Saturday, July 9, 2022

मानव बनाना है

 

               

मेरे भारत को क्या हो रहा है ?       

एक अपनी जिन्दगी के लिए,           

कईयों की जिन्दगी ले रहा है.          

मानव ही मानव को

                          अपने अत्याचारों से किए है पीड़ित,

गान्धी आजाद विवेकानन्द के, 

विश्वास भंग किए जा रहे हैं

मेरा ही मन, 

धिक्कार रहा है मुझे,

                          मेरे ही भारत को कोई उजाड़ रहा है.

अगर बचाना है मुझे,

अपना राष्ट्र, स्वाभिमान और अस्तित्व,

तो अपने स्वार्थो को भुलाना है,

विश्वास बदल न जाए अविश्वास में,

इसे ध्यान में रख,

                             अपने को रक्तरंजित नदी में डुबाना है, 

भारत को बचाना है,

मगर तेरे इस बलिदान से क्या होगा ?

दूसरों को भी इसी मोड़ पर लाना है,

जो खून बह रहा पानी की तरह,

                              उसका तुझे मानव बनाना है.

इस तरह भारत को करना,

अपने विचारों को झंकृत,

राष्ट्रप्रेमी यदि कवि है तू सच्चा,

जान जायगा देश का बच्चा-बच्चा

और तुझे भरने भारत में शुद्ध भाव.


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