लुब्धानां याचकः शत्रुमूर्खाणां बोधकः रिपुः।
जारस्त्रीणां पतिः शत्रुश्चोराणां चन्द्रमा रिपुः॥६॥
मनुस्मृति दशवा अध्याय
अर्थात-
लोभी व्यक्तियों के लिये भिक्षा, चन्दा या दान मांगने वाले व्यक्ति शत्रु रूप होते हैं, क्योंकि याचक को देने के लिये उन्हें अपनी गांठ के धन का त्याग करना पड़ता है। मूर्खों को समझाने वाला व्यक्ति अपना शत्रु मालुम पड़ता है। दुराचारिणी स्त्रियों के लिये पति ही उनका शत्रु होता है, क्योंकि उसके कारण उनकी स्वतन्त्रता और स्वच्छन्दता में बाधा पड़ती है। चोर चन्द्रमा को अपना शत्रु समझते हैंं क्योंकि उन्हें चांदनी में छिपना मुश्किल होता है।
मूर्खाणां पण्डिता द्वेष्य़ा अधनानां महाधनाः।
वारांगनाः कुलस्त्रीणां सुभगानां च दुर्भगाः॥
मनुस्मृति- पंचम अध्याय- छ्ठा श्लोक
अर्थात-
पण्डितों से मूर्ख ईर्ष्या करते हैं, निर्धन बड़े-बड़े धनिकों से अकारण द्वेष करते हैं, वेश्याएं तथा व्यभिचारिणी स्त्रियां पतिवृताओं से तथा सौभाग्यवती स्त्रियों से विधवायें द्वेष करती हैं। यह संसार की मनोवृत्ति है।
जारस्त्रीणां पतिः शत्रुश्चोराणां चन्द्रमा रिपुः॥६॥
मनुस्मृति दशवा अध्याय
अर्थात-
लोभी व्यक्तियों के लिये भिक्षा, चन्दा या दान मांगने वाले व्यक्ति शत्रु रूप होते हैं, क्योंकि याचक को देने के लिये उन्हें अपनी गांठ के धन का त्याग करना पड़ता है। मूर्खों को समझाने वाला व्यक्ति अपना शत्रु मालुम पड़ता है। दुराचारिणी स्त्रियों के लिये पति ही उनका शत्रु होता है, क्योंकि उसके कारण उनकी स्वतन्त्रता और स्वच्छन्दता में बाधा पड़ती है। चोर चन्द्रमा को अपना शत्रु समझते हैंं क्योंकि उन्हें चांदनी में छिपना मुश्किल होता है।
मूर्खाणां पण्डिता द्वेष्य़ा अधनानां महाधनाः।
वारांगनाः कुलस्त्रीणां सुभगानां च दुर्भगाः॥
मनुस्मृति- पंचम अध्याय- छ्ठा श्लोक
अर्थात-
पण्डितों से मूर्ख ईर्ष्या करते हैं, निर्धन बड़े-बड़े धनिकों से अकारण द्वेष करते हैं, वेश्याएं तथा व्यभिचारिणी स्त्रियां पतिवृताओं से तथा सौभाग्यवती स्त्रियों से विधवायें द्वेष करती हैं। यह संसार की मनोवृत्ति है।
No comments:
Post a Comment
आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.