Saturday, August 24, 2024

दीपों से अंधकार न मिटता

अन्तर्मन का दीप जलायें




दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का, दीप जलायें।

प्रतीकों को छोड़ बर्ढ़े अब, स्वच्छता का, अलख जगायें।

अविद्या का अंधकार छोड़कर।

कुप्रथाओं का जाल तोड़कर।

आगे बढ़ो, विकास के पथ पर,

निराशाओं से मुँह मोड़कर।

उर घावों से भले ही पीड़ित, प्रेम से घावों को सहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।

सूचना को, शिक्षा ना समझो।

जीना ही, वश लक्ष्य न समझो।

शिक्षा तो आचरण सुधारे,

मानवता की परीक्षा समझो।

पशुओं से भी निकृष्ट आचरण, शिक्षित वह कैसे कहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।

पढ़ते कुछ, करते कुछ और हैं।

कर्तव्य नहीं, करते कुछ और हैं।

कथनी कुछ, करनी कुछ और ही,

दिखते कुछ, अन्दर कुछ और हैं।

पत्नी बनकर, ठगी कर रहीं, शिकार को प्रेम से, ये सहलायें।

दीपों से अंधकार न मिटता, अन्तर्मन का दीप जलायें।।


Sunday, August 18, 2024

एक सिक्के के दो हैं पहलू

एक नर और एक नारी है।


नारी को नर प्राण से प्यारा, नर को भी, नारी प्यारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।

बहन भाई का अटूट है बंधन।

पवित्र कितना? रिश्तों का चंदन।

शंकर, शक्ति के हैं सेवक,

शक्ति करे, शिवजी का वंदन।

नर-नारी ने मिलकर ही तो, रच दी दुनिया सारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।

मात-पिता का जोड़ा होता।

जल ही जल में लगाता गोता।

कृषक फसल बाद में पाता,

पहले धरा में बीज है बोता।

जड़-चेतन के मिलने से ही, सृष्टि की रचना प्यारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।

नर नारी का प्रेम का बंधन।

प्रकृति ने किया है संबन्धन।

मिलकर दोनों पूर्णकाय हैं,

नारी नर का करे प्रबंधन।

राष्ट्रप्रेमी को नहीं मुक्ति कामना, स्वर्ग में भी मारा-मारी है।

एक सिक्के के दो हैं पहलू, एक नर और एक नारी है।।


Sunday, August 4, 2024

लक्ष्य नहीं, गन्तव्य नहीं कोई

अविरल चलते रहना है


लक्ष्य नहीं, गन्तव्य नहीं कोई, अविरल चलते रहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

चलती का नाम है गाड़ी मानो।

घर में है जो, घरवाली मानो।

अहम् त्याग है, नदी उतरती,

स्वत्व मिटा सागर में मानो।

अहम् से ही टकराव हैं होते, साथ-साथ हमें रहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

सुख और दुख हैं आते-जाते।

दुख में रोते, सुख में गाते।

समय-समय के दोस्त हों दुश्मन,

समय-समय के रिश्ते-नाते।

प्रेम और सम्मान मिलाकर, साथ-साथ हमें बहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

नर-नारी मिल, परिवार बनाते।

परिवार मिल, हैं समाज सजाते।

समष्टि में है, व्यष्टि सुरक्षित,

व्यक्ति प्रेम के रंग रचाते।

प्रेम है जीवन, गन्तव्य नहीं कोई, प्रेम, प्रेम में रहना है।

इक-दूजे की खुशी की खातिर, इक-दूजे को सहना है।।

 

Thursday, August 1, 2024

स्वार्थ है जग को घायल करता

 प्रेम घाव सहलाता है


अधिकारों से संघर्ष उपजता, कर्म जीना सिखलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

पाना तो लालच होता है।

देना प्रेम का  सोता है।

चाहत बाकी रहे न उसकी,

कर्म की खातिर खुद खोता है।

सब कुछ देकर, सब कुछ सहकर, व्यक्ति सन्त कहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

सभी प्रेम के याचक जग में।

सभी प्रेम के वाचक जग में

प्रेम को वो जन क्या समझेंगे,

बन्धन पड़े हैं, जिनके पग में।

प्रेम किसी को कष्ट न देता, प्रेम नहीं बहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।

प्रेम कोई अधिकार न माँगे।

प्रेम कभी भी प्यार न माँगे।

प्रेम नहीं कोई सौदा करता,

प्रेम कभी प्रतिकार न माँगे।

प्रेम में नहीं कोई सीमा होती, प्रेम नहीं टहलाता है।

स्वार्थ है जग को घायल करता, प्रेम घाव सहलाता है।।


Wednesday, July 31, 2024

प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं

 

