सिला है।
विध्वंस में भी प्रेम का कलरव, सृष्टि की किलकारी है।
नारी के बिन नर है अपूरण, पूरण करती नारी है।।

Wednesday, April 8, 2020

तुमने जिसको प्यार कहा है, वह तो सरासर धोखा है

प्यार तो माँगे प्रेम समर्पण

                                      डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

तुमने जिसको प्यार कहा है, वह तो सरासर धोखा है।
प्यार तो माँगे, प्रेम समर्पण, सच्चाई, निष्ठा भरोसा है।।
झूठ बोलकर शादी करना।
प्रेमी संग मिल, हत्या करना।
शिकारी का ही काम ये केवल,
फंदे, फंसा  वार  फिर करना।
मर जायेंगे, मिट जायेंगे, अब नहीं देंगे, मौका है।
प्यार तो माँगे, प्रेम समर्पण, सच्चाई, निष्ठा भरोसा है।।
झूठे वायदे, झूठे इरादे।
षडयंत्र से हमें गिरा दे।
शक्ति नहीं किसी में इतनी,
सच्चाई से हमें फिरा दे।
सब कुछ जानकर, चुनने के, अधिकार से तुमने रोका है।
प्यार तो माँगे, प्रेम समर्पण, सच्चाई, निष्ठा भरोसा है।।
पीड़ा दे ले, सह लेंगे हम।
सजा मिलेगी, भोगेंगे हम।
चाहे जितने, केस करो तुम,
मौत से भी, भिड़ जायेंगे हम।
धोखेबाज तुम, कुशल खिलाड़ी, झूठ का मारा चौका है।
प्यार तो माँगे, प्रेम समर्पण, सच्चाई, निष्ठा भरोसा है।।

Tuesday, April 7, 2020

हम जीत इस पर पायेंगे‌

जीत

                                                           डॉ सरला सिंह स्निग्धा
                                                                                           दिल्ली
हम जीत इस पर पायेंगे‌।
हम हार नहीं मानेंगे,------।

हारना सीखा न हमने,
दानव बड़े टकराये हमसे।
मानव हैं हम, श्रेष्ठतम हैं,
जीवों में उत्तम हैं सभी हम।
हारे नहीं युग में किसी भी,
वायरस ये चीज क्या है?
काल से भी नहीं  हारेंगे।
हम जीत इस पर पायेंगे‌,
हम हार नहीं मानेंगे,----।

जैसा हो अपना कर्मपथ,
कंटकों से  परिपूर्ण हो।
चलकर सहज भाव से ,
करके निज कर्त्तव्य हम।
अपने अपने कर्म करके,
जीतपथ हासिल करेंगे।
हम जीत इस पर पायेंगे,
हम हार नहीं मानेंगे,----।

कठिन पर अप्राप्य नहीं,
जीत हासिल हमें होगी।
वायरस कोरोना नष्ट करें,
हम सबने यही ठानी है।
मानव ही कुछ राक्षस बने,
उनका ही यह कुटिलता।
हम जीत इस पर पायेंगे‌,
हम हार नहीं मानेंगे,----।



वनिता, बन्नो का पर्याय राग

पत्नी बन, सजाती जग की क्यारी है

                       
महिला, वामांगिनी, वनिता, रमणी, कांता, शक्ति, सुंदरी, जन्मदात्री नारी है।
सजनी, सहचरी, वल्लभा, वामा, पत्नी बन, सजाती जग की क्यारी है।।
औरत, स्त्री, सबला है तू, तू ही पत्नी दारा है।
सहधर्मिणी, घरनी, भामिनी, चढ़े न तेरा पारा है।
गृहस्वामिनी, गृहलक्ष्मी, गृृृहिणी, शक्ति स्वरूपा दुर्गा तू,
जहाँ भी जाती, घर है बनाती, भले ही वहाँ पर कारा है।
श्रीमती, बेगम, अर्धांगिनी, धर्मपत्नी, संगिनी, घरवाली की लीला न्यारी है।
सहगामिनी, प्राणेश्वरी, प्रियतमा, माता बन, सजाती जग की क्यारी है।।
बीबी और लुगाई भी है, कलत्र,जनानी, जाया है।
अबला, जोरू, परिणीता, बन तूने नर भरमाया है।
भार्या, बहू, वधू, वामांगना, अंकशायिनी, माया तू,
राष्ट्रप्रेमी ने वनिता, बन्नो का पर्याय राग ही गाया है।
जीवनसंगिनी, गेहिनी, प्रिया, हृदयेश्वरी, बन्नी, साजन को सजनीे प्यारी है।
प्राणप्रिया, तिय, तिरिया, दुलहन, प्राणवल्लभा बन, सजाती जग की क्यारी है।।
दयिरा, दुलहिन, शक्ति की देवी, काली ने नाच नचाया है।
शैलपुत्री, पार्वती, सती, प्रेयसी बन, प्यार का पेच फंसाया है।
महिलाओं की, महानता के, महान गान, कौन यहाँ गा पाये?
सृष्टि के सृजन की देवी, रति ने, रोते नर को हँसाया है।
आया है सृजन का पल, सृजन की देवी रमा की, अब घर सजाने की तैयारी है।
सुता, बहिन, पृथ्वी, माता, सृजनहार, जननी बन, सजाती जग की क्यारी है।।



