Saturday, June 11, 2016

खुद पर ही विश्वास ना, वही मांगते और



शान्ति और आनन्द तज



प्रेम कहीं ना मिल सका, प्रेम रहे थे ढ़ूढ़।

उर माहि ही स्रोत झरत, अब तक थे हम मूढ़॥


नारी का सम्मान क्यूं? क्यों नर का हो मान?

केवल सच्चे कर्म ही, जग में होत महान॥


प्रेम और विश्वास से, बढ़कर ना कुछ और।

लुटेरों की चिन्ता नहीं, सत्य का उर में ठौर॥


लूट-लूट हासिल करें, झेलन पड़े तनाव।

शान्ति और आनन्द तज, खाली हाथ जनाब॥



खुद पर ही विश्वास ना, वही मांगते और।

झूठ, छ्ल और कपट से, लूट रहे सब
ठौर॥

No comments:

Post a Comment

आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.