 प्रेम गान ही गाती हो


हम चाहते हैं तुम्हें कितना, समझ नहीं तुम पाती हो।

प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।

प्रेम नहीं कुछ पाना होता।

प्रेम नहीं हर्जाना होता।

प्रेमी तो है समर्पण करता,

प्रेम में अहं मिट जाना होता।

प्रेम नाम स्वार्थ से पूरित, वासना से मदमाती हो।

प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।

प्रेम नहीं वश में करता है।

प्रेम नहीं सुख को हरता है।

प्रेम है कानून से ऊपर,

माँग नहीं, अर्पण करता है।

प्रेम किसी को नहीं बाँधता, जाओ जहाँ तुम जाती हो।

प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।

प्रेम कैसा? जो ऐसिड फेंके।

प्रेम नहीं, कानून को देखे।

आधिपत्य या मार डालना,

कैसे हैं? ये प्रेम के लेखे।

लुटने को तैयार खड़े हम, लुटेरी, नहीं हमारी थाती हो।

प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।


Saturday, July 27, 2024

प्रेम और अपराध का

ग्लोबल है बाजार

 चिंता कल की ना करो, खोज न कोई सार।

मुस्काकर तू प्रेम से, आगे बढ़ ले यार।।

जिसको शत्रू समझता, कल बन जाए मित्र।

जिनको प्रेमी समझता, खींचे केवल चित्र।।

सैल्फी तो नित लेत हैं, समझ न पाए सैल्फ।

मदद सभी से माँगते, नहीं किसी की हैल्प।।

प्रेम सभी से चाहते, करें प्रेम की लूट।

ऐसिड फेंकें प्रेम से, ठोकर मारें बूट।।

बढ़ी प्रेम की माँग है, आओ बेचे हाट।

मजे-मजे में धन बहुत, धोखे से हैं ठाट।।

अर्थ तंत्र है बढ़ रहा, खुले प्रेम बाजार।

जिस पर जितना धन दिखे, उतनी आँखें चार।।

कर शादी की बात ना, बदल गए हालात।

दुल्हन बुनती जाल है, दूल्हे को है लात।।

मन से मन ना मिलत हैं, मिलते हैं बस गात।

प्रेम धनी की लूट हित, कानूनों की बात।।

लूट हेतु, दुल्हन बनीं, प्रेम नाम है लूट।

प्रेम बना षड्यंत्र है, कानूनी है छूट।।

शादी कर वारिस बनें, देती हैं फिर मार।

प्रेम और अपराध का, ग्लोबल है बाजार।।

प्रेम बिके बाजार में, मोबाइल की धूम।

कीमत सबको चाहिए, पल में लेते चूम।।


Sunday, July 21, 2024

नहीं, प्रेम का गाया गाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना। 


प्रेम को ही है, जीवन माना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।

हमें भले ही, हो ठुकराया,

हमने सीखा, गले लगाना।

नहीं, प्रेम का गाया गाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

नहीं चाहते, तुमको पाना।

नहीं किसी को है ठुकराना।

स्वाभिमान से जीओ प्यारी,

नहीं गाते हम प्रेम का गाना।

नहीं चाहते तुम्हें रिझाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

नहीं तोड़ सकते हम तारे।

अपने सपने, तुम पर वारे।

तुमरी खुशियों की खातिर ही,

तुमरे प्रेमी, हमको प्यारे।

मन्द-मन्द तुम बस, मुस्काना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

हमारी खातिर, मत तुम रुकना।

हमारी खातिर, मत तुम झुकना।

आनन्द मिले, तुम वहाँ पर जाओ,

साथ हमारे, मिले, यदि सुख ना।

जिसको चाहो, उसको पाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

बंधन में ना, तुमको बाँधा।

खुद मिटकर, तुमरा हित साधा।

जब हो जरूरत, तुम आ जाना,

तुमरे लिए है, हमारा कांधा।

तुमरे बिन, मरना, हमने माना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।

तुम्हारे साथ, जीवन है झरना।

तुम्हारे साथ, नहीं है डरना।

प्रेम सदैव आनन्द बाँटता,

नहीं किसी का सुख है हरना।

सबके जीवन में सुख लाना।

प्रेम को जीया, नहीं है जाना।।


Saturday, July 6, 2024

मजबूरी में साथ न आओ

कर्म करो, और पाओ

                                              / डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

चाह है केवल इतनी मेरी, तुम आगे बढ़ती जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

अपनी कोई चाह नहीं है।

दिल को दिल की थाह नहीं है।

पीड़ा भी सुख से सह लेते,

पीड़ा देती आह नहीं है।

स्वस्थ रहो, और मस्त रहो, मनमौजी बन जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

मजबूर तुम्हें, नहीं करेंगे।

हमने किया, हम ही भरेंगे।

प्रेम कभी भी नहीं बाँधता,

खुश रहो, हम सब सह लेंगे।

चाह नहीं, कुछ पाने की, जो चाहो तुम पाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

इच्छा कोई शेष नहीं है।

तुम्हारे लायक वेश नहीं है।

चाहत अपनी पा लो बढ़कर,

हमारे पास कुछ शेष नहीं है।

हमको नहीं कोई शिकायत, जहाँ चाहो वहाँ जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।

पाने की कोई चाह नहीं है।

देने को कुछ खास नहीं है।

स्वस्थ रहो, बस यही कामना,

प्रेम मरा, अहसास नहीं है।

अब हम नहीं रोकेंगे तुमको, जिसको चाहो, जाओ।

मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।


Tuesday, June 11, 2024

पितृ गृह में अधिकार हो पूरा,

स्वागत में पति बैठे हैं। 


बेटी को हम बेटी समझें, भार मान क्यूँ बैठे हैं।

कोरे हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

जिस घर में है जन्म लिया।

जिस घर को है प्रेम दिया।

भूल से भी, ना कहना पराई,

बसता उसका वहाँ जिया।

बेटी है, पूरा हक उसका, सब उसके दिल में पैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

बचपन में है प्रेम लुटाया।

किशोर अवस्था पाठ पढ़ाया।

कण-कण में अधिकार है उसका,

प्रेम से सींचा, प्रेम बढ़ाया।

दहेज का तो विरोध हो करते, संपत्ति दबाए बैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।

बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ।

सम्मान, साथ, अधिकार दिलाओ।

वारिस बेटियों को स्वीकारो,

सहभाग करो, सहभागी पाओ।

पितृ गृह में अधिकार हो पूरा, स्वागत में पति बैठे हैं।

कोरा हम आदर्श बखानें, व्यर्थ ही उससे ऐंठे हैं।।


Monday, June 10, 2024

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो,

 कुछ मस्ती भी तो जरूरी है


जहाँ चाहो तुम, रहो वहाँ पर, साथ की, ना मजबूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

पढ़ी-लिखी अब समझदार हो।

खतरों से भी, खबरदार हो।

अपने पैरों खड़ी हुई हो,

समझती खुद को असरदार हो।

इच्छा अपनी, मर चुकी सारी, तुम्हारी, न रहें, अधूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