Monday, April 6, 2020

मुझको तो आकर्षित करतीं

उसकी आँखों की प्याली है

                                     
भले ही काली- काली है, लेकिन मेरी घरवाली है।
मुझको तो आकर्षित करतीं, उसकी आँखों की प्याली है।।
बात-बात पर झूठ बोलती।
नहीं, कभी भी, राज खोलती।
प्रेमी के संग उड़ जाने को,
अपने पर है, रोज तौलती।
इच्छा तेरी पूरी हों सब, बने प्रेमी की डाली है।
मुझको तो आकर्षित करतीं, उसकी आँखों की प्याली है।।
धोखे से था ब्याह रचाया।
पल-पल मुझको था भरमाया।
धन की खातिर बनकर ठगिनी,
झूठा मुकदमा दर्ज कराया।
प्रेम के नाम ठगती है सबको, लेकिन प्रेम से खाली है।
मुझको तो आकर्षित करतीं, उसकी आँखों की प्याली है।।
कानून जाल में मुझे फंसाकर।
जेल का मुझको डर दिखलाकर।
शिकार करने को आतुर शिकारी,
पत्नी नहीं, शिकारी शातिर।
मैं तो खुशियाँ चाहूँ उसकी, वो मेरी मौत की जाली है।
मुझको तो आकर्षित करतीं, उसकी आँखों की प्याली है।।
नहीं चाहता तेरा बुरा हो।
स्वर कभी तेरा बेसुरा हो।
तुझको तेरी खुशियाँ मुबारक,
राष्ट्रप्रेमी आजाद खरा हो।
पढ़ी-लिखी आधुनिक विषकन्या, तेरी शान निराली है।
मुझको तो आकर्षित करतीं, उसकी आँखों की प्याली है।।

Sunday, April 5, 2020

साथ भले ही ना मिल पाया

हम तो साथ निभायेंगे

                                     

साथ भले ही ना मिल पाया, हम तो साथ निभायेंगे।
अपने पथ पर आगे बढ़ो तुम, पलकों से उसे सजायेंगे।।
तुमने साथ भले ही छोड़ा।
हमने कभी भी मुख ना मोड़ा।
अब भी आश न छोड़ी हमने,
चलते हैं हम थोड़ा-थोड़ा।
नहीं भी मिलने आओगे, हम स्वप्न में गले लगायेंगे।
अपने पथ पर आगे बढ़ो तुम, पलकों से उसे सजायेंगे।।
यही चाह  है, केवल हमको।
सारी खुशियाँ मिल जायँ तुमको।
तुम अपनी चाहत के संग जीओ,
तन्हाई  ही  भाई  हमको।
तुम्हें तुम्हारी खुशियाँ मिलें बस, हम खुद को ही ठुकरायेंगे।
अपने पथ पर आगे बढ़ो तुम, पलकों से उसे सजायेंगे।।
प्रेम तुम्हारा, तुम्हें मिल जाये।
तुमसे मिले, वह भी हरषाये।
तुम्हारी खुशियों की अनुभूति,
हमको भी खुशियाँ दे जाये।
हम तो  तुम्हारे  प्रेमी के भी, पथ  में  पुष्प  विछायेंगे।
अपने पथ पर आगे बढ़ो तुम, पलकों से उसे सजायेंगे।।

