Friday, February 22, 2008

धार्मिक नहीं, आडम्बरी

हम बड़े गर्व के साथ कहते हैं। भारत एक आध्यात्मिक देश है। वर्तमान वातावरण कुछ एस प्रकार का बन रहा है, जैसे देश में धर्म की बाढ़ आ गयी हो। धार्मिक स्थलों पर बढ़ती भीड़, धार्मिक पत्र-पत्रिकाओं की बढ़ती संख्या व बढ़ता प्रसार, धार्मिक चेनलों की बाढ़ व बढ़ते दर्शक ही नहीं आज देश के अधिकांश समाचार पत्र साप्ताहिक विशेष आध्यात्मिक परिशिष्ट देने लगे है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे देश के अधिकांश स्त्री-पुरुष धर्मिक हो गए हों। ईश्वर मके लिए लोंगों के दिल मी श्रद्धा की अविरल धर बहाने लगी हो। योग-गुरुओं का प्रादुर्भाव भी तीव्र गति से हो रहा है, ऐसा लगता है जैसे ईश्वर को योग विद्या का प्रचार-प्रसार करने की सनक चढ़ी हो और अचानक योग-गुरुओं की बारिश कर दी हो। योग-गुरुओं ने योग का अंग्रेजीकरण करके नया नाम योगा कर दिया है। योग के नाम पर आसन-प्राणायाम को ही सिखाया जा रहा है। योग के आधार यम् और नियमों को तिलांजलि डे दी गयी है। कहने का आशय यह है कि भारतीय योगिक क्रियाओं में से एस स्वार्थी इंसान ने उन क्रियाओं को चुन लिया है जो उसके भोतिक शरीर को पुष्ट करके और अधिक भोग करने में सक्षम बनाती हैं।

Tuesday, February 12, 2008

जीवन का सत्य

जीवन मे सत्य और असत्य का निर्णय करना बहुत ही सीधा-सदा व सहज कार्य है। हर व्यक्ति जानता है, क्या सत्य है क्या असत्य? क्या न्याय है क्या अन्याय ? इसके लिए विद्वान होने की आवश्यकता नहीं है। विद्वान व समाज के कर्णधार सत्य को जटिल बनाकर असत्य के निकट ले जाते हैं ताकि वे भ्रम का सहारा लेकर अपने स्वार्थों की सिध्दि कर सके अपनी दुकानदारी चमका सकें। हम विद्वानों से दूर रहकर अपनी स्वार्थ बुध्दि को किनारे करके , परम्पराओं व सामाजिक मान्यताओं को नजर अंदाज करके अपनी आत्मा की बात सुने, आपकी आत्मा ही सत्य की सर्वश्रेष्ठ छवि सामने लाएगी.