मजबूरी में साथ न आओ।

जो चाहो, वह गाना गाओ।

साथ हमारे रस न मिलेगा,

जाओ प्यारी, जीवन रस पाओ।

जीवन फसल, लुट गई सारी, बाकी अब, बस तूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।

रूप, रस, गंध, स्पर्ष नहीं है।

पाने की भी, अब, चाह नही है।

चाहत तुम्हारी, रहीं अधूरी,

तुम्हारे दिल की थाह नहीं है।

नहीं जरूरत, तुम्हें हमारी, तुम्हारी दुनिया,  पूरी है।

स्वस्थ रहो, और व्यस्त रहो, कुछ मस्ती भी तो जरूरी है।।


Sunday, June 9, 2024

सुधा समझ पीने चले थे

 निकली विष की प्याली है

9.06.2024

सब कहते काली, काली है, वह, कानूनन घरवाली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।

झूठ और कपट की देवी।

शातिर वह पैसों की सेवी।

पैसा जाति, पैसा धर्म है,

बेईमान प्राणों की लेवी।

जाति झूठ और धर्म झूठ है, तन फर्जी, मन जाली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।

रूप  नहीं, कोई रंग नहीं है।

जीने का कोई ढंग नहीं है।

संबन्ध बनाकर वह है लूटे,

विषकन्या! कोई संग नहीं है।

काया की ही नहीं, कलुष, वह, अन्तर्तम से काली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।

केवल धन की लूट न करती।

रक्त पिपासू प्राण भी हरती।

शिकार फंसा जो, कभी न छोड़ा,

सब कुछ ले, सम्मान भी हरती।

पीड़ित कर ही, खुशी मिले उसे, रूदन पर, बजाती ताली है।

सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।


कविता अब लिखते हैं केवल

 तुम बिन हमने गान न गाए

23.05.2024

तुमने जीना सिखलाया था, तुम बिन जीना सीख न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

हमें नहीं तुमसे कुछ पाना।

हमको केवल साथ निभाना।

भले ही हमसे दूर रहो तुम,

गाते हैं हम तुम्हारा गाना।

तुम्हारे दर्द में डूबे थे हम, अपना दर्द कभी सुना न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

तुम्हारे बिना, जीवन में रस ना।

तुम्हें रोकना, हमारे बस ना।

तुम्हारी नहीं, कोई मजबूरी,

खुश रह सको, वहां ही बसना।

बिन बंधन भी बँधे हुए हम, साथ नहीं हो, मान न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

कदम-कदम यहाँ जाल बिछे हैं।

शातिराना षड्यंत्र, फंसे हैं।

लुटेरों ने निर्दय बन लूटा,

सिर्फ नेह, कुछ तार बचे हैं।

तुम नहीं, बस याद साथ हैं, यादों को हम, भुला न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।

तुम्हें जरूरत नहीं हमारी।

हमें जरूरत सदा तुम्हारी।

तुम्हारे साथ तो है जग सारा,

आश बची ना, कोई हमारी।

षड्यंत्रों के वार हैं झेले, तुम्हारे सिवा कुछ सोच न पाए।

कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।


Thursday, June 6, 2024

जीवन सरिता बहती प्रतिपल

रूकने का कोई काम नहीं है

19-5-2024


कुछ पल का ठहराव ये पथ में, ठहरो, पर, ये, धाम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।

जन्म से लेकर मृत्यु तक।

शमशान से बस्ती तक।

अकिंचन से बड़ी हस्ती तक।

हवाई जहाज से कश्ती तक।

अविरल यात्रा है इस जग में, रुक जाए, वह नाम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।

शिक्षा ही प्रगति लाती है।

शिक्षा मानव को भाती है।

शिक्षा से पथ मिलता सबको,

शिक्षा विकास गान गाती है।

प्रकृति से शिक्षा मिलती है, शिक्षा बिन कोई राम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।

प्रेम नहीं, कभी ठहरा है।

उथला हो या फिर गहरा है।

परिवर्तन है प्रकृति प्रकृति की,

थमा नहीं कोई चेहरा है।

दिन भी चलता, रात भी चलती, गति की कोई शाम नहीं है।

जीवन सरिता बहती प्रतिपल, रूकने का कोई काम नहीं है।।


Saturday, June 1, 2024

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा

और कोई अरदास नहीं है

                                              

प्रेम नहीं है कोई सौदा, बदले में कोई आश नहीं है।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।

पथ पर आगे बढ़ते जाओ।

प्रसन्न रहो, सदा मुस्काओ।

निराश कभी ना होना तुम प्रिय, 

जब तुम कभी, चाहत ना पाओ।

जरूरतें हीं, पूरी होतीं, आता सब कुछ पास नहीं है।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।

तुम्हारे लिए थे, कुछ पल ठहरे।

डूब रहे अब, जल में गहरे।

तुमको तुम्हारा मिले किनारा,

नहीं लगाएंगे हम पहरे।

जो चाहो, कर्म से पाओ, हमारे पास अब खास नहीं है।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।

तुमको मिल जाए, प्रेम तुम्हारा।

मजबूत बनो, चाहो न सहारा।

पथ में बाधक, नहीं बनेंगे,

तुम्हें मुबारक, पथ हो तुम्हारा।

भाव! अभी भी बाकी हैं कुछ, जीवित, अब भी लाश नहीं हैं।

प्रेम है सबसे अच्छी पूजा, और कोई अरदास नहीं है।।


Thursday, May 23, 2024

लिखना-पढ़ना ही आता था

 तुमने जीवन गान सिखाए

23.05.2024


तुमसे जीना सीखा हमने, तुम बिन जीवन मान न पाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।

तुम बिन जीवन पीछे छूटा।

परिस्थितियों ने जमकर कूटा।

हिसाब-किताब सब भूल गए हैं,

जमाने ने है, सब कुछ लूटा।

भटक रहे जंगल में फिर से, तुम बिन कौन जो राह दिखाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।