Saturday, April 4, 2020

सब कहते काली काली है

समझो मेरी घरवाली है

                                       
सब कहते काली काली है, समझो मेरी घरवाली है।
अधरों से गाली रस टपके, लगे जहर की प्याली है।।
नारी  है,  पूजा  करनी  है।
जीना है, माँग भी भरनी है।
खप्पर वाली देवी है वह,
नहीं किसी से डरनी है।
धोखा दे, प्यार वो पाने चली, कानून हाथ, मति खाली है।
अधरों से गाली रस टपके, लगे जहर की प्याली है।।
षडयंत्र, प्रपंच की है देवी।
पत्नी बन प्राणों की लेवी।
प्यार के नाम है, केस करे,
अद्भुत देवी, बनी फरेबी।
यारों की सखी, समर्पित है, वह कालदेव की साली है।
अधरों से गाली रस टपके, लगे जहर की प्याली है।।
अंग-अंग झूठ समाया है।
नारी नहीं, वह माया है।
राष्ट्रप्रेमी भी राष्ट्र को भूला,
जब से उसने, फंसाया है।
समझे खुद को सौंदर्य की देवी, कामदेव की आली है।
अधरों से गाली रस टपके, लगे जहर की प्याली है।।

Friday, April 3, 2020

सभी प्रेम की बातें करते

दिल में नफरत लिए घूमते

                                      
सभी प्रेम की बातें करते, दिल में नफरत लिए घूमते।
गला काटने की तैयारी, फिर भी देखो हाथ चूमते।।
आई लव यू ब्राण्ड बन गया।
मरघट भी बाजार बन गया।
धोखे से दुल्हन बन करके,
झूठा दहेज का केस लग गया।
पति-पत्नी अब पद ही होते, एक-दूसरे को रोज मूढ़ते।
सभी प्रेम की बातें करते, दिल में नफरत लिए घूमते।।
पैसे से हों, रिश्ते-नाते।
प्रेम नाम केवल भरमाते।
हाईटेक हैं आज के प्रेमी,
एसिड अटैक से होती घातें।
जेल भेजते, मर्डर करते, ज्यों कढ़ाई में चने भूनते।
सभी प्रेम की बातें करते, दिल में नफरत लिए घूमते।
ग्लेमर के जादू की खूबी।
धन की खातिर प्रेम में डूबी।
प्रेम जाल में धनिक फंसाकर,
करती मस्ती, बनती मूवी।
रिश्ते हैं बाजार में बिकते, प्रशिक्षित दुल्हन शिकार ढूढ़ते।
सभी प्रेम की बातें करते, दिल में नफरत लिए घूमते।
राष्ट्रप्रेमी पग पग पर धोखे।
सत्य राह चल, देख न मौके।
भले ही कोई तुझको लूटे,
रूकना नहीं किसी के रोके।
सावधान हो! आगे बढ़ना, अपने बनकर लोग मूढ़ते।
सभी प्रेम की बातें करते, दिल में नफरत लिए घूमते।

Thursday, April 2, 2020

मनमौजी हम, डरें न मृत्यु से

जीवन, जग ही, संकट में  अब

                         


विकट परिस्थिति, भय है छाया, सरकार ने आपात लगाया है।
मनमौजी हम,  डरें न मृत्यु से,  लापरवाही को अपनाया है।।
चीन, अमेरिका, इटली भी फेल।
फिर भी, भारतीयों में, रेलम-पेल।
सिखाने का, जिन पर ठेका है, वह भी,
जीवन  को,  समझें हैं,  खेल।
कहीं भी घूमें, कफ्र्यू न माने, पुलिस को भी इन्होंने छकाया है।
विकट परिस्थिति, भय है छाया, सरकार ने आपात लगाया है।।
काम करो घर से, नया है फण्डा।
ना निकल, घर से, पड़ेगा डण्डा।
जीवन, जग ही, संकट में  अब,
बचाव, धैर्य, और मन रख ठण्डा।
छोटे से,  वायरस ने,  आकर,  मानव घमण्ड,  मिटाया है।
विकट परिस्थिति, भय है छाया, सरकार ने आपात लगाया है।।
खाने के,  पड़  रहे हैं लाले।
शैतान चलते, फिर भी चालें।
एक-एक सप्ताह, पैदल चलकर,
मिला न कुछ भी, जो ये खालें।
साथ-साथ मिल, आओ लड़े, दूर-दूर रह, मुद्दा, अब गरमाया है।
विकट परिस्थिति, भय है छाया, सरकार ने आपात लगाया है।।
महामारी से आओ लड़े हम।
जीवन बचायें, न महान बने हम।
राष्ट्रप्रेमी भी है, आज रो पड़ा,
करते भी ना, आज, लाज हम।
मौत में भी, कालाबाजारी, करने वालों से, शरम को भी शरमाया है।
विकट परिस्थिति, भय है छाया, सरकार ने आपात लगाया है।।