मुस्काओ
मैं हूँ राही अविचल चलना जिसकी रही कहानी है।
मुस्काओ तुम, अब नयनों से, नहीं बहाओ पानी है।।
जहाँ भी जाता पौध लगाता,
कलियों से मैं फूल खिलाता।
पाने की ना इच्छा करता,
मैं हूं केवल प्रेम लुटाता।
नाटक था जो क्रोध दिखाया प्रेम ही सच्ची बानी है।
मुस्काओ तुम, अब नयनों से, नहीं बहाओ पानी है।।
कुछ पल था ठहराव हमारा,
चाहा था हित करें तुम्हारा।
सन्तुष्टि इससे मिलती है,
चाह नहीं थी, पायें सहारा।
जहाँ जाओ तुम पु्ष्प बिखेरो भले राह अनजानी है।
मुस्काओ तुम, अब नयनों से, नहीं बहाओ पानी है।।
शक्ति सामर्थ्य शिक्षा सार,
जीने के हैं ये आधार।
अपने तक ना सीमित रखना,
करना नहीं इनका व्यापार।
शक्ति जहाँ से जैसे पाओ, व्यर्थ न कभी बहानी है।
मुस्काओ तुम, अब नयनों से नहीं बहाओ पानी है।।