राह भटक कर, तुमसे बिछड़े।

जीवन की राहों में पिछड़े।

तुमको मित्र मिले बहुतेरे,

हमको मिले लुटेरे हिजड़े।

नहीं रही इच्छा जीने की, तुम बिन कौन जो चाह जगाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।

तुमको अपने मित्र मिल गए।

जीवन के सब रंग खिल गए।

नृत्य करो, खुशियों में झूमो,

देखो न हमें, घाव सिल गए।

तुम्हारे सुख से सुखी रहें हम, तुम्हारी आश ही आश जगाए।

लिखना-पढ़ना ही आता था, तुमने जीवन गान सिखाए।।


Tuesday, May 21, 2024

जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत

जाने की तैयारी है

19-5-2024


नहीं कोई है, संगी-साथी, नहीं किसी से यारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।
जहाँ भेज दें, वहीं जाएँगे।
सेवा से संतुष्टि पाएँगे।
नहीं कोई इच्छा है अपनी,
शिक्षा प्रसार के, गीत गाएँगे।
समावेशी शिक्षा मिले सबको, लगाएँ ऊर्जा सारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।
भाषा की बाधा न रहेगी।
मात्र-भाषा में शिक्षा मिलेगी।
कक्षा कक्ष से बाहर जाकर,
अनुभव से भी सीख फलेगी।
बहुविधि आकलन करने हेतु अब, आई परख की बारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।
जन-सेवक हम सारे शिक्षक।
शिक्षार्थी भी, साथ परीक्षक।
नवाचार कक्षा में कर अब,
निपुण बनें, छात्र और शिक्षक।
सब-शिक्षित और कुशल बनेंगे, नर हों या फिर नारी है।
जहाँ जरूरत, वह खुबसूरत, जाने की तैयारी है।।

Monday, May 20, 2024

योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन,

असमय ही मर जाते हैं

20/05/2024
टारगेट, जब तनाव देत हैं, कर्म न हम कर पाते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।
जीवन का है अर्थ समझना।
नहीं किसी को व्यर्थ समझना।
संदर्भ और प्रयोग समझकर,
जिज्ञासु! वाक्य का अर्थ समझना।
जीवन का ही, लक्ष्य न समझे, लक्ष्य गान, हम गाते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।
कर्म तुम्हारे हाथ, सही है।
यही सीख, गीता ने कही है।
यात्रा का, आनंद उठाओ,
आगे भी तो, वही मही है।
कर्म बीज है, धैर्य सिंचाई, समय पर ही, फल आते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।
राष्ट्रप्रेमी की, नहीं, कुछ इच्छा।
कदम-कदम है, मौज परीक्षा।
कर्म की खातिर, कर्म करो बस,
अनुभव देता, सच्ची दीक्षा।
फल नहीं, बस कर्म लक्ष्य हैं, हम सबको समझाते हैं।
योजना, कर्म, संतुष्टि के बिन, असमय ही मर जाते हैं।।

Sunday, May 19, 2024

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका,

 हर रूप में सदैव अनूठी हो

13.02.2024


ब्रह्माणी सृजन करती हो, जीवन की तुम ही बूटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

सरस प्रेम की मूरत हो।

सदगुण निधि खुबसूरत हो।

ज्ञान की देवी, हो सरस्वती,

क्रोध में काली, भय पूरत हो।

आकषर्ण में सबको बाँधा, गृहस्थ धर्म की खूँटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

प्रथम षिक्षिका तुम मानव की।

विध्वंसक हो तुम दानव की।

कभी मृत्यु की देवी हो तुम,

प्रेम भरी फुहार सावन की।

रहस्य नीति से छलती जग को, प्रेम से जग को लूटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

काम की देवी रति तुम्ही हो।

वेदों की भी ऋचा तुम्हीं हो।

लक्ष्मण की तुम रेख न लांघो,

रामायण की सीता तुम्हीं हो।

वैभव की देवी लक्ष्मी हो, शक्ति स्रोत, ना चूँटी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।

गंभीरता की खान तुम्हीं हो।

हल्की होकर पान तुम्हीं हो।

सहनषीलता की देवी तुम,

षिक्षा की तो शान तुम्हीं हो।

पुरुषार्थ असफल हो जाता, किस्मत संगिनी रूठी हो।

माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, हर रूप में सदैव अनूठी हो।।


