Thursday, April 16, 2020

नारी नहीं है नर पर भारी

ईश्वर की वह रचना प्यारी



                                        डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी



नारी नहीं है नर पर भारी।
ईश्वर की वह रचना प्यारी।
कुछ इच्छाएँ, उसकी भी हैं,
सजाती हमारी जीवन क्यारी।

पूजा नहीं बस प्रेम चाहिए।
थोड़ा सा सम्मान चाहिए।
जन्म लेने दो, जीने दो,
उड़ने को आसमान चाहिए।

संपत्ति की, नहीं है इच्छा।
दे लेंगी हम, कठिन परीक्षा।
सोना चाँदी, नहीं चाहिए,
स्कूल भेजो, दे दो शिक्षा।

शिक्षा अनुरूप, काम चाहिए।
खुली हवा में श्वांस चाहिए।
सुरक्षित बाहर घूम सकें हम,
सुरक्षित  वातावरण  चाहिए।

पराये घर की कहा न जाए।
अधिकारों को लड़ा न जाए।
मायके की ना भेंट चाहिए, 
दान करो हमें, सहा न जाए।

आँसू अब तक बहुत बहाये।
महिला हैं, अबला कहलाये।
अपना भाग्य, खुद ही लिखेंगी,
देवी कह, अब तक,  बहलाये।

घृणा नहीं, हम, प्रेम हैं करतीं।
मुस्कानों  से  पीड़ा  हरतीं।
कदम-कदम  बाधाएँ  आएँ,
मौत से भी हम नहीं हैं डरतीं।

आरक्षण,  हमें  नहीं चाहिए।
दहेज नहीं, अधिकार चाहिए।
यह घर भी अपना कहलाए,
उस घर का भी प्यार चाहिए।

राष्ट्रप्रेमी बस मान चाहिए।
जीने के अरमान चाहिए।
सब कुछ अर्पण कर दूँगी मैं,
दया नहीं, स्वाभिमान चाहिए।

पिता से थोड़ा दुलार चाहिए।
भाई से, बहन का, प्यार चाहिए।
सब कुछ देकर, थोड़ी आशा,
सखा! सदैव, बस साथ चाहिए।

तन मन धन सब अर्पण है।
मेरा  उर, तेरा  दर्पण है।
नर-नारी हम पूरक दोनों,
कर दूं, सब तुझको अर्पण है।

साथ में मिलकर, हम होते पूरे।
अलग-अलग, दोनों ही अधूरे।
अपना अपना, आपा मिटा कर,
जग के सपने, हम कर दें पूरे।

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