भावों की सरिता है उर में
डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
भावों की सरिता है उर में, किंतु प्रेम सबसे बढ़कर है।
आश्चर्य, घृणा, जुगुप्सा और भय, किंतु प्रेम सबसे हटकर है।
क्षणिक भाव हैं, आते-जाते।
हँसते हैं कभी, कभी रुलाते।
क्रोध में जाग्रत विवेक न रहता,
प्रेम गान जड़ चेतन गाते।
निर्वेद, हास और उत्साह से, प्रेम का मुकाबला डटकर है।
भावों की सरिता है उर में, किंतु प्रेम सबसे बढ़कर है।।
शोक, वात्सल्य और रति में।
जीवन की इस मंथर गति में।
प्रेम की माया, अजब निराली,
पत्नी अनुरक्त प्रेम से पति में।
प्रेम से सारे झगड़े मिटते, प्रेम से मिलते जब हँसकर हैं।
भावों की सरिता है उर में, किंतु प्रेम सबसे बढ़कर है।।
प्रेम समाया अंग-अंग में।
जरूरी नहीं, चले संग-संग में।
सबसे प्रेम, हम पथिक प्रेम के,
नहीं किसी के रंगे रंग में।
मानते है हम नियम कायदे, किंतु प्रेम सबसे चढ़कर है।
भावों की सरिता है उर में, किंतु प्रेम सबसे बढ़कर है।।
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