Sunday, May 12, 2024

एकादश दोहे-मां


१. पत्नी जब माता बने, मां का देते मान।   

पत्नी की ही शान है, मातृ दिवस बस गान।।

2. फोटो ही हैं खिंच रहे, छपते हैं संदेश। 

 मिलने को मां तरसती, कब आएगा देश।।

3. बाहर मां का दिवस है, घर में है अंजान।  

खाने को है तरसती, कैसा मिलता मान।।

4. घड़ी घड़ी हमने पिया,  मां का पावन दूध। 

खाना हम ना दे सके, वाह वाह हो खूब।।

5. ना कोई मुझको कमी, सच ना मां के बोल।

 भूखी रह कर जी रही, पीकर विष के घोल।।

6. मां तो मां है आज भी,  सब कुछ देती वार। 

भूखी भी आशीष दे, सहे भूख की मार।।

7. सब कुछ उसको मिल रहा, झूठे बोले बोल। 

सच हमसे ना कह सके, यही हमारी पोल।।

8. रोटी सुत ना दे सके, जीवन को धिक्कार। 

व्यर्थ मान सम्मान है, हम हैं बस मक्कार।।

9. कितना अक्षम आज में, कितना हूं लाचार। 

मां को साथ न मिल सका, नीच हुआ आचार।।

10. कदम-कदम पर अब तलक, होता आया फेल।                  

जीने में जीवन नहीं, जीवन जलती जेल।।

11. जननी को ही मान ना, रोटी को है रार।  

जीवन का कुछ मोल ना, जीवन है बस खार।।

Thursday, April 11, 2024

रिश्तों का गुलदस्ता तो बस

 प्रेम रंग से खिलता है


पल में तोला, पल में माशा, पल में मन बन जाता है।

पल में बोला, पल में खोला, पल में रिश्ता बन जाता है।

परिवर्तन है मूल जगत का, मानव पशु बन जाता है।

स्वारथ यहाँ पर प्रेम कहाता, प्रेमी मौत बन आता है।

आकर्षण होता है विष में, शातिर विश्वास जमाता है।

काले लोग हैं, काले दिल हैं, प्रेम ठगी का नाता है।


विश्वास से ही है धोखा होता, विश्वासघात कहलाता है।

नारी स्वार्थ बस, नारीत्व बेचती, वह धंधा बन जाता है।

कानूनों से खेल खेलते, जीवन खिलवाड़ बन जाता है।

शातिर औरत शिकार खेलती, मर्द शिकार बन जाता है।

झूठे दहेज के केस हैं होते, फर्जी, बलात्कार हो जाता है।

व्यक्ति और परिवाह हैं मिटते, विश्वास ढह जाता है।


विश्वास, प्रेम, निष्ठा से ही, समाज का आधार बनता है।

आस्था और समर्पण से, परिवार का आँगन सजता है।

तेरा-मेरा, अपना-पराया, रिश्तों का बाजा बजता है।

अधिकारों के संघर्ष से, घर का, ताना-बाना विखरता है।

कानूनों से प्रेम न उपजे, सिर्फ अपराध उपजता है।

रिश्तों का गुलदस्ता तो बस, प्रेम रंग से खिलता है। 


जीवन साथी नहीं है कोई,

आओ कुछ पग साथ चलें


जीवन का कोई नहीं ठिकाना, कैसे जीवन साथ चले?

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥



चन्द पलों को मिलते जग में, फ़िर आगे बढ़ जाते है।

स्वार्थ सबको साथ जोड़ते, झूठे रिश्ते-नाते हैं।

समय के साथ रोते सब यहां, समय मिले तब गाते हैं।

प्राणों से प्रिय कभी बोलते, कभी उन्हें मरवाते हैं।

अविश्वास भी साथ चलेगा, कुछ करते विश्वास चलें।

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥



कठिनाई कितनी हों? पथ में, राही को चलना होगा।

जीवन में खुशियां हो कितनी? अन्त समय मरना होगा।

कपट जाल है, पग-पग यहां पर, राही फ़िर भी चलना होगा।

प्रेम नाम पर सौदा करते, लुटेरों से लुटना होगा।

एकल भी तो नहीं रह सकते, पकड़ हाथ में हाथ चलें।

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥



शादी भी धन्धा बन जातीं, मातृत्व बिक जाता है।

शिकार वही जो फ़से जाल में, शिकारी सदैव फ़साता है।

विश्वास बिन जीवन ना चलता, विश्वास ही धोखा खाता है।

मित्र स्वार्थ हित मृत्यु देता, दुश्मन मित्र बन जाता है।

कुछ ही पल का साथ भले हो, डाल गले में हाथ चलें।

जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥


Thursday, April 4, 2024

दोहा सबका मित्र है

 दोहा छोटा छन्द है, अभिव्यक्ति का नूर।

चन्द पलों में ही बनें, सीख देत भरपूर॥१॥


चार चरण में बनत है, दो हैं विषम कहात।

मात्रा तेरह विषम में, ग्यारह सम में आत॥२॥


पहला तेरह से बने, ये है विषम कहात।

तृतीय भी तो विषम है, तेरह से ही बात॥३॥


दूजे को सम कहत हैं, ग्यारह में हो बात।

चौथा इसका मित्र है, एक प्राण दो गात॥४॥


दोहा सबका मित्र है, सरल, सहज ओ नीक।

राष्ट्र्प्रेमी की चाह, आओ सब लो सीख॥५॥

Wednesday, April 3, 2024

राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२०

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति का, एक ही है मन्तव।

शिक्षित हों सब नागरिक, सब पहुंचे गन्तव्य॥१॥

गुणवत्ता की दौड़ में, शिक्षा करे सहाय।

कुशल, समर्थ, सक्षम बन, सब मिल करें उपाय॥२॥

पांच वर्ष आधार बन, तीन में हों तैयार।

तीन वर्ष का मध्य है, चार माध्यमिक पार।।३॥

साक्षरता संख्यांक से, निर्मित हो आधार।

कुशल और सक्षम बनें, विकसित कारोबार॥४॥

शिक्षक कुशल सक्षम बनें, विकसित हों संस्थान।

विद्यार्थी हो केन्द्र में, विश्व गुरु का मान॥५॥

नर-नारी में भेद ना, समावेश है नीक।

साथ-साथ सब मिल बढ़ें, कदम-कदम है सीख॥६॥


Friday, March 29, 2024

रेखा धन की खिच गई

 निन्यानवे के फ़ेर में भूल गए सब शौक।

पैसा हावी हो गया, नौकरी को बस धौक।

सम्बन्धों के जाल में, मरने लगा विश्वास,

रेखा धन की खिच गई, मिट गए सारे शौक॥

Tuesday, March 7, 2023

तुमको भी शुभ कामना

 नया मिले फिर यार


होली की शुभकामना, सब ही सबको देत।

खा पीकर हुल्लड़ करें, नहीं किसी का फेथ।।1।।

रंगों की बारिस करें, प्रेमी सब हर लेत।

संस्कृति के नाम पर, संस्कारों की भेंट।।2।।

पवित्र यह त्यौहार है, सबको माने यार।

इक दूजे को छल रहे, नर हो या फिर नार।।3।।

प्राकृतिक अब हैं नहीं, रंग हुए बे मेल।

खुशियों की होली जली, दिल होते हैं फेल।।4।।

नहीं राग रस रंग है, नहीं प्रेम की डोर।

मिलने के अब रंग ना, सबके अपने छोर।।5।।

नायक धन से तुल रहा, ठगिनी दिल की चोर।

होली अब होली नहीं, केवल होता शोर।।6।।

केवल बाकी चाहतें, आहत हैं नर-नार।

केमीकल के रंग हैं, नहीं प्रेम की धार।।7।।

जीवन है नीरस हुआ, अंकों का है खेल।

धन से दिल हैं बिक रहे, प्रेम हुआ है फेल।।8।।

ना शुभ है, ना कामना, प्रेम हुआ है फेक।

कॉपी, कट ओ पेस्ट है, होली की नव टेक।।9।।

हुल्लड़ से बचने चले, बचा न कोई यार।

शादी का सौदा हुआ, प्रेमी एसिड वार।।10।।

हुरियारे हैं खेलते, छल के कैसे खेल?

धन की खातिर होत हैं, नर नारी के मेल।।11।।

तुमको भी शुभ कामना, नया मिले फिर यार।

जीवन जीना प्रेम से, करना ना फिर वार।।12।।


Saturday, March 4, 2023

जीवन की कीमत पर देखो

 धन और पद ये जुटाते हैं

                                           

सभी प्रेम के गाने गाकर, नफरत चहुँ ओर लुटाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

संबन्धों के, भ्रम में, हम जीते।

सुधा के भ्रम, गरल हैं पीते।

कपट करें कंचन की खातिर,

खुद ही खुद को, लगाएं पलीते।

कंचन काया नष्ट करें नित, फिर कुछ कंचन पाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

प्रेम नहीं कहीं हैं मिलता।

फटे हुए को है जग सिलता।

नवीनता का ढोंग कर रहे,

जमा रक्त है, नहीं पिघलता।

अपनत्व ही जाल बना अब, अपना कहकर खाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

अपनों का हक मार रहे हैं।

संबन्ध इनकी ढाल रहे हैं।

स्वारथ पूरा करने को ही,

संबन्धों को साध रहे हैं।

अपना कह कर लूट रहे नित, अपना कह भरमाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।


Friday, March 3, 2023

क्या चरित्र की परिभाषा है?

समझ नहीं कुछ भी आता है


 क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है।

कागज के टुकड़े से व्यक्ति, चरित्रवान बन जाता है।।

कदम-कदम पर झूठ बोलता।

रिश्वत लेकर पेज खोलता।

चरित्र प्रमाण वह बांट रहा है,

जिसको देखे, खून खोलता।

देश को पल पल लूट रहा जो, जन सेवक कहलाता है।

क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है।।

चरित्र की परिभाषा कैसी?

छल-कपट की ऐसी-तैसी।

राष्ट्र की जड़ को खोद रहे जो,

तिलक लगाते ऋषियों जैसी।

संन्यासी खुद को बतलाकर, मठाधीश बन इठलाता है।

क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है।।

नर-नारी संबन्ध निराले।

प्रेम से बने, प्रेम के प्याले।

प्रेम में सारे बंधन तोड़ें,

प्रेम लुटाते हैं मतवाले।

निजी प्रेम संबन्धों से कोई, क्यों चरित्रहीन बन जाता है।

क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है।।

बेईमान चरित्रवान क्यों?

चरित्र प्रमाण बांट रहा क्यों?

नारी नर को लूट रही है,

बन जाता नर ही दोषी क्यों?

राष्ट्रप्रेमी प्रेम ये कैसा? प्रेमी प्रेम को मरवाता है।

क्या चरित्र की परिभाषा है? समझ नहीं कुछ भी आता है।

Tuesday, February 7, 2023

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल

पल पल सबको प्रेम लुटाते


सबके हित में कर्म करें, बस नहीं प्रेम के गाने गाते। 

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल, पल पल सबको प्रेम लुटाते।।

कर्तव्य पथ पर अविचल चलते।

बाधाओं से कभी न डरते।

प्रेम नाम धोखे खाकर भी,

नहीं प्रेम के पथ से हटते।

प्रेम नहीं अधिकार जताता, समर्पण से दिल जीते जाते।

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल, पल पल सबको प्रेम लुटाते।।

प्रेमी न करते कोई दावा।

नहीं पूजते काशी-काबा।

चाहत तो वासना होती है,

प्रेम नहीं है, कोई ढाबा।

प्रेम नाम षड्यंत्र जो रचते, नफरत और घृणा ही पाते।

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल, पल पल सबको प्रेम लुटाते।।

प्रेम की नहीं कोई है सीमा।

प्रेम नहीं, शादी का बीमा।

बदले में जो प्रेम माँगता,

वासना वह, जहर है धीमा।

प्रेमी प्रेम को सजा न चाहे, प्रेमी प्रेम को नहीं मरवाते।

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल, पल पल सबको प्रेम लुटाते।।

प्रेम को कोई समझ न पाया।

सिर्फ प्रेम का गाना गाया।

प्रेम पात्र पर ऐसिड फेंका,

ऐसे प्रेम से, प्रेम लजाया।

पिशाच प्रेम का स्वांग रचाते, प्रेमिका के टुकड़े हो जाते।

प्रेम पुजारी हैं, हम केवल, पल पल सबको प्रेम लुटाते।।

 

Monday, February 6, 2023

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की,

  नहीं जेल, अब जेल है

                                     

चाह नहीं अब रही किसी की, सबने खेला खेल है।

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल, अब जेल है।।

कर्म कर्म के लिए करें हम।

कदम कदम हैं छले, जले हम।

नहीं किसी से कोई शिकायत,

खुद ही खुद के साथ चलें हम।

पथिकों का है आना-जाना, जीवन चलती रेल है।

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल अब जेल है।।

छिनने का कोई भय नहीं हमको।

लूट का माल, मुबारक तुमको।

षड्यंत्रों से मुक्ति मिले बस,

पी जाएंगे सारे गम को।

स्वार्थ-वासना की आँधी में, संघर्ष की रेलम पेल है।

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल अब जेल है।।

विश्वास करे, विश्वास घात है।

कर्म हैं काले, काली रात है।

तुम से, प्यारी सीख मिली है,

नीच कर्म ही नीच जात है।

राष्ट्रप्रेमी को, प्रेम,  प्रेम से, स्वारथ से ना मेल है।

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल अब जेल है।।

नहीं प्रेम की बातें करते।

नहीं किसी का सोना हरते।

जितना चाहो उतना लूटो,

लुटने से हम नहीं हैं डरते।

झूठ का इत्र मुबारक तुमको, हमको सच का तेल है।

चाह नहीं है, हमें स्वर्ग की, नहीं जेल अब जेल है।।


Sunday, February 5, 2023

पैसा ही है, सार जगत का

                        पैसे से सब खेल है

                                     


पैसा ही है, सार जगत का, पैसे से सब खेल है।

पैसे खातिर हत्या होतीं, पैसे हित ही मेल है।।

पैसे से हैं रिश्ते-नाते।

प्रेम गीत पैसे हित गाते।

पैसे के सब संगी साथी,

पैसे से बच्चे बिक जाते।

पैसा देख शादी होती हैं, षड्यंत्रों की रेल है।

पैसा ही है, सार जगत का, पैसे से सब खेल है।।

पैसे से सुविधा मिलती हैं।

पैसे से झांकी सजती हैं।

पैसे से सब स्वारथ पूरे,

पैसे से रमणी रमती है।

पैसे की ही माया देखो, होटल बनती जेल है।

पैसा ही है, सार जगत का, पैसे से सब खेल है।।

पैसा ही है, पति, पत्नी का।

पैसा ही नायक रमणी का।

राष्ट्रप्रेमी है दास प्रेम का,

मोल नहीं कोई दमड़ी का।

पैसा, प्रेमी, तुम्हें मुबारक, निकला हमारा तेल है।

पैसा ही है, सार जगत का, पैसे से सब खेल है।।


Thursday, January 26, 2023

शोभा है गणतंत्र की

 

                                     

कर्म, विज्ञान, विश्वास है, निराशाओं का अंत।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।

गणतंत्र नहीं सत्ता तक सीमित।

सामूहिक हित में, हैं सब बीमित।

गण के तंत्र को जीना सीखें,

क्षण-क्षण इसके लिए ही जीवित।

बासंती रंग में रंग कर के, वसुधा हित हम बने हैं संत।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।

विरोधों का सम्मान करें हम।

कर्म हेतु ही कर्म करें हम।

मृत्यु हमारी चिर प्रेयसी,

पल पल को उत्सर्ग करें हम।

राष्ट्रप्रेमी तो प्रेम पथिक है, सेवक है बस, नहीं महंत।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।

बलिदानों के हैं हम आदी।

देश की खातिर पहनी खादी।

कण-कण के हैं प्रेम पुजारी,

प्रकृति से कर ली हमने शादी।

बसंत से खिले, यौवन सबका, पतझड़ पर लग जाय हलंत्।

शोभा है गणतंत्र की, खिला हुआ है आज बसंत।।


Sunday, January 1, 2023

तेईस का स्वागत! बाईस को टाटा!

राष्ट्रप्रेमी है प्रेम लुटाता।


सर्दी से सब ठिठुर रहे हैं।
मौसम को हम झेल रहे हैं।
रूस यूक्रेन में युद्ध हो रहा,
जीवन से ही खेल रहे हैं।

कोरोना की आहट फिर से।
नहीं किसी की चाहत फिर से।
दो हजार बाईस बीत गया यूँ,
तेईस की गरमाहट फिर से।

आओ नई कुछ आस जगाएं।
संबन्धों में गरमाहट लाएं।
शांति और अहिंसा की खातिर,
नफरत तजकर गले लगाएं।

युद्ध का, ये,  समय नहीं है।
विकास हो सबका, यही सही है।
जो बीत गया, वह बीत गया है,
प्रकृति प्रेम की बांह गही है। 

मिलकर आगे बढ़ना होगा।
बाधाओं को तजना होगा।
दिखावा बहुत किया है अब तक,
यथार्थ के पथ पर चलना होगा।

युद्ध में, ये,  वर्ष न बीते।
हाथ नहीं, रह जाएं रीते।
बुद्धि से सब काम करें पर,
दिलों से, दिलों को आओ जीतें।

जबरन के संबन्ध न थोपें।
कोई किसी को छुरा न भोंके।
नर-नारी मिल बढ़ें प्रेम से,
तन से सिर, ना जुदा हो, रोकें।

लिव इन में, तुम रहो भले ही।
प्रेम से, प्रेम को, सहो भले ही।
साथी को, कोई घाव न देना,
प्रेम से हो अलगाव भले ही।

नव वर्ष का आनंद मनाओ।
ध्वनि प्रदूषण नहीं बढ़ाओ।
उत्सव में हो, जीवन प्यारा,
पर्यावरण को ना क्षति पहुँचाओ।

आओ! मिल, परिवार बचाएं।
समाज को ना क्षति पहुँचाएं।
वैयक्तिक स्वातंत्र भले लो,
वसुधा कुटुंब है, इसे सजाएं।

ईर्ष्या द्वेष नफरत को छोड़ें।
बम और पटाखे, न फोड़ें।
बाल, वृद्ध, महिलाओं की सुरक्षा,
आओ, दिलों को दिलों से जोड़ें।

राष्ट्रप्रेमी है प्रेम लुटाता।
नहीं किसी का शीश झुकाता।
सबका अपना-अपना पथ है,
तेईस का स्वागत! बाईस को टाटा! 



Saturday, July 9, 2022

मानव बनाना है

 

               

मेरे भारत को क्या हो रहा है ?       

एक अपनी जिन्दगी के लिए,           

कईयों की जिन्दगी ले रहा है.          

मानव ही मानव को

                          अपने अत्याचारों से किए है पीड़ित,

गान्धी आजाद विवेकानन्द के, 

विश्वास भंग किए जा रहे हैं

मेरा ही मन, 

धिक्कार रहा है मुझे,

                          मेरे ही भारत को कोई उजाड़ रहा है.

अगर बचाना है मुझे,

अपना राष्ट्र, स्वाभिमान और अस्तित्व,

तो अपने स्वार्थो को भुलाना है,

विश्वास बदल न जाए अविश्वास में,

इसे ध्यान में रख,

                             अपने को रक्तरंजित नदी में डुबाना है, 

भारत को बचाना है,

मगर तेरे इस बलिदान से क्या होगा ?

दूसरों को भी इसी मोड़ पर लाना है,

जो खून बह रहा पानी की तरह,

                              उसका तुझे मानव बनाना है.

इस तरह भारत को करना,

अपने विचारों को झंकृत,

राष्ट्रप्रेमी यदि कवि है तू सच्चा,

जान जायगा देश का बच्चा-बच्चा

और तुझे भरने भारत में शुद्ध भाव.


Thursday, May 19, 2022

लेन-देन तो होता सौदा

 हम तो केवल प्रेम हैं करते, बदले में कोई चाह नहीं है।

लेन-देन तो होता सौदा, जिसकी हमको थाह नहीं है।।

कितने भी हो प्रेमी तुम्हारे।

हक मिल जाएं, तुम्हें तुम्हारे।

पाने की कोई चाह न हमको,

प्राण बख्स दो सिर्फ हमारे।

माँगे तुम्हारी पूरी करेंगे, मिलने की कोई राह नहीं है।

लेन-देन तो होता सौदा, जिसकी हमको थाह नहीं है।।

प्रेम, समपर्ण निष्ठा माँगे।

प्रेमी, प्रेम की भिक्षा माँगे।

तुम्हें मुबारक प्रेमी तुम्हारा,

हम घटनाओं से शिक्षा माँगे।

धन, पद, यश, संबन्ध मिटे सब, भरते कोई आह नहीं है।

लेन-देन तो होता सौदा, जिसकी हमको थाह नहीं है।।

लुट जाएंगे, मिट जाएंगे।

तुम चाहो तो मर जाएंगे।

जब तक जीवन, निर्भय विचरें,

समझो मत हम डर जाएंगे।

विश्वास घात की चोट जो मारी, उसकी भी परवाह नहीं है।

लेन-देन तो होता सौदा, जिसकी हमको थाह नहीं है।।


तुम तो प्यारी अंदर हो

 नहीं कोई रिश्ता है तुमसे, तुम तो दिल की मंदर हो।

हम प्यार करते हैं खुद से, तुम तो प्यारी अंदर हो।।

तुमसे है अस्तित्व हमारा।

तुमही हो बस मात्र सहारा।

तुमने ही जीना सिखलाया,

तुम ही नदी, तुम ही किनारा।

प्रेम की डोर बधें हम पुतले, तुम ही हमारी कलंदर हो।

हम प्यार करते हैं खुद से, तुम तो प्यारी अंदर हो।।

तुमसे नफरत नहीं कर सकते।

खुद ही खुद को नहीं छल सकते।

प्रारंभ और अंत भी तुम हो,

नारी बिन नर, जी नहीं सकते।

नहीं हो केवल प्रेम सरोवर, तुम तो पूरी समंदर हो।

हम प्यार करते हैं खुद से, तुम तो प्यारी अंदर हो।।

तुम हमसे कभी विलग नहीं हो।

चिंगारी बन सुलग रही हो।

शीतल अग्नि प्रेम की मधुरा,

अंर्धाग हो मेरी, अलग नहीं हो।

तूफानी खतरों में हम फँसते, तुम ही हमारी लंगर हो।

हम प्यार करते हैं खुद से, तुम तो प्यारी अंदर हो।।


Monday, May 16, 2022

मिटने की परवाह नहीं हैं

 नहीं चाह बाकी अब कोई।

बेशर्मी की ओढ़ी लोई।

पति पत्नी की भेंट चढ़ गया,

पत्नी जा यारों संग सोई।


जीने की अब चाह है खोई।

फसल काटते, जो थी बोई।

आँख बंद विश्वास किया था,

घात है गहरा, आश न कोई।


मिलने की कोई चाह नहीं है।

वियोग की भी आह नहीं है।

भंवरों को सौंपा है खुद को,

खोजते कोई राह नहीं हैं।


विश्वासघात की चोट है गहरी।

हम गंवार हैं, तुम हो शहरी।

कपट से कंचन महल बनाओ,

लूटेंगे तुम्हें, तुम्हारे प्रहरी।


जिसकी कोई चाह नहीं है।

बाकी कोई राह नहीं है।

सब कुछ मिटा दिया है तुमने,

मिटने की परवाह नहीं हैं।


Saturday, May 14, 2022

जीवन की कीमत पर देखो

धन और पद ये जुटाते हैं 


सभी प्रेम के गाने गाकर, नफरत चहुँ ओर लुटाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

संबन्धों के, भ्रम में, हम जीते।

सुधा के भ्रम, गरल हैं पीते।

कपट करें कंचन की खातिर,

खुद ही खुद को, लगाएं पलीते।

कंचन काया नष्ट करें नित, फिर कुछ कंचन पाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

प्रेम नहीं कहीं हैं मिलता।

फटे हुए को है जग सिलता।

नवीनता का ढोंग कर रहे,

जमा रक्त है, नहीं पिघलता।

अपनत्व ही जाल बना अब, अपना कहकर खाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।

अपनों का हक मार रहे हैं।

संबन्ध इनकी ढाल रहे हैं।

स्वारथ पूरा करने को ही,

संबन्धों को साध रहे हैं।

अपना कह कर लूट रहे नित, अपना कह भरमाते हैं।

जीवन की कीमत पर देखो, धन और पद ये जुटाते हैं।।